मनोवैज्ञानिक निश्चयवाद के अनुकरण आधारित व्याख्या में टार्डे के विचारों का आलोचनात्मक विश्लेषण कीजिए।
टार्डे ने अनुकरण की प्रकृति, इसके कारणों तथा प्रभावों को एक सिद्धान्त के रूप में स्पष्ट किया। यह सिद्धान्त बताता है कि अनुकरण की प्रक्रिया व्यक्ति के जीवन में किस तरह कार्य करती है। आरम्भ में टार्डे ने अनुकरण को भी एक जन्मजात प्रवृत्ति के रूप में स्पष्ट किया लेकिन बाद में उन्होंने अनुकरण की प्रक्रिया को कुछ सीमा तक सामाजिक दशाओं से भी प्रभावित मान लिया। टार्डे के अनुसार समाज का निर्माण जिन मानसिक प्रक्रियाओं के द्वारा होता है, वे मुख्य रूप से तीन रूपों में स्पष्ट होती है।
- पुनरावृत्ति (repetition)
- विरोध (opposition)
- अनुकूलन (adaptation)
टार्डे का विचार है कि अनुकरण वास्तव में इन तीनों प्रक्रियाओं का समन्वय है और इसीलिए यहाँ तक कहा जा सकता है कि समाज ही अनुकरण है। इस तथ्य को ने बताया है कि प्रत्येक समाज में हमेशा नयी परिस्थितियाँ उत्पन्न होती रहती हैं। आरम्भ में इन्हें नियन्त्रण की पुरानी विधियों से ही नियन्त्रित करने का प्रयत्न किया जाता है लेकिन जब यह विधियाँ नियन्त्रण स्थापित करने में सफल नहीं हो पाती तो नये साधनों की खोज की जाने लगती है। यह नये साधन ही आविष्कार कहलाते हैं। आरम्भ में इन साधनों अथवा व्यवहार के तरीकों की कुछ व्यक्तियों द्वारा पुनरावृत्ति की जाती है। इन्हें समर्थन भी मिलता है और अनेक व्यक्ति इसका विरोध भी करते हैं। यह प्रक्रिया कुछ समय तक चलती रहती है लेकिन अन्त में विरोध और समर्थन के बीच एक समायोजन (adjustment) की दशा स्थापित हो जाती है। इस समायोजन के फलस्वरूप हम नये साधनों के अनुसार अपनी आदतों में थोड़ा-सा परिवर्तन कर लेते है। इसी प्रक्रिया का नाम अनुकूलन है। इस प्रकार संक्षेप में कहा जा सकता है कि टार्डे के अनुसार अनुकूलन की प्रक्रिया का नाम ही अनुकरण स्पष्ट करते टाई है। इस अनुकूलन के द्वारा हम उन सभी विचारों और व्यवहार के तरीकों को ग्रहण कर लेते हैं जिनका आविष्कार सामाजिक प्रगति के साधन के रूप में किया जाता है।
समाज में व्यक्ति किसी आविष्कार का अनुकरण क्यो व किस प्रकार करते हैं? इसे टार्डे ने दो प्रमुख सामाजिक कारणों के आधार पर स्पष्ट किया है तार्किक कारण तथा अतार्किक कारण।
(क) तार्किक कारण ( Logical Reason)-
यदि नये आविष्कार से सम्बन्धित विचार, व्यवहार के तरीके अथवा आदर्श व्यक्तियों को अपने लिए उपयोगी प्रतीत होते हैं और आविष्कार उस समाज की मर्यादाओं के अनुकूल होते हैं तो व्यक्ति उनका जल्दी ही अनुकरण कर लेते हैं लेकिन इस सम्बन्ध में विशेष बात यह है कि अनुकरण का तार्किक कारण अधिक प्रभावपूर्ण नहीं होता क्योंकि जब कभी भी व्यक्ति तर्क के द्वारा किसी नये आविष्कार की उपयोगिता पर विचार-विमर्श करते हैं तो उनमें स्वाभाविक रूप से विरोध उत्पन्न हो जाता है। इसीलिए तार्किक कारण को अनुकरण में प्रायः बाधक ही माना जाता है।
