द्वितीय विश्व युद्ध के कारणों की स्पष्ट व्याख्या कीजिए।
द्वितीय विश्वयुद्ध का बीज पेरिस के शांति समझौते में निहित था। मित्र राष्ट्रों ने जर्मनी एवं उसके अन्य सहयोगियों पर इतनी कठोर एवं अपमान जनक संधि लादी थीं कि उन देशों को उपर्युक्त संधियों तोड़ना आवश्यक हो गया। आयुधों की होड़, उग्र राष्ट्रीयता की भावना तथा राष्ट्रसंघ की कमजोरी भी द्वितीय विश्व युद्ध के कारण बने। यह युद्ध 1939 से 1945 ई. तक चला जो नरसंहार एवं क्षति की दृष्टि से सबसे भयंकर था। इसने पूरे विश्व को आंदोलित कर दिया।
वर्साय संधि की त्रुटियाँ- द्वितीय विश्वयुद्ध के बीज वर्साय संधि में विद्यमान थे। पेरिस-शांति सम्मेलन के समय यह आम विश्वास था कि वर्साय संधि द्वारा एक ऐसे विष वृक्ष का बीजारोपण हो रहा है जो शीघ्र ही एक विशाल संहारक वृक्ष के रूप में खड़ा हो जाएगा, जिसका फल समस्त मानवता को भुगतना पड़ेगा। वर्साय की संधि में विल्सन के आदर्शवादी सिद्धान्तों की सर्वथा उपेक्षा की गई थी। पराश्रित राज्यों के सामने ‘आरोपित संधियों’ को स्वीकार करने के अतिरिक्त कोई दूसरा चारा नहीं था। उनके लिए यही बुद्धिमानी थी कि वे आँख मीचकर कठोर संधि के कड़वे घूँट को चुपचाप गले के नीचे उतार लें। विजय के मद में चूर मित्रराष्ट्र भविष्य के खतरे को देखे बिना ही सब कुछ करते जा रहे थे। जर्मनी को बना दिया गया। जर्मनी जैसा स्वाभिमानी राष्ट्र अधिक दिनों तक ऐसी स्थिति बर्दास्त नहीं कर सकता था। यह निश्चित था कि जर्मनी एक दिन वर्साय के अपमान का बदला लेगा।
वचन-विमुखता – राष्ट्रसंघ के विधान पर हस्ताक्षर करके सभी सदस्य राज्यों ने वादा किया था कि वे सामूहिक रूप से सबकी प्रादेशिक अखण्डता एवं राजनीतिक स्वतंत्रता की रक्षा करेंगे। लेकिन अवसर आने पर सब के सब पीछे हट गए, जापान, चीन पर बलात्कार करता रहा। एवं इटली अबीसिनिया को रौंदता रहा। फ्रांस चेकोस्लोवाकिया के विनाश में सहायक हुआ। हिटलर चेक राज्यों को हड़पता रहा एवं ब्रिटेन तथा फ्रांस देखते रहे। उससे छोटे राष्ट्रों का विश्वास बड़े राष्ट्रों से उठ गया, क्योंकि अब रक्षक-भक्षक बनने लगे थे या भक्षक के सहयोगी या भक्षण के मूक दर्शक बन गए थे।
समाजवाद की प्रभाविता- प्रथम विश्वयुद्ध से उत्पन्न आर्थिक कठिनाइयों ने विश्व को झकझोर दिया था। यूरोप में आर्थिक मंदी लोगों के लिए असहाय हो गई। कारखाने बंद होने लगे एवं लोग बेकार होने लगे। जीवन आर्थिक तंगी के कारण दूभर हो गया। ऐसी स्थिति में समाजवादी विशेषकर साम्यवादी विचारधारा लोगों को ग्राह्य होने लगी। वास्तव में साम्यवादी दल ने इस जन असंतोष को मुखरित किया एवं उसे राजनीतिक आयाम प्रदान कर सशक्त बना दिया। सभी बड़े देशों में राष्ट्रवाद एवं साम्यवाद मध्य संघर्ष शुरू हुआ। समाजवादी एवं साम्यवादी अन्तर्राष्ट्रीयता के सिद्धान्त में विश्वास करते थे एवं पूंजीवाद पर खुला हमला बोलते थे। जब शोषण एवं विषमता के विरुद्ध समाजवाद का आहवान् जोर पकड़ने लगा तो यूरोपीय पूंजीवाद ने उसके विरुद्ध मोर्चाबंदी शुरू कर दी। पूंजीवादी राष्ट्रीयता की दुहाई देकर तानाशाहों को समाजवादियों एवं साम्यवादियों को कुचलने के लिए मदद करने लगा।
