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रुचि या अभिरुचि का अर्थ और परिभाषा, रुचि परीक्षण एवं मापन

रुचि या अभिरुचि का अर्थ
रुचि या अभिरुचि का अर्थ

रुचि या अभिरुचि का अर्थ (meaning of interest)

रुचि या अभिरुचि का अर्थ– रुचियाँ किसी व्यक्ति के व्यक्तित्व की विशेषताएँ एवं स्वभाव को बताती हैं। रुचि का निर्देशन के क्षेत्र में विशेष महत्व है। रुचि शब्द को अंग्रेजी भाषा में ‘इंटरेस्ट’ (Interest) कहते हैं। अंग्रेजी में ‘इन्टरेस्ट’ शब्द लेटिन भाषा के ‘इन्टरेसी’ (Interesee) शब्द से बना है। लेटिन भाषा में ‘इन्टरेसी’ का अर्थ, इसके कारण विभिन्नता है। जो वस्तु पार्थक्य लाती है या जिससे हम सम्बन्धित हैं, वही हमारी रुचि है। रुचि का अर्थ समझने के लिये यहाँ रुचि से सम्बन्धित विद्वानों द्वारा दी गयी परिभाषाओं पर विचार करना उपयुक्त होगा।

रुचि की परिभाषा (Definitions of Interest)-

1. बिंघम के अनुसार- “रुचि किसी भी अनुभव में लीन होने तथा उसे चालू रखने की प्रवृत्ति है।”

2. स्ट्रांग के अनुसार- “प्रयोगात्मक रूप से रुचि पसन्द की अनुक्रिया है तथा घृणा नापसन्द की अनुक्रिया है।’

3. मैक्डूगल के अनुसार- “रुचि गुप्त अवधान है और अवधान रुचि की क्रियात्मक पक्ष है।”

4. जे. वाल्टर के अनुसार- “रुचि किसी वस्तु के प्रति केवल चाहना मात्र नहीं है। यह वह है जिसे व्यक्ति किसी दूसरी वस्तुओं की तुलना में अधिक पसन्द करते है।”

5. क्रो और क्रो के अनुसार- “रुचि एक प्रेरक शक्ति है जो किसी व्यक्ति, वस्तु या क्रिया के प्रति लगाव पैदा करती है।”

6. रूमेल, रेमर्स और गेज ने रुचि की परिभाषा में लिखा है, “रुचियाँ सुखद व दुःखद, पसन्द व नापसन्द की भावना के व्यवहार के आकर्षक तथा विकर्षण की प्रतिच्छाया के रूप में होती है।”

7. ड्रेवर का मानना है, “रुचि किसी प्रवृत्ति का गत्यात्मक पहलू है।”
“Interest is an intermediate its dynamic aspect.”

परिभाषाओं के विवेचन से रुचियों का निम्नलिखित स्वरूप स्पष्ट होता है-

1. रुचि व्यक्तित्व का एक अंग है।
2. रुचियों का योग्यताओं से सम्बन्ध होता है।
3. आयु वृद्धि के साथ रुचियों में विविधता समाप्त हो जाती है।
4. रुचियाँ वंशानुक्रम और वातावरण से प्रभावित होती हैं।
5. रुचि व्यवहार का एक पहलू है।
6. रुचि वैयक्तिक क्षमता से सम्बन्धित होती है।

रुचियों का मापन ( Measurement of Interests)-

रुचि मापन एक जटिल प्रविधि है क्योंकि इसमें अनेक तत्वों का प्रयोग एवं योगदान होता है। रुचि मापन में प्रयुक्त प्रमुख प्रविधियाँ इस प्रकार से हैं, वस्तुनिष्ठ विधि, व्यक्तिनिष्ठ विधि, वस्तुनिष्ठ विधियों में रुचि तालिकाओं का प्रयोग अधिक होता है। इसमें विभिन्न क्रियाओं से सम्बन्धित प्रश्न होते हैं। इनमें उन क्रियाओं का चिन्ह लगाना होता है। ये भी व्यावसायिक और गैर व्यावसायिक प्रकार की होती हैं। अन्य विधियों का अध्ययन पूर्व में किया जा चुका है। यहाँ कुछ रुचि तालिकाओं का विवरण प्रस्तुत है-

