गैर बैंकिंग संस्थाओं के कार्यों में वृद्धि के उत्तरदायी कारणों की विवेचना कीजिए।
गैर बैंकिंग संस्थाओं के कार्यों में वृद्धि के उत्तरदायी कारण- गैर-बैंकिंग वित्तीय कम्पनियों के कार्य सम्पादन में 90 के दशक में काफी तेजी से वृद्धि हुई है जिसके लिए प्रमुख कारण उत्तरदायी हैं-
1. गैर-बैंकिंग वित्त कम्पनियों ने विशेष क्षेत्रों; जैसे उपकरण पट्टे पर देने (Equipment Leasing) किराया खरीद (Higher Purchase) आवास वित्त (Housing Finance) तथा उपभोक्ता वित्त (Consumer Finance) की ऋण सम्बन्धी अपेक्षाओं को पूरा करने में लचीलापन दर्शाया है।
2. गैर-बैंकिंग वित्तीय कम्पनियों ने अपेक्षाकृत अधिक प्रति लाभ की आकर्षक ब्याज दरें देकर ग्राहकों का आधार काफी व्यापक बना लिया है। हालांकि इस प्रक्रिया में कुछ कम्पनियाँ अपनी अर्थ-सक्षमता (Economic Vialiaty) खो बैठी है।
3. गैर-बैंकिंग वित्तीय कम्पनियों का ग्राहक उन्मुखीकरण और ऋण स्वीकृतियों सम्बन्धी प्रक्रियाओं का सरलीकरण।
उपर्युक्त वर्णित कारणों के फलस्वरूप बैंकों और गैर-बैंकिंग वित्तीय कम्पनियों के बीच प्रदान की जाने वाली सेवाओं के मध्य अन्तर निरन्तर कम होता जा रहा है और दोनों लगभग एक ही प्रकार की सेवाएँ प्रदान कर रहे हैं। यह अवश्य है कि वाणिज्य बैंकें चेक जारी कर सकती हैं जबकि गैर-बैंकिंग वित्तीय कम्पनियाँ ऐसा नहीं कर सकती हैं।
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NBFCs की कार्य प्रणाली के दोष (Interests of Working of NBFCs)
1. जमाकर्ताओं के हितों की अवहेलना
जैसा कि हम इन कम्पनियों के वित्तीय स्रोतों का विश्लेषण कर चुके हैं। इन कम्पनियों के पास अंश पूँजी तथा अन्य रिजर्व कुल संसाधनों का मात्र 26.2% होता है और अपने 57% संसाधन जमाओं और ऋणों के माध्यम से जुटाते हैं, परन्तु ये कम्पनियाँ आकर्षक ब्याज मिलने पर किसी भी कार्य के लिए फाइनेन्स देने को तत्पर हो जाती हैं। फलतः अक्सर इन्हें भारी हानि उठानी पड़ती है और प्रति वर्ष हजारों जमाकर्ताओं का जमा धन डूब जाता है। यही नहीं कुछ NBFCs प्रतिस्पर्धा करते हुए भी अपनी कुल सम्पत्ति का 100% तक फाइनेन्स करने को तत्पर रहती हैं जो एक स्वस्थ प्रक्रिया नहीं है।
2. मौद्रिक नीति के क्रियान्वयन में कठिनाई
गैर-बैंकिंग वित्तीय कम्पनियाँ किसी भी कार्य के लिए वित्त की व्यवस्था करने हेतु स्वतन्त्र होती हैं, अतः इनके ऊपर भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति प्रभावी नहीं होती। अन्य शब्दों में, भारतीय रिजर्व बैंक का इन पर नियन्त्रण नहीं रहता।
यही नहीं जब किसी कार्य के लिए व्यापारिक बैंक ऋण नहीं देते तो NBFCs उस कार्य हेतु वित्त उपलब्ध कर देते हैं, फलतः रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति अधिक सफल नहीं हो पाती है।
3. अन्य दोष
1. बहुत-सी गैर-बैकिंग वित्तीय कम्पनियाँ सट्टेबाजी की क्रिया में संलग्न रहती हैं तथा आवश्यक वस्तुओं के संचय (Hoarding) का कार्य करती हैं जिससे कीमतों में वृद्धि को बढ़ावा मिलता है।
2. यह कम्पनियाँ काले धन को जमा एवं ऋणों के रूप में स्वीकार करती हैं जिससे समानान्तर अर्थव्यवस्था तथा कर चोरी को बढ़ावा मिलता है।
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