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औद्योगिक रुग्णता का अर्थ, लक्षण, दुष्परिणाम, कारण, तथा सुधार के उपाय

औद्योगिक रुग्णता का अर्थ
औद्योगिक रुग्णता का अर्थ

औद्योगिक रुग्णता से आप क्या समझते हैं? | Industrial Sickness in Hindi

औद्योगिक रुग्णता (Industrial Sickness in Hindi) – अस्वस्थ औद्योगिक कम्पनी (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1985 के अन्तर्गत ऐसी कम्पनी को अस्वस्थ (रुग्ण) माना गया है (1) जिसे पंजीकृत हुए कम-से-कम सात वर्ष हो गये हों, (2) उसे चालू वित्त वर्ष में और इससे पूर्व के वित्तीय वर्ष में नकद हानि (Cash Loss) हुई हो; तथा / अथवा (3) उसकी शुद्ध सम्पत्ति (Net Worth) समाप्त हो चुकी हो। (4) इस अधिनियम में यह भी प्रावधान है कि यदि गत पांच वर्षों में से किसी भी वर्ष में किसी कम्पनी की शुद्ध सम्पत्तियां 50% से कम रह जायें तो उसे आरम्भिक अस्वस्थ कम्पनी माना जायेगा।

औद्योगिक रुग्णता के लक्षण (Symptoms)

(1) स्थायी सम्पत्ति के उचित रख-रखाव, देख-रेख, मरम्मत, प्रतिस्थापन आदि की अवहेलना, दोषपूर्ण ह्रास नीति, कुछ कम आवश्यक स्थिर सम्पत्तियों की बिक्री।

(2) अंशों के स्वामित्व के ढाँचें में परिवर्तन, व्यवसाय की प्रबन्ध व्यवस्था में अचानक परिवर्तन आदि।

(3) व्यवसाय के चालू अनुपातों में गिरावट, दोषपूर्ण माल क्रय सूची, इन्वैन्टी आवृत्ति में निरन्तर कमी और फलस्वरूप माल के स्टॉक में वृद्धि।

(4) निर्बल रोकड़ स्थिति के कारण विभिन्न प्रकार के करों, भविष्यनिधि एवं ग्रेच्युटी की कटौतियाँ, कर्मचारी राज्य बीमा की कटौतियाँ, घोषित लाभांश एवं ऋणों पर देय मूल एवं ब्याज की किस्तों की अदायगी में असामान्य विलम्ब एवं त्रुटि ।

(5) कटौती में वृद्धि करके विक्रय बढ़ाने के असफल प्रयास, उदार ऋण नीति तथा शिथिल वसूली, शनैः शनैः पुराने ग्राहकों से टकराव व कानूनी उलझनें।

(6) रोकड़ निर्गमनों में स्थिरता, किन्तु रोकड़ आगमों में निरन्तर गिरावट।

(7) अधिविकर्षी पर अधिक निर्भरता, रोकड़ साख के निर्माण में अनियमिततायें, वित्तीय स्थिति के बारे में आवश्यक विवरणों के प्रेषण में त्रुटि तथा बैंक द्वारा अधिक मार्जिन एवं जमानत के लिए अधिक आग्रह ।

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औद्योगिक रुग्णता के दुष्परिणाम (Effects/Demerits of Industrial Sickness)

(1) उच्च मूल्य – कम उत्पादन या उद्योगों के बन्द होने के कारण वस्तुओं के मूल्य बढ़ जाते हैं। उपभोक्ता वर्ग को उच्च कीमतों का भुगतान करना पड़ता है।

(2) संसाधनों का दुरुपयोग- बहुत से संसाधन जो औद्योगिक इकाइयों के उपयोग में थे निष्प्रयोज्य हो जाते हैं। इस प्रकार औद्योगिक रुग्णता राष्ट्र के लिए हानिकारक होती है।

(3) विनियोजकों को हानि-औद्योगिक इकाई की रुग्णता के कारण विनियोजकों को लाभांश प्राप्त नहीं होता है। इस प्रकार रुग्णता के कारण इन्हें क्षति होती है।

(4) आपूर्तिकर्ताओं पर वित्तीय भार-कच्चे माल के आपूर्तिकर्ता भारी वित्तीय भार सहते हैं। कच्चे माल तथा उपकरणों आदि में भारी गिरावट के साथ-साथ बड़ी धनराशि भी फंस जाती है।

(5) विकास पर कुप्रभाव- औद्योगिक रुग्णता से उस क्षेत्र के विकास, जहाँ औद्योगिक इकाई स्थित है, पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। यह आगे औद्योगिक विकास के पर्यावरण पर विपरीत प्रभाव डालता है।

(6) ऋणदाताओं को दिक्कत – औद्योगिक रुग्णता ऋणदाताओं को दिक्कत पहुँचाती है। ऋणदाताओं का कार्य ऋणों का भुगतान पाने, वसूली करने तथा न्यायालयी वादों में फंसने की प्रायिकता अधिक रहती है।

