निगमन विधि एंव आगमन विधि के गुण तथा दोष
सैद्धान्तिक अर्थशास्त्र की विधियां
सैद्धान्तिक अर्थशास्त्र की दो विधियाँ हैं।
- निगमन विधि
- आगमन विधि-
निगमन विधि
इस विधि का प्रयोग 19वीं शताब्दी में क्लासिकल अर्थशास्त्रियों ने किया। यह आर्थिक अध्ययन की सबसे पुरानी विधि है। इसमें सामान्य सत्य या सर्वमान्य स्वयंसिद्ध या आधारभूत तथ्यों को आधार मानकर विशिष्ट सत्य या निष्कर्ष निकाले जाते हैं। अतः अध्ययन का क्रम सामान्य से विशिष्ट की ओर होता है। क्योंकि इस प्रणाली में केवल अनुमान ही लगाये जा सकते हैं इसलिए इसे अनुमान प्रणाली भी कहा जा सकता है। बोल्डिंग इस विधि को प्रबुद्ध प्रयोग रीति कहते हैं। मिल ने इसे निगम्य प्रणाली कहा है जबकि अन्य अर्थशास्त्री इसे अमूर्त एवं विश्लेषणात्मक कहते हैं।
वास्तविक संसार जटिलताओं और उलझनों से भरा है, अतः उसको उसी रूप में (वास्तविक रूप) करना मुश्किल है। इसलिए हम शुरूआत सरल मान्यताओं से करते है, फिर धीरे-धीरे जटिल मान्यताओं को अध्ययन में शामिल करते हैं जिससे वास्तविकता तक पहुंच सके। यह दो प्रकार की होती है- गणितीय तथा अगणितीय। अगणितीय विधि का प्रयोग क्लासिकल एवं अन्य अर्थशास्त्रियों ने किया। गणितीय विधि का प्रयोग एजवर्थ ने 19वीं शताब्दी में किया। आजकल भी इसका बहुत प्रयोग हो रहा है।
इस विधि के सोपान हैं-
- समस्या का चुनाव करना
- मान्यताओं का निर्माण करना जिनके आधार पर समस्या का चुनाव किया जाना है।
- तार्किक तर्क की प्रक्रिया द्वारा परिकल्पना का निर्माण करना जिससे निष्कर्ष निकाले जाते हैं।
- परिकल्पना का सत्यापन करना।
निगमन विधि के गुण
- यह बौद्धिक प्रयोग विधि है जो वास्तविकता से अधिक निकट है।
- यह सरल है क्योंकि विश्लेषणात्मक है। यह जटिल समस्या को उसके संघटक भागों में विभाजित कर उसे सरल बना देती है।
- गणित के प्रयोग से अर्थशास्त्रीय विश्लेषण में यथार्थता तथा स्पष्टता आती है।
- तथ्यों से निष्कर्ष निकालने के लिए विश्लेषण की यह शक्तिशाली विधि है।
- इस विधि द्वारा प्राप्त निष्कर्ष सर्वव्यापक तथा अकाट्य होते हैं क्योंकि इसके निष्कर्षों का आधार मानवीय स्वभाव होता है।
- निष्पक्ष निष्कर्ष होते हैं क्योंकि अनुसंधानकर्ता अपनी इच्छा के अनुसार निष्कर्ष को प्रभावित नहीं कर सकता। केयर्नस के अनुसार “यदि निगमन रीति का प्रयोग उचित सीमाओं के भीतर किया जाए तो यह विधि मानव बुद्धि द्वारा की जाने वाली खोज का सबसे प्रभावशाली साधन बन सकती है।
निगमन प्रणाली के दोष
- क्योंकि हम कुछ मान्यताओं के आधार पर तर्क प्रस्तुत करते हैं जिनके परीक्षण का कोई मापदण्ड नहीं है। इसलिए यह अवास्तविक मान्यताओं पर आधारित है परिणामतः इसके द्वारा प्रतिपादित नियम वास्तविकता से दूर है।
- इससे प्राप्त निष्कर्ष तर्क पर सही हो सकते हैं किन्तु व्यावहारिक जीवन में सही हो ऐसा जरूरी नहीं।
- जिन मान्यताओं को स्थिर मानकर निगमन विधि से नियम बनाये जाते हैं, वे मान्यतायें स्थिर नहीं रहती बल्कि परिवर्तनशील है। यह हो सकता है कि इस विधि का अनुसरण करने वाले ‘‘बौद्धिक खिलौने’ बनाने में मस्त हो और बौद्धिक व्यायाम तथा गणितीय विश्लेषण में वास्तविक जगत को भूल ही जाएं।
आगमन विधि-
