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निम्नलिखित सूक्तियों का पल्लवन कीजिए- (1) “जीवन एक फूल है और प्रेम उसकी सुगन्ध”

निम्नलिखित सूक्तियों का पल्लवन कीजिए-
निम्नलिखित सूक्तियों का पल्लवन कीजिए-

निम्नलिखित सूक्तियों का पल्लवन कीजिए-

  1. “जीवन एक फूल है और प्रेम उसकी सुगन्ध”
  2. “निन्दक नियरे राखिये आँगन कुटी छवाय।”

(1) “जीवन एक फूल है और प्रेम उसकी सुगन्ध”

पुष्प की सार्थकता सुगन्धित होने में है, उसकी उपयोगिता सुगन्ध बिखेरने में हैं। यद्यपि उसमें रूप-रंग आदि अनेक गुण भी होते हैं लेकिन पुष्प में निहित सुगन्ध उसकी आत्मा है। उसी प्रकार मनुष्य का जीवन एक पुष्प के समान है विविध रंगों से परिपूर्ण। लेकिन यदि उसके अन्दर प्रेम की तरलता नहीं हैं, प्रेम की मधुरता नहीं है तो उसका जीवन निरर्थक है। मनुष्य के व्यक्तित्व में यद्यपि अन्य अनेक गुण होने चाहिए लेकिन प्रेम का होना प्रमुख है। बिना प्रेम के मानव जीवन अधूरा रहता है। मनुष्य तो विवेकशील होता है उसे सभी से प्रेम कचाहिए। जहाँ तक प्रेम की बात है इस घर पर विद्यमान समस्त जीव एक-दूसरे से प्रेम करते हैं, बिना प्रेम के यह जीवन पूरा नहीं होता। या मानव जीवन एक पुष्प के समान है। जिस प्रकार पुष्प की अपनी सुगन्ध और महत्व है उसी प्रकार इस मानव का भी अपना एक स्थान है जिसके द्वारा वह पहचाना जाता है। एक मानव दूसरे मानव जीवन पर्यन्त प्रेम करता है। अगर ऐसा न होता तो आज विश्व-बन्धुत्व की भावना साकार न होतं इसी प्रेम की देन है कि आज सम्पूर्ण जगत एक-दूसरे से जुड़ा हुआ है उसकी हर परिस्थितियों एक-दूसरे की सहायता करते हैं। पुष्प अपने गुण से पहचाना जाता है। मानव भी अपने गुण पहचाना जाता है। मनुष्य को अपनी जीवन में एक पुष्प की तरह सुगन्ध छोड़नी चाहिए। अपने अब कार्यों से एक-दूसरे का पूजन हो जाय यह उसकी अपनी व्यक्तिगत जीवन शैली की परिणति होती है जो पुष्प की सुगन्ध की तरह सराहनीय एवं चाहनीय होता है।

(2) “निन्दक नियरे राखिये आँगन कुटी छवाय।”

मनुष्य अपनी समझ से हमेशा प्रशंसनीय एवं सराहनीय कार्य चाहता है और करता भी है परन्तु कुछ परिस्थितियाँ या साथ ऐसा होता है कि उसे अपने मार्ग से विचलित कर देता है। हम अपनी निन्दा कभी नहीं सुन सकते। यदि कोई मेरी निन्दा करता है तो मैं उससे पीड़ित होता हूँ और मुझे दुःख होता है। यदि आप गलत कार्य करते हैं जिसके लिए आपको कोई डर, भय नहीं है तो आप उसी दिशा में आगे बढ़ते जायेंगे। गलत कार्य की जब तक निन्दा नहीं होगी तब तक आप सही कार्य के मूल्य को नहीं आँक पायेगा। कबीर की वह उक्ति कि “निन्दक नियरे राखिए” सही है क्योंकि यदि निन्दा करने वाला आपके पास में है तो आप हमेशा सही कार्य करेंगे उससे निन्दा करने का भय बना रहेगा। कबीर ने तो यहाँ तक कह दिया है कि निन्दक को अपने आँगन में कुटी बनाकर रखना चाहिए। इतना होते हुए भी समाज में एक ऐसा वर्ग पनपा है कि उसकी चाहे निन्दा करो या मारो या हवालात में डाल दो वह अपनी आदत से बाज नहीं आयेगा जिसका परिणाम यह होता है कि देश की काफी शक्ति अपनी सुरक्षा में लग जाती है। गलत कार्य करने वाला हमेशा निन्दा का पात्र होता है, और सही कार्य करने वाला स्तुति का पात्र होता है। आज भी कबीर की यह उक्ति ‘निन्दक नियरे राखिए आँगन कुटी छवाय’ अपनी सार्थकता लिए हुए प्रांसगिक है।

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