व्यक्तित्व के सिद्धान्त-Principles of Personality in Hindi
व्यक्तित्व के सिद्धान्त – व्यक्तित्व का अध्ययन मनोवैज्ञानिकों के लिए अपरिहार्य अंग हो गया है। सच तो यह है कि मानव का व्यक्तित्व एक नहीं, अनेक कारकों से निर्मित होता है। वैयक्तिक धारणाओं के आधार पर ही व्यक्तित्व सम्बन्धी सिद्धान्तों का निरूपण हुआ है। ये सिद्धांत संक्षेप में प्रस्तुत किये जा रहे हैं-
1. मनोविश्लेषणात्मक सिद्धांत
इस मत के प्रतिपादक सिगमंड फ्रायड हैं। फ्रायड के अनुसार, व्यक्तित्व का निर्माण इड, इगो, तथा सुपर इगो के द्वारा होता है। इड् सामान्य अहं के, इगो, अहं तथा सुपर इगो को नैतिक मत के संदर्भ में प्रयुक्त किया जाता है। इड्, अचेतन मन है जिसमें मूल प्रवृत्तियों एवं नैसर्गिक इच्छायें रहती हैं। ये शीघ्र तृप्ति चाहती हैं। इगो चेतना, इच्छा शक्ति, बुद्धि तथा है। सुपर इगो, आदर्शों से निर्मित होता है। फ्रायड ने इगो विषय में कहा है— इगो, इड् का वह भाग है जो बाह्य संसार के अनुमान तथा संभावना से परिष्कृत होता है और उसका कालान्तर में प्रभाव भी पड़ता है, जो प्राणी को उद्दीपन करने एवं उसके इर्द-गिर्द जमी परत के अंश के रूप में व्याप्त रहता है। इसी प्रकार सुपर इगो के विषय में कहा है ‘सुपर इगो, इगो का वह पक्ष है जो आत्मनिरीक्षण की प्रक्रिया को सम्भव बनाता है, जिसे सामान्य रूप से चेतना कहते हैं। इस प्रकार मानव व्यक्तित्व का निर्माण इन्हीं तत्त्वों से होता है। ये तत्त्व व्यक्तित्व के अनेक रूप प्रकट करते हैं।
इसे भी पढ़े…
2. रचना सिद्धान्त
इस मत के प्रतिपादक शैलडॉन हैं। शैलडॉन ने व्यक्तित्व के तीन प्राथमिक आधार बताए हैं
(i) गोलाकृति – इस प्रकार के व्यक्तित्व वाले मनुष्य गोर-गर्दन तथा माँस-पेशियों से पूर्ण विकसित होते हैं। चर्बी का बढ़ना आदि गुणों से युक्त ऐसे व्यक्ति का व्यक्तित्व अलग प्रकट होता है।
(ii) आयताकृति – इस प्रकार के व्यक्तित्व में हड्डियों तथा माँस-पेशियों का विकास परिलक्षित होता है।
इस मत के अनुसार शरीर के विभिन्न अंगों को व्यक्तित्व के निर्माण का आधार माना जाता है।
इसे भी पढ़े…
3. प्रतिकारक प्रणाली सिद्धान्त
इस मत के प्रतिपादक आर.बी. कैटल हैं। व्यक्तित्व के विषय में इनका कथन है – ‘व्यक्ति जो किसी विशेष परिस्थिति में जो भी कार्य करता है, उसका प्रतिरूप ही व्यक्तित्व है।’
कैटल ने चरित्र को अनेक कारकों से युक्त कहा। उसके अनुसार चरित्र की सुन्दरता अर्थात्, भावात्मक एकता, सामाजिकता, कल्पनाशीलता, अभिप्रेरत, उत्सुकता, लापरवाही आदि प्रतिकारक चरित्र का निर्माण करते हैं।
कैटल ने कहा- ‘एक आन्तरिक मनोदैहिक स्थिति जो व्यक्ति को प्रतिक्रिया (आवधान, अभिज्ञान) करने की अनुज्ञा देती है, वह भी उद्देश्यों के वर्गों से, विशेष संवेगों के अनुभव प्राप्त करती है एवं कार्यों को पूर्ण रूप से करने के लिए अभिप्रेरित करते हैं। इसके अतिरिक्त इन प्रतिमानों में ऐसे व्यवहार प्राथमिकता दी जाती है जो किस उद्देश्य की प्राप्ति करते हैं।’
4. ऑलपोर्ट का सिद्धान्त
गोर्डन डब्ल्यू ऑलपोर्ट ने व्यक्तित्व के सम्बन्ध में जो सिद्धान्त प्रतिपादित किया है, वह वंशक्रम तथा वातावरण, वैयक्तिक भेद आदि पर आधरित है। ऑलपोर्ट ने वंशक्रम द्वारा निर्धारित व्यक्तित्व के जटिल मिश्रण के प्रति न्याय करने, स्वभाव, सामाजिक तथा मनोवैज्ञानिक कारणों के प्रति न्याय करने पर बल दिया है। साथ ही व्यक्तित्व की नीवनता को मान्यता देने पर भी बल दिया है जो अनेक सम्प्रदायों तथा व्यक्तित्वों में विद्यमान होती है। व्यक्तित्व को निर्धारित करने वाली प्रवृत्तियों, विशेषताओं तथा वातावरण के प्रति समायोजन से व्यक्तित्व का निर्धारण होता है।
