अल्पविकसित अर्थव्यवस्था की संकल्पना (Concept of under developed economy)
एक अल्पविकसित देश का उपयुक्त व सर्वमान्य परिभाषा देना अत्यन्त कठिन कार्य है। पर इस प्रकार के देश में कुछ ऐसी विशेषताएं विद्यमान होती हैं जिनके आधार पर उसे पहचाना जा सकता है। इन विशेषताओं को अल्पविकसित देशों की विशेषतायें कहा जाता है। इनमें से प्रमुख विशेषतायें निम्नलिखित हैं
- नीची प्रति व्यक्ति आय
- कृषि पर आधारित
- अधिक जनसंख्या
- संसाधनों का अकुशल प्रयोग
- निर्यात में कृषि वस्तुओं की प्रधानता
- पूंजी की कमी
- व्यापक बेरोजगारी
- तकनीकी पिछड़ापन
- द्वैत अर्थव्यवसथा
- बाजार की अपूर्णता
- आय वितरण में विषमता
- अशिक्षा और अकुशलता
- आर्थिक कुचक्र
- सामाजिक विशेषतायें
1. नीची प्रति व्यक्ति आय (Low per capita income) – अल्पविकसित देशों की सर्वप्रथम विशेषता यह है कि इन देशों में प्रति व्यक्ति आय का स्तर बहुत नीचा होता है। इसके कारण अल्पविकसित देशों में गरीबों की बहुतायत होती है और दरिद्रता का विशाल सागर दिखायी देता है। यही कारण है कि अल्पविकसित देशों में जनसंख्या का एक बहुत बड़ा भाग निर्धनता रेखा के नीचे अपना जीवन बिताता है। एक अनुमान के अनुसार अल्पविकसित देशों में प्रति व्यक्ति आय का स्तर 500 डालर से कम होता है प्रति व्यक्ति आय का नीचा स्तर आर्थिक पिछड़ेपन का सूचक होता है। इसी आधार पर अल्पविकसित देशों को आर्थिक दृष्टि से पिछड़े देश भी कहा जाता है। इस प्रकार प्रति व्यक्ति आय का नीचा स्तर अल्पविकसित देशों की एक अत्यन्त महत्वपूर्ण विशेषता है। यह विशेष रूप से ध्यान देने की बात है कि अल्पविकसित देशों में प्रति व्यक्ति आय का स्तर नीचा ही नहीं है बल्कि यहाँ पाये जाने वाले आय के स्तर के वितरण में गंभीर रूप से असमानता भी पायी जाती है।
2. कृषि पर आधारित ( Based on Agriculture) – अल्पविकसित देशों की अर्थव्यवस्था कृषि पर प्रमुख रूप से आधारित होती है। इन देशों में घरेलू उत्पादन में कृषि का भाग 50 प्रतिशत तक होता है। कुछ अल्पविकसित देशों में यह भाग 50 प्रतिशत से भी अधिक होता है। इस स्थिति की तुलना विकसित देशों से करने पर यह ज्ञात होता है कि इन देशों में घरेलू उत्पादन में कृषि का भाग मात्र 2 प्रतिशत से 5 प्रतिशत तक होता है। इससे यह ज्ञात हो जाता है कि अल्पविकसित देशों में कृषि से घरेलू उत्पादन का एक बहुत बड़ा भाग प्राप्त हो जाता है।
अल्पविकसित देशों के कृषि पर आधारित होने का प्रमाण यह भी है कि इन देशों की अधिकांश जनसंख्या कृषि कार्य में लगी होती हैं। एक अनुमान के अनुसार कुल श्रमिकों का 60 से 80 प्रतिशत भाग कृषि कार्यों से अपनी जीविका का अर्जन करता है। इस स्थिति की तुलना विकसित देशों से की जाये तो यह ज्ञात होता है कि विकसित देशों में कुल श्रमिकों का 2 से 7 प्रतिशत भाग कृषि कार्यों में लगा होता है।
3. अधिक जनसंख्या (Huge population)- सभी अल्पविकसित देशों में जनसंख्या बहुत अधिक होती है। इसके कारण इन देशों में जनाधिक्य की स्थिति दिखायी पड़ती है। दक्षिण-पूर्व एशिया के अधिकांश देशों में जनसंख्या बहुत अधिक पायी जाती है। इस अधिक जनसंख्या के अतिरिक्त एक यह तथ्य भी अत्यन्त महत्वपूर्ण है कि अल्पविकसित देशों में जनसंख्या के बढ़ने की दर भी विकसित देशों की तुलना में अधिक होती है। आज अल्पविकसित अर्थव्यवस्था वाले देश जनाधिक्य की समस्या में फंसे हुए हैं। इन देशों में अधिक जनसंख्या और उसकी बढ़ने की तेज दर इनके लिए आर्थिक विकास के मार्ग में एक प्रमुख बाधा के रूप में कार्य कर रही है। इस प्रकार यह निष्कर्ष निकलता है कि अल्पविकसित देशों में एक महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि इन देशों में जनसंख्या का भार अत्यधिक होता है और इसके साथ-साथ जनसंख्या के बढ़ने की दर भी विकसित देशों की तुलना में बहुत अधिक होती है।
