कक्षा वातावरण किस प्रकार विद्यार्थियों की सृजनात्मकता के विकास को प्रभावित करता है ? सृजनात्मकता को विकसित करने हेतु आप ब्रेनस्टार्मिंग का प्रयोग कैसे करेंगे ?
कक्षा वातावरण में विद्यार्थियों का सृजनात्मक विकास – बालकों में सृजनात्मकता विकसित करना कुछ ऐसी योग्यताएँ हैं जिनका विकास सृजनात्मकता के विकास में सहायक सिद्ध हो सकता है। इन योग्यताओं को विकसित करने के लिये निम्न सुझाव सहायक सिद्ध हो सकते हैं
1. उत्तर देने की स्वतंत्रता- हमें बच्चों को उत्तर देने के लिये पर्याप्त स्वतंत्रता प्रदान करनी चाहिए। उन्हें समस्या के समाधान के लिये अधिक से अधिक विचारों का चिंतन करने के लिये उत्साहित करना चाहिए।
2. अहं अभिव्यक्ति के लिये अवसर- बच्चे तभी सृजनात्मक कार्यों में निश्चित रूप से जुटते हैं जब उनमें उनका अहं निहित हो अर्थात् जब वे अनुभव करें कि उन्हीं के प्रयासों से ही अमुक सृजनात्मक कार्य सम्भव हो सका है। अतः हमें बच्चों को ऐसे अवसर प्रदान करने चाहिए।
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3. मौलिकता तथा लचीलेपन को प्रोत्साहित करना- बच्चों में किसी भी रूप में विद्यमान मौलिकता को प्रोत्साहित करना चाहिए तथ्यों का अंधाधुंध अनुसरण करना, जैसी की तैसी नकल कर देना, निष्क्रिय भाव से ज्ञान प्राप्त करना, रटना आदि सृजनात्मक अभिव्यक्ति में बाधक होते हैं। अतः उन पर यथासंभव नियंत्रण रखना चाहिए।
4. झिझक व डर को दूर करना- कई बार डर तथा हीन भावना से मिश्रित झिझक सृजनात्मक अभिव्यक्ति में बाधा डालती है। कई बार हमने लोगों को यह कहते सुना है कि मैं बोलने में झिझकता हूँ। इस प्रकार के डर या झिझक के कारणों या उनके कारणों को यथासंभव दूर करने का प्रयास करना चाहिए।
5. सृजनात्मक अभिव्यक्ति के लिये उचित अवसर एवं वातावरण प्रदान करना- बच्चों में सृजनात्मकता को बढ़ावा देने के लिये स्वस्थ एवं उचित वातावरण की व्यवस्था करना अत्यंत आवश्यक है। बच्चे की जिज्ञासा तथा सहनशीलता को किसी भी सूरत में दबना नहीं चाहिए। नियमित कक्षा कार्य को भी इस प्रकार व्यवस्थित किया जा सकता है जिससे बच्चों में सृजनात्मक चिन्तन का विकास हो ।
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6. बच्चों में स्वस्थ आदतों का विकास करना- श्रमशीलता, आत्मनिर्भरता, आत्मविश्वास आदि कुछ ऐसे गुण हैं जो सृजनात्मकता में सहायक होते हैं। बच्चों में इन गुणों का निर्माण करना चाहिए। इसके अतिरिक्त उन्हें अपनी सृजनात्मक अभिव्यक्ति पर हो रही आलोचना के विरुद्ध खड़े रहने का भी प्रशिक्षण देना चाहिए।
7. समुदाय के सृजनात्मक साधनों का प्रयोग- करना बच्चों को सृजनात्मक कला केन्द्रों तथा वैज्ञानिक एवं औद्योगिक निर्माण केन्द्रों की यात्रा करनी चाहिए। इससे उन्हें सृजनात्मक कार्य करने की प्रेरणा मिलेगी। कभी-कभी कलाकारों, वैज्ञानिकों को भी बुलाकर बच्चों से उन्हें मिलवाना चाहिए। इस प्रकार बच्चों के ज्ञान-विस्तार में सहायता मिल सकती हैं और उनमें सृजनशीलता को बढ़ावा दिया जा सकता है।
8. अपना उदाहरण एवं आदर्श प्रस्तुत- करना यह कथन सत्य है कि अपना उदाहरण सिद्धान्त से अच्छा होता है।” बच्चे हमेशा अनुसरण करते हैं जो अध्यापक और माता-पिता हमेशा पिटे पिटाये रास्ते पर चलते हैं, जीवन में खतरे मोल लेकर मौलिकता नहीं दिखाते, कोई नया काम नहीं करते, वे अपने बच्चों में सृजनात्मकता का विकास नहीं कर सकते।
9. सृजनात्मक चिन्तन के अवरोधों से बचना- परम्परावादिता, शिक्षण की त्रुटिपूर्ण विधियों, असहानुभूति व्यवहार, बालकों में व्याप्त अनावश्यक चिन्ता एवं कुण्ठा, न बदल जाने वाली स्थिर व परम्परागत कार्य आदतें, पुराने विचारों, आदर्शों और वस्तुओं के प्रति दुराग्रह और नवीन के प्रति भय व विरक्ति की भावना आदि अनेक कारण और परिस्थितियाँ हैं जिनमें बालकों में सृजनात्मकता के विकास व पोषण में बाधा पहुँचाती है। इससे बचने के लिये हर सम्भव प्रयत्न करना चाहिए।
