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भारतीय शिक्षा में आज संकटावस्था की क्या प्रकृति है ? इसके कारणों व समस्याओं के स्रोत

भारतीय शिक्षा में आज संकटावस्था की क्या प्रकृति है ? इसके कारणों व समस्याओं के स्रोत
भारतीय शिक्षा में आज संकटावस्था की क्या प्रकृति है ? इसके कारणों व समस्याओं के स्रोत

भारतीय शिक्षा में आज संकटावस्था की क्या प्रकृति है ? इसके कारणों व स्रोतों का समुचित विश्लेषण प्रस्तुत कीजिए।

भारतीय शिक्षा में आज संकटावस्था की क्या प्रकृति है?

वैदिक काल से आज तक भारतीय शिक्षा से कई प्रकार के उतार-चढ़ाव देखने को मिले हैं। चाहे वह वैदिक कालीन शिक्षा का समय रहा हो, उत्तर वैदिक कालीन शिक्षा हो, बौद्धकालीन शिक्षा का समय रहा हो, मुस्लिम काल की शिक्षा रही हो या फिर ब्रिटेन कालीन और आधुनिक शिक्षा रही हो।

15 अगस्त, 1947 को देश स्वतन्त्र हुआ तथा 26 जनवरी, 1950 को जब हमारा संविधान लागू हुआ तब से हमारे राष्ट्रीय नेताओं ने राष्ट्र की शिक्षा की व्यवस्था करने के प्रयास किए। हमारे संविधान की 45वीं धारा में प्राथमिक शिक्षा सन्दर्भ में स्पष्ट निर्देश लिखे हैं कि-“राज्य इस संविधान के लागू होने के समय से दस वर्ष के अन्दर 14 वर्ष तक की आयु के बच्चों की अनिवार्य एवं निःशुल्क शिक्षा की व्यवस्था करेगा” और स्थिति यह है कि हम आज भी संविधान में लिखे उक्त निर्देशानुसार लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर सके हैं।

आज भारतीय शिक्षा में अनेक समस्याएँ अर्थात् संकट की स्थितियाँ उत्पन्न हो चुकी हैं जिनका निराकरण किए बिना हम शिक्षा के राष्ट्रीय लक्ष्यों को प्राप्त नहीं कर सकते।  आज भारतीय शिक्षा में प्रमुख समस्याओं हैं- शैक्षिक अवसरों की असमानता, अपव्यय एवं अवरोधन, आर्थिक समस्याएँ, सामाजिक समस्याएँ, राजनीतिक समस्याएँ, शैक्षिक प्रशासन की समस्याएँ, पाठ्यक्रम की समस्या, शिक्षण विधियों की समस्या प्रवेश की समस्या, दोषपूर्ण परीक्षा प्रणाली की समस्या, शिक्षा की उद्देश्यहीनता की समस्या, शिक्षा की एकरूपता का न होने की समस्या, भाषा की समस्या, व्यावसायीकरण की समस्या, शैक्षिक एवं व्यावसायिक निर्देशन एवं परामर्श की शिक्षा, छात्र अनुशासनहीनता की समस्या, शिक्षकों की कमी, शिक्षकों की अनुपस्थिति की समस्या, कमजोर एवं वंचित वर्ग के बच्चों की समस्या, जनसंख्या वृद्धि की समस्या, संसाधनों की कमी की समस्या।

वर्तमान भारतीय शिक्षा में संकट के कारण- वर्तमान भारतीय शिक्षा में संकट के प्रमुख कारण निम्न है-

(1) राष्ट्रीय एकता का अभाव- किसी भी राष्ट्र के अस्तित्त्व के लिए सबसे पहली मूलभूत आवश्यकता उसके नागरिकों में राष्ट्रीय एकता का होना है। किन्तु दुर्भाग्यवश हमारे देश में इस भावना में कुछ कमी आई है। इस कमी के कारण जहाँ एक ओर राष्ट्र के अस्तित्त्व की रक्षा के लिए गम्भीर समस्या उत्पन्न हो सकती है, वहीं दूसरी ओर क्षेत्रीय संकीर्णता शैक्षिक भेदभाव एवं शैक्षिक असमानता की समस्या गम्भीर होती जा रही है।

