सांस्कृतिक व्यवहार प्रतिमान का अर्थोल्लेख कीजिए।
सांस्कृतिक व्यवहार प्रतिमान की जब हम बात करते हैं तब हम मानव संसकृति को ध्यान में रखकर पशु जगत से इसकी तुलना करते हैं। ज्ञातव्य है कि मानव संस्कृति को एक विशिष्ट स्थान प्राप्त है। मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। वह संस्कृति का निर्माता और सहायक कारक है। यही संस्कृति मनुष्य को अन्य जीवों से पृथक करती है। हावेल ने लिखा है कि-“संस्कृति अद्भुत रूप से मानवीय घटना है।” मानव इस जगत में अन्य प्राणियों में एक ऐसा प्राणी है जिसने अपनी क्षमताओं के बल पर संस्कृति का निर्माण किया तथा उसको निरन्तर बनाये रखने में सफलता प्राप्त किया। समाज के सभी सदस्य अपनी संस्कृति पर गौरवान्वित होते हैं और ‘संस्कृति’ शब्द का प्रयोग अपने अर्थों में करते हैं। कुछ विद्वानों ने संस्कृति को नैतिकता, बौद्धिकता और आध्यात्मिकता की संज्ञा दी है। साहित्यकारों के अनुसार संस्कृति जीवन का आलोक, मृदुलता, सामाजिक आकर्षण और बौद्धिक श्रेष्ठता की अभिव्यक्ति है। ‘संस्कृति’ शब्द संस्कृत भाषा से लिया गया है तथा दोनों ही शब्द ‘संस्कार’ से निर्मित हुए हैं। संस्कार का तात्पर्य है- कुछ कृत्यों की पूर्ति करना अथवा उन्हें सम्पन्न करना। इस अर्थ में संस्कृति का अर्थ है- विभिन्न संस्कारों द्वारा सामाजिक जीवन के उद्देश्यों की पूर्ति करना। संस्कारों को सम्पन्न करके ही मनुष्य सामाजिक प्राणी के रूप में जाना जाता हैं। हिन्दी भाषा का ‘संस्कृति’ शब्द अंग्रेजी भाषा के शब्द ‘कल्चर’ का रूपान्तर है। अंग्रेजी के ‘कल्चर’ शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के शब्द ‘कल्टुरा’ से हुई है। जर्मन का शब्द ‘कुल्टूर’ भी लैटिन भाषा के शब्द ‘कल्टुरा’ से अत्यधिक मेल खाता है, जिसका अर्थ बहुत कुछ संस्कृति से मिलता-जुलता है।
जन्म के समय प्रत्येक बालक असहाय होता है। वह अपनी समस्त आवश्यकताओं के लिये माँ तथा परिवार के अन्य सदस्यों पर निर्भर रहता है। धीरे-धीरे वह अपने परिवार तथा पड़ोस के सम्पर्क में आने के कारण अनेक बातें सीखता जाता है और अपना विकास तथा समाजीकरण भी करता जाता है। चार-पाँच वर्ष की आयु में बालक विद्यालयी वातावरण में आकर भाषा, कला, गणित आदि से विज्ञ होने लगता है। व्यक्तिव विकास के इसी क्रम में वह परिवार, पड़ोस एवं विद्यालय के माध्यम से विज्ञान, कला, दर्शन आदि का ज्ञान प्राप्त करता है, जिससे वह सामाजिक रीति-रिवाजों, प्रथाओं एवं रूढ़ियों आदि से परिचित होते हुए उन्हीं के अनुसार आचरण करना सीखता है। स्पष्ट है कि इसके मूल में क्या है? अथवा पर्यावरण जो हमारे व्यवहार को परिचालित और नियंत्रित करता है, क्या है? इसके प्रत्युत्तर में कहा जा सकता है यह हमारी सामाजिक विरासत अथवा धरोहर ही है, जो हमें समाज ने दी है। इसी सामाजिक धरोहर को ‘संस्कृति’ कहा जाता है। सामाजिक विरासत या धरोहर के अन्तर्गत मनुष्य द्वारा निर्मित उस सम्पूर्ण व्यवस्था का समावेश होता है, जिसमें ये रीति-रिवाज, परम्परायें, रूढ़ियाँ, प्रथायें, संस्थायें, भाषा, कला, धर्म, सामाजिक संगठन, विज्ञान, कानून, आर्थिक-राजनीतिक व्यवस्था, मशीनों और उपकरणों आदि को सम्मिलित किया जाता है, जो मानवीय आवश्यकताओं की पूर्ति में सहायक होते हैं। यह संस्कृति एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को हस्तान्तरित होती है और प्रत्येक पीढ़ी से परिवर्तित परिवर्द्धित और विकसित करती रहती है। रॉबर्ट बीरस्टीड के शब्दों में, “संस्कृति वह सम्पूर्ण जटिलता है, जिसमें वह सभी वस्तुयें सम्मिलित हैं, जिस पर हम विचार करते हैं, कार्य करते हैं तथा समाज के सदस्य होने के नाते अपने पास रखते हैं। इसके अन्तर्गत हम जीवन जीने अथवा कार्य करने और विचार करने के उन सभी तरीकों को सम्मिलित करते हैं, जो एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को हस्तांतरित होते हैं तथा जो समाज के स्वीकृत अंग बन गये हैं। विद्वानों ने संस्कृति को इस प्रकार परिभाषित किया है-
