भौगोलिक निश्चयवाद का मूल्यांकन
भौगोलिक निश्चयवाद का मूल्यांकन कीजिए।
सारोकिन ने अपनी पुस्तक ‘Contemporary Sociological Theories’ (समकालीन समाजशास्त्रीय सिद्धान्त) में लिखा है कि भौगोलिक निश्चयवाद से सम्बन्धित विचारों ने एक लम्बे समय तक विभिन्न दार्शनिकों तथा सामाजिक विचारकों के चिन्तन को प्रभावित किया। समाजशास्त्रीयों में भी ऐसे लेखकों की सूची बहुत लम्बी है जिन्होंने मानव व्यवहारों को निर्धारित करने वाली दशाओं में भौगोलिक दशाओं को एक प्रमुख स्थान दिया। उदाहरण के लिए टायनवी (Toynbee) के अधिकांश विचार समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण के निकट होने के बाद भी, उन्होंने मानव व्यवहारों के निर्धारण में भौगोलिक कारकों को महत्वपूर्ण माना। अप्रत्यक्ष रूप से भौगोलिक निश्चयवाद से सहमत होते हुए उन्होंने लिखा कि “सभ्य समाजों का जन्म अनेक चुनौतियों जिनमें प्राकृतिक चुनौतियाँ सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण हैं, के प्रत्युत्तर (response) में किये गये प्रयत्नों का परिणाम है।”2 उन्होंने स्पष्ट किया कि प्रतिकूल पर्यावरण की कठिनाइयाँ ऐतिहासिक रूप से सबसे अधिक लाभप्रद सिद्ध हुई है क्योंकि इन चुनौतियों का सामना करके उन पर विजय करने वाले व्यक्ति ही एक सभ्य समाज का निर्माण करते हैं। स्वयं सारोकिन ने भी यह माना कि विभिन्न समाजों में व्यक्ति के व्यवहारों, सामाजिक संस्थाओं की प्रकृति तथा पारस्परिक सम्बन्धों के रूप का निर्धारण करने वाली दशाओं में भौगोलिक दशाओं का एक प्रमुख स्थान होता है।
वास्तविकता है कि भौगोलिक निश्चयवाद अध्ययन का एक ऐसा उपागम है जो मानव समाज से सम्बन्धित प्रत्येक दशा की विवेचना प्राकृति दशाओं के आधार पर ही करता है। यह सम्भव है कि जब मनुष्य का जीवन पूरी तरह प्राकृतिक दशाओं के बीच व्यतीत होता था, उस समय मानव के विभिन्न विश्वासों और व्यवहारों को प्रभावित करने में भौगोलिक दशाओं की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण रही हो। इसके बाद जैसे-जैसे मनुष्य के ज्ञान में वृद्धि होती गयी, प्रौद्योगिक विकास के फलस्वरूप व्यक्ति और समाज के जीवन पर प्रभाव कम होता गया। आज मनुष्य द्वारा निर्मित एक विकसित संस्कृति और प्रौद्योगिकी के फलस्वरूप तार्किक आधार पर उन सामाजिक नियमों की खोज करना सम्भव हो गया है जो वर्तमान मानवीय व्यवहारों को प्रभावित करते है। व्यक्ति के जीवन पर आज भौगोलिक दशाओं का कोई भी प्रभाव प्रत्यक्ष नहीं रह गया है। पर्वतों में की अत्यधिक ऊँचाई पर आक्सीजन न होने पर भी व्यक्ति वहाँ जा सकता है; गहरे समुद्र रहकर व्यक्ति प्राकृतिक रहस्यों को ज्ञात कर सकता है तथा नये आविष्कारों द्वारा प्राकृतिक संकटों का सामना करने के लिए वह पूरी तरह सक्षम है।
