सृजनात्मकता की परिभाषाएँ-definition of creativity in hindi
1. स्टेन“जब किसी कार्य का परिणाम नवीन हो, जो किसी समय में समूह द्वारा उपयोगी मान्य हो, वह कार्य सृजनात्मकता कहलाता है।”
2. जेम्स ड्रेवर–“अनिवार्य रूप से किसी नई वस्तु का सृजन करना है, रचना (विस्तृत अर्थ में), जहाँ पर नये विचारों का संग्रह हो वहाँ पर प्रतिभा का सृजन (विशेषतः वह अनुकृत न होकर स्वयं प्रेरित हो), जहाँ पर मानसिक सर्जन का आह्वान न हो।”
3. सी. वी. गुड – “सर्जनात्मकता एक विचार है जो किसी समूह में विस्तृत सातत्य का निर्माण करता है। सर्जनात्मकता के कारक हैं— साहचर्य, आदर्शात्मक मौलिकता, अनुकूलता, सातत्य, लोच तथा तार्किक विकास की योग्यता।”
4. क्रो एवं क्रो – “सृजनात्मकता मौलिक परिणामों को व्यक्त करने की मानसिक प्रक्रिया है।”
5. जेम्स ड्रेवर– “सृजनात्मकता मुख्यतः नवीन रचना या उत्पादन में होती है। “
6. कोल एवं ब्रूस– “सृजनात्मकता एक मौलिक उत्पादन के रूप में मानव मन की ग्रहण करके अभिव्यक्त करने और गुणांकन करने की योग्यता एवं क्रिया है।”
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सृजनात्मकता की पहचान
यहाँ हम उन युक्तियों को वर्णित कर रहे हैं जिनके द्वारा हम छात्रों में सृजनात्मकता की पहचान कर सकते हैं। समस्या समाधान के प्रति छात्रों का दृष्टिकोण तथा विद्यालय में आयोजित विभिन्न कार्यक्रमों में उनके द्वारा प्रदर्शित अभिव्यक्ति के आधार पर हम उनमें सृजनात्मकता की पहचान कर सकते हैं। बालकों में सृजनात्मकता की पहचान उनकी अभिव्यक्ति के आधार पर की जा सकती हैं। यह अभिव्यक्ति विभिन्न क्षेत्रों में प्रकट होती है।
1. रचनात्मक खेल- छोटे बालक खेलों के प्रति आकर्षित रहते हैं। खेलों में उनकी रुचि की अभिव्यक्ति होती है। विद्यालय में छोटी कक्षाओं के बच्चों को मिट्टी की विभिन्न वस्तुएँ बनाने को दी जाती है। वास्तव में उनकी सृजनात्मकता का पता लगाने की यह एक मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया है। जो छात्र सफलतापूर्वक मिट्टी के फल, पशु-पशु-पक्षी आदि बना लेते हैं वह अपनी भावी सृजनात्मकता का परिचय देते है। कुछ छात्र बनी हुई वस्तुओं को तोड़ते रहते हैं। यह उनकी ध्वंसात्मक प्रकृति का संकेत है। छात्रों द्वारा निर्मित वस्तुयें, उन्हें सूजन के लिए प्रोत्साहित करती हैं। किशोरावस्था में बालकों द्वारा चित्र निर्मित करके तथा अन्य प्रकार की संरचना के आधार पर उनमें सृजनात्मकता की पहचान की जा सकती है।
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2. खेल- 5 अथवा 6 वर्ष के बच्चे काल्पनिक खेलों में माध्यम से अपनी भावी सृजनात्मकता की अभिव्यक्ति करते हैं, जैसे- छोटी कन्याओं द्वारा गुड़ियों को जख्मी समझकर उनकी मरहम पट्टी करना, छोटे बालकों द्वारा अध्यापक की भूमिका करना, वाहन चलाना, टाँगों के बीच लकड़ी लगाकर दौड़ना आदि। इस प्रकार के खेलों के द्वारा बालक के सृजनात्मक गुण की पहचान की जा सकती है।
किशोरावस्था में खेलों द्वारा उसके साहस, सहनशीलता, बुद्धि, कौशल तथा नवीन युक्तियों के प्रयोग, नेतृत्व, सहयोग, समूह में व्यवहार आदि को परखकर उसमें सृजनात्मकता के गुणों की पहचान सम्भव है।
3. सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन- विद्यालय में साहित्यिक एवं सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन तथा उनमें छात्रों की भागीदारी उनके सृजनात्मक गुणों की पहचान कराने में सहायक हैं। वाद विवाद प्रतियोगिताएँ, अभिनय, कलाकृति, साहित्यिक लेख आदि बालक की सृजनात्मकता का परिचय प्रदान करते हैं।
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छोटे बच्चे अपनी हास्य क्रियाओं द्वारा सृजनात्मकता की पहचान कराते हैं। बहुचा छोटे बच्चे दाढ़ी मूंछ चेहरे पर लगाकर अथवा अन्य किसी प्रकार से प्रौढ़ों को हँसाते हैं। कभी-कभी बूढ़े दादा अथवा दादी की नकल करना, ऐसी क्रियाएँ हैं जो सृजनात्मकता का संकेत देती हैं। बालक में कल्पनाशीलता प्रखर होती है। वह अपनी कल्पनाओं में सृजन करता है तथा अनेक प्रकार की क्रियाओं में इस कल्पना शक्ति का परिचय देकर अपनी सृजनात्मक क्षमता का आभास कराता है।
इसके अतिरिक्त अधोलिखित विशेषताओं को परखकर हम बालक की सृजनात्मकता का पता लगता सकते हैं-
1. बालक का मौलिक चिन्तन उसकी सृजनात्मकता की पहचान है। उसकी इस मौलिकता की पहचान वाद-विवाद, निबन्ध लेखन, कविता सृजन, कलाकृति के आधार पर की जा सकती है।
2. सृजनात्मक बालकों का दृष्टिकोण साधारण छात्रों की तुलना में भिन्न होता है तथा ऐसे छात्र छात्राओं में स्वतंत्र चिन्तन की प्रवृत्ति पाई जाती है।
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3. शीघ्र निर्णय लेने की क्षमता तथा समस्या समाधान की दिशा में स्वतंत्र रूप से क्रियारत होना, बालक में सृजनशीलता की पहचान कराते हैं।
4. नवीन वस्तुओं के प्रति जिज्ञासा तथा उत्सुकता बालक में सृजनशीलता का प्रतीक है।
5. सृजनशील बालक आशावादी, हँसमुख तथा प्रत्येक स्थिति में स्थिर रहते हैं।
6. सृजनशील बालक संवेदनशील होते हैं उनमें दूसरों के प्रति सहयोग, दुखियों के प्रतिदिन सहानुभूति तथा दयाभाव होता है।
7. ऐसे बालक जिनमें सृजनशीलता होती है, नवीन अनुभव करने के लिये सदैव तत्पर रहते हैं।
8. ऐसे बालक कल्पनाशील होते हैं। उनमें तर्कशक्ति की क्षमता अधिक होती है। सन्तुष्ट होने के बाद ही वह किसी तथ्य की वास्तविकता स्वीकारते हैं।
उपरोक्त आधार पर विद्यालय में सृजनात्मक छात्रों की पहचान की जा सकती है। इसके साथ-साथ बौद्धिक परीक्षण, व्यक्तित्व मापन, रुचि एवं अभिवृत्ति परीक्षणों द्वारा भी बालक की सृजनशीलता की पहचान की जा सकती है।
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