गाँधी जी के शिक्षा दर्शन तथा शिक्षा अवधारणा के विचारों स्पष्ट कीजिए। उनके शैक्षिक सिद्धान्त वर्तमान भारत की प्रमुख समस्याओं का समाधान कहाँ तक कर सकते हैं ?
गाँधीजी के शिक्षा का सम्प्रत्यय
गाँधी जी केवल साक्षरता को शिक्षा नहीं मानते थे। इनके अपने शब्दों में साक्षरता न तो शिक्षा का अन्त है और न प्रारम्भ। यह केवल एक साधन है जिसके द्वारा पुरुष और स्त्रियों को शिक्षित किया जा सकता है (Literacy is not the end of education nor even the begining. It is only one of the means whereby men and women can be educated.)। गाँधी जी मनुष्य को शरीर, मन, हृदय और आत्मा का योग मानते थे। इनका स्पष्ट मत था कि शिक्षा को मनुष्य के शरीर, मन, हृदय और आत्मा का विकास करना चाहिए। गाँधी जी ने 3Rs (Reading, Writing and Arithmetic) की शिक्षा को 3Hs (Hand, Head and Heart) की शिक्षा पर बदल दिया और कहा कि शिक्षा का कार्य मनुष्य को केवल पढ़ना, लिखना और गणित सिखाना ही नहीं है अपितु उसके हाथ, मस्तिष्क और हृदय का विकास करना भी है। इनके अपने शब्दों में शिक्षा से मेरा अभिप्राय बालक और मनुष्य के शरीर, मन और आत्मा के उच्चतम विकास से है (By education I mean all round drawing out of the best, in child and man-body, mind and spirit.)
महात्मा गाँधी का शिक्षा दर्शन
(Educational Philosophy of Mahatma Gandhi)
राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी केवल राजनैतिक नेता ही नहीं थे अपितु एक बहुत बडे धर्म मर्मज्ञ एवं समाज सुधारक भी थे। इन्होंने अपने समय की पुस्तकीय, सैद्धान्तिक, संकुचित और परीक्षा प्रधान शिक्षा में सुधार के लिए भी अनेक सुझाव दिये थे। शिक्षा जगत में ये शिक्षाशास्त्री के रूप में प्रतिष्ठित है।
गाँधी जी शिक्षा को व्यक्ति का जन्मसिद्ध अधिकार मानते थे और मनुष्य की किसी भी प्रकार की, भौतिक अथवा आध्यात्मिक उन्नति के लिए इसे इतना ही आवश्यक मानते थे जितना बच्चे के शारीरिक विकास के लिए माँ का दूध। यही कारण है कि इन्होंने एक निश्चित आयु तक के बच्चों के लिए सामान्य शिक्षा की व्यवस्था अनिवार्य रूप से करने पर बल दिया और उसे निःशुल्क करने की बात कही। इनका स्पष्ट मत था कि यह शिक्षा विदेशी भाषा अंग्रेजी के माध्यम से नहीं दी जा सकती यह शिक्षा मातृभाषा के माध्यम से ही दी जा सकती है। वैसे भी ये अंग्रेजी को मानसिक दासता बढ़ाने वाली भाषा मानते थे। ये शिक्षा द्वारा मनुष्य को स्वावलम्बी बनाना चाहते थे, उसे अपनी रोजी-रोटी कमाने योग्य बनाना चाहते थे, इसलिए इन्होंने हस्तकौशलों की शिक्षा पर विशेष बल दिया। साथ ही ये मनुष्य की आत्मिक उन्नति भी करना चाहते थे, इसलिए इन्होंने शिक्षा द्वारा मनुष्य को एकादश व्रत सत्य, अहिंसा, ब्रह्मचर्य, अस्वाद, अस्तेय, अपरिग्रह, अभय, अस्पर्श्यता निवारण, कायिक श्रम, सर्वधर्म समभाव और (विनम्रता) पालन की ओर प्रवृत्त करने पर बल दिया। गाँधी जी ने अपने इस शिक्षा दर्शन के आधार पर राष्ट्रीय शिक्षा का स्वरूप निश्चित किया और उसे बेसिक शिक्षा का नाम दिया। यहाँ गाँधी जी के शैक्षिक विचारों का क्रमबद्ध विवेचन प्रस्तुत है।
