B.Ed. / BTC/ D.EL.ED / M.Ed.

शिक्षा समाजशास्त्र का अर्थ | Meaning of Educational Sociology in Hindi

शिक्षा समाजशास्त्र का अर्थ | Meaning of Educational Sociology in Hindi
शिक्षा समाजशास्त्र का अर्थ | Meaning of Educational Sociology in Hindi

शिक्षा के समाजशास्त्र से आप क्या समझते हैं? एक विषय के रूप में इसके विकास की संक्षेप में विवेचना कीजिए।

शिक्षा समाजशास्त्र का अर्थ

शैक्षिक समाजशास्त्र (Educational Sociology) को समाजशास्त्र की एक विशिष्ट शाखा के रूप में माना जाता है। इस विषय का सम्बन्ध शिक्षा तथा समाजशास्त्र दोनों से है। इस शाब्दिक विश्लेषण के आधार पर कहा जा सकता है कि शैक्षिक समाजशास्त्र वह विज्ञान है जिसके अन्तर्गत शिक्षा सम्बन्धी समस्याओं का अध्ययन समाजशास्त्रीय सिद्धान्तों के सन्दर्भ में किया जाता है। यह भी कहा जा सकता है कि शैक्षिक समाजशास्त्र के अन्तर्गत समाजशास्त्रीय सिद्धान्तों के आधार पर शिक्षा की प्रक्रिया का अध्ययन किया जाता है। शैक्षिक समाजशास्त्र के अर्थ एवं परिभाषा को प्रस्तुत करने से पूर्व शिक्षा तथा समाजशास्त्र के अर्थ एवं परिभाषा को प्रसंग प्रस्तुत करना अनिवार्य है।

शिक्षा का अर्थ – शिक्षा वास्तव में एक जटिल एवं बहुपक्षीय प्रक्रिया है। शिक्षा के माध्यम से व्यक्ति की निहित शक्तियों एवं क्षमताओं का विकास होता है। शिक्षा के ही द्वारा मनुष्य प्राणी से इन्सान या सामाजिक प्राणाली बनता है। शिक्षा का सम्बन्ध मनुष्य के जीवन के विभिन्न या यह भी कहा जा सकता है कि समस्त पक्षों से है। इससे मनुष्य का शारीरिक, संवेगात्मक, मानसिक तथा चारित्रिक विकास होता है। यह शिक्षा का व्यापक अर्थ है।

मैकेन्जी के अनुसार शिक्षा एक ऐसी प्रक्रिया है जो आजीवन चलती रहती है तथा जीवन के प्राय: प्रत्येक अनुभव के उसके भण्डार में वृद्धि होती है। शिक्षा की प्रक्रिया को व्यक्ति के सर्वांगीण विकास की प्रक्रिया स्वीकार किया गया है।

एडलर के अनुसार शिक्षा मनुष्य के सम्पूर्ण जीवन से सम्बन्धित क्रिया है। यह केवल छोटे बालकों से ही सम्बन्धित नहीं होती यह तो जन्म से प्रारम्भ होती है और जीवनपर्यन्त चलती रहती है।

समाजशास्त्र का अर्थ समाजशास्त्र का अंग्रेजी पर्यायवाची शब्द ‘Sociology’ है। अंग्रेजी भाषा के इस शब्द की व्युत्पत्तिमूलक व्याख्या करने पर ज्ञात होता है कि यह शब्द दो शब्दों अर्थात् ‘सोशियो’ (Socio) तथा ‘लॉजी’ (Logy) के सम्मिलन से बना है। ये दोनों शब्द दो भिन्न भाषाओं से सम्बन्धित हैं। सोशियो शब्द लैटिन भाषा के ‘सोशियस’ (Socius) से बना है तथा लॉजी शब्द ग्रीक भाषा के शब्द ‘लोगस’ से बना है। इन दोनों शब्दों का मौलिक अर्थ है क्रमशः समाज तथा शास्त्र |

‘समाजशास्त्र’ के शाब्दिक अर्थ को जान लेने के उपरान्त इसकी परिभाषा को प्रस्तुत करना भी आवश्यक है। विभिन्न विद्वानों ने भिन्न-भिन्न दृष्टिकोण से समाजशास्त्र की परिभाषा निर्धारित की है। कुछ विद्वानों के विचारानुसार समाजशास्त्र “समाज का अध्ययन करने वाला विज्ञान है।” इस मत को स्वीकार करते हुए गिंसबर्ग ने समाजशास्त्र की संक्षिप्त परिभाषा इन शब्दों में प्रस्तुत की है- “समाजशास्त्र समाज के अध्ययन के रूप में परिभाषित किया जाता है। “