तानाशाही का प्रादुर्भाव- इटली ने प्रथम विश्वयुद्ध में मित्र राष्ट्रों की ओर इस उम्मीद में युद्ध किया था कि युद्धोपरांत उसे लाभ मिलेगा। लेकिन, युद्ध के दौरान सैनिक सफलता नहीं मिलने के कारण 1919ई. की पेरिस शांति समझौते की संधियों में उसे गुप्त संधियों द्वारा आशा दिलाई गई उपलब्धियाँ नहीं हासिल हो सकी। इसलिए इटली असंतुष्ट था। इसके अलावा प्राकृतिक संसाधनों की कमी एवं औद्योगिक पिछड़ेपन के कारण इटली ने युद्ध का भार फ्रांस एवं ब्रिटेन से ज्यादा महसूस किया। आर्थिक तंगी से उपजी सामाजिक अशांति का लाभ उठाकर मुसोलिनी इटली का तानाशाह बन गया। इटली के पूंजीपति घोर समाजवाद विरोधी थे। वे बाहर उपनिवेशों को स्थापित करना चाहते थे। मुसोलिनी इसी नीति का समर्थक था। अतः पूंजीपतियों एवं फासीवाद के बीच घनिष्ठ सम्बन्ध कायम हुआ। विस्तारवादी नीति अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में निश्चित रूप से युद्ध का कारण बनती है जो द्वितीय विश्वयुद्ध के रूप में सामने आई।
हिटलर ने भी प्रथम विश्वयुद्ध से उपजी आर्थिक कठिनाइयों एवं वर्साय संधि की शर्तों के अनुसार जर्मनी के आर्थिक दोहन से जनित असंतोष का लाभ उठाकर 1933 ई. में सत्ता ग्रहण की। हिटलर युद्ध, क्रूरता एवं व्यक्तिगत शासन, उग्र राष्ट्रीयता एवं नस्लवाद को घोर समर्थक था, एवं ‘लोकतंत्र, समाजवाद, अन्तर्राष्ट्रीयता एवं शांति का कट्टर विरोधी था। उसे सेना, पूंजीपतियों एवं जनतंत्र विरोधी राजनीतिज्ञों का समर्थन प्राप्त था। उसने महायुद्ध में पराजय का बदला लेने, वर्साय की संधि की कड़ी शर्तों को अस्वीकार करने तथा देश की आर्थिक एवं सामाजिक संकट से मुक्त करने का वादा किया। इसके लिए उसने जर्मनी के सैन्यीकरण का कार्यक्रम शुरू किया एवं विस्तारवादी नीति अख्तियार की जिसके कारण द्वितीय विश्वयुद्ध हुआ।
गुटबंदी- गुटबंदी एवं सैनिक संधियाँ भी द्वितीय विश्वयुद्ध के लिए जिम्मेदार थीं। शान्ति बनाये रखने के नाम पर यूरोप में अनेक संधियाँ हुईं, जिनके परिणामस्वरूप यूरोप पुनः दो गुटों में बँट गया। एक गुट का नेता जर्मनी एवं दूसरे गुट का नेता फ्रांस बना। इस गुटबंदी के पीछे सैद्धान्ति समानता एवं हितों की एकता थी। इटली, जापान एवं जर्मनी एक सिद्धान्त (फॉसिज्म) में विश्वास करते थे एवं उनकी नीति भी समान थी- प्रसारवादी ये राष्ट्र वर्साय की संधि से क्षुब्ध थे एवं उसके उल्लंघन में ही अपना राष्ट्रीय हित एवं गौरव समझते थे। अन्ततः अन्तर्राष्ट्रीय प्रतिद्वन्द्विता के कारण दोनों गुटों ने उसे अपनी-अपनी तरफ मिलाने की कोशिश की अन्त में जर्मनी को इस प्रयास में सफलता मिली एवं सोवियत संघ उस गुट में सम्मिलित हो गया। दो गुटों की मौजूदगी के कारण यूरोप का वातावरण दूषित हो गया एवं दोनों गुटों में मन मुटाव बढ़ने लगा। इस दृष्टि से गुटबन्दियाँ द्वितीय विश्वयुद्ध का कारण बनी।