5. मुर्रे का सिद्धान्त
एच.ए. मुर्रे ने व्यक्तित्व के सन्दर्भ में कहा है- ‘व्यक्तित्व कार्यात्मक रूप एवं शक्तियों की निरन्तरता है जो संगठित प्रक्रिया के रूप में जन्म से मृत्यु तक बहिर्मुखी होकर प्रकट होती है।’ इस मत के अनुसार कार्यात्मक रूपों की निरन्तरता त्रणात्मक तथा धनात्मक अभिनिवेश सम्बन्ध, मतभेद, सक्रियता, निष्क्रियता आदि का योग व्यक्तित्व का निर्माण करती है।
इस पर कतिपय आरोप भी हैं। वे हैं-अचेतन निर्धारकों का व्यवहार पर प्रभाव, अधिगम की भूमिका, अभिप्रेरणा की स्थिति व्यक्तित्व पर प्रभाव डालती है और उसकी अभिव्यक्ति का कारण बनती है।
इसे भी पढ़े…
व्यक्तित्व को प्रभावित करने वाले घटक
रैक्स व नाइट के अनुसार- “मनोविज्ञान का सम्बन्ध व्यक्तित्व के विकास को प्रभावित करने वाले कारकों से भी हैं। इनमें से कुछ कारक शारीरिक रचना सम्बन्धी और जन्मजात एवं दूसरा पर्यावरण सम्बन्धी है। व्यक्तित्व को प्रभावित करने वाले तत्त्वों का उल्लेख निम्नानुसार किया जा सकता है
1. वंशानुक्रम का प्रभाव
व्यक्तित्व के विकास पर वंशानुक्रम का भी प्रभाव अनिवार्य रूप से पड़ता है। बालक सामान्य प्रवृत्तियों, मूल प्रवृत्तियों, संवेग, बुद्धि, कार्यक्षमता, स्नायुमण्डल, प्रतिक्षेप, चालक तथा आंतरिक स्वभाव आदि वंशानुक्रम से प्राप्त करता है तथा आगे चलकर दूसरी पीढ़ी को हस्तांतरित करता है।
2. वातावरण का प्रभाव
मनुष्य के व्यक्तित्व में भौतिक वातावरण तो पड़ता ही हैं इसके साथ-साथ पारिवारिक वातावरण, पास-पड़ोस के वातावरण, मित्र-मण्डली के वातावरण तथा विद्यालय के वातावरण का व्यापक प्रभाव भी पड़ता है। भौतिक वातावरण के प्रभाव के कारण लोगों की आदत, रंग रूप, शारीरिक बनावट व जीवन यापन की विधियों में अन्तर रहता है।
3. मानसिक योग्यता का प्रभाव
जिस व्यक्ति में जितनी अधिक मानसिक योग्यता होती है, वह उतना ही अधिक अपने व्यवहार को समाज के आदर्शों और प्रतिमानों के अनुकूल ढालने में सफल होता है। परिणामतः उसके व्यक्तित्व का विकास उतना ही अधिक होता है, जबकि कम मानसिक योग्यता वाले व्यक्तित्व का विकास अपेक्षाकृत कम होता है।
4. शारीरिक रचना का प्रभाव
शारीरिक रचना के अन्तर्गत शरीर के विभिन्न अंग, उनका पारस्परिक अनुपात, कद, भार, नेत्र, बाल, रंग, रूप, वाणी, स्वर, मुखाकृति आदि आते हैं। ये किसी न किसी रूप में व्यक्तित्व के विकास को प्रभावित करते हैं।
5. ग्रंथियों से सम्बन्धित तत्त्व
नलिकाविहीन ग्रन्थियाँ, अन्तः स्त्रावी ग्रन्थियाँ तथा शरीरिक रसायन, जैविक कारकों का भी व्यक्तित्व के विकास पर प्रभाव पड़ता है।
6. रुचि विशेष का प्रभाव
व्यक्ति के व्यक्तित्व के विकास में रुचि विशेष का व्यापक प्रभाव पड़ता है। जिस कार्य में विशिष्ट रुचि होती है, उसमें व्यक्ति को अवश्य सफलता मिलती है। कला एवं संगीत में विशिष्ट रुचि लेने वाला व्यक्ति ही कलाकार या संगीतज्ञ के उच्च स्थान पर पहुँचने में सफल हो सकता है।
7. सामाजिक वातावरण का प्रभाव
गैरेट के अनुसार, ‘जन्म के समय से ही बालक का व्यक्तित्त्व उस समाज के द्वारा, जिसमें वह रहता है, निर्मित और परिवर्तित किया जाता है।’ स्पष्ट है कि बालक में सामाजिक वातावरण के सम्पर्क में रहने के कारण धीरे-धीरे परिवर्तन होते हैं। उसे अपनी भाषा, रहन-सहन के ढंग, खाने-पीने की विधि, दूसरों के साथ व्यवहार करने के प्रतिमान, धार्मिक व नैतिक विचार आदि समाज से ही मिलते हैं। इस प्रकार समाज उसके व्यक्तित्व का निर्माण करता है।
