सृजनात्मकता एवं समस्या समाधान पर टिप्पणी लिखिए।
सृजनात्मकता एवं समस्या समाधान- समस्या समाधान अधिगम मनोविज्ञान है जो समस्या के अध्ययन केन्द्र पर टिका होता है। प्राचीन मनोवैज्ञानिकों, मानसिक शक्ति सिद्धान्त, बोध सिद्धान्त तथा व्यवहावादियों ने इस प्रक्रिया पर बहुत कम प्रकाश डालता है। हरबर्ट द्वारा प्रथम बार शिक्षण अधिगम प्रक्रिया में समस्या विधि को व्यवहारिक स्वरूप प्रदान किया गया। गैस्टाल्ट तथा क्षेत्र मनोवैज्ञानिकों ने शिक्षण अधिगम प्रक्रिया को समस्या मूलक बनाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। अधिगम समस्या समाधान क विषय नहीं है अपितु बालक में मनोवैज्ञानिक तनाव उत्पन्न करने की विधि भी है। इस तनाव के अभाव में बालक अभिप्रेरित नहीं होता तथा यह नितान्त शान्त होकर बिना किसी रुचि के शिक्षण कक्ष में उपस्थित रहता है। समस्या समाधान किसी साक्ष्य की प्राप्ति में बाधक तत्वों पर विजय प्राप्त करना है। समस्या समाधान में चिन्तन तथा तर्कयुक्त बुद्धि दोनों सक्रिय रहती है।
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सृजनात्मकता में चिन्तन तथा तर्कक्षमता आवश्यक तत्व है। इस प्रकार सृजनात्मकता, समस्या समाधान में विशिष्ट रूप से सहायक है। सृजनात्मकता समस्या नहीं है। यह एक गुण है जो मौलिक क्षमताओं पर आधारित है। समस्या समाधान में पदों का क्रम इस प्रकार है-
1. चिन्ता- चिन्ता समस्या समाधान की दिशा में प्रथम चरण है। चिन्ता आवश्यकता का अहसास है, जो बालक को प्रयास करने के लिए प्रेरित करती है। सृजनात्मकता में चिन्तन आवश्यक तत्त्व है। चिन्ता तनावों से परिपूर्ण होती है जबकि गम्भीर चिन्तन धैर्य तथा सृजनशीलता का प्रतीक सृजनात्मकता में गम्भीर चिन्तन नवीन कृति सृजन का आवश्यक तत्व है। नवीनता की संरचना गम्भीर चिन्तन पर आधारित है। जबकि चिन्ता चेतन तनावों को जन्म देकर बालक को समाधान की ओर अग्रसरित करती है।
2. परिभाषा – परिभाषा से तात्पर्य उन बिन्दुओं का पता लगाना होता है जिन पर क्षमताओं को संगठित करके समस्या समाधान हेतु केन्द्रित किया जाता है। इसके अन्तर्गत ऐसे समस्त अवरोध एवं बाधाओं का विश्लेषण कर परिभाषित करना होता है, जो समस्या के इर्द-गिर्द रहते हैं। सृजनात्मकता में इस प्रकार की किन्हीं परिभाषाओं को परिभाषित न करके, गम्भीर चिन्तन को प्रभावित करने वाले कारकों की पुनर्व्यवस्था की जाती है।
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3. अनुमान अथवा उपकल्पना– इस प्रक्रिया में छात्र सामूहिक रूप से नवीन तथ्यों का विश्लेषण करते हैं। अनेक अनुमान लगाकर उन्हें तथ्यों की प्रामाणिकता हेतु परीक्षण की कसौटी पर रखा जाता है। उपकल्पना के अनुसार प्राप्त परिणाम समस्या समाधान की प्रक्रिया को सुनिश्चित करते हैं। सृजनात्मकता में इस प्रकार की उपकल्पना नहीं की जाती। इसमें मौलिकता के आधार पर नवीन कृतियों का सृजन होता है। समस्या समाधान में प्रश्नों को हल किया जाता है। सृजनात्मकता, प्रश्न हल करने तक सीमित न होकर इससे आगे समस्या के परिणाम में नवीनता ढूँढती है। यह नवीनता मौलिक होती है।
इसके अतिरिक्त सृजनात्मकता का स्वरूप व्यापक हैं। यह समस्या समाधान को सम्भव बनाने में सक्रिय रूप से सहायक होती है। सृजनात्मकता, समस्या समाधान नहीं है अपितु मौलिकता के आधार पर समस्याओं के गर्भ से उपजे चिन्तन का नवीन सृजन है।
4. मूल्यांकन- समस्या समाधान के परिणाम मूल्यांकन की कसौटी पर परखे जाते हैं। सृजनात्मकता का मापन किया जा सकता है परन्तु इसकी सफलता या असफलता के आधार का मूल्यांकन नहीं होता। सृजनात्मकता नवीन सृजन है। इसमें मौलिकता एवं गम्भीर चिन्तन को प्रथम वरीयता दी जाती है। समस्याएँ समाधान हेतु प्रस्तुत की जाती हैं। सृजनात्मकता समस्या समाधान में भागीदार होकर भविष्य लाभ हेतु सृजन करती है। समस्या समाधान समस्याओं का हल है। सृजनात्मकता, बालकों के प्राध्यापक, वकील, वैज्ञानिक, दार्शनिक, डॉक्टर, अभियन्ता आदि के निर्माण की पहचान है। इसमें यकायक सूझ भी महत्वपूर्ण है।
उपरोक्त पंक्तियों में यद्यपि समस्या समाधान तथा सृजनात्मकता के बीच अन्तर स्पष्ट करने का प्रयास किया गया है परन्तु समस्या समाधान तथा सृजनशीलता में घनिष्ठ सम्बन्ध है।
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