समाजशास्‍त्र / Sociology

भौगोलिक निश्चयवाद का सामाजिक जीवन एवं मानव व्यवहार से सम्बन्ध – in Hindi

भौगोलिक निश्चयवाद का सामाजिक जीवन

भौगोलिक निश्चयवाद का सामाजिक जीवन

भौगोलिक निश्चयवाद का सामाजिक जीवन

भौगोलिक निश्चयवाद का सामाजिक जीवन एवं मानव व्यवहार से सम्बन्ध तथा प्रभाव का उल्लेख कीजिए।

भौगोलिक निश्चयवाद एक ऐसा उपागम है जो मनुष्य के सम्पूर्ण सामाजिक जीवन को भौगोलिक दशाओं से भी प्रभावित मानता है। इस तथ्य को भौगोलिक निचश्यवादियों ने प्राकृतिक दशाओं का जनसंख्या के घनत्व, आर्थिक संगठन, सामाजिक संस्थाओं, धर्म तथा सांस्कृतिक प्रतिमानों आदि पर पड़ने वाले प्रभावों के रूप में स्पष्ट किया।

भौगोलिक निश्चयवाद के अनुसार भौगोलिक दशाओं का जनसंख्या के घनत्व और विभिन्न स्थानों पर जनसंख्या के वितरण पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। मनुष्य उसी स्थान पर बसने का प्रयत्न करता है जहाँ की जलवायु, भूमि की बनावट और पानी की सुविधाएँ उसके पक्ष में हों। जिन स्थानों पर बाढ़, भूकम्प अथवा दूसरी प्राकृतिक विपत्तियाँ अधिक होती हैं, वहाँ जनसंख्या का घनत्व बहुत कम होता है। यही कारण है कि उपाजऊ मैदानी क्षेत्रों की तुलना में पहाड़ी क्षेत्रों में जनंसख्या का घनत्व बहुत कम पाया जाता है।

आर्थिक संगठन पर भौगोलिक पर्यावरण के प्रभाव को सम्पत्ति, उद्योग-धन्धों और व्यापार चक्र के आधार पर स्पष्ट किया गया। 2 इस सम्बन्ध में बकल ने लिखा है, “व्यक्तियों के बीच जलवायु और भूमि द्वारा उत्पन्न सभी वस्तुओं में सम्पत्ति का एकत्रीकरण सबसे आधारभूत कारण है सम्पत्ति का प्रारम्भिक इतिहास पूरी तरह भूमि और जलवायु पर ही आधारित पाया जाता रहा है।”3 आज संसार के जिन देशों को प्रकृति द्वारा भारी मात्रा में खनिज पदार्थ दिये गये हैं, उनमें सम्पत्ति का संचय भी सबसे अधिक देखने को मिलता है। अमरीका और खाड़ी के देश इसका सबसे अच्छे उदाहरण हैं। उद्योग-धन्धों का विकास भी खनिज पदार्थों, उपजाऊ भूमि तथा अनुकूल जलवायु से ही सम्बन्धित है। जिन स्थानों पर यह भौगोलिक सुविधाएँ उपलब्ध नहीं होती, वहाँ अधिकांश व्यक्तियों का जीवन निर्धनता में व्यतीत होता है। भौगोलिकवादी यह भी मानते हैं कि व्यापार में समृद्धि (prosperity) और ह्रास (depression) जैसी दशाएँ भी भौगोलिक दशाओं में होने वाले परिवर्तन का ही परिणाम होती है। जेवन्स (Jevons) ने अपनी ‘सनस्पॉट व्याख्या’ (Sunspot Theory) के द्वारा यह स्पष्ट किया कि सूर्य की गर्मी में होने वाला परिवर्तन समृद्धता और निर्धनता जैसी दशाओं को प्रभावित करता है।