(1) स्ट्रांग की व्यावसायिक रुचि-परिसूची (Strong’s vocational interest blank)-

स्ट्रांग ने स्टेनफोर्ड विश्वविद्यालय में इस परिसूची का निर्माण किया। इसमें 420 पद हैं जो विभिन्न व्यवसायों से सम्बन्धित हैं। यह परिसूचि 17 वर्ष की आयु वाले किशोरों के लिये उपयुक्त है। इसको भरने में लगभग आधा घण्टा लगता है। फलांकन स्टेंसिल द्वारा किया जात है। फलांनक का विश्लेषण करके देखा जाता है कि परीक्षार्थी की रुचि उस व्यवसाय में लग व्यक्ति के समकक्ष है या नहीं जो व्यवसाय में सफलतापूर्वक कार्य कर रहे हैं।

स्ट्रांग की परिसूची की परिसीमायें

1. इससे रुचि के स्थायित्व का ज्ञान नहीं होता है।
2. व्यक्ति द्वारा अपनी रुचि के सम्बन्ध में दिये गये निर्णय की सत्यता की जाँच सम्भव नहीं।
3. वर्तमान रुचियों के आधार पर उनकी भावी व्यावसायिक सफलता की भविष्याणी करना सम्भव नहीं है।
4. परिसूची में व्यावसायिक रुचियों का समूहों में वर्गीकरण में वैज्ञानिकता का अभाव।
5. परिसची में सम्मेल व्यवसायों की रुचियों के प्रतिच्छादन पाया जाता है।

(II) कूडर का अधिमान अभिलेख (Kuder’s preference record)-

इसमें 10 उपपरीक्षण हैं जो इस प्रकार हैं- बाह्य क्षेत्र की क्रियायें, यांत्रिक संगणनात्मक, वैज्ञानिक, मैत्री, कलात्मक, साहित्यिक, संगीत, सामाजिक सेवा, लिपिक। प्रत्येक उपपरीक्षण में प्रश्नों की संख्या अलग-अलग हैं। प्रत्येक प्रश्न या पद के साथ तीन क्रियायें लिखी होती हैं। इन तीन में चिन्हित करना होता है।

(I) हैपनर की व्यावसायिक रुचि-लब्धि (Hepner’s vocational interest quotient)-

हैपनर ने चार कार्यक्षेत्र की चैक लिस्ट बनायी है। इन चार क्षेत्रों में प्रोफेशन  (24), व्यापारिक व्यवसाय (24), दक्षता ट्रेड (20) और स्त्रियों के व्यवसाय (24) प्रमुख हैं। इसमें एक व्यक्ति एक से अधिक क्षेत्रों में परीक्षा दे सकता है।

इनके अतिरिक्त और भी रुचि परीक्षण हैं, जैसे क्लीटन की व्यावसायिक रुचि तालिका, मेनसन्स का व्यावसायिक रुचि ब्लैंक, ली-थोरये प्रश्नावली, ओबरलेन व्यावसायिक रुचि जाँच आदि। भारत में वर्ष 1956 में इलाहाबाद मनोविज्ञान ब्यूरो ने सर्वप्रथम कूडर रुचि पत्र के आधार पर एक व्यावसायिक रुचि पत्र का निर्माण किया। इसी वर्ष बिहार में कूडर रुचि पत्र का भारतीयकरण किया गया। झीगरन ने स्ट्रांग के परीक्षण का भारतीयकरण किया। इस क्षेत्र में प्रो. चटर्जी, डॉ.पाण्डे, एस.पी. कुलश्रेष्ठ, आर. पी. सिंह तथा भार्गव के नाम उल्लेखनीय हैं।

रुचि तालिका चयन में निम्नांकित बातें ध्यान में रखनी चाहिये-

(i) रुचि तालिका बालकों की आयु के अनुकूल हो
(ii) यह उद्देश्यों के अनुकूल होनी चाहिये।
(iii) इसकी वैधता और विश्वसनीयता का ध्यान रखा जाये।
(iv) वैज्ञानिक दृष्टि से अच्छी तालिका हो जिससे स्थायी रुचि का पता लग सके

रुचि परीक्षण का निर्देशन में महत्व (Importance of Interest Test in Guidance)-

निर्देशन और परामर्श कार्यों में व्यक्ति की रुचियों का महत्वपूर्ण स्थान है। छात्र की अरुचि या अनिच्छा से होने वाले कक्षा कार्य भी छात्रों को समस्यात्मक बनाने में सहयोग देते इनके निर्देशन में निर्देशन देने वाले के लिये छात्रों की रुचियों का ज्ञान होना आवश्यक है। निर्देशन हैं। पाठ्य विषय, विद्यालय तथा व्यवसाय के चयन में रुचि की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। अतः की सफलता इस बात पर भी करती है।

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