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भारतीय रिजर्व बैंक का नियन्त्रण | Control of Reserve Bank of India in Hindi

भारतीय रिजर्व बैंक का नियन्त्रण
भारतीय रिजर्व बैंक का नियन्त्रण

भारतीय रिजर्व बैंक का नियन्त्रण प्रक्रिया का वर्णन कीजिए।

भारतीय रिजर्व बैंक का नियन्त्रण (Control of Reserve Bank of India) – NBFCs के कारोबार में तीव्र वृद्धि ने निवेशकों के हितों की रक्षा करने के लिए प्रभावी नियामक कार्यवाही की आवश्यकता उत्पन्न कर दी है। इसके लिए RBI ने NBFCs वर्ष 1963 में रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया एक्ट के अध्याय III-B के अन्तर्गत निर्गत दिशा निर्देशों के अनुरूप इन वित्तीय कम्पनियों के नियमन का कार्य शुरू किया। प्रारम्भ में यह नियमन इन कम्पनियों द्वारा जमा स्वीकार किये जाने तक ही सीमित था।

1992 में श्री शाह की अध्यक्षता में बने कार्यदल (Task force) की संस्तुतियों के आधार पर अप्रैल 1993 में NBFCs के सन्दर्भ में निम्नलिखित नियमन प्रस्तुत किये गये :

1. जिन गैर-बैंकिंग वित्तीय कम्पनियों के पास अपनी शुद्ध धनराशि रु. 50 लाख अथवा अधिक थी उनके पंजीकरण की व्यवस्था की गई।

2. कम्पनियों की आय को मालूम करने की दृष्टि से जून 1994 में उनकी परिसम्पत्तियों के वर्गीकरण हेतु विवेकशील प्रतिमान निर्धारित किये गये। वर्ष 1997 में NBFCs के नियन्त्रण हेतु उठाये जाने वाले प्रमुख कदम निम्नलिखित हैं:

1. उन सभी NBFCs को पंजीकरण कराना अनिवार्य है जिनकी अपनी शुद्ध धनराशि रु. 25 लाख या इससे अधिक है। जून, 2010 के अन्त में, आर.बी.आई. को पंजीकरण के लिए 41,000 आवेदन प्राप्त हुए हैं। इनमें से, आर.बी.आई. ने 15100 आवेदनों को अनुमोदित किया जिनमें 617 आवेदन को सार्वजनिक जमाओं को स्वीकार करने के लिए कम्पनी के रूप में प्राधिकृत किया है।

2. कम्पनियों से कहा गया कि वे एक रिजर्व फण्ड का निर्माण करें तथा अपने शुद्ध लाभ की कम से कम 20% धनराशि इस फण्ड में अनिवार्य रूप से हस्तान्तरित करें। 3. गैर-बैंकिंग वित्तीय कम्पनियों को यह निर्देश दिया गया कि वे अपनी जमा का एक निश्चित प्रतिशत भाग गैर-भारग्रस्त (unencumbered) अनुमोदित प्रतिभूतियों जैसी तरल परिसम्पत्ति के रूप में रखेंगे। जनवरी 1998 में NBFCs के निरीक्षण एवं नियन्त्रण हेतु निम्नलिखित दिशा-निर्देश जारी किये गयेः

1. नियमन के उद्देश्य से गैर-बैंकिंग वित्तीय कम्पनियों को तीन वर्गों में वर्गीकृत किया गया।

(a) वे कम्पनियाँ जो जनता से जमा स्वीकार करती हैं।

(b) वे कम्पनियाँ जो जनता से जमा नहीं स्वीकार करती हैं।

(c) केन्द्रीय निवेश कम्पनियाँ (Core Investment Companies) जिनके पास अपनी सम्पत्ति का कम-से-कम 90 प्रतिशत भाग अपने ग्रुप/ कम्पनी/सहायक कम्पनी की प्रतिभूतियों में विनियोजित हो

2. अधिक खुलापन और पारदर्शिता लाने की दृष्टि से सार्वजनिक जमा स्वीकार करने वाली गैर-बैंकिंग वित्तीय कम्पनियों से यह कहा गया कि जमा आवेदन पत्र स्वीकार करते समय तथा जमा हेतु विज्ञापन देते समय वे अपने वित्तीय क्रियाकलापों की आवश्यक जानकारी प्रस्तुत करें।

3. गैर-बैंकिंग वित्तीय कम्पनियों के उधार देने की ऊपरी सीमा का पुनरीक्षण किया गया तथा उसे पूँजी पर्याप्तता की आवश्यकता के आधार पर निश्चित किया गया।

4. गैर-बैंकिंग वित्तीय कम्पनियों द्वारा की जाने वाली सार्वजनिक जमा की मात्रा में वृद्धि को क्रेडिट रेटिंग के स्तर से सीधे जोड़ दिया गया।

5. लघु गैर-बैंकिंग वित्तीय कम्पनियों को जिनका स्वयं का शुद्ध कोष 25 लाख रुपए कम है, उन्हें सार्वजनिक जमा स्वीकार करने से रोक दिया गया।

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1998 के सुधारों के उपरान्त की प्रगति

(1) भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा लागू किये जाने वाले नियमन के फलस्वरूप गैर-बैंकिंग वित्तीय कम्पनियों की कार्यप्रणाली में अधिक खुलापन आया। भारतीय रिजर्व बैंक ने जमाकर्ताओं के हितों की सुरक्षा के लिए समय-समय पर कई कदम उठाए हैं। कम्पनी अपनी बैलेन्स शीट को सही प्रदर्शित करे इसके लिए वैधानिक अंकेक्षकों को उत्तरदायी बनाया गया।

