अध्यापकों के लिये लैंगिक अध्ययन की आवश्यकता एवं महत्व (Need and Importance of Gender Studies for Teachers)
विभिन्न समाजों में लैंगिक सम्बन्धों के भिन्न-भिन्न स्वरूप देखने को मिलते हैं। ऐतिहासिक काल, प्रजाति और जातीय समूहों, सामाजिक वर्ग और पीढ़ियों में फिर भी पुरुषों और महिलाओं के बीच अन्तर मामले में समानता है। लिंग समानता वर्तमान युग की प्रमुख माँग है जिसका अर्थ है स्त्री व पुरुष में भेदभाव न करना अर्थात् स्त्री व पुरुष को अवसरों व अधिकारों की दृष्टि से समान समझना। अध्यापक ही भावी पीढ़ी के कर्णधार होते हैं, अतः शिक्षा के क्षेत्र में लिंग आधारित समानता का विकास करने हेतु उन्हें लैंगिक अध्ययन की आवश्यकता निम्नलिखित कारणों से होती है –
1. मानव अधिकारों की सुरक्षा हेतु- मानव अधिकारों की सुरक्षा हेतु अध्यापकों को लैंगिक अध्ययन का ज्ञान होना अति आवश्यक है। संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा समाज में रहने वाले प्रत्येक मनुष्य के लिये चाहे वह स्त्री हो या पुरुष, मानव अधिकारों की घोषणा की गयी है। अतः अध्यापक का दायित्व है कि वह महिलाओं व बालिकाओं को इन मानव अधिकारों की जानकारी दे जिससे वे भी समाज निर्माण में बराबर की सहभागी बनकर अपना योगदान दे सकें।
2. देश की प्रजातान्त्रिक प्रणाली को कुशलतापूर्वक चलाने हेतु – हमारे भारत देश में प्रजातान्त्रिक प्रणाली विद्यमान है जिसमें स्त्री तथा पुरुषों को समान अधिकार प्रदान किये गये हैं। अत: अध्यापकों का कर्त्तव्य है कि वे लैंगिक भेदभाव को समाप्त करके बालक तथा बालिका; दोनों को समान शिक्षा दें जिससे देश की प्रजातान्त्रिक प्रणाली को कुशलतापूर्वक चलाया जा सके।
3. भारतीय संस्कृति को सुदृढ़ आधार प्रदान करने हेतु- प्राचीन भारतीय संस्कृति में प्रायः श्रेष्ठ स्त्रियों की स्थिति पुरुषों के समान थी। इसी स्त्री-पुरुष समानता के स्तर को सुदृढ़ और सशक्त बनाने हेतु शिक्षक के लिये लैंगिक अध्ययन अति आवश्यक है।
4. महिला वर्ग को सशक्त बनाने हेतु – भारतीय समाज में आरम्भ से ही पुरुषों का प्रभुत्व रहा है परन्तु वर्तमान में स्थिति भिन्न है। आज महिलाएँ जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में पुरुषों के समान प्रगति कर रही हैं। अतः शिक्षा द्वारा स्त्री जाति को और अधिक सशक्त बनाने हेतु लैंगिक अध्ययन अध्यापकों के लिये विशेष महत्व रखता है।
5. कक्षा कक्ष में लिंग समानता की दृष्टि से कार्य करने हेतु कक्षा-कक्ष में अध्यापकों हेतु लैंगिक अध्ययन के महत्व को निम्न प्रकार से समझा जा सकता है-
1. लैंगिक अध्ययन से अध्यापकों को इस बात की जानकारी होती है कि कक्षा-कक्ष में लिंग आधारित विषय सामग्री को किस प्रकार विद्यार्थियों के समक्ष प्रस्तुत करना है।
2. लैंगिक अध्ययन द्वारा ही अध्यापक लिंग समानता पर आधारित शिक्षण विधियों का प्रयोग कर बालक व बालिका दोनों की शिक्षा में समान सहभागिता निश्चित कर सकते हैं।
3. लिंग से सम्बन्धित तथ्यों की व्यापक जानकारी अध्यापकों को कक्षा-कक्ष में लिंग आधारित मुद्दों को पढ़ाने व समझाने में विशेष सहायक होती है।
4. शिक्षा के सभी स्तरों पर अध्यापक बालकों के साथ-साथ बालिकाओं को भी गणित, विज्ञान, टेक्नोलॉजी जैसे विषयों का आधारभूत अध्ययन करने की आदत डाल सकते हैं जिससे बालिकाएँ भी इन विषयों में व्यावसायिक कुशलता प्राप्त कर सकें। अध्यापक को लैंगिक अध्ययन का ज्ञान इसमें विशेष सहायता प्रदान करता है।
5. लिंग समानता को बढ़ावा देने हेतु अध्यापक बालकों में भी प्यार व देखभाल जैसे तत्वों को विकसित कर सकता है क्योंकि यह केवल महिलाओं की ही जिम्मेदारी नहीं है कि वे परिवार व बच्चों की देखभाल करें। इसमें पुरुष वर्ग की भागीदारी भी उतनी ही आवश्यक है जितनी महिला वर्ग की।
6. अध्यापक ही कुछ अभिभावकों में व्याप्त इस धारणा को समाप्त कर सकता है कि तकनीकी विषय के अध्ययन की आवश्यकता केवल बालकों तक ही सीमित नहीं है बल्कि यह बालिकाओं के लिये भी आवश्यक है। इस विषय में लैंगिक अध्ययन अध्यापकों की विशेष सहायता करता है।
7. लैंगिक अध्ययन द्वारा दिये गये सुझावों के बल पर ही अध्यापक समाज की सामाजिक व्यवस्था में सुधार ला सकता है और समाज में व्याप्त बालिकाओं के प्रति नकारात्मक दृष्टिकोण को भी समाप्त कर सकता है।
इस प्रकार स्पष्ट है कि लैंगिक अध्ययन एक बहुआयामी विषय है जिसका ज्ञान शिक्षक के लिये अति आवश्यक एवं महत्वपूर्ण है। लैंगिक अध्ययन का ज्ञान होने से अध्यापक देश को एक मुख्य आधार प्रदान करने तथा बालिकाओं की भी समाज में समान भागीदारी सुनिश्चित करने में सक्रिय भूमिका निभा सकता है।
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