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राष्ट्रीय औद्योगिक विकास निगम के कार्यों की प्रगति की समीक्षा कीजिए।

राष्ट्रीय औद्योगिक विकास निगम के कार्यों की प्रगति की समीक्षा
राष्ट्रीय औद्योगिक विकास निगम के कार्यों की प्रगति की समीक्षा

राष्ट्रीय औद्योगिक विकास निगम के कार्यों की प्रगति की समीक्षा

राष्ट्रीय औद्योगिक विकास निगम- देश में उद्योगों का सन्तुलित विकास करने और उद्योगों के प्रवर्तन तथा विकास की प्रारम्भिक अवस्था में तकनीकी एवं वित्तीय सहायता प्रदान करने के लिये इस निगम की स्थापना 20 अक्टूबर, 1954 ई. को भारत सरकार द्वारा की गयी। आजकल यह निगम सार्वजनिक क्षेत्रों में अन्तर्राष्ट्रीय सलाहकार एजेन्सी के रूप में कार्य कर रहा है।

निगम के उद्देश्य

राष्ट्रीय औद्योगिक विकास निगम की स्थापना के दो प्रमुख उद्देश्य थे – (i) देश के औद्योगिक विकास के असन्तुलन को सुधारने की दृष्टि से सरकार द्वारा प्रारम्भ की जाने वाली महत्त्वपूर्ण औद्योगिक परियोजनाओं की प्रारम्भिक जाँच में सरकार की सहायता करना और आवश्यक रिपोर्ट एवं रूप रेखाओं को तैयार करना एवं (ii) कुछ निश्चित उद्योगों के आधुनिकीकरण के लिये विशेष ऋण देना ।

निगम का प्रबन्ध

केन्द्रीय सरकार द्वारा मनोनीत संचालक मण्डल द्वारा इस निगम का प्रबन्ध किया जाता है। इसके संचालकों की संख्या 15 से 25 तक हो सकती है। इस समय इसमें अध्यक्ष सहित कुल 15 संचालक हैं। संचालक मण्डल के अतिरिक्त एक कार्यकारिणी समिति और सूती वस्त्र जूट एवं मशीनरी में संलग्न औद्योगिक संस्थाओं के लिये तीन पृथक सलाहकार समितियाँ भी हैं। इस निगम का प्रधान कार्यालय दिल्ली में है।

निगम के कार्य

यह निगम औद्योगिक प्रगति के लिये अनेक महत्त्वपूर्ण कार्य करता है। इस निगम का कार्य क्षेत्र इस प्रकार है- (i) निजी एवं सार्वजनिक दोनों क्षेत्रों के अन्तर्गत स्थापित उद्योगों के आधुनिकीकरण, निर्माण एवं विकास में सहयोग प्राप्त करना तथा (ii) सरकार के प्रतिनिधि के रूप में उद्योगों को दीर्घकालीन वित्तीय सहायता प्रदान करना ।

यह निगम सार्वजनिक क्षेत्र की कम्पनियों, निजी क्षेत्र की कम्पनियों, साझेदारी या किसी अन्य स्वामित्व के औद्योगिक संगठनों को वित्तीय सहायता दे सकता है। यह वित्तीय सहायता अंश-पूँजी का क्रय करके, ऋण-पत्रों में विनियोजन करके या ऋण प्रदान करके दी जा सकती है। यह उद्योग के प्रबन्ध को अपने नियन्त्रण में ले सकता है या उसके संचालक मण्डल में अपने प्रतिनिधि मनोनीत कर सकता है।

निगम के वित्तीय साधन

इस निगम की रजिस्टर्ड पूँजी एक करोड़ रुपये तथा निर्गमित पूँजी 45 लाख रुपया है। यह निगम उद्योगों के विकास के लिये स्थापित किया गया है। इसलिए सरकार से भी इसे काफी रकम सहायता के रूप में प्राप्त हो सकती है। इस निगम की आय का अन्य स्रोत तकनीकी परामर्श देने का शुल्क तथा योजनाओं के बेचने से प्राप्त होने वाला लाभ है।

राष्ट्रीय औद्योगिक विकास निगम के कार्यों की प्रगति

राष्ट्रीय औद्योगिक निगम ने अपनी स्थापना की इतनी अल्प अवधि में जो कार्य किया है, उसका संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित है-

1. औद्योगिक विकास सम्बन्धी कार्य- इस निगम ने सार्वजनिक एवं निजी दोनों क्षेत्रों में उद्योगों की स्थापना को प्रोत्साहित किया है और विशेष रूप से कोरी फिल्में, चश्मों के लैंस बनाने का शीशा, औषधि, खानों में प्रयुक्त होने वाली मशीनों का निर्माण, भारी मशीनों का निर्माण, आर्गेनिक केमिकल्स आदि के उत्पादन में महत्त्वपूर्ण सहायता दी है। इस निगम के द्वारा तैयार की गयी रिपोर्टों एवं रूप रेखाओं के आधार पर राजकीय क्षेत्र में उद्योगों को प्रोत्साहित करने के लिये विभिन्न कम्पनियों की स्थापना की जा रही है।

2. तकनीकी सलाहकार ब्यूरो- उद्योगों को तकनीकी सहायता प्रदान करने की दृष्टि से इस निगम द्वारा 1961 ई. में तकनीकी सलाहकार ब्यूरो की स्थापना की गयी। विशेष रूप से यह ब्यूरो इंजीनियरों एवं विशेषज्ञों का ऐसा दल तैयार करता है जो निगम द्वारा ली गयी योजनाओं के सम्बन्ध में प्रारम्भिक अनुसंधान कार्य कर सकें। इस निगम की तकनीकी सलाहकार ब्यूरो के रूप में सेवाओं का लाभ न केवल अपने देश को हो रहा है बल्कि विदेशी संस्थाएँ भी इनकी सेवाओं का लाभ उठा रही हैं। इस निगम ने ईरान, इटली, कीनिया, लीबिया, तन्जानिया, मलेशिया और नेपाल आदि देशों को तकनीकी सलाह दी है।

3. अल्पकालीन किराया योजना- इस योजना का प्रमुख उद्देश्य सूती एवं जूट उद्योगों को मशीनों एवं औजार के खरीदने के लिये ऋण प्रदान करना है, परन्तु इसके लिये शर्त यह है कि उद्योग द्वारा क्रय की जाने वाली मशीनरी भारत में ही निर्मित होनी चाहिए। इस योजना का लाभ केवल सूती वस्त्र उद्योग द्वारा ही उठाया गया।

4. आधुनिकीकरण एवं पुनः संस्थापन के लिये वित्तीय सहायता- आधुनिकीकरण एवं पुनः संस्थापन को प्रोत्साहन करना निगम का प्रमुख उद्देश्य होने के कारण निगम ने विशेष रूप से जूट, सूती वस्त्र एवं मशीनरी उद्योग को प्रोत्साहित करने के लिये सरकार के प्रतिनिधि के रूप में ऋण प्रदान किये हैं।

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