अर्थशास्त्र की परिभाषा तथा इसके उद्देश्य
प्रस्तावना
आर्थिक सिद्धान्त के स्वरूप को समझने से पूर्व यह जरूरी है कि अर्थशास्त्र की परिभाषा, विषयवस्तु और इसके क्षेत्र का अध्ययन किया जाय। इसकी परिभाषा के सम्बन्ध में अर्थशास्त्रियों में विवाद है। सुविधा के लिए इसे चार वर्गों में बांटा गया है धन सम्बन्धी, कल्याण सम्बन्धी, दुर्लभता सम्बन्धी और आर्थिक विकास सम्बन्धी साथ में जे.के. मेहता द्वारा प्रतिपादित आवश्यकता विहीनता सम्बन्धी परिभाषा की भी चर्चा इस इकाई में करेंगे। विभिन्न परिभाषाओं के अध्ययन से अर्थशास्त्र के क्षेत्र एवं उसके स्वभाव पर बहुत प्रकाश पड़ता है। अर्थशास्त्र का क्षेत्र परिस्थितियों तथा समस्याओं के अनुसार परिवर्तनशील तथा लोचपूर्ण है। अर्थशास्त्र में अध्ययन की जाने वाली मानवीय आर्थिक कल्याण से सम्बन्धित आर्थिक क्रियाओं को दो भाग में बांटा जा सकता है – वर्तमान साधनों के आवंटन की समस्या तथा उत्पादन के साधनों की वृद्धि की समस्या। एक अर्थशास्त्री का कार्य है इनके समाधान ढूंढना और यही अर्थशास्त्र की विषय सामग्री है। अर्थशास्त्र के स्वभाव के सम्बन्ध में हम जानने की कोशिश करते हैं कि अर्थशास्त्र विज्ञान है या कला? अर्थशास्त्र वास्तविक विज्ञान है अथवा आदर्श विज्ञान? अन्त में हम अध्ययन करेंगे कि आर्थिक सिद्धान्त की प्रकृति क्या है उसके उपयोग और सीमाओं पर दृष्टिपात करेंगे, साथ ही सैद्धान्तिक अर्थशास्त्र की विधियों निगमन एवं अगमन का भी अध्ययन करेंगे। यह तर्कशास्त्र की दो किस्में हैं जो सत्य को स्थापित करने में सहायता करती है। आर्थिक सिद्धान्त कुछ मान्यताओं पर आधारित है जिन्हें मुख्यतया तीन श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है मनोवैज्ञानिक, संस्थानिक और संरचनात्मक मान्यताएं।
अर्थशास्त्र के उद्देश्य
इस इकाई के अध्ययन से आप निम्नलिखित उद्देश्यों की प्राप्ति करने में सफल होंगे:-
- अर्थशास्त्र से सम्बन्धित विभिन्न परिभाषाओं से अवगत होंगे।
- अर्थशास्त्र के क्षेत्र एवं उसके स्वभाव से परिचित होंगे।
- अर्थशास्त्री किन समस्याओं का समाधान ढूंढने का प्रयास करते हैं।
- आर्थिक सिद्धान्त की प्रकृति, उसके उपयोग एवं सीमाओं का अध्ययन करेंगे।
- आर्थिक सिद्धान्त की अगमन एवं निगमन विधियों को जानेंगे।
- आर्थिक सिद्धान्त में मान्यताओं के महत्व को समझेंगे।
अर्थशास्त्र की परिभाषा
अर्थशास्त्र से सम्बन्धित अनेक परिभाषाएं हैं किन्तु इनमें से कोई पूर्णतः दोषमुक्त नहीं है। मुख्यतया हम इन्हें चार शीर्षकों के अन्तर्गत विभाजित करेंगे और जे.के, मेहता की आवश्यकता विहीनता परिभाषा को अन्त में देखेंगे।
धन प्रधान परिभाषाएं