(2) गैर-बैंकिंग वित्तीय कम्पनियों की परिसम्पत्तियों की जोखिम को ध्यान में रखते हुए पूँजी पर्याप्तता प्रतिशत को 1 अप्रैल, 1998 को 8 प्रतिशत से बढ़ाकर 10 प्रतिशत तथा पुनः 1 अप्रैल, 1999 से बढ़ाकर 12 प्रतिशत कर दिया गया। ऐसा जमाकर्ताओं के हितों को ध्यान में रखकर किया गया।

(3) NBFC के बीमा कारोबार में प्रवेश के लिए जून 2000 में परिचालित मार्ग निर्देशों के अनुसार दो करोड़ रुपए की अपनी विधि वाली कोई भी पंजीकृत NBFC शुल्क आधार पर बिना जोखिम भागीदारी के एजेन्ट के रूप में बीमा कारोबार कर सकती है, ऐसी NBFC. जो कुछ पात्रता मानदण्डों, जैसे- कम से कम रु. 500 करोड़ की अपनी निधि, निवल मुनाफे के सन्दर्भ में ट्रैक-रिकॉर्ड, सहायक कम्पनियों का ट्रैक-रिकॉर्ड (पिछला कार्य निष्पादन रिकॉर्ड), अधिकतम 5 प्रतिशत तक का निवल NPA रिकॉर्ड आदि को पूरा करती है, जोखिम भागीदारी के साथ संयुक्त उद्यम कम्पनी या बीमा कारोबार स्थापित कर सकती है।

(4) भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा 3 जनवरी, 2010 को जारी निजी क्षेत्र में नए बैंक के प्रवेश सम्बन्धी दिशानिर्देशों में अच्छे विगत रिकार्ड वाली एनबीएफसी को निम्नलिखित मानदण्डों के आधार पर निजी क्षेत्र के बैंक बनने की अनुमति दे दी गयी है :

1. एनबीएफसी (NBFCs) की अद्यतन तुलन पत्र के अनुसार कम से कम रु.200 करोड़ की निबल सम्पत्ति होनी चाहिए जिसे रूपान्तरण की तारीख से तीन वर्षों के भीतर रु. 300 करोड़ तक बढ़ाया जाना होगा।

2. एनबीएफसी को किसी बड़े औद्योगिक घराने द्वारा प्रमोट किया हुआ नहीं होना चाहिए अथवा स्थानीय, राज्य अथवा केन्द्रीय सरकार सहित, सरकारी प्राधिकरणों के स्वामित्वाधीन/ नियन्त्रणाधीन नहीं होना चाहिए।

3. एनबीएफसी को पूर्व वर्ष में एएए रेटिंग (अथवा इसके समकक्ष) से कमतर क्रेडिट रेटिंग प्राप्त नहीं होनी चाहिए।

4. एनबीएफसी का भारतीय रिजर्व बैंक के विनियमों / निर्देशों के अनुपालन और सार्वजनिक जमाओं की वापसी अदायगी में विगत रिकार्ड त्रुटिहीन होना चाहिए।

5. एन. बी. एफ. सी. के पास कम से कम 12 प्रतिशत की पूँजी पर्याप्तता होनी चाहिए और इनकी निबल एनपीए 5 प्रतिशत से अधिक नहीं होनी चाहिए।

6. NBFCs के पास कम-से-कम 25 लाख रुपए का शुद्ध निजी कोष (Net Owned Fund) होना रिजर्व बैंक ने अनिवार्य किया है। इस मानक को पूरा न करने वाली गैर बैंकिंग वित्तीय कम्पनियों को कारोबार करने से प्रतिबन्धित करने की घोषणा रिजर्व बैंक ने फरवरी 2010 में की है।

7. NBFCs द्वारा सार्वजनिक जमाओं (Deposits) पर अब अधिकतम 11 प्रतिशत प्रतिवर्ष की दर से ही ब्याज दिया जा सकेगा। अभी तक इसके लिए 12.5 प्रतिशत की उच्चतम सीमा निर्धारित थी ब्याज की नई उच्चतम सीमा 4 मार्च, 2003 से प्रभावी की गई है। ब्याज दर की नई उच्चतम सीमा की घोषणा करते हुए रिजर्व बैंक ने कहा है।

RBI ने NBFCs के कार्यों को सुधारने के लिए कुछ उपाय प्रस्तावित किये हैं। इन उपायों में है: (i) संचलनों में पारदर्शिता, विशेषकर सम्पर्क ऋण सम्बन्धों (ii) बोड़ों के व्यवसायिककरण और बैंकों में मानकों के साथ अनुरूपता में “फिट एण्ड प्रोपर” के मानदण्ड को सुनिश्चित करने को शामिल करते हुए कारपोरेट गवरनैन्स मानक का पालन। (iii) एजेन्टों के लिए गैर-टिकाऊ कमीशन दरों को हटाना (iv) “अपने ग्राहक को जानिए” के नियमों का पालन करना (v) फील्ड एजेन्टों के साथ पता लगाये जाने योग्य स्पष्ट संकेत की शर्तों में ग्राहक सेवा दावा न की गई जमाओं के मामलों में उपयुक्त कार्रवाई की जा सके।

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