वाणिज्य / Commerce

मुद्रास्फीति या मुद्रा प्रसार की परिभाषा, कारण, परिणाम या प्रभाव

मुद्रास्फीति या मुद्रा प्रसार की परिभाषा
मुद्रास्फीति या मुद्रा प्रसार की परिभाषा

मुद्रास्फीति या मुद्रा प्रसार की परिभाषा

मुद्रास्फीति या मुद्रा प्रसार की परिभाषा विभिन्न अर्थशास्त्रियों ने भिन्न-भिन्न प्रकार से की हैं, जो कि निम्नलिखित हैं

1. क्राउथर के अनुसार, “मुद्रा प्रसार की वह अवस्था है जिसमें मुद्रा का मूल्य गिरता है और पदार्थों के मूल्य बढ़ते है। “

2. केमरर के शब्दों में, “मुद्रा प्रसार की अवस्था उस समय विद्यमान होती है, जबकि मुद्रा की मात्रा अधिक हो, वस्तुओं तथा सेवाओं की मात्रा बहुत कम हो। “

3. प्रो० पीगू के अनुसार, “मुद्रास्फीति की अवस्था उस समय उत्पन्न होती है जब मौद्रिक आय उत्पादक तत्त्वों की तुलना में अधिक तेजी से बढ़ रही हो। “

4. ग्रेगरी ने मुद्रास्फीति को “मुद्रा की मात्रा में असाधारण वृद्धि” कहा है।

मुद्रा प्रसार की स्थिति में अर्थव्यवस्था में मूल्य वृद्धि होती है तथा विभिन्न वस्तुओं और सेवाओं के मूल्यों में भिन्न मात्रा वृद्धि होने के फलस्वरूप अर्थव्यवस्था में असन्तुलन उत्पन्न हो में जाता है। इसे मुद्रास्फीति या मुद्रा प्रसार कहते हैं। यद्यपि मुद्रा प्रसार का सम्बन्ध साधारणतया मूल्य स्तर में वृद्धि होता है परन्तु प्रत्येक वृद्धि को वास्तविक मुद्रास्फीति का सूचक नहीं माना जा सकता है।

इसे भी पढ़े…

मुद्रास्फीति के कारण (Causes)

मुद्रा प्रसार मुख्यत: दो कारणों से होता है- (1) मुद्रा की मात्रा में आवश्यकता से और अधिक वृद्धि होने से (2) उत्पादन की कमी के कारण।

(1) मुद्रा की मात्रा में वृद्धि होने के कारण

मुद्रा की मात्रा में जो वृद्धि होती है वह स्वतन्त्र रूप से नहीं होती है, अपितु अनेक कारण इसे प्रभावित करते है। देश में मुद्रा की मात्रा में वृद्धि निम्न प्रकार से होती है-

1. सरकारी नीति- मुद्रास्फीति का प्रमुख कारण सरकार की अर्थ नीति होती है। अनेक बार सरकार जानबूझ कर चलन की मात्रा में वृद्धि कर तथा साख मुद्रा का विस्तार कर मूल्यों में वृद्धि करती है। युद्धकाल में सरकार को अकसर ऐसा करना पड़ता है।

2. हीनार्थ प्रबन्ध – कभी-कभी सरकार को अपने घाटे के बजट को पूरा करने के लिए पत्र मुद्रा का प्रकाशन करना पड़ता है। इससे प्रचलन में मुद्रा की मात्रा में वृद्धि हो जाती है। और वस्तुओं तथा सेवाओं की मात्रा पूर्ववत् रहने पर लोगों की मौद्रिक आय बढ़ जाती है।

3. प्राकृतिक कारण- कभी-कभी प्रकृति भी मुद्रा प्रसार में सहायक होती है। जब कोई देश की मुद्रा धातुमान पर आधारित होती है, तो इन धातुओं की नयीं खानों का पता लग जाने से इन धातुओं में वृद्धि हो जाती है। फलस्वरूप मुद्रा की मात्रा में वृद्धि होना स्वाभाविक होता है। वर्तमान काल में कोई भी देश की मुद्रा धातुमान पर आधारित नहीं है। इस कारण मुद्रास्फीति के प्राकृतिक कारण का केवल सैद्धान्तिक महत्त्व रह गया है।

इसे भी पढ़े…

(2) उत्पादन को कम करने वाले तत्त्व

उत्पत्ति की मात्रा को प्रभावित करने वाले तत्त्व निम्नलिखित हैं-

1. उत्पत्ति के साधनों का न्यून होना- यदि देश में उत्पत्ति के साधनों की दुर्लभता है, तो उत्पादन में क्रमागत साख की प्रवृत्ति लागू होगी। इसके कारण उत्पादन लागत के साथ-साथ मूल्यों में वृद्धि हो जायेगी।

