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भारतीय समाज का बालक पर प्रभाव | Impact of Indian society on child in Hindi

भारतीय समाज का बालक पर प्रभाव | Impact of Indian society on child in Hindi
भारतीय समाज का बालक पर प्रभाव | Impact of Indian society on child in Hindi

भारतीय समाज का बालक पर क्या प्रभाव पड़ता है ?

भारतीय समाज का बालक पर प्रभाव

भारतीय समाज का बालक पर निम्न रूपों से प्रभाव पड़ता है-

(1) शारीरिक विकास का प्रभाव – भारतीय समाज में बालकों में शारीरिक विकास के लिए खेल, स्काऊटिंग, एन. सी. सी., पी. ई. सी. तथा व्यायामशालाओं का प्रबन्ध है। प्रत्येक वर्ष अनेक कार्यक्रमों व प्रतियोगिताओं के द्वारा शारीरिक विकास को प्रोत्साहित किया जाता है। यह बड़े दुःख व विडम्बना का विषय है कि इन सभी प्रयासों के बावजूद भी भारतीय बालक अपने शारीरिक विकास के प्रति सचेत नहीं हैं। आज की पश्चिमी चकाचौंध व भौतिकतावादी प्रवृत्ति से प्रेरित बालक अपनी दिनचर्या में इस प्रकार का खान-पान, रहन-सहन उपयोग करता है कि शारीरिक विकास के लिए उसे समय नहीं मिल पाता है। समाज भी इस सम्बन्ध में उपेक्षापूर्ण रुख अपनाए हुए है।

(2) मानसिक विकास समाज द्वारा प्रत्येक बालक के मानसिक विकास का प्रयत्न किया जाता है तथा इस सम्बन्ध में संविधान में भी बिना भेद-भाव के सभी बालकों को मानसिक विकास के पर्याप्त अवसर उपलब्ध कराये जाने का प्रावधान है। इस सम्बन्ध में राज्य ने निःशुल्क तथा अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा की घोषणा कर दी है तथा इसी क्रम में समाज में अनेक प्राविधिक, मेडीकल, इंजीनियरिंग तथा कृषि कॉलेज भी खोले गये हैं तथा कोई भी बालक अपनी योग्यतानुसार इन शैक्षिक संस्थाओं में प्रवेश ले सकता हैं

(3) बालक के आध्यात्मिक विकास पर प्रभाव आध्यात्मिकता के विकास के लिए धर्म तथा नैतिकता का विकास होना आवश्यक है। भारतीय समाज आध्यात्मिकता के लिए सदैव एक मजबूत स्तम्भ रहा है परन्तु आज हमारे समाज में धर्म तथा नैतिकता की अपेक्षा भौतिकवाद व पश्चिमी सभ्यता के अनुकरण को महत्त्व दिया जा रहा है। आज सम्पूर्ण समाज अपने प्राचीन आदर्शों को भूल गया है तथा इसी कारण समाज में स्वार्थ, भ्रष्टाचार, अनैतिकता दिखाई पड़ती है। इन सभी कुप्रभावों से बालक को बचाने के लिए बालक का आध्यात्मिक विकास किया जाना आवश्यक है।

(4) बालक के संवेगात्मक विकास पर प्रभाव हमारे समाज में व्याप्त अनेक कुरीतियों से समाज की एकता को खतरा उत्पन्न करने वाली विघटनकारी शक्तियाँ प्रोत्साहित हो रही हैं। इस प्रकार की प्रवृत्ति से बालक के संवगोत्मक विकास पर प्रभाव पड़ता है। बालक में भावात्मक एकता को विकसित करने की दृष्टि से केन्द्र सरकार द्वारा भावात्मक एकता तथा राष्ट्रीय एकता समिति की स्थापना की गयी है लेकिन इन संगठनों के दिखाए गए रास्ते पर चलने के लिए भी हमारा समाज तैयार नहीं है।

(5) धन के अभाव का प्रभाव हमारा देश एक निर्धन देश है तथा अधिकांश सामाजिक वर्ग निर्धनता से त्रस्त है। आज समाज में केवल दो वर्ग ही दिखाई देते हैं – एक अत्यधिक धनी वर्ग तथा दूसरा निर्धन वर्ग। धनी व्यक्ति धनी होता जा रहा है तथा गरीब व्यक्ति गरीब होता जा रहा है। निर्धनता से भरी जीवन प्रणाली, दिनचर्या, रहन-सहन, खान-पान, शिक्षा, संस्कार, रोजगार, मानसिकता, सामाजिक तथा नैतिक मूल्यों पर गहरा कुप्रभाव पड़ा है तथा बालकों के ऊपर इन सभी प्रभावों का व्यापक असर देखा जा सकता है।

(6) पारस्परिक विघटन का प्रभाव- बालक की प्रथम शिक्षा उसके घर से ही प्रारम्भ होती है। घर पर माँ-बाप व अन्य रिश्तेदारों के सान्निध्यों में बालक अपनी शिक्षा प्रारम्भ करता है। परिवार के सदस्यों के आचरण, उनके चरित्र, उनके व्यवहार व उनकी जीवन शैली का बच्चे पर गहरा प्रभाव पड़ता है। आज वे औद्योगिकरण, यन्त्रीकरण व भौतिकतावाद की अन्धी दौड़ में भारतीय समाज के परिवारों में विघटन हो रहा है तथा माँ-बाप के पास बालक के लिए समय नहीं है। इन सभी का बालक के ऊपर प्रभाव पड़ता है।

(7) सामाजिक अपराधों का प्रभाव- समाज में होने वाले अपराध आज किसी से छुपे हुए नहीं हैं। आज समाज में लोगों का धैर्य कम हो गया है इसी कारण आज मामूली-सी बात पर भी हत्या जैसे अपराध होने लगे हैं। इन अपराधों का प्रभाव बालकों के कोमल मस्तिष्क व मनोभावों पर गहरा असर डालता है। आज विद्यालयों में अपने साथियों, अध्यापकों को प्रभावित करने के लिए छात्र अपराध व अनुशासनहीनता पर उतर आता है। इस समाज के वातावरण का बालक पर गहरा प्रभाव पड़ता है।

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