1. होबेल के शब्दों में- “संस्कृति सम्बन्धित सीखे हुए व्यवहार प्रतिमानों का सम्पूर्ण योग है जो कि एक समाज के सदस्यों की विशेषताओं को बताती है और जो इसलिये प्राणिशास्त्रीय विरासत का परिणाम नहीं होता है।”
2. ए0 डब्ल्यू. ग्रीन का कहना है कि, “संस्कृति ज्ञान व्यवहार तथा विश्वास की उन आदर्श पद्धतियों को एवं ज्ञान और व्यवहार से उत्पन्न उन साधनों को कहते हैं, जो सामाजिक रूप से पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तान्तरित होते हैं।”
3. राल्फ पिडिंगटन के शब्दों में, “संस्कृति उन भौतिक एवं बौद्धिक साधनों अथवा उपकरणों का सम्पूर्ण योग है, जिनके द्वारा मानव अपनी प्राणिशास्त्री आवश्यकताओं की संतुष्टि और अपने पर्यावरण से अनुकूलन करता है।”
4. ई. बी. टायलर की पुस्तक ‘प्रिमिटिव कल्चर’ के अनुसार, “संस्कृति वह जटिल समग्रता है, जिसमें ज्ञान, विश्वास, कला, आचार, कानून और अन्य क्षमताओं एवं आदतों का समावेश होता है, जिन्हें मनुष्य समाज का सदस्य होने के नाते प्राप्त करता है।”
5. मैकाइवर और पेज लिखते हैं, “हमारे रहने तथा सोचने के तरीकों में प्रतिदिन की अन्तःक्रियाओं में, काल में, मनोरंजन तथा आमोद-प्रमोद में संस्कृति हमारे प्रकृति की अभिव्यक्ति ही है।”
सदरलैण्ड एवं वुडवर्ड के अनुसार, “सम्पूर्ण संस्कृति के एक प्रकार सामान्य चित्र के रूप में संस्कृति के अन्तर्गत जाति प्रथा, संयुक्त परिवार, पंचायत, आयात्मवाद, गाँधीवाद, धर्म का महत्व आदि सभी एक संस्कृति संकुल है, ये सभी मिलकर सांस्कृतिक व्यवहार प्रतिमान का निर्माण करते हैं।’
Important Links
- पारसन्स: सामाजिक व्यवस्था के संरचनात्मक | Social Structure in Hindi
- टालकाट पारसन्स के सामाजिक व्यवस्था एवं इसके सकारात्मक \नकारात्मक तत्व
- रेडक्लिफ ब्राउन के सामाजिक संरचना सिद्धान्त | Radcliffe Brown’s social structure theory
- प्रोटेस्टेन्ट नीति और पूँजीवाद की आत्मा सम्बन्धी मैक्स वेबर के विचार
- मैक्स वेबर के समाजशास्त्र | Sociology of Max Weber in Hindi
- मैक्स वेबर के पद्धतिशास्त्र | Max Weber’s Methodology in Hindi
- मैक्स वेबर की सत्ता की अवधारणा और इसके प्रकार | Concept of Power & its Variants
- मैक्स वेबर के आदर्श-प्रारूप की धारणा | Max Weber’s Ideal Format Assumption in Hindi
- स्पेन्सर के सामाजिक संगठन के ऐतिहासिक विकासवाद | Historical Evolutionism in Hindi
- स्पेन्सर के समाज एवं सावयव के बीच समानता | Similarities between Spencer’s society & matter
- मार्क्स के वर्ग-संघर्ष सिद्धांत | Marx’s class struggle Theory in Hindi
- आधुनिक पूँजीवादी व्यवस्था में मार्क्स के वर्ग-संघर्ष | Modern capitalist system in Hindi
- अगस्त कॉम्टे के ‘प्रत्यक्षवाद’ एवं कॉम्टे के चिन्तन की अवस्थाओं के नियम
- आगस्ट कॉम्टे ‘प्रत्यक्षवाद’ की मान्यताएँ अथवा विशेषताएँ | Auguste Comte of Positivism in Hindi
- कॉम्ट के विज्ञानों के संस्तरण | Extent of Science of Comte in Hindi
- कॉम्ट के सामाजिक स्थिति विज्ञान एवं सामाजिक गति विज्ञान – social dynamics in Hindi
- सामाजिक सर्वेक्षण की अवधारणा और इसकी प्रकृति Social Survey in Hindi
- हरबर्ट स्पेन्सर का सावयवि सिद्धान्त एवं सावयवि सिद्धान्त के विशेषताएँ
- मार्क्सवादी द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद (Dialectical materialism) की विशेषताएँ
- द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद (कार्ल मार्क्स)| Dialectical materialism in Hindi