पुस्तकालय अध्यक्ष के कार्य एवं विशेषता | Functions and Characteristics of Librarian in Hindi
पुस्तकालय अध्यक्ष के कार्य एवं विशेषता- एक पुस्तकालय की पूरी व्यवस्था उसके अधीक्षक अर्थात् पुस्तकालयाध्यक्ष पर निर्भर करती है। वह उसका मुख्य संचालक अधिकारी होता है, कहा भी गया है कि जैसा पुस्तकालयाध्यक्ष होगा, वैसा ही पुस्तकालय होगा। यदि हमारे पास उत्तम पुस्तकों का संकलन, पुस्तकालय एवं अध्ययन कक्ष अपनी समस्त सामग्री के साथ उपलब्ध है, परन्तु उनको कुशलतापूर्वक संचालित करने वाला पुस्तकालयाध्यक्ष नहीं है तो सामग्री बहुत ही कम लाभ प्रदान करने वाली सिद्ध होगी। अतः प्रत्येक विद्यालय के लिए प्रशिक्षित एवं योग्य पुस्तकालयाध्यक्ष की आवश्यकता है। इसकी नियुक्ति पूर्ण समय के लिए की जानी चाहिए। बहुधा हमारे विद्यालयों में या तो थोड़े समय के लिए (Part Time) एक पुस्तकालयाध्यक्ष नियुक्त करके या किसी शिक्षक के अध्यापक-कार्य के लिए कुछ घण्टे कम करके पुस्तकालय का कार्य सौंप दिया जाता है, परन्तु ऐसी व्यवस्था सन्तोषजनक नहीं होती, क्योंकि इस व्यवस्था के द्वारा पुस्तकालय का सदुपयोग नहीं हो पाता है और पुस्तकालय अपने उद्देश्यों की पूर्ति नहीं कर पाता है। पुस्तकालय की सफलता एक कुशल सेवा पर ही निर्भर है। यह कुशल सेवा तभी प्राप्त की जा सकती है जब एक योग्य तथा प्रशिक्षित पुस्तकालयाध्यक्ष को पूर्ण समय के लिए नियुक्त किया जाये।
उसका वेतन, सेवा-दशाएँ (Service Conditions) आदि बातों में शिक्षक के समान रखा जाती है। उसका कार्य उतना ही महत्वपूर्ण है, जितना कि शिक्षक का। उनमें शिक्षक के कुछ गुणों की अपेक्षा की जाती है। उदाहरणार्थ- उत्साह, चातुर्य, समझदारी, सहृदयता, उपगम्यता या मिलनसारी (Approachability), मन शान्ति या सन्तुलन (Poisc)। आदि उसमें इन गुणों का होना इसलिए आवश्यक है क्योंकि वह एक शैक्षिक संस्था में व्यावसायिक एवं प्रशासकीय दोनों प्रकार के कार्यों को पूर्ण करता है। इसके साथ ही वह विद्यालय के प्रत्येक भाग की सेवा भी करता है तथा बालकों एवं बालिकाओं की सहायतार्थ उनकी रुचि के प्रत्येक क्षेत्र पर बातचीत करता है। उसकी निम्नलिखित विशेषताएँ हैं-
(1) पुस्तकों, पत्र-पत्रिकाओं आदि का वर्गीकरण करना तथा उनका लेखा रखना।
(2) उत्तम पुस्तकों की बालकों तथा शिक्षकों को जानकारी कराने के लिए उनका विभिन्न ढंगों से प्रचार करना।
(3) बालकों तथा शिक्षकों को पढ़ने के लिए पुस्तकें देना और उनको लेखबद्ध करना।
(4) विभिन्न स्तरों के बालकों के लिए उत्तम पुस्तकों की सूची तैयार करना तथा उनके पास तक पहुँचाना।
(5) पुस्तकालय में आयी हुई नवीन पुस्तकों के मुखपृष्ठों (Title Pages) तथा विभिन्न पुस्तकों के पुनर्निरीक्षणों को सूचनापट पर लगाना।
(6) बालकों को पुस्तकों के विषय में सलाह देना। इसके व्यक्तिगत या सामूहिक योजनाओं को क्रियान्वित करने के लिए जिन वस्तुओं की आवश्यकता हो, उनके विषय में बालकों को बताना ।
(7) पुस्तकालय में सुव्यवस्था रखना।
परामर्श में सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य लाईब्रेरियन की होती है-
1. नई सूचनाओं को अध्यापक और विद्यार्थियों तक पहुँचाना।
2. शिक्षक और विद्यार्थियों को शैक्षिक व व्यावसायिक निर्देशन से सम्बन्धी पुस्तक सूची उपलब्ध कराना।
3. समय-समय पर पुस्तकालय से सम्बन्धित सामग्री को उपलब्ध कराना।
4. समय-समय पर सम्पर्क अधिकारियों से परामर्श लेना। वह व्यावसायिक परामर्श से सम्बन्धित पुस्तकों को भी उपलब्ध कराता है।
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