विद्यालय निर्देशन सेवा संगठन सिद्धान्त
विद्यालय निर्देशन सेवा संगठन का सिद्धान्त- किसी विद्यालय में निर्देशन-सेवा संगठन विभिन्न प्रकार के सिद्धान्तों पर आधारित होते हैं। परिस्थितियों के अनुसार उनमें संशोधन भी होता रहता है। निर्देशन कार्यक्रम का सर्वाधिक उपयोग व्यक्ति की दो स्थितियों में अधिक किया जाता है-(i) शैक्षिक तथा (ii) व्यावसायिक क्षेत्र। इनमें से शैक्षिक निर्देशन शिक्षा के विभिन्न अंगों के रूप में शिक्षण संस्थाओं द्वारा भी उपलब्ध कराया जाता है। यदि निर्देशन को सार्थक शिक्षा का आवश्यक अंग कह दिया जाये तो कुछ त्रुटिपूर्ण नहीं होगा क्योंकि निर्देशन कार्यक्रम को विद्यालय/महाविद्यालय आदि शिक्षण संस्थाओं के सामान्य जीवन से अलग नहीं किया जा सकता। निर्देशन-प्रबन्ध कोई ऐसा कार्यक्रम नहीं जिसे विद्यालय या महाविद्यालय के किसी कक्षा या संकाय/संभाग तक सीमित कर दिया जाय। बल्कि यह एक ऐसा व्यापक प्रक्रम होता है जो शिक्षक व अभिभावकों के द्वारा सतत् चलता रहता है। निर्देशन के प्रशासन अर्थात क्रियान्वयन में शिक्षक मात्र की महत्त्वपूर्ण भूमिका सदैव रहती तथा विद्यालय समय में पूर्व तथा पश्चात् माता-पिता/संरक्षणों एवं सामुदायिक संगठनों का निर्देशन-कार्यक्रम में विशेष योगदान रहता है। निर्देशन कार्यक्रम एक निश्चित नीति (Policy) के अनुरूप संगठित (Organised) तथा प्रशासित (Administered) होता है। इससे व्यक्ति या विद्यार्थी की लक्ष्य प्राप्ति से निर्देशनकर्ता/परामर्शदाता का अन्तर्वैयक्तिक सम्बन्ध होता है।
किसी निर्देशन कार्यक्रम में संगठन (Organization) तथा प्रशासन (Administered) का समन्वयन (Co-ordination) करते समय मुख्यतः कुछ बिन्दुओं को विशेष रूप से ध्यान में रखना चाहिए-
(i) विद्यार्थियों की समस्याओं के प्रति विद्यालय का वातावरण व शिक्षक आदि एकीकृत एवं सुसंगत (Unified and Consistent) हों।
(ii) निर्देशन-कार्यक्रम का मौलिक उत्तरदायित्व निश्चित व्यक्तियों व संस्थाओं पर स्थापित आधारित हो।
(iii) निर्देशक, निरीक्षण, अधीक्षक, प्रधानाचार्य व शिक्षक सभी अपने कर्तव्यों एवं उत्तरदायित्वों (Duties and Responsibilities) को समझें तथा पूर्ण निष्ठा से उनका निर्वहन करें।
(iv) विद्यार्थियों को एकीकृत सहयोग (Unified Assistance) प्राप्त हो जो कि विद्यालय के प्रशासित एवं शिक्षक व्यक्तियों की जिम्मेदारी बनती है।
(v) निर्देशन संगठन में निरीक्षक या अधीक्षक प्रधानाचार्य के माध्यम से निर्देशन सेवा उपलब्ध रहे तथा शिक्षकों और परामर्शदाताओं का आपस में सहयोगात्मक सम्बन्ध भी हो।
(vi) उद्देश्य पूर्ति हेतु आवश्यक है कि निर्देशन कार्यक्रम सही ढंग से संगठित (Administered) हो।
निर्देशन कार्यक्रम का संगठन और प्रशासन कुछ मौलिक सिद्धांतों (Basic Principles) के आधार पर किया जाता है। ये मौलिक सिद्धान्त विद्यालय या महाविद्यालय के स्वरूप के अनुसरण पर होने चाहिए, साथ ही इन सिद्धान्तों के निर्धारण में विद्यार्थियों की आवश्यकताओं व लक्ष्यों का भी ध्यान रखना आवश्यक हो जाता है। निर्देशन कार्यक्रमों के संगठन एवं प्रशासन हेतु एरिक्सन, स्मिथ एवं रेबर ने मुख्य रूप से कुछ निम्न सिद्धान्तों को प्रतिपादित किया है-
(1) निर्देशन सेवा विद्यार्थियों के सर्वांगीण विकास के लिए उन्हें प्रदान की जाती है। अतः यह सभी के लिए निरन्तर दी जाने वाली सेवा होती न कि इस सेवा का उद्देश्य मात्र उसकी कुसमायोजन सम्बन्धी समस्याओं का निराकरण करना होता है।
(2) निर्देशन का लक्ष्य मात्र समस्याओं का समाधान ही नहीं बल्कि समस्याओं में परिहार तथा उनसे बचाव या सुरक्षा भी होने चाहिए।
(3) निर्देशन सेवा का स्वरूप विद्यार्थियों की आवश्यकताओं व रुचियों के साथ-साथ उनके उद्देश्यों/लक्ष्यों के अनुरूप होना चाहिए।
(4) सेवा सम्बन्धी कोई भी योजना बनाने या निर्धारित करते समय व्यक्ति विद्यार्थ के समग्र व्यक्तित्व का पूर्ण महत्व देना आवश्यक होता है।
(5) इसमें उस व्यक्ति के बारे में तथा शैक्षिक व रोजगार सम्बन्धी अवसरों के बारे में भी विस्तृत जानकारियाँ उपलब्ध करानी चाहिए।
(6) इस सेवा द्वारा जीवन के विभिन्न क्षेत्रों तथा उसकी समस्त अवस्थाओं के सन्दर्भ में आवश्यकतानुसार सहयोग प्रदान किया जाता है।
(7) निर्देशन विशेषज्ञ (Guidance expert) के सहयोग सेवा में सहयोग हेतु सहायक सहकर्मियों की व्यवस्था भी होनी चाहिए।
(8) दीर्घकालिक निर्देशन के लिए विद्यालय के प्रधानाचार्य या महाविद्यालय के प्राचार्य द्वारा नेतृत्व तथा समिति (समुदाय) व शिक्षण संस्था के मध्य समन्वय (Co-ordination) की व्यवस्था व सहयोग होना चाहिए।
(9) किसी भी निर्देशन कार्यक्रम को शिक्षण संस्थान के सभी सदस्यों के सहयोग व रुचियों के आधार पर संगठित व प्रशासित (Organized and Administered) करना चाहिए, ऐसी स्थिति में कार्यक्रम सेवा अधिक सार्थक होती है।
(10) निर्देशन कार्यक्रम व्यक्ति के आत्मज्ञान के विकास हेतु संगठित व प्रशासित किया जाना चाहिए।
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