भौगोलिकवादियों ने जनसंख्या के घनत्व, आर्थिक संगठन, सामाजिक संस्थाओं, धर्म तथा सांस्कृतिक प्रतिमानों पर भौगोलिक दशाओं के जिस प्रभाव को स्पष्ट किया है, उनके आधार पर आज सामाजिक जीवन की विवेचना नहीं की जा सकती। जनसंख्या का घनत्व आज प्रौद्योगिक विकास तथा राजनीतिक दशाओं से प्रभावित होता है। स्वास्थ्य की सुविधाओं के द्वारा जन्म और मृत्यु-दर भी आज प्राकृतिक दशाओं से बहुत कम प्रभावित होती है। आर्थिक संगठन का सम्बन्ध खनिज पदार्थों से उतना नहीं है जितना कि सरकार की नीतियों तथा प्रौद्योगिकी के विकास से है। भौगोलिक निश्चयवाद से यह स्पष्ट नहीं होता कि समान भौगोलिक दशाओं में ही परिवार, विवाह, प्रथाओं तथा धर्म सम्बन्धी विश्वासों में इतनी अधिक विभिन्नता क्यों होती है। वास्तव में संस्थाओं का सम्बन्ध एक विशेष संस्कृति से है, भौगोलिक पर्यावरण के प्रभाव से नहीं। वर्तमान व्यक्ति का आवास, वेश-भूषा, खान-पान, कला और साहित्य भी सांस्कृतिक प्रतिमानों, वैयक्तिक रूचि तथा आर्थिक साधनों से प्रभावित होता है। यही कारण है कि सामाजिक जीवन के विभिन्न पक्षों को स्पष्ट करने के लिए भौगोलिक दशाओं को एक महत्वपूर्ण कारक नहीं माना जाता।
जहाँ तक मानव व्यवहारों का सम्बन्ध है, वर्तमान अनुसन्धानों से यह स्पष्ट है कि अपराध का सम्बन्ध एक विशेष सामाजिक संरचना तथा सामाजिक दशाओं से है, युग दशाओं से नहीं। इसी तरह मनुष्य की कार्यक्षमता को प्रभावित करने में मौसम में होने वाला परिवर्तन एक गौण कारक रह गया है। गरम जलवायु वाले अनेक देशों में आर्थिक सम्पन्नता के फलस्वरूप कार्य से सम्बन्धित सभी स्थान वातानुकूलित हो जाने से व्यक्ति की कार्यक्षमता पर नगरमी का कोई प्रभाव नहीं पड़ता। ठण्डे प्रदेशों में भी नये ढंग की वेश-भूषा, खान-पान और रहन-सहन के प्रतिमानों के द्वारा व्यक्ति अपनी कार्यक्षमता को बनाये रखने में सफल हुआ मानसिक योग्यता का सम्बन्ध सामाजिक सीख और शिक्षा प्रणाली से अधिक है, ऋतुओं से नहीं। दुर्थीम ने अपने अध्ययन से यह स्पष्ट कर दिया कि आत्महत्या जैसा व्यवहार भी जलवायु से प्रभावित न होकर कुछ विशेष सामाजिक दशाओं से प्रभावित होता है।
भौगोलिक निश्चयवाद में हन्टिंग्टन के विचारों को बहुत महत्व दिया जाता है लेकिन आज हटिंग्टन के विचारों को एक सैद्धान्तिक कल्पना से अधिक कुछ नहीं माना जा सकता। यह कहना बहुत हास्यास्पद है कि अनुकूल जलवायु से सभ्यता का विकास होता है और जलवायु प्रतिकूल हो जाने पर सभ्यता का विनाश हो जाता है। ग्रीक, रोम और मिस्त्र की सभ्यताओं का पतन राजनीतिक कारणों से हुआ, जलवायु में परिवर्तन हो जाने के कारण नहीं। भौगोलिकवादी यह भी स्पष्ट नहीं कर। सके कि अनुकूल और प्रतिकूल जलवायु से उनका तात्पर्य किन दशाओं से है। वास्तव में संसार में कोई भी स्थान ऐसा नहीं है जहाँ प्रतिभाशाली लोगों के साथ महामूर्ख लोग भी जन्म लेते हों। इस प्रकार वैयक्तिक प्रतिभा के साथ सभ्यता के विकास और विनाश को जोड़ना भी एक काल्पनिक तथ्य है। इसी आधार पर मम्फोर्ड (Lewis Mumford) ने लिखा है, “सांसकृतिक विरासत बढ़ने के साथ ही भौगोलिक पर्यावरण का एक बड़ा भाग अनुपयोगी होता जा रहा है।” लगभग इसी अर्थ में मैकाइवर (Maclver) का कथन है कि “भौगोलिक दशाएँ केवल अपने आप ही सभी मानवीय घटनाओं को पूरी तरह निर्धारित नहीं कर सकतीं।” इन आलोचनाओं के बाद भी यह ध्यान रखना आवश्यक है कि आज भी सरल समाजों की संरचना तथा उनकी सामाजिक-सांस्कृतिक संस्थाओं को समझने के लिए भौगोलिक कारकों पर ध्यान देना आवश्यक है।
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