क्लासिकल अर्थशास्त्रियों एडम स्मिथ, जे.जे.से., सीनियर, जे.एस.मिल आदि द्वारा दी गई परिभाषा। क्लासिकल अर्थशास्त्रियों विशेष रूप से एडम स्मिथ ने अर्थशास्त्र को धन का विज्ञान कहा। उनकी पुस्तक “An Enquiry Into The Nature And Cause of Wealth & Nations” में अर्थशास्त्र का प्रमुख उद्देश्य राष्ट्र की भौतिक सम्पत्ति में वृद्धि करना माना। “से” के अनुसार ‘अर्थशास्त्र वह विज्ञान है जो धन का अध्ययन करता है।” वाकर ने कहा कि ‘अर्थशास्त्र ज्ञान की वह शाखा है जो धन से सम्बन्धित है। एडम स्मिथ के उत्तराधिकारी अर्थशास्त्री जे.एस. मिल के अनुसार “राजनैतिक अर्थशास्त्र का सम्बन्ध धन के स्वभाव, उनके उत्पादन और वितरण के नियम से है अर्थशास्त्र मनुष्य से सम्बन्धित धन का विज्ञान है।
आलोचनायें-
- धन का सम्बन्ध भौतिक वस्तुएं जिन्हें स्पर्श किया जा सके लिया गया जिसके कारण मनुष्य की वही क्रियायें जो कि इस प्रकार की वस्तुओं के उत्पादन तथा उपभोग में लगी इसके अन्तर्गत आयी अन्य क्रियाएं इसकी विषय सामग्री नहीं बनीं।
- धन पर आवश्यकता से अधिक बल जो इसे अत्यन्त संकीर्ण बनाता है। ये यह भूल गये कि धन साधन है साध्य नहीं, साध्य है मनुष्य और उसकी सन्तुष्टि।
- एडम स्मिथ ने “अर्थमानव” की कल्पना की जो विशुद्ध आर्थिक दृष्टिकोण से प्रेरित होता है किन्तु साधारण मनुष्य कई प्रकार की प्रेरणाओं जैसे दया, धर्म आदि से प्रभावित होता है। इसलिए “अर्थमानव” वास्तविक नहीं है।
- यह एकांगी, एक पक्षीय और संकुचित शास्त्र के रूप में अर्थशास्त्र को ले जायेगी। 19वीं शताब्दी के अन्त में धन सम्बन्धी परिभाषा का परित्याग कर दिया गया।
कल्याण सम्बन्धी नियोक्लासिकल दृष्टिकोण
मार्शल ने धन की परिभाषा के दोषों को दूर करने के उद्देश्य से अर्थशास्त्र. की अपनी परिभाषा में मनुष्य पर विशेष बल दिया। धन साध्य न बनकर मानवीय कल्याण के साधन के रूप में सामने आया। उन्होंने अपनी पुस्तक “प्रिन्सिपुल्स ऑफ इकानॉमिक्स” में अर्थशास्त्र को इस प्रकार परिभाषित किया “राजनीतिक अर्थशास्त्र अथवा अर्थशास्त्र मानव जाति के साधारण व्यापार का अध्ययन है। यह व्यक्तिगत एवं सामाजिक क्रियाओं के उस भाग का परीक्षण करता है जिसका विशेष सम्बन्ध जीवन में कल्याण अथवा सुख से सम्बद्ध भौतिक पदार्थों की प्राप्ति एवं उपभोग से है।” यह परिभाषा बताती है:-
- मानवीय कल्याण पर बल
- जीवन के साधारण व्यवसाय सम्बन्धी क्रियाओं का अध्ययन है जो भौतिक साधनों की प्राप्ति तथा उनके उपयोग से सम्बन्धित है।
- भौतिक कल्याण के अध्ययन से सम्बन्धित है अर्थात मानव कल्याण का वह भाग जो मुद्रा द्वारा नापा जा सके।
- समाज में रहने वाले मनुष्यों की भौतिक कल्याण से सम्बन्धित क्रियाओं का अध्ययन
- व्यक्तिगत तथा सामाजिक दोनों कार्यों पर बल।
आलोचना-
- आर्थिक क्रियाओं का साधारण तथा असाधारण में बांटना अनुचित
