बालकों में संवेगों के कार्य – Functions of Emotions in Children in Hindi
बालकों के जीवन में संवेगों का बहुत महत्त्व है। बालकों में संवेगों के महत्त्वपूर्ण कार्य निम्नलिखित है-
1. बालक के प्रत्येक दिन के अनुभवों में संवेगों से आनन्द जुड़ जाता है। बालकों को जिज्ञासा, स्नेह, हर्ष आदि से तो सुखानुभूति प्राप्त होती हैं, साथ ही साथ क्रोध और भय जैसे संवेगों की अभिव्यक्ति कर बालक तनाव मुक्त हो जाता है। हर्ष संवेग के सम्बन्ध में हरलॉक ने लिखा है कि शारीरिक रूप से हर्ष प्रकृति की श्रेष्ठ औषधि है, क्योंकि इससे तनाव समाप्त हो जाता है और शरीर आराम की स्थिति में आ जाता है। मनोवैज्ञानिक रूप से देखा जाए तो हर्ष में बालक के सभी अनुभव सुखद हो जाते हैं।
2. अध्ययनों में यह देखा गया है कि जब संवेगात्मक अनुक्रियाओं की बालकों में बार-बार पुनरावृत्ति होती है तो यह संवेगात्मक अनुक्रियाएँ बालकों में आदत के रूप में परिवर्तित हो जाती हैं। बहुधा वही संवेगात्मक अनुक्रियाएँ आदत में परिवर्तित होती हैं, जो बालक के लिए सुखदायी होती हैं।
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3. बालक के सभी संवेग और संवेगात्मक अनुक्रियाएँ उसकी सामाजिक अन्तःक्रियाओं को प्रभावित करती हैं।
4. बालक का जीवन के प्रति दृष्टिकोण संवेगों से प्रभावित होता है। उदाहरण के लिए बालक यदि बहुत क्रोधी है तो हो सकता है कि अधिक क्रोध के कारण उसका समायोजन बिगड़ जाए।
5. बच्चे संवेगों के द्वारा आत्म मूल्यांकन और सामाजिक मूल्यांकन करते हैं। किसी भी बालक की संवेगात्मक अभिव्यक्तियों से उसके व्यवहार और व्यक्तित्व का मूल्यांकन सम्भव है। बहुधा बालक में तो संवेग तीव्र मात्रा में होते हैं, उससे ही उसका मूल्यांकन किया जाता है। बालक संवेगात्मक परिस्थितियों में संवेगात्मक अभिव्यक्ति किस प्रकार करता है, इससे यह स्वयं आत्म-मूल्यांकन कर सकता है।
6. संवेग बालक को क्रियाशील बनाते हैं। संवेग की में हृदय की धड़कनें बढ़ जाती हैं, माँसपेशियों की थकान कम हो जाती है, लीवर से रक्त शर्करा अधिक निकलती है, थायरॉयड और एड्रीनल ग्रन्थियों के स्राव भी अधिक मात्रा में निकलते हैं। इन सबसे बालक की क्रियाशीलता बढ़ जाती है। यदि बालक की बढ़ी हुई क्रियाशीलता व्यक्त नहीं हो पाती है, तो वह नर्वस हो जाता है।
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7. बालकों की संवेगों के कारण बढ़ी हुई क्रियाशीलता यदि व्यक्त नहीं हो पाती है तो उनमें वाणी सम्बन्धी दोष उत्पन्न हो सकते हैं। अँगूठा चूसने और नाखून काटने जैसे व्यवहार भी विकसित हो सकते हैं।
8. संवेगों में शारीरिक परिवर्तन होते हैं। इन परिवर्तनों से बालक के बारे में यह ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है कि बालक क्या और कैसे अनुभव कर रहा है।
9. जब बालक में कटु संवेग उत्पन्न होते रहते हैं और अक्सर उत्पन्न होते रहते हैं तो बहुत कुछ सम्भावना होती है कि संवेगों से बालक का अधिगम, पुनःस्मरण, तर्क, ध्यान लगाने की क्षमता आदि मानसिक क्रियाओं पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।
10. बालकों के संवेग वह जिस वातावरण में रहता है, उसके मनोवैज्ञानिक वातावरण को प्रभावित करते हैं, जो बदले में बालक के व्यवहार को प्रभावित करता है। उदाहरण के लिए, झगड़ालू और ईर्ष्यालू बालक के माता-पिता और परिवार के व्यक्ति उससे चिढ़ सकते हैं, परेशान हो सकते हैं। ऐसी अवस्था में बालक को जो स्वस्थ पारिवारिक वातावरण और माता-पिता का स्नेह मिलना चाहिए वह नहीं मिल पाता है।
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