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औद्योगिक रुग्णता के कारण (Causes of Industrial Sickness)

औद्योगिक रुग्णता के दो कारण हैं- बाह्य एवं आन्तरिक ।

बाह्य- 1. बिजली की कटौती- बिजली कटौती के कारण निर्धारित लक्ष्य के अनुरूप उत्पादन करना सम्भव नहीं होता और व्यावसायिक / औद्योगिक संस्थाओं को हानि वहन करनी पड़ती है।

2. आर्थिक मन्दी से माँग में कमी- प्रतिस्पर्धा, मन्दी आदि के कारण, बिना बिका हुआ माल काफी मात्रा में बचा रह जाता है। परिणामस्वरूप औद्योगिक इकाइयों को हानि उठानी पड़ती है।

3. साख सम्बन्धी नियन्त्रण नहीं होना- समय-समय भारतीय रिजर्व बैंक की साख पर नियन्त्रण से औद्योगिक इकाइयों को समय पर तथा आवश्यकतानुसार, वित्तीय संस्थाओं से वित्तीय सहायता नहीं मिल पाती है। इससे औद्योगिक इकाइयाँ अस्वस्थ हो जाती हैं।

4. कच्चे माल की अनियमित आपूर्ति – जब औद्योगिक संस्थाओं में कच्चा माल समय पर प्राप्त नहीं होता तो भावी लाभ एवं भावी विकास, दोनों पर ही विपरीत प्रभाव पड़ता है।

आन्तरिक- 1. श्रम समस्याएँ – विश्व बैंक एवं अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के नियमों के कारण उद्योगों में से कार्मिकों की छँटनी करनी पड़ती है। इसके अतिरिक्त मजदूरी, बोनस, निलम्बन आदि के कारण भी प्रबन्धकों एवं कर्मचारियों के मध्य संघर्ष होते हैं और हड़ताल तथा तालाबन्दी की स्थिति आती है।

2. प्रबन्धन समस्याएँ- उद्योगों में अकुशल प्रबन्ध भी एक बड़ी समस्या है। कार्यशील पूँजी का अकुशल उपयोग, मजदूरी, वेतन वृद्धि, मानव शक्ति नियोजन तथा पदोन्नति सम्बन्धी दोषपूर्ण नीतियाँ भी प्रबन्धन समस्याओं का ही स्वरूप है।

3. पुराने एवं दोषपूर्ण संयन्त्र – जो उद्योगपति नवीनतम तकनीकों की ओर कोई ध्यान नहीं देते हैं, जिससे वे प्रतियोगिता में नहीं टिक पाते हैं और उन्हें हानि वहन करनी पड़ती है।

4. वित्त का अभाव – कई उद्योगों के सम्मुख पूँजी की समस्या रहती है और ये संस्थाएँ, लिए गये ऋणों को समय पर नहीं चुका पाती हैं, अतः रुग्ण उद्योगों की श्रेणी में आ जाती है।

औद्योगिक रुग्णता के सुधार के उपाय (Remedial measure for Industrial Sickness) –

देश के उद्योगों में रुग्णता का कारण एक सामाजिक समस्या एवं अभिशाप बनता जा रहा है। इसलिए सरकार एवं अन्य वित्तीय संस्थाओं द्वारा समय-समय पर प्रोत्साहन राशि या अनुदान के रूप में कई प्रकार से सहायता की जाती है। यह सहायता निम्न स्वरूप में हो सकती है

1. रिजर्व बैंक द्वारा उठाये गये कदम- रिजर्व बैंक द्वारा, रुग्ण इकाइयों के बारे में समय-समय पर निर्देशक सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया गया है। रिजर्व बैंक ने सम्बन्धित क्षेत्रों के बैंकों को इस बात का सुझाव दे रखा है कि जैसे ही किसी औद्योगिक इकाई की 50 प्रतिशत या इससे अधिक विशुद्ध पूँजी नष्ट हो जाती है, तो बैंकों को पुनः उसे स्वस्थ बनाने के लिए कदम उठाने चाहिए।

2. सरकार द्वारा रियायतें- केन्द्र सरकार ने, सन् 1977 में आयकर अधिनियम, 1961 में संशोधन करके उन इकाइयों को आयकर में छूट देने का प्रावधान किया है जो रुग्ण इकाइयों को विकास के दृष्टिकोण से अपने में मिला लेती हैं। जून 1987 से राज्य सरकारों ने छोटे स्तर के रुग्ण उद्योगों को अधिकतम 50,000 रुपये की सहायता देना प्रारम्भ किया है। अक्टूबर, 1989 में रुग्ण उद्योगों को स्वस्थ बनाने के दृष्टिकोण से उत्पादन ऋण योजना (Excise Loan) को क्रियान्वित किया गया जिसे सितम्बर 1990 से उन रुग्ण उद्योगों में भी लागू कर दिया गया जहाँ 1,000 से अधिक श्रमिक काम पर लगे हों।

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