- अर्थशास्त्र केवल सामाजिक विज्ञान नहीं बल्कि मानव विज्ञान है। उदाहरण इसका सम्बन्ध जंगल में रहने वाले सन्यासी से भी उतना ही है जितना समाज में जीवन यापन करने वाले कृषक से।
- मार्शल की परिभाषा वर्गकारिणी है विश्लेषणात्मक नहीं। उनके अनुसार अर्थशास्त्र में केवल भौतिक, आर्थिक तथा साधारण व्यवसाय का अध्ययन किया जाता है जो उचित नहीं है।
- अर्थशास्त्र के अध्ययन को केवल भौतिक साधनों तक सीमित करना।
- अर्थशास्त्र का भौतिक कल्याण से सम्बन्ध स्थापित करना उचित नहीं। रॉबिन्स के अनुसार कौन क्रिया कल्याणकारी है और कौन नहीं यह नीतिशास्त्र का विषय है अर्थशास्त्र का नहीं। बहुत सी ऐसी आर्थिक क्रियायें हैं जिनका उत्पादन तथा बिक्री मानव कल्याण में वृद्धि नहीं ला सकती जैसे- सिगरेट, तम्बाकू, शराब आदि।
- भौतिक कल्याण का परिमाणात्मक माप सम्भव नहीं है।
इसी के अन्तर्गत पीगू की परिभाषा “अर्थशास्त्र आर्थिक कल्याण का अध्ययन है। आर्थिक कल्याण से हमारा अभिप्राय सामाजिक कल्याण के उस भाग से है प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से मुद्रा के मापदण्ड से सम्बन्धित किया जा सकता है।” किन्तु इसके अन्तर्गत केवल उन्हीं क्रियाओं का अध्ययन करता है जो मुद्रा द्वारा नापी जा सके एवं यह अर्थशास्त्र को अनिश्चितता तथा संकीर्णता के जाल में लाकर फंसा देती है।
सीमितता या दुर्लभता सम्बन्धी रॉबिन्स का दृष्टिकोण
रॉबिन्स की 1932 में प्रकाशित प्रसिद्ध पुस्तक “An Essay on The Nature and Significance of Economic Science” से पहले अर्थशास्त्रियों ने अर्थशास्त्र की परिभाषा तथा विषय सामग्री से सम्बन्धित कोई क्रमबद्ध तथा निश्चित विवेचन नहीं प्रस्तुत किया। रॉबिन्स के अनुसार “अर्थशास्त्र वह विज्ञान है जो साध्यों तथा वैकल्पिक उपयोग वाले सीमित साधनों के सम्बन्ध के रूप में मानव व्यवहार का अध्ययन करता है।”
विशेषताएं
- साध्य का अभिप्राय आवश्यकताओं से है जो अनन्त है तथा एक की सन्तुष्टि के बाद दूसरी उपस्थिति हो जाती है। सभी साध्य एक महत्व के नहीं होते कम तीव्र आवश्यकताओं का त्याग करना पड़ता है।
- साध्यों की पूर्ति के लिए साधन सीमित हैं।
- साधनों के वैकल्पिक उपयोग भी सम्भव हैं।
- यह चुनाव की क्रिया ही आर्थिक समस्या है और इस प्रकार की समस्याओं का अध्ययन ही अर्थशास्त्र का विषय है।
इनकी विचारधारा का समर्थन इंग्लैण्ड के प्रो0 विकस्टीड, आस्ट्रिया के स्ट्रिगल तथा अमेरिका के पाल ए सेमुएलसन प्रमुख हैं। रॉबिन्स का अर्थशास्त्र सभी मनुष्यों की क्रियाओं का अध्ययन करता है, केवल समाज में रहने वाले व्यक्तियों का ही अध्ययन नहीं करता।
आलोचना
- उद्देश्यों के प्रति तटस्थता – कुछ अर्थशास्त्री कहते हैं कि अर्थशास्त्र जैसे सामाजिक अध्ययन के लिए रॉबिन्स की दुर्लभता परिभाषा अत्यन्त संकुचित सिद्ध हुई है। रॉबिन्स अर्थशास्त्र एवं आचारशास्त्र के बीच एक ऊँची दीवार खड़ी करना चाहते हैं।