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10. पाठ्यक्रम का उचित आयोजन- पाठ्यक्रम अपेक्षित व्यवहार परिवर्तन लाने की दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। अतः विद्यालय पाठ्यक्रम को इस प्रकार आयोजित किया जाना चाहिए कि वह बालकों में अधिक से अधिक सृजनात्मकता विकसित करने में सहायक सिद्ध हो सके। कुछ उपाय इस दिशा में अधिक लाभप्रद हो सकते हैं-
(a) संप्रत्ययों (Concepts) को पाठ्यक्रम का आधार बनाना।
(b) बालकों की सामान्यभूत आवश्यकताओं की जगह उनकी व्यक्तिगत आवश्यकताओं की पूर्ति।
(c) “सत्य खोजा जाता है वह स्वयं प्रकट नहीं होता है।” यह दृष्टिकोण प्रकट करना।
11. मूल्यांकन प्रणाली में सुधार – जब तक परीक्षा और मूल्यांकन के ढाँचे में अनुकूल परिवर्तन नहीं आता तब तक किसी भी शिक्षा व्यवस्था के द्वारा सृजनात्मकता का पोषण नहीं किया जा सकता। इसके लिये हमें ‘स्टन्त स्मृति’ केन्द्रित व एक विध चिन्तन, घिसे-पिटे एक से उत्तर अथवा अनुक्रियाओं की माँग आदि सृजनशीलता को नष्ट करने वाली बातों के स्थान पर परीक्षा प्रणाली में उन सभी बातों का समावेश करना चाहिए जिनके द्वारा विद्यार्थियों को ऐसे अधिगम अनुभव अर्जित करने के लिये प्रोत्साहन मिले जो सृजनात्मकता का पोषण व विकास करते हों।
सृजनात्मकता को विकसित करने हेतु बेनस्टार्मिंग का प्रयोग
ब्रेनस्टामिंग अर्थात् मस्तिष्क उद्वेलन शिक्षण अधिगम की एक खेल विधि होती है। इस विधि द्वारा छात्रों में शिक्षण अधिगम के प्रति जिज्ञासा, उत्सुकता, प्रेरणा तथा उद्दीपन को उत्पन्न किया जाता है जिससे छात्रों में सीखने के प्रति जिजीविषा और अधिक बढ़ जाती है। उनकी बोधक्षमता तथा बोधगम्यता को भी बढ़ाया जा सकता है।
ब्रेनस्टामिंग एक प्रकार से शिक्षण अधिगम में खेल तकनीक का प्रयोग है। इससे छात्रों की सृजनात्मकता को भी बढ़ाने में अप्रत्याशित सफलता प्राप्त की जा सकती है। जैसेकि खेल भावना से खेल खेल में सीखना छात्रों में सृजनात्मकता के लक्षणों को विकसित करते हैं।
मानसिक उद्वेलन ब्रेनस्टार्मिंग (Brainstorming) शिक्षण अधिगम की एक ऐसी तकनीक है जो किसी समूह को अपने विचारों को प्रदर्शित करते हैं। बिना किसी पूर्वाग्रह के छात्रों को एक समूह में बैठने के लिये कहा जाता है, उन्हें एक समस्या को विविध तकनीकी पद्धति से हल करने को कहा जाता है। इस तरह से उनके मस्तिष्क को सोचने के लिये प्रेरित किया जाता है। उदाहरण के लिये जैसे समूह के सदस्यों से कहा जाय कि भारत में बढ़ते आतंकवाद को आप कैसे रोकेंगे ? फिर उन्हें जितनी शीघ्रता से हो सके अपने विचार प्रस्तुत करने होते हैं। ऐसा करने पर छात्रों में मानकों का निरीक्षण किया जाता है। अशाब्दिक तकनीक के अन्तर्गत बालक को ब्लाक (गुटकों), चित्र के टुकड़ों से विभिन्न तकनीक बनाना, चित्र पूर्ति करना, चित्र पैटर्न से निष्कर्ष निकालना, कहानी लिखना इत्यादि।
मानसिक उद्वेलन के द्वारा छात्रों में सृजनात्मकता विकसित करने के कुछ महत्वपूर्ण उपाय निम्नवत् हैं-
(1) मस्तिष्क उद्वेलन के अन्तर्गत किसी भी विचार की आलोचना नहीं की जाती, सभी विचारों की सराहना की जाती है।
(2) छात्रों/समूह के सदस्यों को अधिक से अधिक समाधान खोजने हेतु प्रेरित किया जाता है जो दूसरों से अलग एवं मौलिक हो।
(3) यह आवश्यक नहीं है कि छात्र नया समाधान ही प्रस्तुत करे, वह अपने साथियों द्वारा प्रस्तुत समाधान में ही कुछ संशोधन कर कुछ जोड़कर या घटाकर भी प्रस्तुत कर सकता है।
(4) जब तक सत्र समाप्त नहीं हो जाता तब तक किसी भी प्रकार की टिप्पणी अथवा मूल्यांकन नहीं किया जाता है तथा जो समाधान सबसे उपयुक्त हो उसे ही स्वीकृत किया जाता है।
(5) शिक्षण प्रतिमान का उपयोग- शिक्षाशास्त्रियों के द्वारा विकसित किए गये शिक्षण प्रतिमान – का उपयोग भी सृजनात्मकता के विकास में सहायक होता है। जैसे ब्रूनर का कान्सेप्ट अटैनमैन्ट मॉडल (Concept of Attainment) खोज प्रतिमान की सहायता से बालकों में प्रव्ययों को सीखने में सहायक होते हैं। सचमैन का पृच्छा प्रतिमान भी इसमें सहायक होता है।
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