4. संसाधनों का अकुशल प्रयोग (Inefficient Use of Resources ) – अल्पविकसित देशों का एक अल्प लक्षण यह होता है कि इन देशों में उत्पादक संसाधनों का पर्याप्त विकास नहीं हुआ होता है। यह भी पाया जाता है कि इन देशों में संसाधनों का पता भी लगाया नहीं जा सका है। इतना ही नहीं जिन संसाधनों को ज्ञात कर लिया गया है उनका भी पूरा और अच्छी तरह से प्रयोग नहीं हो पाता है। इस अकुशल और अपर्याप्त प्रयोग के कारण इन साधनों की उत्पादकता का स्तर अत्यन्त नीचा रहता है और बड़ी मात्रा में संसाधनों का प्रयोग भी नहीं हो पाता है और संसाधन अप्रयुक्त पड़े रहते हैं। अतः अल्पविकसित देशों में संसाधनों का अकुशल प्रयोग होता है।
5. निर्यात में कृषि वस्तुओं की प्रधानता (Prodominance of Agricultural products in Exports)- अल्पविकसित देशों की एक अन्य विशेषता यह होती है कि इन देशों में निर्यात में प्राथमिक वस्तुओं की प्रधानता होती है। एक अनुमान के अनुसार अल्पविकसित देशों के कुल निर्यात में प्राथमिक वस्तुओं का अंश 50 प्रतिशत से भी अधिक होता है। इस प्रकार की वस्तुओं की अन्तर्राष्ट्रीय कीमतों में कमी होती है जिसके कारण अल्पविकसित देशों की निर्यात से प्राप्त होने वाली आय कम होती है और इसके साथ-साथ भुगतान-शेष (balance of payment) अल्पविकसित देशों के प्रतिकूल रहता है। इसके कारण निम्नलिखित परिणाम प्राप्त होते हैं।
- अल्पविकसित देशों को निर्यात से प्राप्त होने वाली आय का स्तर अत्यन्त नीचा रहता है।
- निर्यात से मिलने वाली आय नीचे स्तर पर प्रायः स्थिर रहती है और उसमें बढ़ने की प्रवृत्ति नहीं पायी जाती है।
- निर्यात की आय कम होने और आयात का मूल्य अधिक होने के कारण व्यापार की शर्ते अल्पविकसित देशों के प्रतिकूल रहती हैं।
- अल्पविकसित देशों में प्रयुक्त होने वाली नयी तकनीक का लाभ भी विकसित देशों को ही प्राप्त होता है।
6. पूंजी की कमी (Scarcity of Capital)- अल्पविकसित देशों की एक प्रमुख विशेषता यह है कि इन देशों में पूंजी की कमी होती है। इन देशों में पूंजी की कमी के निम्नलिखित प्रमुख कारण होते हैं-
- अल्पविकसित देशों में प्रति व्यक्ति आय का स्तर अत्यन्त नीचा होता है।
- इन देशों में उपभोग की सीमान्त प्रवृत्ति (Marginal Propensity to Consume) बहुत ऊंची होती है।
- ऊंची उपभोग प्रवृत्ति के कारण आय का एक बहुत बड़ा भाग उपभोग पर व्यय हो जाता है।
- इसका परिणाम यह होता है कि अर्थव्यवस्था में बचत का स्तर बहुत नीचा रहता है।
- इस दशा में पूंजी निर्माण का स्तर अत्यन्त नीचा रहता है।
- अर्थव्यवस्था में पूंजी की कमी बनी रहती है।
7. व्यापक बेरोजगारी (Large unemployment)- अल्पविकसित देशों की एक प्रमुख ‘विशेषता बेरोजगारी और छिपी हुई बेरोजगारी का विद्यमान होना है। इन देशों में पाये जाने वाले साधनों का अपर्याप्त प्रयोग करने के कारण बेरोजगारी की समस्या पायी जाती है क्योंकि रोजगार के अवसरों का पर्याप्त मात्रा में सृजन नहीं हो पाता है। बढ़ती हुई जनसंख्या बेरोजगारों की संख्या में वृद्धि कर देती है। यह बेरोजगारी कृषि क्षेत्र पर अपना दबाव डालती है और छिपे हुए बेरोजगारों की संख्या बढ़ती जाती है। इस प्रकार की बेरोजगारी ग्रामीण क्षेत्रों में प्रमुखता के साथ पायी जाती है।