- अर्थशास्त्र केवल विशुद्ध विज्ञान नहीं है:- आलोचकों का कहना है कि रॉबिन्स का दृष्टिकोण अर्थशास्त्र को विशुद्ध विज्ञान बना देगा जिसके अन्तर्गत अर्थशास्त्र केवल आर्थिक नियमों का निर्माण मात्र करेगा व्यवहारिकता से इसका सम्बन्ध पूर्णतः नष्ट हो जायेगा।
- आर्थिक समस्या केवल दुर्लभता के कारण ही नहीं अपितु प्रचुरता के कारण भी है।
- रॉबिन्स की परिभाषा स्थैतिक दृष्टिकोण की है। इस परिभाषा के अनुसार दुर्लभ साधनों तथा साध्यों में किसी प्रकार का कोई भी परिवर्तन होने की सम्भावना नहीं है। गतिशील समाज में साधनों एवं साध्यों दोनों में परिवर्तन सम्भव है, कालान्तर में साध्यों के परिवर्तित होने की सम्भावना बनी रहती है। इसके साथ-साथ साधनों की भी वृद्धि तथा विकास होता है।
मार्शल तथा रॉबिन्स की परिभाषा में समानताएं
- मार्शल ने अपनी परिभाषा में धन शब्द का प्रयोग किया है जबकि रॉबिन्स ने सीमित साधनों का। दोनों अलग हो के भी मूल रूप से एक हैं क्योंकि साधन की सीमितता धन का प्रधान लक्षण है।
- दोनों मानव का अध्ययन करते हैं।
भिन्नताएं
अलग होते हुए भी मार्शल ने अर्थशास्त्र को सामाजिक विज्ञान के रूप में देखा है जबकि रॉबिन्स ने अर्थशास्त्र को मानवीय विज्ञान माना है। परिणामतः रॉबिन्स की परिभाषा का क्षेत्र मार्शल की अपेक्षा अधिक विस्तुत है।
- मार्शल की परिभाषा वर्गीकरणात्मक है जबकि रॉबिन्स की परिभाषा विश्लेषणात्मक।
- मार्शल के अनुसार अर्थशास्त्र विज्ञान तथा कला दोनों हैं जबकि रॉबिन्स के अनुसार अर्थशास्त्र एक वास्तविक विज्ञान है। आदर्श विज्ञान नहीं और इसका एक निश्चित स्वरूप है।
- रॉबिन्स की परिभाषा सैद्धान्तिक है जबकि मार्शल की अधिक व्यावहारिक क्योंकि इसका उद्देश्य ज्ञान का प्रयोग करना भी है।
विकास केन्द्रित परिभाषा
रॉबिन्स की परिभाषा विकास की समस्या को सम्मिलित नहीं करती तथा पूर्णतः स्थैतिक रवैया अपनाती है। इन दोषों को दूर करने के लिए सैम्युएलसन ने परिभाषा दी जो कालान्तर में ‘साधनों’ एवं ‘साध्यों’ में होने वाले गतिशील परिवर्तनों को सम्मिलित करती है, इसलिए इसे विकासोन्मुखी परिभाषा कहते हैं।
उनके अनुसार “अर्थशास्त्र इस बात का अध्ययन करता है कि व्यक्ति और समाज अनेक प्रयोगों में लगाये जा सकने वाले उत्पादन के सीमित साधनों का चुनाव एक समयावधि में विभिन्न वस्तुओं के उत्पादन में लगने एवं उनको समाज में विभिन्न व्यक्तियों और समूहों में उपभोग हेतु, वर्तमान तथा भविष्य में बांटने के लिए किस प्रकार करते हैं, ऐसा वे चाहे मुद्रा का प्रयोग करके करें अथवा इसके बिना करें।”
इस परिभाषा से विदित है कि-
- रॉबिन्स की तरह सैम्युएलसन भी असीमित साध्यों के प्रति सीमित साधन जिनका वैकल्पिक प्रयोग है, पर बल देती है।