गाँधी जी के शैक्षिक सिद्धान्तों की वर्तमान भारत में उपयोगिता
गाँधी जी के शैक्षिक सिद्धान्तों की वर्तमान भारत की समस्याओं के लिए उपयोगिता उनकी बुनियादी शिक्षा के उद्देश्यों के माध्यम से स्पष्ट किया जा सकता है-
(1) भारतीय परिस्थितियों के लिए उपयोगी- गाँधी जी ऐसी शिक्षा की व्यवस्था करना चाहते थे जो भारतीय परिस्थितियों में उपयोगी हो, जो बालकों का स्वाभाविक रूप से विकास कर सके तथा भारत की प्रगति की दृष्टि से लाभदायक हो ।
(2) बालकों का सर्वांगीण विकास- गाँधी जी के शैक्षिक सिद्धान्तों पर आधारित बुनियादी शिक्षा का उद्देश्य बालकों का सर्वांगीण विकास करना था। इस दृष्टि से बुनियादी शिक्षा की योजना इस प्रकार बनायी गई थी कि बालकों का शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, शैक्षिक तथा आर्थिक विकास किया जा सके।
(3) अच्छी नागरिकता का विकास- बुनियादी शिक्षा बालकों में अच्छी नागरिकता का विकास करने में महत्त्वपूर्ण थी। आज के बालक कल के श्रेष्ठ नागरिक तभी बन सकते हैं जब उनमें प्रेम, धैर्य, सद्भाव, सहनशीलता, परोपकार, सत्यनिष्ठा तथा सदाचार इत्यादि लोकतान्त्रिक मूल्यों के प्रति गहरी निष्ठा हो । गाँधी जी की बुनियादी शिक्षा बालकों में ऐसे मूल्यों का विकास करने में सक्षम थी।
(4) सर्वोदय की भावना का विकास- गाँधी जी की बुनियादी शिक्षा की अवधारणा छात्रों में उन् गुणों का संचार करने के लिए बनाई गई थी, जिनके द्वारा छात्र केवल अपनी ही उन्नति के प्रति सजग न रह कर पूरे समाज की उन्नति की भावना से ओत-प्रोत रहें। सामाजिक उत्थान के लिए सर्वोदय की भावना का विकास आवश्यक है।
(5) नैतिक, चारित्रिक एवं सांस्कृतिक मूल्यों का विकास- बुनियादी शिक्षा के द्वारा गाँधी जी छात्रों का भारतीय मूल्यों और आदर्शों के अनुसार नैतिक, चारित्रिक एवं सांस्कृतिक विकास करना चाहते थे। यही कारण है कि उन्होंने पाठ्यक्रम में महान पुरुषों, वैज्ञानिकों, अन्वेषकों की जीवनियों को सम्मिलित किया था।
(6) आर्थिक निर्भरता- आर्थिक निर्भरता वर्तमान भारत की सबसे गम्भीर आवश्यकता है। आज बेरोजगारी का प्रकोप विकराल रूप ले चुका है। सरकार स्वार्थ के वशीभूत होकर इस दिशा में गम्भीर नहीं दिखती उस पर आरक्षण जैसे प्रावधान योग्य एवं कुशल युवाओं में कुण्ठा उत्पन्न कर रहे हैं। ऐसे में गाँधी जी की बुनियादी शिक्षा छात्रों की स्वावलम्बी, आत्मविश्वासी एवं आत्म-निर्भर बनाकर बेरोजगारी की गम्भीर समस्या का समाधान कर सकती है। गाँधी जी की बुनियादी शिक्षा में हस्त-कौशलों, काष्ठ, चमड़ा, कृषि, चीनी मिट्टी के बर्तन, मछली पालन, मधु मक्खी पालन इत्यादि लघु कुटीर उद्योगों की शिक्षा सम्मिलित थी, जो छात्रों को स्वावलम्बी बनाती थी।
उपरोक्त वर्णन स्पष्ट करता है कि गाँधी जी के शैक्षिक सिद्धान्त तथा उन पर आधारित शिक्षा व्यवस्था वर्तमान भारतीय समस्याओं का काफी हद तक समाधान करने में कारगर साबित हो सकती है।
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