8. तकनीकी पिछड़ापन (Technological Backwardness)- अल्पविकसित देशों का एक अन्य लक्षण तकनीकी पिछड़ेपन के रूप में विद्यमान होता है। अल्पविकसित अर्थव्यवस्थाओं में उत्पादन के पुराने और अकुशल साधनों का प्रयोग होता है। इसी को तकनीकी पिछड़ापन कहा जाता है। इस तकनीकी पिछड़ेपन के कारण अल्पविकसित देशों में उत्पादन का स्तर कम रहता है, उत्पादन के साधनों की उत्पादकता कम रहती है, उत्पादित वस्तुओं का गुण स्तर नीचा रहता है और उत्पादित वस्तुओं की लागत भी अधिक रहती है।
9. द्वैत अर्थव्यवस्था (Dualistic Economy)- अल्पविकसित देशों की एक महत्वपूर्ण विशेषता इनकी अर्थव्यवस्थाओं की द्वैत प्रकृति (Dualistic nature) है। इसका अर्थ यह है कि इन देशों में सामान्यतः दो प्रकार की अर्थव्यवस्थाएं पायी जाती है जो निम्नलिखित हैं-
(a) बाजार अर्थव्यवस्था (Market Economy) – यह अर्थव्यवस्था का वह भाग है जो अपेक्षाकृत विकसित होता है और जहां पर उत्पादन और व्यवसायिक क्रियायें लाभ अर्जित करने की दृष्टि से मांग और पूर्ति की बाजारी शक्तियों (Market forces) के आधार पर सम्पादित की जाती हैं। अल्पविकसित देशों में इस बाजार अर्थव्यवस्था का क्षेत्र सीमित होता है और केवल नगरीय क्षेत्रों (Urban Areas) में पाया जाता है।
(b) जीवन निर्वाह अर्थव्यवस्था (Subsistence Economy ) – इस प्रकार की अर्थव्यवस्था अल्पविकसित देशों में व्यापक रूप से पायी जाती है क्योंकि इसकी प्रकृति मुख्यतः ग्रामीण (Rural) होती है। इस प्रकार की अर्थव्यवस्था में उत्पादन व अन्य वाणिज्यिक क्रियायें लाभ प्राप्त करने के उद्देश्य से सम्पादित नहीं की जाती हैं बल्कि जीवन निर्वाह करने के लिए की गयी हैं।
अल्पविकसित देशों में पायी जाने वाली इस द्वैत अर्थव्यवस्था (Dualistic Economy) का ही यह परिणाम सामने आता है कि इन देशों में विकास के साथ-साथ पिछड़ापन तथा आधुनिकता के साथ-साथ परम्पाओं का अद्भुत सहअस्तित्व दिखायी पड़ता है।
10. बाजार की अपूर्णता (Imperfection of Market)- अल्पविकसित देशों की एक विशेषता बाजार सम्बन्धी अपूर्णता होती है। इन देशों में ऐसी संस्थायें और उसके साथ-साथ बाजार सम्बन्धी अपूर्णतायें होती हैं जिनके कारण इन देशों के विकास के मार्ग में बाधायें उत्पन्न होती हैं। इन देशों में उत्पादक कार्य जाति और परम्परा के आधार पर किये जाते हैं। वित्तीय संस्थाओं द्वारा थोड़े से व्यापारियों और स्टाकिस्टो आदि को ही वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है। सरकारी व्यय में भी अनुत्पादक व्यय की प्रधानता होती है। इसी प्रकार बाजार भी बंटा होता है। अतः बाजार की अपूर्णता अल्पविकसित देशों की एक प्रमुख विशेषता होती है।
11. आय वितरण में विषमता (Unequal Distribution of Income)- अल्पविकसित देशों की एक अन्य महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि इन देशों में आय का स्तर नीचा तो होता ही है उसके साथ-साथ वहां आय के वितरण में गम्भीर विषमता पायी जाती है। इसका अभिप्राय यह है कि अल्पविकसित देशों में आय और उसके साथ-साथ सम्पत्ति (Wealth) का एक बहुत बड़ा भाग थोड़े से व्यक्तियों के हाथ में संकेन्द्रित रहता है और जनसंख्या का एक बड़ा भाग नितान्त दरिद्रता में जीवन यापन करता है। इसी आधार पर यह कहा जाता है कि अल्पविकसित देशों में आय और सम्पत्ति का एक बहुत बड़ा भाग पूंजीपतियों तथा आर्थिक दृष्टि से समृद्ध अन्य वर्गों द्वारा हड़प लिया जाता है। एक अर्थशास्त्री के अनुसार अल्पविकसित देशों में दरिद्रता का एक समुद्र पाया जाता है पर उस विशाल समुद्र में थोड़े से धन के द्वीप भी विद्यमान होते हैं।