- रॉबिन्स की परिभाषा स्थैतिक है किन्तु सैम्युएलसन ने समय तत्व को लेकर अपनी परिभाषा को प्रावैगिक बना दिया है।
- सैम्युएलसन की परिभाषा का क्षेत्र रॉबिन्स की अपेक्षा अधिक विस्तृत है। यह ऐसी अर्थव्यवस्था पर भी लागू होती है जिसमें वस्तु विनिमय प्रणाली को भी शामिल किया जाता है।
- सैम्युएलसन की परिभाषा चुनाव की समस्या का प्रावैगिक रूप में उल्लेख करती है यह वर्तमान से ही नहीं बल्कि भविष्य से भी सम्बन्धित होती है। आस्वादों, अभिरूचियों एवं फैशनों में परिवर्तन मानवीय आवश्यकताओं के स्वरूप को बदल देते हैं। अतः अर्थशास्त्र असीमित साध्यों के सन्दर्भ में सीमित साधनों के आवंटन तथा आय, उत्पादन, रोजगार एवं आर्थिक विकास के निर्धारकों का अध्ययन है।
जे.के. मेहता की आवश्यकता विहीनता सम्बन्धी परिभाषा-
जे.के. मेहता को “भारतीय दार्शनिक सन्यासी अर्थशास्त्री” कहा जाता है। इनका दृष्टिकोण पाश्चात्य अर्थशास्त्रियों से सर्वथा भिन्न है जिसमें भारतीय संस्कृति, धर्म तथा नैतिकता का प्रतिनिधित्व हुआ है। वे रॉबिन्स से इस विषय में सहमत नजर आते हैं कि अर्थशास्त्र मानव व्यवहार का अध्ययन है जिसका लक्ष्य ‘अधिकतम सन्तुष्टि’ की प्राप्ति है किन्तु इस अभीष्ट लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए दो रास्ते अपनाये जा सकते हैं। पहला अधिकतम सन्तुष्टि के लिए इच्छाओं में वृद्धि और उसे प्राप्त करने के लिए सन्तुष्टि के साधनों में वृद्धि लायी जाये। यह भौतिकवादी पक्ष है जो पाश्चात्य अर्थशास्त्रियों द्वारा समर्थित है। दूसरा रास्ता भारतीय और आध्यात्मिक है जिसके अनुसार “अधिकतम सन्तुष्टि की प्राप्ति इच्छाओं में कमी करके प्राप्त की जा सकती है क्योंकि जितनी इच्छाएं अधिक होंगी सन्तुष्टि के अभाव में उनसे असन्तुष्टि भी उतनी अधिक होगी। वास्तविक सुख की प्राप्ति के लिए इच्छाओं को न्यूनतम करना होगा अर्थात इच्छाओं से मुक्ति पाना ही आर्थिक समस्या है।”
अर्थशास्त्र के सन्दर्भ में उनकी परिभाषा है “अर्थशास्त्र एक विज्ञान है जो मानवीय व्यवहार की ‘इच्छारहित अवस्था’ या ‘इच्छा विहीनता की स्थिति’ तक पहुंचने के साधन के रूप में अध्ययन करता है।” उनके अनुसार सुख वह अनुभूति है जिसकी प्राप्ति उस समय होती है जबकि कोई इच्छा न हो। जब तक इच्छा रहेगी मस्तिष्क सन्तुलन की स्थिति में नहीं होगा, वह सन्तुलन की प्राप्ति के लिए इस इच्छा की पूर्ति का प्रयत्न करेगा। किन्तु एक इच्छा की पूर्ति दूसरी इच्छा को अगर जन्म देगी तो जो सुख प्राप्त किया है उसका मूल्य कम हो जायेगा दूसरी इच्छा प्राप्ति के लिए।