इस विधि में तर्क के माध्यम से विशिष्ट सत्य के आधार पर सामान्य निष्कर्ष तक पहुंचा जा सकता है। तर्क का क्रम विशिष्ट से सामान्य की ओर होता है। सबसे पहले व्यक्तिगत निरीक्षणों तथा प्रयोगों के माध्यम से विशिष्ट सत्यों का पता लगाया जाता है और उनके आधार पर सामान्य नियम का प्रतिपादन किया जाता है। इस विधि में सांख्यिकीय या इतिहास से सामाजिक तथ्यों को संकलित किया जाता है। घटनाओं का पर्यवेक्षण करके उनसे सम्बन्धित आंकड़े एकत्रित किये जाते हैं और उनके विश्लेषण द्वारा नियम प्रतिपादित किये जाते हैं। इसके दो रूप हैं- (क) प्रायोगिक रीति तथा (ख) सांख्यिकीय रीति प्रायोगिक आगमन रीति का प्रयोग भौतिक विज्ञानों में किया जाता है, जहाँ प्रयोगशालाएं होती हैं और प्रयोग की सुविधायें के साथ प्रयोगकर्ता किसी तथ्य का अपनी इच्छानुसार किसी निश्चित अवस्था में अध्ययन कर सकता है।
अर्थशास्त्र का सामाजिक विज्ञान होने के कारण इसमें मानव व्यवहार का अध्ययन किया जाता है। अर्थशास्त्री घटनाओं का उसी रूप में अध्ययन करता है, उन्हें बदल नहीं सकता। इसलिए अर्थशास्त्र में सांख्यिकीय रीति का विशेष महत्व है। सामाजिक विज्ञान में तथ्यों का अध्ययन बहुत जटिल है। इसलिए इसमें अनेक व्यक्तियों द्वारा किसी घटना से सम्बन्धित तथ्यों के सम्बन्ध में आँकड़े एकत्रित किये जाते हैं, उनका विश्लेषण किया जाता है और उनके आधार पर नियम प्रतिपादित किये जाते हैं।
अगमन विधि की शुरूआत निगमन विधि के दोषों की प्रतिक्रिया के रूप में जर्मनी के ऐतिहासिक स्कूल द्वारा हुआ। इसका प्रारम्भ रोशर की प्रसिद्ध पुस्तक ‘राजनीति अर्थशास्त्र” 1854 के प्रकाशन से हुआ। इसका समर्थन लिस्ट, नीज, तथा हिल्ड्ब्राण्ड ने किया।
आगमन विधि के गुण
- वास्तविकता के अधिक निकट तथा त्रुटियों की कम सम्भावना। इसके द्वारा प्रतिपादित नियम कल्पना पर नहीं बल्कि आँकड़ों पर आधारित होते हैं, इसलिए ये वास्तविकता के करीब होते हैं।
- यह विधि प्रावैगिक हैं क्योंकि आर्थिक तथ्य स्थिर नहीं परिवर्तनशील हैं।
- इस विधि में नियम किसी एक स्थान तथा समय के अन्तर्गत आँकड़ों को एकत्रित करके बनाये जाते हैं, इसलिए वे नियम उन परिस्थितियों में सही उतरते हैं।
- आगमन विधि से प्राप्त निष्कर्षों की जाँच अनुसंधान, प्रयोग तथा ऐतिहासिक सत्यों के आधार पर की जा सकती है।
यह निगमन रीति की एक पूरक विधि है। इसकी सहायता से निगमन विधि द्वारा प्राप्त निष्कर्षों की जाँच की जा सकती है।
आगमन विधि के दोष
- आगमन विधि आँकड़ों पर निर्भर करती है और आँकड़े जितने व्यापक होंगे निष्कर्ष उतने ही ठीक होंगे किन्तु अधिक व्यापक आँकड़ों को एकत्र करना अत्यन्त कठिन है।
- बोल्डिंग के अनुसार” सांख्यिकीय सूचना केवल हमें ऐसीप्रस्थापनाएं दे सकती हैं जिनकी सत्यता थोड़ी बहुत सम्भव हो, पर वह निश्चित कभी नहीं हो सकती।
- इसमें समय भी बहुत लगता है और लागत भी बहुत पड़ती है। इसमें प्रशिक्षित एवं विशेषज्ञ अनुसंधानकर्ताओं तथा विश्लेषकों को आँकड़ों को संग्रह करने, वर्गीकरण, विश्लेषण तथा व्याख्या करने की विस्तृत एवं परिश्रमी प्रक्रियाएं करनी पड़ती हैं।
- सांख्यिकीय तकनीकि एकदम मूर्त नहीं है क्योंकि इसमें जिन परिभाषाओं, स्रोतों तथा विधियों का प्रयोग होता है, वे एक ही समस्या के लिए अनुसंधानकर्ता तक भिन्न-भिन्न होती हैं।
- ऐसी समस्यायें जो व्यक्तिनिष्ठ हैं जो परस्पर सम्बन्धित हैं जैसे समृद्धि, सुख या कल्याण की माप करना, इस सम्बन्ध में इस विधि से निष्कर्ष नहीं प्राप्त किये जा सकते हैं।
- इस विधि द्वारा प्राप्त निष्कर्ष अन्वेषक द्वारा उसके मनमुताबिक प्रभावित किये जा सकते हैं। वह अपने मन के अनुसार ऐसे क्षेत्रों का चुना कर सकता है जिससे वही निष्कर्ष प्राप्त हो सके जिसे वह निकालना चाहता है।
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