(ख) अतार्किक कारण (Extra-logical Reason)-
समाज में अनुकरण को प्रोत्साहन देने वाला दूसरा कारण तर्क से वाह्य अथवा अतार्किक है। तर्क से वाह्य का अर्थ पूर्णतया अतार्किक दशाओं से नहीं है बल्कि उन दशाओं से है जिनका सम्बन्ध विचार-विमर्श से नहीं होता। इन कारणों में टार्डे ने तीन दशाओं का उल्लेख किया है—
(1) पहला कारण यह है कि अनुकरण अन्दर से बाहर की ओर होता है। इसका अर्थ यह है कि नये विचार प्रारम्भ में हमारे चिन्तन को प्रभावित करते है और इसी के फलस्वरूप बाद में हम उन्हें ग्रहण कर लेते हैं।
(2) दूसरा कारण यह है कि अक्सर कोई नया विचार अथवा व्यवहार का नया तरीका किसी प्रतिष्ठत व्यक्ति के द्वारा शुरू किया जाता है। प्रतिष्ठित व्यक्तियों का सामान्य व्यक्तियों पर नैतिक दबाव होता है जिसके परिणामस्वरूप ऐसे व्यवहारों का अनुकरण किया जाने लगता है।
(3) इसका अन्तिम कारण स्वयं व्यक्ति में नवीनता की प्रवृत्ति का होना है। नीय वस्तुएँ अथवा नये विचार भले ही पहले के विचारों से अधिक उपयोगी न हों लेकिन व्यक्ति इनका अनुकरण इसलिए करते हैं कि इससे उनकी रूचि-परिवर्तन की आवश्यकता पूरी हो जाती है। फैशन से सम्बन्धित अधिकतर अनुकरण इसी दशा से प्रभावित होते हैं।
टार्डे के अनुसार, अनुकरण की प्रक्रिया कुछ विशेष नियमों पर आधारित है। यह सभी नियम अनुकरण की क्रियाशीलता के ढंग की और संकेत करते हैं। इन नियमों को संक्षेप में निम्नांकित रूप से समझा जा सकता है |
(1) अनुकरण उच्च वर्ग से निम्न वर्ग की ओर होता है। इसका तात्पर्य यह है कि निम्न वर्ग के व्यक्ति अपने से उच्च वर्ग का अनुकरण करते हैं। श्रमिक वर्ग मध्यम वर्ग के व्यक्तियों का, मध्यम वर्ग के व्यक्ति सम्भ्रान्त परिवारों का और सम्भ्रान्त परिवार प्रतिष्ठित राजघरानों का अनुकरण करते हैं। वेश-भूष और शिष्टिता के क्षेत्र में अनुकरण का यह नियम प्रत्यक्ष रूप से देखने को मिलता है।
(2) हम दूसरे व्यक्तियों के विचारों का अनुकरण जल्दी कर लेते हैं, जबकि हमारे वास्तविक व्यवहारों में इतनी शीघ्रता से परिवर्तन नहीं होता। उदाहरण के लिए हममें से अधिकतर व्यक्ति यह स्वीकार करते हैं कि मृत्यु के उपरान्त होने वाले कर्मकाण्ड पूरी तरह निरर्थक हैं लेकिन इस विरोध को कार्यरूप में परिणत करने का साहस हम कठिनता से ही कर पाते हैं।
(3) अनुकरण की वृद्धि ज्यामितीय रूप से (geometrically) होती है। सबसे पहले कुछ व्यक्ति एक व्यक्ति का अनुकरण करते हैं और फिर इनमें से प्रत्येक व्यक्ति का बहुत-से व्यक्तियों द्वारा अनुकरण किये जाने से इसमें तेजी से वृद्धि होती रहती है। जिन स्थानों पर परिवहन और संचार के साधनों का विकास काफी होता है और जनसंख्या भी घनी होती है, वहाँ अनुकरण की प्रक्रिया और तेज हो जाती है। कुछ इस प्रकार टार्डे का कथन है कि अनुकरण सभी समाजों की प्राथमिक विशेषता है। समाज भी रूप आज हमारे सामने है, वह सब अनुकरण की प्रक्रिया का ही परिणाम है।