इच्छाविहीनता की ही स्थिति में मस्तिष्क में द्वन्द नहीं रहेगा और यह अनुभव ही वास्तविक सुख है। अर्थशास्त्र का उद्देश्य इसी सुख को अधिकतम करना है। अधिकतम सुख और अधिकतम इच्छायें परस्पर विरोधी हैं अर्थात वास्तविक सुख इच्छाओं को न्यूनतम करने में है न कि अधिकतम करने में। मस्तिष्क को ऐसी स्थिति में रखें जहाँ बाहरी शक्तियों का प्रभाव न पड़े। इसके लिए मस्तिष्क को शिक्षित करने की आवश्यकता है मनुष्य को यह विश्वास होना चाहिए कि जीवन का उद्देश्य सुख की प्राप्ति है जो इच्छाओं से मुक्ति द्वारा सम्भव है। इसके लिए हमें अपने मस्तिष्क को वाह्य शक्तियों के प्रभाव ‘अलग रखना होगा अर्थात उसे नियन्त्रित करना होगा।
Important Links
- मनोवैज्ञानिक निश्चयवाद के अनुकरण आधारित व्याख्या में टार्डे के विचार- in Hindi
- रेखा चित्र व दण्ड चित्र पर लेख |दण्ड चित्र के प्रकार in Hindi
- सामाजिक तथ्यों की अध्ययन पद्धतिया | Study Method of Social Facts in Hindi
- तथ्यों के संकलन का महत्व/उपयोगिता | Importance / utility of the collection of Facts in Hindi
- तथ्य संकलन के प्राथमिक एवं द्वितीयक स्रोत | primary & secondary Sources of fact collection in Hindi
- वैज्ञानिक पद्धति में तथ्य संकलन | Facts in Scientific Method in Hindi
- अनुसंधान अभिकल्प क्या है ? तथा इसकी प्रकृति |Meaning & Nature of Research design in Hindi
- वैदिक साहित्य के प्रमुख वेद – ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद in Hindi
- सामाजिक सर्वेक्षण के गुण व सीमाएँ | Qualities and limitation of social survey in Hindi
- परिकल्पना या उपकल्पना के प्रकार | Types of Hypothesis in Hindi
- उपकल्पना का अर्थ एवं परिभाषा तथा इसकी विशेषताएँ और प्रकृति – Sociology in Hindi
- भारतीय जनजातियों के भौगोलिक वर्गीकरण | Geographical classification of Indian tribes
- मैक्स वेबर की सत्ता की अवधारणा और इसके प्रकार | Concept of Power & its Variants
- मैक्स वेबर के आदर्श-प्रारूप की धारणा | Max Weber’s Ideal Format Assumption in Hindi
- स्पेन्सर के सामाजिक संगठन के ऐतिहासिक विकासवाद | Historical Evolutionism in Hindi
- स्पेन्सर के समाज एवं सावयव के बीच समानता | Similarities between Spencer’s society & matter
- मार्क्स के वर्ग-संघर्ष सिद्धांत | Marx’s class struggle Theory in Hindi
- आधुनिक पूँजीवादी व्यवस्था में मार्क्स के वर्ग-संघर्ष | Modern capitalist system in Hindi
- अगस्त कॉम्टे के ‘प्रत्यक्षवाद’ एवं कॉम्टे के चिन्तन की अवस्थाओं के नियम
- आगस्ट कॉम्टे ‘प्रत्यक्षवाद’ की मान्यताएँ अथवा विशेषताएँ | Auguste Comte of Positivism in Hindi
- कॉम्ट के विज्ञानों के संस्तरण | Extent of Science of Comte in Hindi
- कॉम्ट के सामाजिक स्थिति विज्ञान एवं सामाजिक गति विज्ञान – social dynamics in Hindi
- सामाजिक सर्वेक्षण की अवधारणा और इसकी प्रकृति Social Survey in Hindi
- हरबर्ट स्पेन्सर का सावयवि सिद्धान्त एवं सावयवि सिद्धान्त के विशेषताएँ