सामाजिक संस्थओं की प्रकृति तथा उनमें होने वाले परिवर्तन को भी यह उपागम भौगोलिक दशाओं का ही परिणाम मानता है। इसके अनुसार भौगोलिक दशाएँ प्रतिकूल होने पर बड़े आकार वाले परिवारों की स्थापना होती तथा परिवार में उन युवा लोगों को अधिक अधिकार मिल जाते हैं जिनमें अपनी प्राकृतिक दशाओं से लड़ने की विशेष क्षमता होती है। ऐसे स्थानों में अक्सर बहुपति विवाह का भी प्रचलन हो जाता है जिससे परिवार में मेहनत करने वाले लोगों की संख्या बढ़ सके। प्रतिकूल भौगोलिक दशाएँ ही तरह-तरह के अन्धविश्वासों को बढ़ाती हैं। इसके विपरीत अनुकूल भौगोलिक दशाओं में छोटे परिवरों के साथ एकविवाह के नियम को प्रधानता मिलने लगती है तथा अधिकांश व्यवहार विवेक के आधार पर किये जाने लगते हैं। अनुकूल भौगोलिक दशाओं में अधिकांश लोग वृद्ध व्यक्तियों के अनुभवों से लाभ उठाकर उपयोगी सामाजिक व्यवस्था का निर्माण करते हैं रेटजेल (Ratzel), मटूजी (Matteuzzi) तथा वार्ड (Ward) वे भौगोलिक निश्चयवादी हैं जो यह मानते हैं कि राज्य की संगठन तथा सरकार का रूप भी भौगोलिक दशाओं से ही प्रभावित होता है। अनुकूल भौगोलिक दशाओं में बड़े-बड़े राष्ट्रों का विकास होता है जबकि प्रतिकूल दशाएँ राजतन्त्र और सामन्तवाद जैसी व्यवस्थाओं को प्रोत्साहन देती हैं। इनके अनुसार लोकतान्त्रिक व्यवस्था भी अनुकूल भौगोलिक दशाओं का ही परिणाम है।

अध्ययन के इस उपागम के अनुसार धर्म की विवेचना को भी प्राकृतिक शक्तियों से अलग करके नहीं समझा जा सकता। सच तो यह है कि विभिन्न अलौकिक विश्वासों अथवा धर्म परिणाम है। अतिवृष्टि, सूखा, बाढ़ का प्रकोप, महामारियाँ तथा भूकम्प आदि विपत्तियों से अपनी रक्षा करने के लिए ही मनुष्य ने विभिन्न प्राकृतिक शक्तियों, जैसे-सूर्य, चन्द्रमा, अग्नि, वायु, वर्षा तथा नदियों आदि की उपासना करना आरम्भ की। धीरे-धीरे इनसे सम्बन्धित विश्वासों के आधार पर ही धर्म जैसी संस्था का विकास हुआ। मैक्स मूलर (Max Muller) ने भी धर्म के प्राकृतिक सिद्धान्त में लगभग इसी तरह के विचार प्रस्तुत किये हैं।

भौगोलिक निश्चयवाद यह मानता है कि किसी समुदाय के सांस्कृतिक प्रतिमान भौगोलिक दशाओं से ही निर्धारित होते हैं। इनमें आवास की प्रकृति, वेश-भूषा, खान-पान, साहित्य और कला का विशेष स्थान है। गरम और ठण्डी जलवायु वाले स्थानों में खुले और हवादार मकान बनाये जाते हैं जबकि ठण्डी जलवायु वाले क्षेत्रों में मकानों की प्रकृति भिन्न होती है। ध्रुव प्रदेश में लोग बर्फ के मकानों में रहते हैं जबकि भूकम्प से प्रभावित क्षेत्रों में लकड़की के मकान बनाने का प्रचलन देखने को मिलता है। व्यक्ति की वेश-भूषा पूरी तरह जलवायु से ही प्रभावित होती है। जहाँ तक खान-पान का सम्बन्ध है, विभिन्न क्षेत्रों में पैदा हो वाले खाद्यान्नों अथवा खाने योग्य पदार्थों की उपलब्धता के अनुसार ही भोजन की प्रकृति का निर्धारण होता है। उष्ण जलवायु में शाकाहार का प्रचलन होता है जबकि ठण्डी जलवायु में मांसाहार की प्रवृत्ति बढ़ने लगती है। समुद्र के किनारे वाले क्षेत्रों में मछली लोगों का मुख्य आहार होता है। भौगोलिक निश्चयवादियों के अनुसार साहित्य और कला का सृजन भी भौगोलिक दशाओं से ही निर्धारित होता है।