2. औद्योगिक विवाद- औद्योगिक अशान्ति भी मुद्रा प्रसार को प्रोत्साहन देती है। जब देश में श्रमिक संघ संगठित हो जाते हैं और मजदूर पर्याप्त सुविधा तथा मजदूरी आदि में वृद्धि के लिए हड़ताल आदि करते हैं तो उत्पादक संस्थाएँ बन्द रहती है जिसके कारण उत्पादन कम हो जाता है।

3. प्राकृतिक कारण- देश में प्राकृतिक विपत्तियों के कारण उत्पादन कम हो जाता है, जैसे- भूचाल, सूखा, महामारी आदि।

इसे भी पढ़े…

मुद्रा प्रसार के परिणाम या प्रभाव विभिन्न वर्गों पर

मुद्रास्फीति के सामाजिक आर्थिक प्रभाव का अध्ययन करने के लिए कीन्स ने इसे निम्नलिखित वर्गों में विभाजित किया है- (1) विनियोगी वर्ग (2) व्यापारी या उत्पादक (3) श्रमिक या कर्मचारी वर्ग (4) आर्थिक एवं नैतिक प्रभाव

(1) विनियोग वर्ग पर प्रभाव

विनियोग वर्ग से हमारा तात्पर्य उस वर्ग से होता है जो उद्योग व व्यवसाय में रूपये का विनियोग करता है और इस प्रकार लगाये हुए रूपये से समय-समय पर आय प्राप्त करता है। विनियोगी वर्ग को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है

1. निश्चित आय प्राप्त करने वाले वर्ग- निश्चित आय वाले विनियोगियों में वे लोग आते हैं जो पूँजी वाली कम्पनियों में ऋणपत्रधारी (Debenture Holders) होते हैं और जिन्हें एक पूर्व निर्धारित रकम मिलती है। इसी प्रकार वे लोग अपनी पूँजी ब्याज पर उधार देते है, उन्हें भी पूर्व निश्चित दर से ब्याज मिलता है। मुद्रास्फीति के समय में इन लोगों को हानि उठानी पड़ती है, क्योंकि मुद्रा प्रसार के कारण मुदा की क्रय शक्ति गिर जाती है।

2. परिवर्तनीय आय प्राप्त करने वाले विनियोक्ता- इस वर्ग के अन्तर्गत वे लोग आते हैं जिनकी आय तो निश्चित नहीं होती परन्तु उनकी आय व्यवसाय की उन्नति तथा अवनति पर निर्भर होती है।

इसे भी पढ़े…

(2) व्यापारी या उत्पादक वर्ग

इस वर्ग में कृषक, उद्योगपति, खानों के मालिक, व्यापारी, मछुआरें तथा अन्य उत्पादक में वर्ग सम्मिलित किये जाते हैं। साधारणता मुद्रास्फीति के समय इस वर्ग के लोगों को लाभ होता है। उत्पादक वर्ग को लाभ होने के निम्न प्रमुख कारण हैं-

1. माँग की वृद्धि के कारण- मुद्रास्फीति की अवधि में वस्तुओं की माँग में वृद्धि हो जाती है, परिणामतः मूल्य ऊँर्चे हो जाते हैं। वस्तुओं और सेवाओं की बिक्री तेजी के साथ होती है, अत: उत्पादक का माल शीघ्र ही बिक जाता है जिससे उत्पादकों को एक ओर तो अधिक लाभ होता है तथा दूसरी ओर स्टॉक को जमा करके रखने, उसकी लागत पर ब्याज देने तथा माल का विज्ञापन करने पर भी खर्च कम होता है। तीसरे प्रत्येक प्रकार के कारखाने में उत्पादन होने लगता है।

2. उत्पादन व्यय में कमी- उत्पत्ति कार्य में कुछ समय लगता है। जिस समय उत्पादक उत्पादन करने के लिए कच्चा माल तथा औजार खरीदता है अश्रमिकों की भर्ती करता है उस समय मूल्य कुछ नीचे होते हैं। जब तक माल तैयार होता है कुछ समय तो अवश्य व्यतीत होता है। इस बीच मूल्य स्तर में वृद्धि हो जाती हैं जिससे तैयार माल की बिक्री ऊँचें मूल्य पर होती है और उत्पादकों को अधिक लाभ प्राप्त होता है।

3. श्रमिक या कर्मचारी वर्ग- इस श्रेणी के अन्तर्गत उन सब लोगों को सम्मिलित किया जाता हैं, जो अपने श्रम का विक्रय कर अपना जीवन निर्वाह करते हैं। इस प्रकार इसमें खेतिहर मजदूर, कारखानों में काम करने वाले श्रमिक, मानसिक तथा बौद्धिक कार्य करने वाले सभी व्यक्ति आ जाते हैं। मुद्रास्फीति की अवस्था में श्रमिक वर्ग पर कई प्रकार से प्रभाव पड़ता है-

