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विद्यालय निर्देशन सेवा संगठन की अवधारणा पर एक विस्तृत निबन्ध लिखिए।

विद्यालय निर्देशन सेवा संगठन की अवधारणा
विद्यालय निर्देशन सेवा संगठन की अवधारणा

विद्यालय निर्देशन सेवा संगठन की अवधारणा

विद्यालय निर्देशन सेवा संगठन की अवधारणा (Concept of Guidance services in School)- विद्यालय में निर्देशन सेवा संगठन का महत्वपूर्ण योगदान है। उसकी शैक्षिक तथा अन्य प्रगति का जो आन्तरिक एवं बाह्य बाधाएँ प्रभावित करती हैं, उनके समुचित निराकरण के लिये, निर्देशन सेवा का विधान विद्यालय में होना चाहिए। परीक्षा के लक्ष्य को निर्देशन सेवाओं की समुचित व्यवस्था के बिना प्राप्त करना कठिन है। व्यक्ति कठिनाइयों में अपने विवेक से काम ले सके, ये सब बातें समुचित निर्देशन-सेवा की अपेक्षा रखती हैं।

शब्द-कोष के अनुसार संगठन से आशय किसी कार्य के लिये की जाने वाली तैयारी या व्यवस्था से है। एक अन्य अर्थ के अनुसार किसी विशिष्ट लक्ष्य की उपलब्धि हेतु वयक्तियों द्वारा गठित एक समूह है जैसे- क्लब की रचना के लिये कुछ व्यक्ति साथ-साथ मिलकर एक समूह बना लेते हैं। निर्देशन सेवा की दृष्टि से हम कह सकते हैं कि संगठन से आशय ऐसे कर्मियों के समूह से है जो विद्यालय में निर्देशन सहायता स्वच्छ, सावधानीपूर्वक और तार्किक रूप में उपलब्ध कराने की दृष्टि से तैयारी या व्यवस्था करता है। किसी भी कार्य के प्रबन्धन में संगठन की अहम् भूमिका होती है। प्रबन्धन में प्रथम चरण नियोजन होता है। निर्देशन सेवाओं के प्रबन्धन की सफलता नियोजन पर निर्भर रहती है। इसके अन्तर्गत क्या, कैसे और कब किया जाता है, निश्चित किया जाता है। नियोजन जिन लक्ष्यों एवं कार्यक्रमों को निर्धारित करता है। उनके क्रियान्वयन के लिये संगठन एक साधन है। संगठन के दो भाग होते हैं-

1. मानवीय संगठन और

2. भौतिकीय संगठन

संगठन में निम्नांकित बातें सम्मिलित होती हैं-

1. आवश्यक सुविधाओं को प्राप्त करना।

2. कुशल रूपरेखा स्थापित करने के उद्देश्य से कर्मियों और यंत्रों को जुटाना।

3. विभागीय सेवाओं को क्रमिक संगठनात्मक ढाँचे में श्रेणीबद्ध करना।

4. अधिकारियों के ढाँचे और साधनों का एकीकरण स्थापित करना।

5. विधियों और तरीकों को परिभाषित और सूत्रवत् करना।

6. कर्मियों का चुनाव व प्रशिक्षण की व्यवस्था करना।

निर्देशन कार्य को विद्यालयों में सफलतापूर्वक चलाने के लिये आवश्यक है कि यह संगठित तथा व्यवस्थित रूप में हो। निर्देशन का महत्व शिक्षा एवं व्यवसाय के क्षेत्र में सभी को स्पष्ट है। अगर अपने देश के विद्यालयों में प्रत्येक छात्र को निर्देशन सहायता प्रदान करने का लक्ष्य बना लिया जाये तो उसको व्यवस्थित रूप देना होगा। निर्देशन सहायता देना किसी एक व्यक्ति का कार्य नहीं होता। जोन्स ने इसके सम्बन्ध में कहा है- “निर्देशन को विद्यालय के सामान्य जीवन से पृथक् नहीं किया जा सकता है, न इसको विद्यालय के किसी एक विशेष भाग में केन्द्रित किया जा सकता है, न इसको परामर्शदाता या प्रधानाचार्य के कार्यालय तक सीमित किया जा सकता है। क्योंकि निर्देशन सहायता देना विद्यालय के प्रत्येक अध्यापक का कर्तव्य एवं उत्तरदायित्व है, अतः इस कार्य में सभी का सहयोग प्राप्त होना चाहिये और इसी प्रकार प्रशासित होना चाहिये।’