(2) भावात्मक एकता का अभाव- राष्ट्रीय एकता और भावात्मक एकता एक-दूसरे के पूरक हैं। एक में दूसरी निहित होती है। जब राष्ट्रीय एकता का अभाव होगा तो निश्चित रूप से भावात्मक एकता के अभाव के कारण ही होगा। राष्ट्रीय एकता जहाँ राष्ट्र के नागरिकों के राष्ट्र को केन्द्रित करते हुए एकता के सूत्र में पिरोती है वही भावात्मक एकता राष्ट्र की जनता की पारिवारिक स्तर से लेकर अन्तर्राष्ट्रीय स्तर तक भावात्मक रूप से बाँधने का कार्य करती है।

(3) मूल्य परक शिक्षा का अभाव- आज इस बात को नकारा नहीं जा सकता है कि भारत में मूल्यों की शिक्षा तथा शैक्षिक मूल्यों में हास हुआ है। मूल्य सम्बन्धी प्राचीन भारतीय दृष्टिकोण में समस्त जीव मात्र के कल्याण की कामना निहित है।

सर्वेभवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः ।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दुःख भाग्यवेत ।।

प्राचीन भारतीय शैक्षिक मूल्यों में पुरुषार्थ तथा पौरुष शब्द का प्रयोग किया गया है। पुरुषार्थ का अर्थ है भलाई के कार्य करना तथा पौरुष का सम्बन्ध भक्ति, आत्मबल तथा चारित्रिक बल से है। आज इनमें भी कमी पाई जा रही है।

(4) संकुचित दृष्टिकोण का होना- वर्तमान भारतीय शिक्षा में संकट की स्थिति का एक प्रमुख कारण लोगों का संकुचित दृष्टिकोण का होना है। अभिभावकों की बात करें तो आज भी बहुत से अभिभावक हैं जोकि लड़के तथा लड़कियों में अन्तर को स्वीकार करते हैं तथा लड़कियों को शिक्षा प्राप्त करने के लिए तत्पर नहीं रहते। दूसरी तरफ अधिकांश अभिभावक ऐसे हैं जोकि अपनी इच्छाओं को अपने बच्चों पर जबरन थोपने का प्रयास करते हैं। बच्चों की इच्छा और क्षमता को अनदेखा कर देते हैं। वहीं दूसरी ओर सरकारें भी शिक्षा के प्रति व्यापक दृष्टिकोण नहीं रखती हैं।

(5) जनसंख्या वृद्धि – जनसंख्या वृद्धि समस्त समस्याओं का एक प्रमुख कारण बना हुआ है। उपलब्ध सूचनाओं के अनुसार कुल जनसंख्या का लगभग 40% एक से चौदह वर्ष के आयु के वर्ग के बच्चों का है जिनमें अधिकांश कुपोषण का शिकार हैं। शिक्षा प्राप्त करने वाले आयु वर्ग के बालकों की संख्या इतनी अधिक होने के कारण एक ओर जहाँ उनका पालन-पोषण ठीक प्रकार से नहीं हो पा रहा है। वहीं दूसरी ओर उनके लिए पर्याप्त शैक्षिक सुविधाओं का अभाव है।

(6) अपव्यय एवं अवरोधन- भारत की शिक्षा की समस्या में अपव्यय एवं अवरोधन एक बहुत बड़ा कारण है। शिक्षा प्राप्त करने के लिए प्रवेश लेने वाले छात्रों की कुल संख्या का चौथाई भी उच्च शिक्षा को प्राप्त नहीं कर पाता है जिससे इन बालकों पर धन और समय का व्यय व्यर्थ चला जाता है।

समस्याओं के स्रोत

आज भारत की शिक्षा में अनेक प्रकार की समस्यायें हैं। इन समस्याओं के स्रोत निम्नलिखित हैं-

  1. शिक्षा के प्रति पारिवारिक उदासीनता।
  2. स्वस्थ शैक्षिक वातावरण का न होना।
  3. आर्थिक स्थिति सुदृढ़ न होना।
  4. अनुशासनहीनता का होना।
  5. शिक्षा का रोजगार परख न होना।
  6. शिक्षा के प्रति जागरुकता का न होना।
  7. शिक्षा में अनावश्यक राजनीति हस्तक्षेप का होना।
  8. शिक्षा की उपादेयता का न होना।
  9. राष्ट्रीय एवं भावनात्मक एकता का न होना।
  10. सामाजिक एवं भौगोलिक असमानता का होना।
  11. सांस्कृतिक पिछड़ेपन का होना।
  12. छात्रों एवं शिक्षकों में पारस्परिक सम्बन्धों का न होना।
  13. शिक्षकों की कमी एवं उनकी अनुपस्थिति की समस्या का होना।
  14. शैक्षिक अवसरों की समानता का न होना।

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