समालोचना (Criticism)-
मनोवैज्ञानिक निश्चयवाद से सम्बन्धित मनोवश्लेिषण तथा अनुकरण से सम्बन्धित विभिन्न पक्षों को वर्तमान समाजशास्त्रीय विवेचन के एि एक समुचि उपागम के रूप में नहीं देखा जाता। यह सच है कि अनेक समाजशास्त्री मानव व्यवहारों पर मन और अनुकरण के प्रभाव को स्वीकार करते हैं लेकिन उनके अनुसार स्वयं मन की प्रकृति व्यक्ति न होकर सामूहिक होती है। ‘सामूहिक मन’ को ही दुर्शीम ने सामूहिक चेतना’ के नाम से सम्बोधित किया। अपने मनो-विश्लेषणवादी सिद्धान्त में फ्रायड ने मूल प्रवृत्तियों के प्रभाव पर आवश्यकता से अधिक बल दे दिया जिसे तर्कसंगत नहीं कहा जा सकता। उन्होंने व्यक्ति के मस्तिष्क के जिन तीन पक्षों का उल्लेख किया, उन्हें न तो जैविकीय आधार पर स्वीकार किया जा सकता है और न ही यह माना जा सकता है कि मूलप्रवृत्तियों का प्रभाव तर्क और बुद्धि से भी अधिक होता है। फ्रायड के विचारों से यह भी स्पष्ट नहीं होता कि यदि मूलप्रवृत्तियाँ ही सभी व्यवहारों का प्रेरक कारक है तो मानवीय व्यवहारों में होने वाले परिवर्तनों का कारण क्या है।
कुछ लेखक यह मानते हैं कि मैसलो ने व्यक्ति की मानसिक दशाओं को उसकी आवश्यकताओं के सन्दर्भ में स्पष्ट करके एक ऐसा आधार प्रस्तुत किया जिसकी सहायता से मानव व्यवहारों में होने वाले परिवर्तन को समझा जा सकता है। इसके बाद भी स्वयं मनोवैज्ञानिक यह मानते हैं कि मैसलो ने मानव की विभिन्न आवश्यकताओं के जिस क्रम को स्पष्ट किया, उसे किसी भी प्रयोग के द्वारा सिद्ध नहीं किया जा सकता। मनोवैज्ञानिक निश्चयवाद के अन्तर्गत टा. ने जिस तरह अनुकरण को सभी मानवीय व्यवहारों के प्रमुख कारक के रूप में प्रस्तुत किया, वह भी बहुत भ्रमपूर्ण है। टार्डे का यह कथन कि पूरा मानव समाज अनुकरण का ही परिणाम होता है, केवल एक अतिशयोक्ति है। गिन्सबर्ग ने लिखा है कि टार्डे ने स्वयं अनुकरण शब्द का प्रयोग भिन्न-भिन्न स्थानों पर भिन्न-भिन्न दशाओं को स्पष्ट करने के लिए किया है। इसेस अनुकरण का अर्थ ही भ्रमपूर्ण बन जाता है। टाढे ने अनुकरण को एक जन्मजात प्रवृत्ति के रूप में स्पष्ट किया जिसे बिल्कुल भी व्यावहारिक नहीं कहा जा सकता। वास्तव में अनुकरण का आधार सामाजिक होता है, जैविकीय नहीं। इसके अतिरिक्त टार्डे ने अनुरण को सहानुभूति और संकेत (Suggestion) जैसे चालकों से प्रभावित माना है। वास्तव में सहानुभूति और संकेत ऐसी मनोवैज्ञानिक दशाएँ हैं जिनका सम्बन्ध अवचेतन मन से होता है। इसके विपरीत अनुकरण की प्रक्रिया की प्रकृति चेतन होती है।
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