भौगोलिक निश्चयवाद इस मान्यता पर आधारित है कि मानव के सभी व्यवहार, उसकी कार्यक्षमता, मानसिक योग्यता तथा जन्म और मृत्यु आदि विभिन्न भौगोलिक दशाओं जैसे जलवायु, तापक्रम, आर्द्रता एवं ऋतु-परिवर्तन से ही प्रभावित होते हैं। क्वेटलेट (Quetelet) और उनके साथियों ने यह स्पष्ट किया कि विभिन्न समाजों में अपराध की प्रकृति तथा अपराध की दर विभिन्न प्राकृतिक दशाओं तथा मौसम में होने वाले परिवर्तन से ही प्रभावित होती है।

भौगोलिकवादी यह मानते हैं कि मनुष्य की कार्यक्षमता का निर्धारण किसी स्थान के तापक्रम, अर्द्रता और जलवायु अनुसार होता है। हन्टिग्टन (Huntington) ने यह स्पष्ट किया कि जलवायु में होने वाला सामान्य परिवर्तन मनुष्य की शक्ति और कार्यक्षमता को बढ़ाता है लेकिन इसमें अधिक परिवर्तन होने से व्यक्ति की कार्यक्षमता कम हो जाती है। इस आधार पर यह स्पष्ट करने का प्रयत्न किया गया कि जिन क्षेत्रों की जलवायु और तापक्रम में अधिक परिवर्तन नहीं होता, वहाँ लोगों की कार्यक्षमता उन क्षेत्रों की तुलना में अधिक होती है जहाँ तापक्रम और आर्द्रता में काफी परिवर्तन होता रहता है।

शारीरिक कार्यक्षमता की तरह व्यक्ति की मानसिक योग्यता को भी भौगोलिकवादियों ने जलवायु के आधार पर स्पष्ट किया। हटिंग्टन के शब्दों में, “जब तापक्रम बहुत गिर जाता है, लोगों की कार्यक्षमता के अतिरिक्त उनकी मानसिक क्षमता पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ने लगता है, यदि शीघ्र ही जलवायु में पुनः कोई परिवर्तन न हो तो इसमें निरन्तर कमी होती जाती है। हवा में कुछ गर्मी आने से व्यक्ति की मानसिक क्षमता में सुधार होता है लेकिन यदि गर्मी बहुत बढ़ जाये तो मानसिक क्षमता पुनः प्रतिकूल रूप से प्रभावित होने लगती है।”1 जलवायु के आधार पर अनेक भौगोलिकवादियों के मानसिक क्षमता का एक कलैण्डर भी बना दिया। इसके अनुसार मानसिक योग्यता सितम्बर से नवम्बर तक बढ़ती है, नवम्बर से दिसम्बर तक घटती है, पुनः दिसम्बर से फरवरी और कभी-कभी अप्रैल तक बढ़ती है और इसके बाद फिर से कम होने लगती है।

रेख की ओर बढ़ते हैं, मृत्यु-दर बढ़ती जाती है जबकि ध्रुवीय क्षेत्रों की ओर बढ़ने पर मृत्यु दर का जेनिकिन (Jenkin) ने इस सिद्धान्त का प्रतिपादन किया कि जैसे-जैसे हम भूमध्य- औसत भी कम होता जाता है। भौगोलिक निश्चयवाद की यहाँ तक मान्यता है कि विभिन्न क्षेत्रों में जन्म दर को प्रभावित करने में भी भौगोलिक दशाओं की भूमिका सबसे प्रभावपूर्ण होती है।

Important Links

Disclaimer

Disclaimer: Sarkariguider.in does not own this book, PDF Materials Images, neither created nor scanned. We just provide the Images and PDF links already available on the internet. If any way it violates the law or has any issues then kindly mail us: guidersarkari@gmail.com

About the author

Sarkari Guider Team

Leave a Comment