8. सांस्कृतिक वातावरण का प्रभाव
समाज व्यक्तित्व का निर्माण करता है तथा संस्कृति उसके स्वरूप को निश्चित करती है। व्यक्ति के व्यक्तित्व पर उस संस्कृति का व्यापक प्रभाव पड़ता है जिसमें वह जन्म लेता है जिसमें उसका पालन-पोषण एवं विकास होता है। बालक के व्यक्तित्व पर उसकी संस्कृति की अमिट छाप लग जाती है जो उसके व्यक्तित्व में सदैव परिलक्षित होती रहती है।
9. सांवेगिक तत्वों का प्रभाव
संवेगों का भी व्यक्ति के व्यक्तित्व पर काफी प्रभाव पड़ता है। इसके फलस्वरूप व्यक्ति साहसी डरपोक, मिलनसार, हँसमुख बनता है। सांवेगिक तत्व व्यक्तित्व के विकास पर वांछनीय और अवांछनीय दोनों ही तरह के प्रभाव डाल सकता है।
10. प्रभावित करने वाले अन्य कारक
(i) बालक का पड़ोस, समूह और परिवार की इकलौती संतान होना। (ii) बालक के शारीरिक व मानसिक दोष। (iii) संवेगात्मक असन्तुलन, (iv) जीवन की विशिष्ट परिस्थितियाँ और सामाजिक स्थिति एवं कार्य।
निष्कर्ष रूप में हम कह सकते हैं कि व्यक्तित्व के विकास पर अनेक कारकों का प्रभाव पड़ता है।
इसे भी पढ़े…
Important Links
- बाल विकास की विभिन्न अवस्थाएँ | Bal Vikas ki Vibhinn Avastha
- बाल विकास की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
- विकास के प्रमुख सिद्धांत-Principles of Development in Hindi
- वृद्धि तथा विकास के नियमों का शिक्षा में महत्त्व
- अभिवृद्धि और विकास का अर्थ
- वृद्धि का अर्थ एवं प्रकृति
- बाल विकास के अध्ययन का महत्त्व
- श्रवण बाधित बालक का अर्थ तथा परिभाषा
- श्रवण बाधित बालकों की विशेषताएँ Characteristics at Hearing Impairment Children in Hindi
- श्रवण बाधित बच्चों की पहचान, समस्या, लक्षण तथा दूर करने के उपाय
- दृष्टि बाधित बच्चों की पहचान कैसे होती है। उनकी समस्याओं पर प्रकाश डालिए।
- दृष्टि बाधित बालक किसे कहते हैं? परिभाषा Visually Impaired Children in Hindi
- दृष्टि बाधितों की विशेषताएँ (Characteristics of Visually Handicap Children)
- विकलांग बालक किसे कहते हैं? विकलांगता के प्रकार, विशेषताएँ एवं कारण बताइए।
- समस्यात्मक बालक का अर्थ, परिभाषा, प्रकार, कारण एवं शिक्षा व्यवस्था
- विशिष्ट बालक किसे कहते हैं? यह कितने प्रकार के होते हैं?
- प्रतिभाशाली बालकों का अर्थ व परिभाषा, विशेषताएँ, शारीरिक विशेषता
- मानसिक रूप से मन्द बालक का अर्थ एवं परिभाषा
- अधिगम असमर्थ बच्चों की पहचान
- बाल-अपराध का अर्थ, परिभाषा और समाधान
- वंचित बालकों की विशेषताएँ एवं प्रकार
- अपवंचित बालक का अर्थ एवं परिभाषा
- समावेशी शिक्षा का अर्थ, परिभाषा, विशेषताएँ और महत्व
- एकीकृत व समावेशी शिक्षा में अन्तर
- ओशों के शिक्षा सम्बन्धी विचार | Educational Views of Osho in Hindi
- जे. कृष्णामूर्ति के शैक्षिक विचार | Educational Thoughts of J. Krishnamurti
- प्रयोजनवाद तथा आदर्शवाद में अन्तर | Difference between Pragmatism and Idealism
- प्रयोजनवाद का अर्थ, परिभाषा, रूप, सिद्धान्त, उद्देश्य, शिक्षण विधि एंव पाठ्यक्रम
- प्रकृतिवादी और आदर्शवादी शिक्षा व्यवस्था में क्या अन्तर है?
- प्रकृतिवाद का अर्थ एंव परिभाषा | प्रकृतिवाद के रूप | प्रकृतिवाद के मूल सिद्धान्त