मैकाइवर एवं पेज के शब्दों में समाजशास्त्र सामाजिक सम्बन्धों के विषय में है। सम्बन्धों के जाल को हम समाज कहते हैं।

जॉर्ज सिमिल के शब्दों में समाजशास्त्र मानवीय अन्तः सम्बन्धों के स्वरूप का विज्ञान है। उपर्युक्त विवरण के आधार निष्कर्ष स्वरूप कहा जा सकता है- “समाजशास्त्र वह विज्ञान है जो मानवीय सम्बन्धों के प्रकारों एवं स्वरूपों, क्रियाओं एवं घटनाओं समाज के सन्दर्भ में वैज्ञानिक अध्ययन करता है। “

एक विषय के रूप में इसके विकास की विवेचना- एक विषय के रूप में इसके विकास को स्वीकार्य किया गया है। समाजशास्त्र की इस शाखा के अन्तर्गत शिक्षा सम्बन्धी समस्याओं का व्यवस्थित अध्ययन किया जाता है।

शैक्षिक समाजशास्त्र के अन्तर्गत शिक्षा पर समाज के प्रभाव तथा समाज तथा समाज पर शिक्षा के प्रभाव का व्यवस्थित अध्ययन किया जाता है।

1. व्यक्ति के शिक्षण की प्रक्रिया का परिचालन घर, परिवार तथा समाज के सदस्यों द्वारा होता है। शिक्षा तथा समाज का आपसी सम्बन्ध है।

2. व्यक्ति को शिक्षित करने में पास-पड़ोस का महत्त्वपूर्ण योगदान है। इससे पास-पड़ोस के परिवारों उनके रीति-रिवाजों, झगड़ों, मेल-मुलाकात, खेलकूद तथा सामूहिक कार्यों में व्यक्ति की शिक्षा की प्रक्रिया परिचालित होती है।

3. समाज में विद्यमान धार्मिक संस्थाएँ भी व्यक्ति के लिए शिक्षा का साधन होती हैं। धार्मिक उत्सव, धार्मिक विरोध, संगीत राग-संग आदि व्यक्तियों के जीवन को प्रभावित करते हैं।

4. समाज की व्यावसायिक गतिविधियाँ भी शिक्षा को प्रभावित करती हैं। समाज में विद्यमान व्यवस्थाओं को देखकर समझदार बालक भी बहुत कुछ सीखते हैं।

5. विभिन्न नागरिकों की दशाएँ भी शिक्षा को प्रभावित करती हैं। समाज में व्याप्त पुलिस व्यवस्था, चुनाव आयोग, राजनीतिक गतिविधियों, राजनीतिक विवाद तथा राजनीतिक दल भी किसी न किसी रूप में शिक्षा की प्रक्रिया के परिचालन में अपनी भूमिका निभाते हैं।

6. समाज में अनेक सुन्दरताएँ, कुरूपताएँ, अच्छाइयाँ तथा बुराइयाँ व्याप्त होती हैं। ये समस्त कारक समाजशास्त्र शिक्षा में अपना योगदान देते हैं।

7. समाज में रहकर व्यक्ति विभिन्न समूहों की सदस्यता प्राप्त करता है तथा इससे उसके अनुभवों का दायरा विस्तृत होता है।

8. समाज में व्यक्ति इच्छाइयों, मित्रता, आकांक्षा, सन्तोष-असन्तोष सामूहिक जीवन अथवा एकान्तवाद आदि से भी व्यक्ति बहुत कुछ सीखता है।

उपर्युक्त विवरण द्वारा स्पष्ट है समाजशास्त्र एक विषय के रूप अनिवार्य है। इससे औपचारिक संस्थाएं अर्थात् विद्यालय भी समाज की मान्यताओं एवं रीति-रिवाजों से प्रभावित होते हैं। उदाहरण के लिए भारतीय समाज में छुआछूत की भावना, पर्दा प्रथा, जाति-पाँति के भेदभाव, ऊँच-नीच की भावना आदि का प्रभाव विद्यालय तथा शिक्षा पर पड़ता है। वास्तव में छात्र एवं अध्यापक भी तो समाज के अभिन्न सदस्य होते हैं। अतः उनका समाज से प्रभावित होना स्वाभाविक है।

Related Link

Important Links

Disclaimer

Disclaimer: Sarkariguider.in does not own this book, PDF Materials Images, neither created nor scanned. We just provide the Images and PDF links already available on the internet. If any way it violates the law or has any issues then kindly mail us: guidersarkari@gmail.com

 

About the author

Sarkari Guider Team

Leave a Comment