भारतीय जीवन बीमा निगम के कार्य बताइये।
भारतीय जीवन बीमा निगम स्थापना –भारतीय जीवन बीमा निगम की स्थापना भारतीय जीवन बीमा निगम अधिनियम, 1956 के अन्तर्गत 1 सितम्बर, 1956 को की गयी थी।
भारतीय जीवन बीमा निगम (L.I.C.) भारत की सबसे बड़ी निवेश संस्था है। यह औद्योगिक उपक्रमों को वित्तीय सहायता देने के लिए प्राधिकृत है। निवेश योग्य धन का 10% निजी निगमिक क्षेत्र में निवेश किया जा सकता है। यह ऐसी सहायता सार्वजनिक परिसीमित कम्पनियों के अंश में इक्विटी तथा अधिमानी, दोनों बॉण्ड तथा डिबेंचरों अंशदान या अभिगोपन के रूप में करती है। यह ऐसा किसी उपक्रम के वित्तीय, आर्थिक, तकनीकी, प्रबन्धन व सामाजिक नीतियों की सावधानीपूर्वक जाँच के बाद करती है। हाल ही के वर्षों में LIC ने द्वितीयक बाजार को दृढ़ता देने के साथ-साथ नए निगम बाजार को भी आश्रय दिया है। यह निगम लगभग सभी अखिल भारतीय तथा राज्य स्तरीय वित्तीय संस्थाओं के बॉण्डों व डिबेंचरों में भी अंशदान करता है। यह औद्योगिक इकाइयों को अन्य वित्त संस्थानों के हिस्सेदारी में सहायता प्रदान करता है।
भारतीय जीवन बीमा निगम (L.I.C.) की निवेश नीति
LIC की निवेश नीति में ये मुख्य सिद्धान्त निहित हैं- मूलधन की सुरक्षा, निवेशों का विविधीकरण, प्रतिभूतियों तथा सहायता प्राप्त उपक्रमों की संख्या व प्रकार दोनों के बारे में प्रतिभूतियों की अवधि तथा पिछड़े क्षेत्रों का विकास। हालांकि निगम व्यापारिक सिद्धान्तों का अनुसरण करता है। यह पॉलिसीधारकों तथा देश के हितों को भी समान महत्त्व देता है। इसके निवेश प्रतिभूतियों, उद्योगों व क्षेत्रों के विभिन्न वर्गों पर फैले हुए है । सामान्यतः निगम किसी कम्पनी के देय इक्विटी अंशों के 30% से अधिक का अधिग्रहण नहीं करता। इसका कार्य अंशों इत्यादि के बाजार मूल्यों में किसी अस्थायी परिवर्तन का लाभ प्राप्त करना नहीं है।
हालांकि इसके कुल कोषों का एक अल्प भाग ही औद्योगिक क्षेत्र में निवेशित है, पर इसके संसाधनों की मात्रा इतनी अधिक है कि यह छोटा-सा भाग ही इसे देश में वित्त पोषण का सर्वाधिक बड़ा एकल वित्त पोषण स्रोत बनाता है।
भारतीय जीवन बीमा निगम के कार्य
जीवन बीमा निगम व्यक्तियों को अनेक प्रकार से सुरक्षा प्रदान करता है जो कि जान एवं माल को जोखिम से बचाने के सम्बन्ध में हो सकती है। यदि किसी बीमित व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है तो बीमा कम्पनी उसके उत्तराधिकारी को निश्चित राशि का भुगतान करती है। इसके विपरीत यदि व्यक्ति के साथ कोई दुर्घटना घटित हो जाय, जिसका कि बीमा कराया गया है तो यह बीमा निगम उसकी क्षतिपूर्ति करने का उत्तरदायित्व अपने ऊपर लेता है। यद्यपि इस निगम की स्थापना का उद्देश्य कम्पनियों को वित्तीय सहायता प्रदान करना नहीं है, तथापि यह निगम कम्पनियों को वित्त प्रदान करने में महत्त्वपूर्ण योगदान देता है। यह निगम औद्योगिक कम्पनियों की प्रतिभूतियों के अभिगोपन का कार्य करता है तथा वित्तीय संस्थाओं IDBI, IFCI, ICICI, SFC आदि द्वारा जारी बाण्डों तथा अंशों की खरीद करके उनके लिये साख व्यवस्था करता है। वह उन्हें सीधे रूप में ऋण प्रदान करता है।
राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में निगम की भूमिका को दृष्टिगत रखते हुए 1975 ई. में निगम के उपबन्धों में संशोधन किया गया। इसके अनुसार निगम को अपने नियन्त्रित कोष में हुई वृद्धि का 25 प्रतिशत केन्द्रीय सरकार के ऋण करों और कम से कम 50 प्रतिशत केन्द्रीय सरकार, राज्य सरकार और स्थानीय सरकार द्वारा गारण्टी शुदा बाजार ऋण में लगाना होता है।
जीवन बीमा निगम का राष्ट्रीयकरण जुलाई, 1956 ई. में हुआ। राष्ट्रीयकरण के पूर्व -इस निगम के कुल वित्त विनियोग का 16 प्रतिशत ही इस निगम द्वारा कम्पनियों की प्रतिभूतियों में विनियोजित किया जाता था, किन्तु अब इसमें काफी वृद्धि हुई है।
जीवन बीमा निगम का कार्य क्षेत्र वित्तीय सहायता की दृष्टि से बहुत ही सीमित है। यह निगम या तो स्वयं कम्पनियों के अंशों एवं ऋण-पत्रों को क्रय करता है या उनके अंशों एवं ऋण पत्रों का अभिगोपन करता है। 2003-04 ई. में भारतीय जीवन बीमा निगम ने 2,774.8 करोड़ रुपये का ऋण स्वीकृत किया तथा 15,781.6 करोड़ का ऋण वितरित किया।
31 मार्च, 2004 ई. तक जीवन बीमा निगम के पास 3,32,712.48 करोड़ का एक विशाल ‘जीवन कोष’ (Life Fund) बन गया। 2003-04 ई. के वित्तीय वर्ष में निगम ने 263.96 लाख नयी व्यक्तिगत पालिसियाँ करके 1,98,274 करोड़ रुपये का नया कारोबार किया। वर्ष 2017-18 में इसके कोष में दोगुना वृद्धि हुई है।
जीवन बीमा निगम की उपर्युक्त कार्य प्रणाली को देखते हुए कहा जा सकता है कि औद्योगिक एवं व्यावसायिक संस्थाओं को वित्त प्रदान करने में इस निगम का भी काफी योगदान है।
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