उपर्युक्त कथन स्पष्ट करता है कि निर्देशन कार्य-विधि का संगठन इस प्रकार किया जाये कि विद्यालय के सभी अध्यापकों का सहयोग प्राप्त हो सके। निर्देशन-कार्य-विधि की सफलता अथवा असफलता इससे सम्बन्धित कर्मचारियों पर निर्भर रहती है। कार्य-विधि की सफलता उसमें संलग्न व्यक्तियों की स्वतःप्रेरणा (Initiative), दूरदर्शिता (Foresight), दक्षता (Skill) पर निर्भर करती है।

इसे भी पढ़े ….

  1. विद्यालय निर्देशन सेवा संगठन सिद्धान्त की विवेचना कीजिए।
  2. विद्यालय निर्देशन सेवा संगठन के क्षेत्र का विस्तार में वर्णन कीजिए।
  3. विद्यालय में निर्देशन प्रक्रिया एवं कार्यक्रम संगठन का विश्लेषण कीजिए।
  4. परामर्श और निर्देशन में अंतर 
  5. विद्यालय निर्देशन सेवाओं के संगठन के आधार अथवा मूल तत्त्व
  6. निर्देशन प्रोग्राम | निर्देशन कार्य-विधि या विद्यालय निर्देशन सेवा का संगठन
  7. विद्यालय निर्देशन सेवा संगठन का अर्थ, परिभाषा, आवश्यकता एवं कार्यों का वर्णन कीजिए।
  8. निर्देशन का अर्थ, परिभाषा, तथा प्रकृति
  9. विद्यालय में निर्देशन सेवाओं के लिए सूचनाओं के प्रकार बताइए|
  10. वर्तमान भारत में निर्देशन सेवाओं की आवश्यकता पर प्रकाश डालिए।
  11. निर्देशन का क्षेत्र और आवश्यकता
  12. शैक्षिक दृष्टिकोण से निर्देशन का महत्व
  13. व्यक्तिगत निर्देशन (Personal Guidance) क्या हैं? 
  14. व्यावसायिक निर्देशन से आप क्या समझते हैं? व्यावसायिक निर्देशन की परिभाषा दीजिए।
  15. वृत्तिक सम्मेलन का अर्थ स्पष्ट करते हुए उसकी क्रिया विधि का वर्णन कीजिए।
  16. व्यावसायिक निर्देशन की आवश्कता | Needs of Vocational Guidance in Education
  17. शैक्षिक निर्देशन के स्तर | Different Levels of Educational Guidance in Hindi
  18. शैक्षिक निर्देशन के उद्देश्य एवं आवश्यकता | 
  19. शैक्षिक निर्देशन का अर्थ एवं परिभाषा | क्षेत्र के आधार पर निर्देशन के प्रकार
  20. शिक्षण की विधियाँ – Methods of Teaching in Hindi
  21. शिक्षण प्रतिमान क्या है ? What is The Teaching Model in Hindi ?
  22. निरीक्षित अध्ययन विधि | Supervised Study Method in Hindi
  23. स्रोत विधि क्या है ? स्रोत विधि के गुण तथा दोष अथवा सीमाएँ
  24. समाजीकृत अभिव्यक्ति विधि /समाजमिति विधि | Socialized Recitation Method in Hindi
  25. योजना विधि अथवा प्रोजेक्ट विधि | Project Method in Hindi
  26. व्याख्यान विधि अथवा भाषण विधि | Lecture Method of Teaching

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