विद्यालय निर्देशन सेवा संगठन के क्षेत्र | Scope of Organization Guidance Service of School in Hindi
विद्यालय निर्देशन सेवा संगठन का क्षेत्र (Scope of Organization Guidance Service of School)- शिक्षा के विभिन्न स्तरों पर निर्देशन सेवा संगठन कार्यरत है। कोई निर्देशन सेवा संगठन सभी विद्यालय में उपयोगी नहीं हो सकता है। अतः इसमें लचीलापन होना आवश्यक है जिसमें विद्यालय की आवश्यकताओं तथा आर्थिक साधनों के अनुरूप परिवर्तन किया जा सके।
प्रारम्भिक विद्यालयों की निर्देशन सेवा संगठन (Organization Guidance Service of Primary School Level)-
प्राथमिक विद्यालयों में अध्ययन करने वाले बालकों की समस्याएँ कम होती हैं एवं अधिक गम्भीर भी नहीं होती हैं। अतः इस स्तर पर निर्देशन कार्य अध्यापक ही सम्पन्न करता है, किसी विशेषज्ञ की आवश्यकता नहीं होती है।
प्राथमिक स्तर पर निर्देशन सेवा संगठन का प्रशासन विद्यालय के हाथों में होता है। कक्षाध्यापक छात्रों के अधिक सम्पर्क में रहता है, अतः वह उनकी समस्याओं को भी भली-भाँति समझता है। निर्देशन कार्य को पूर्ण करने के लिये अध्यापक एवं प्रधानाचार्य सामाजिक संस्थाओं एवं विद्यालय के बाहर की संस्थाओं की सहायता भी लेते हैं। माता-पिता, चिकित्सक, उपस्थिति अधिकारी (Attendance Officer) आदि सभी का सहयोग प्राप्त करना होता है।
प्राथमिक स्तर पर निर्देशन के कार्यक्रम के प्रयोजन-
प्राथमिक विद्यालय में निर्देशन कार्यक्रम के अग्रलिखित प्रयोजन हो सकते हैं-
1. व्यक्तिगत छात्रों की आवश्यकताओं, समस्याओं एवं गुणों का अवलोकन।
2. अवलोकित तथ्यों का संकलित आलेख-पत्र में लेखन करना।
3. उन छात्रों को पहचानना जो विद्यालय से बाहर की समस्याओं से ग्रसित होते हैं।
उदाहरण के लिये-
(I) वे छात्र जो सामजिक या सांवेगिक समायोजन नहीं कर पाते।
(II) वे छात्र जो शिक्षा सम्बन्धी समस्याओं से ग्रसित होते हैं। इनका ज्ञान साफल्य परीक्षा द्वारा होता है।
(III) कुछ छात्र अधिक या कम मानसिक योग्यता के कारण विद्यालय के नियनित कार्यक्रम में समायोजित नहीं हो पाते हैं। ऐसे छात्र बुद्धि-परीक्षा द्वारा ज्ञात किये जा सकते हैं।
(IV) माता-पिता एवं विद्यालय के मध्य मधुर सम्बन्ध स्थापित करना।
5. उपस्थित अधिकारी के साथ सहयोग, जिससे अधिक अनुपस्थित रहने वाले छात्रों का अध्ययन हो सके।
6. छात्र के विकास का निरन्तर मूल्यांकन।
7. सभी अध्यापकों का सहयोग।
माध्यमिक विद्यालय की निर्देशन सेवा संगठन (Organization Guidance Service of High School)-
प्राथमिक विद्यालयों की अपेक्षा माध्यमिक विद्यालय में निर्देशन सेवा संगठन निश्चित रूप धारण कर लेती है। इस स्तर पर संगठन कुछ जटिल हो निदेशन समिति एवं परामर्शदाता माध्यमिक विद्यालयों में निर्देशन कार्य में प्रधानाचार्य की सहायता करते हैं। अध्यापक को माता-पिता एवं निर्देशन समिति से भी सम्पर्क स्थापित करना होता है। परामर्शदाता मुख्य व्यक्ति होता है जो निर्देशन कार्य में केन्द्रीय स्थान प्राप्त करता है।
उच्चतर माध्यमिक विद्यालय की निर्देशन सेवा संगठन (Organization Guidance Service of Higher Secondary School)-
माध्यमिक शिक्षा आयोग के प्रतिवेदन के आधार पर भारत के कुछ प्रान्तों में उच्चतर माध्यमिक विद्यालय स्थापित किये गये हैं। इसी समय छात्र विभिन्न व्यवसायों के बारे में ज्ञान प्राप्त करना चाहते हैं या विश्वविद्यालय शिक्षा प्राप्त करने के लिये कॉलेजों या विश्वविद्यालय के सम्बन्ध में सूचना प्राप्त करना चाहते हैं। अतः इन विद्यालयों में निर्देशन क्रियाओं एवं निर्देशन कर्मचारियों की अधिकता होती है।
उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में प्रधानाचार्य पर कार्य-भार अधिक होने से वह निर्देशन विभाग पर विशेष ध्यान नहीं दे पाता है। अतः निर्देशन कार्य के संगठन का काम निर्देशन- संचालक को सौंप देता है। निर्देशन कार्य में कक्षाध्यापक, कक्षा-परामर्शदाता आदि सभी सहयोग देते हैं। इस स्तर पर विशेषज्ञों की विशेष रूप से आवश्यकता होती है।
निर्देशन के क्षेत्र में कार्य करने वाले विद्वान हम्फ्री और ट्रैक्सलर ने अपनी पुस्तक ‘गाइडेन्स सर्विसेज’ में विद्यालय-निर्देशन-सेवा-संगठन के कुछ आधारभूत बातों का उल्लेख किया है-
1. विद्यालय निर्देशन सेवा संगठन- निर्देशन कार्यक्रम के उद्देश्यों का स्पष्ट निर्धारण विद्यालय-निर्देशन-सेवा-संगठन के समय कर लिया जाना चाहिये। ये उद्देश्य विद्यार्थी समुदाय की आवश्यकताओं तथा शिक्षण संस्था के आदर्श को ध्यान में रखते हुये भली प्रकार विचार कर निश्चित किये जायें।
2. कार्य निर्धारण-निर्देशन-सेवा के द्वारा पूरे किये जाने वाले कार्यों को निश्चित किया जाना चाहिये।
3. निश्चित कार्य सौंपना-निर्देशन-सेवा में लगे कर्मचारियों को निश्चित कार्य सौंपे जाने चाहिये। प्रत्येक कर्मचारी की विशेष योग्यता को ध्यान में रखते हुए कार्यों का वितरण किया जाना चाहिये।
4. अधिकार क्षेत्र का निर्धारण-निर्देशन कर्मचारी को सौंपे गये कार्य के अनुसार उसका अधिकार क्षेत्र भी निश्चित होना चाहिये।
5. कर्मचारियों की परिभाषा-निर्देशन-सेवा में पूर्णकालिक एवं अंशकालिक कर्मचारियों के सम्बन्धों की स्पष्ट परिभाषा की जानी चाहिये। इसके अतिरिक्त संस्था के अन्य कर्मचारियों के साथ उनके निर्देशन-उत्तरदायित्वों के अनुरूप सम्बन्धों का रूप निश्चित होना चाहिये।
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