1. रोजगार में वृद्धि-मृद्रास्फीति की अवधि में उत्पत्ति, व्यापार तथा व्यवसाय का विस्तार हो जाता है जिससे श्रमिकों को अधिकाधिक मात्रा में रोजगार उपलब्ध होता है। अधिक श्रमिकों की आवश्यकता पड़ती है। श्रम की अधिक माँग होने के कारण श्रमिकों को सौदा करने की शक्ति में वृद्धि हो जाती हैं, अत: वे श्रमिक अधिक मजदूरी की माँग करते हैं, अच्छी कार्य की दशाएँ चाहते है और उन्हें प्राप्त भी हो जाती है। रोजगार के विस्तार के कारण न केवल श्रमिक को ही रोजगार वरन् उसके परिवार के अन्य सदस्यों को भी रोजगार मिल जाता है जिससे श्रमिक परिवार की आमदनी में वृद्धि हो जाती है।

2. श्रम संघों का संगठन और विकास- मुद्रास्फीति का काल श्रम संघों के संगठन और विकास का काल होता है। इस काल में एक ओर तो श्रम की माँग अधिक होती हैं, दूसरी ओर मूल्य स्तर में वृद्धि होती हैं तथा श्रमिक सामूहिक रूप से अधिक मजदूरी की माँग करते हैं। यह काल प्रायः औद्योगिक तथा श्रमिक अशान्ति का काल भी होता है। श्रमिक संघों की सदस्यता में वृद्धि होती है। श्रम संगठन दृढ़ होता है। स्थान-स्थान पर हड़तालें होना आरम्भ हो जाती हैं जिससे देश में औद्योगिक अशान्ति फैलती है। अन्ततः इस मूल्य वृद्धि काल में श्रमिकों तथा श्रम संघों की बहुत सी आवश्यक माँगें पूरी हो जाती है।

3. वास्तविक मजदूरी कम हो जाती है- साधारणतया मजदूरी और वेतन की कीमत स्तर की अपेक्षा मन्दगति से ऊपर उठने की प्रवृत्ति होती है। मुद्रास्फीति के काल में मजदूरियों तथा वेतन में वृद्धि होती तो है परन्तु मूल्यों की अपेक्षा मन्द गति से, इसलिए श्रमिक की वास्तविक मजदूरी कम हो जाती है।

इसे भी पढ़े…

मुद्रा प्रसार के आर्थिक प्रभाव (Effect)

(1) करों में वृद्धि- मुद्रास्फीति के काल में अनेक नये कर लगाये जाते हैं तथा पुराने करों की दर में वृद्धि हो जाती है।

(2) ऋणों में वृद्धि- मुद्रास्फीति काल में उद्योग तथा व्यापार का बहुत विकास होता है। इस कारण व्यापारी वर्ग अत्यधिक ऋण लेकर उत्पादन बढ़ाने का प्रयास करता है। इस कारण सरकार भी अधिक ऋण लेती है जिससे उसके बजट के घाटे की पूर्ति हो सके।

(3) सीमा बैंकिंग प्रणाली का विकास- इस काल में इन संस्थाओं की बहुत -सी नवीन शाखाओं की स्थापना होने लगती है और आर्थिक दृष्टि से शक्तिहीन संस्थाएँ भी जीवित हो जाती हैं।

(4) अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार- मुद्रा प्रसार के कारण वस्तुओं के भाव में वृद्धि हो जाती हैं, परिणामस्वरूप निर्यात व्यापार में कमी और आयात व्यापार में वृद्धि हो जाती है और व्यापार सन्तुलन विपक्ष में हो जाता है।

(5) नियन्त्रित आर्थिक प्रणाली- प्रत्येक देश की सरकार ऐसी आर्थिक नीति अपनाना चाहती है जिससे आर्थिक प्रगति तेजी से हो सके। इस काल में सरकार स्वतन्त्र आर्थिक नीति का त्याग करके नियन्त्रित आर्थिक नीति अपनाती है जिससे देश का आर्थिक विकास होता है और लोगों का जीवन स्तर ऊँचा उठता है।

(6) रक्षा व्यय के लिए पर्याप्त धन- मुद्रास्फीति के द्वारा सरकार युद्धकाल में देश की रक्षा के लिए पर्याप्त मात्रा में धन प्राप्त करने में सफल हो जाती है। यह अवश्य हैं कि इससे जनता को कष्ट होता हैं, परन्तु देश की स्वतन्त्रता की रक्षा को दृष्टि में रखते हुए इसका कोई महत्त्व नहीं रहता।

(7) बचत की भावना को ठेस- मुद्रास्फीति में मुद्रा की क्रयशक्ति कम हो जाती है। इस कारण लोगों ने जो बचत की है उसका मूल्य भी कम हो जाता है जिससे जनता को बचत करने को प्रोत्साहन नहीं मिलता है।

इसे भी पढ़े…

Important Links

Disclaimer

Disclaimer:Sarkariguider does not own this book, PDF Materials Images, neither created nor scanned. We just provide the Images and PDF links already available on the internet. If any way it violates the law or has any issues then kindly mail us: guidersarkari@gmail.com

About the author

Sarkari Guider Team

Leave a Comment