12. अशिक्षा व अकुशलता (Illiteracy And Inefficiency)- अल्पविकसित देशों में शिक्षा का प्रसार बहुत कम होता है और इसलिए जनसंख्या के अनुसार शिक्षा की सुविधाएं बहुत कम होती हैं। इसका परिणाम यह होता है कि इन देशों में शिक्षित व्यक्तियों की संख्या तुलना में अशिक्षित और निरक्षर व्यक्तियों की संख्या बहुत अधिक होती है। अशिक्षा होने के कारण देश में श्रमिकों की कार्यकुशलता भी बहुत कम होती है और इसलिये देश में अकुशल श्रमिक बड़ी संख्या में पाये जाते हैं।
13. आर्थिक कुचक्र (Vicious Circle)- अनेक अर्थशास्त्रियों का विचार है कि प्रायः सभी अल्पविकसित देशों में आर्थिक कुचक्र क्रियाशील रहते हैं और इन कुचक्रों की क्रियाशीलता के कारण एक अल्पविकसित देश सदैव अल्प विकास की अवस्था में विद्यमान रहता है। इन कुचक्रों के सम्बन्ध में सुप्रसिद्ध अर्थशास्त्री प्रो. रैग्नर नर्क्स (Prof. Ragner Nurkse) ने बताया है कि इस प्रकार के कुचक्र एक प्रकार से भंवर के समान होते हैं और इसलिए जब कोई देश इसमें फंस जाता है तो वह निरन्तर फंसता ही चला जाता है।
संक्षेप में आर्थिक कुचक्र को इस प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है- “किसी अर्थव्यवस्था की समृद्धि के स्तर का एक प्रमुख निर्धारक कारक प्राकृतिक संसाधन हैं। प्राकृतिक संसाधनों का विदोहन देश के निवासियों की कार्यक्षमता पर निर्भर करता है। यदि निवासियों के शैक्षिक स्तर, तकनीकी ज्ञान तथा उद्यमशीलता में पर्याप्त विकास नहीं हुआ है तो प्राकृतिक संसाधनों का अल्प प्रयोग होता है जो नीचे उत्पादन स्तर का सर्वप्रमुख कारक है। अल्प उत्पादन और अल्प उत्पादन क्षमता अर्थव्यवस्था में आय के स्तर को नीचा बनाये रखती है। इस प्रकार एक देश अल्प विकास (Under development) की स्थिति में बना रहता है।
14. सामाजिक विशेषतायें (Social Characteristics) – अल्पविकसित देशों में अनेक सामाजिक विशेषताएं पायी जाती हैं जिनमें से प्रमुख निम्नलिखित हैं-
(i) जाति प्रथा एवं छुआछूत- अल्पविकसित देशों में जाति प्रथा अत्यन्त कठोर रूप में पायी जाती है और इसी के कारण छुआछूत का पालन भी अत्यन्त कठोरता के साथ किया जाता है।
(ii) स्त्रियों का नीचा स्थान- अल्पविकसित देशों में स्त्रियों को पुरुषों की अपेक्षा नीचा स्थान दिया जाता है और उसका भाग्य व व्यवहार पुरुषों के साथ जोड़ दिया जाता है। इसके अतिरिक्त प्रत्येक स्तर पर स्त्रियों के साथ भेद-भाव किया जाता है।
(iii) महंगे रीति-रिवाज- अल्पविकसित देशों में रीति-रिवाजों का पालन अत्यन्त आडम्बरपूर्ण ढंग से किया जाता है। इसका परिणाम यह होता है कि सभी रीति-रिवाज अत्यन्त खर्चीले हो जाते हैं और धन का व्यापक रूप से अपव्यय होता है।
(iv) आश्रितों की अधिक संख्या- अल्पविकसित देशों में उत्पादन कार्य में योगदान न करने वाले आश्रितों की संख्या बहुत अधिक होती है। इन आश्रितों में बच्चों, वृद्धों और महिलाओं की संख्या बहुत अधिक होती है। इसके अतिरिक्त असहाय व्यक्तियों तथा भिखारियों की संख्या भी बहुत अधिक होती है। के कारण देश में श्रमिकों की कार्यकुशलता भी बहुत कम होती है और इसलिये देश में अकुशल श्रमिक बड़ी संख्या में पाये जाते हैं।
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