हथियार बंदी- गुटबंदी से प्रत्येक गुट को एक-दूसरे से मजबूत बनाने की जरूरत पड़ी जिसके लिए दोनों गुट हथियारबंदी करने लगे। प्रत्येक देश का रक्षा बजट बढ़ने लगा एवं नए-नए हथियारों से प्रत्येक देश अपनी सेना को सुसज्जित करने लगा। नौ और वायुसेना पर भी जोर दिया जाने लगा। के इस सैनिक तैयारी ने असुरक्षा की भावना का संचार किया। हथियार बन्दी द्वितीय विश्वयुद्ध लिए बहुत हद तक जिम्मेवार थी।
राष्ट्रसंघ की असफलता- प्रथम विश्वयुद्ध के बाद राष्ट्रसंघ की स्थापना भावी युद्धों को रोकने के उद्देश्य से की गयी थी। लेकिन राष्ट्रसंघ की भ्रामक शक्तियाँ और सदस्य राष्ट्रों में सहयोग का अभाव द्वितीय विश्वयुद्ध के लिए उत्तरदायी सिद्ध हुए। राष्ट्रसंघ ने छोटे-छोटे राज्यों के मामलों को तो आसानी से सुलझा दिया, लेकिन बड़े राष्ट्रों के मामलों में उसने स्वयं को अक्षम पाया। अन्ततः उसे इस कार्य में अन्य राष्ट्र नैतिक एवं भौतिक मदद देने के लिए भी तैयार नहीं हुए। इस प्रकार किसी सक्रिय अन्तर्राष्ट्रीय संस्था के अभाव में विभिन्न राष्ट्रों के झगड़ों को सुलझाना कठिन हो गया। अन्ततः द्वितीय विश्व युद्ध हुआ।
आर्थिक संकट- प्रथम विश्वयुद्ध के बाद सभी देशों की आर्थिक स्थिति संकट में पड़ गई थी। इससे उद्धार का कोई रास्ता भी निकट भविष्य में दृष्टिगोचर नहीं हो रहा था। सभी देशों में राष्ट्रीय भावना फैल रही थी, लोग अपने देश में बनी चीजों का व्यवहार करने लगे थे। अतः नियति की मात्रा में बड़ी कमी आ गई थी। इंग्लैण्ड आदि देशों में बड़े-बड़े कारखाने बन्द होने लगे थे। उनके यहाँ ज माल बने हुए थे, उनका कुछ भी उपयोग नहीं हो रहा था। अतः वे लोग भी युद्ध के लिए लालायित थे, ताकि उनका माल खप जाए एवं कारखाने बंद न हों।
नवीन विचार धाराएँ- प्रथम विश्व युद्ध के बाद यूरोप में नाजीवाद एवं फासीवाद का उदय हुआ। इन नए सिद्धान्तों के आधार पर जर्मनी में हिटलर के नेतृत्व में नाजी सरकार बनी एवं फासीवाद के सिद्धान्त के आधार पर मुसोलिनी के नेतृत्व में इटली में सरकार बनी। ये दोनों सिद्धान्त राष्ट्र के गौरव एवं शक्ति पर बल देते थे। फलतः इन दोनों राष्ट्रों ने दूसरे राष्ट्रों पर आक्रमण करना शुरू किया। एवं विश्वयुद्ध को आसन्न बना दिया।
साम्राज्यवाद- द्वितीय विश्व युद्ध का सबसे प्रमुख कारण साम्राज्यवाद था। जापान, जर्मनी एवं इटली अपने साम्राज्य का विस्तार कर अपनी आर्थिक परेशानी को दूर करना चाहते थे एवं राष्ट्र का नाम गौरवान्वित करना चाहते थे।
शक्ति-संतुलन में परिवर्तन- जर्मनी इटली एवं जापान की मित्रता एवं इन देशों का शस्त्रीकरण एवं विस्तारवादी नीति पश्चिमी प्रजातांत्रिक देशों पर गम्भीर आघात था। इन उपलब्धियों को पेरिस शांति-समझौते के देश रोकने में अक्षम थे। तुष्टिकरण की नीति को मानने वाले देश तब बिल्कुल असहाय हो गए, जब धुरी राष्ट्रों ने सक्रिय आक्रामक नीति का अनुसरण कर विजय हासिल करना प्रारंभ किया। कुछ यूरोपीय लोगों की मान्यता है कि जर्मनी के साथ अन्याय हुआ था एवं अमेरिका का रूस के राष्ट्रसंघ से अलग रहने से यूरोप के शक्ति-संतुलन बिगड़ गया। धुरी राष्ट्रों के विरुद्ध खड़े इंग्लैण्ड एवं फ्रांस अपने प्रतिद्वन्द्वियों के समान शक्तिशाली नहीं थे।
तुष्टिकरण की नीति- इंग्लैण्ड की तुष्टिकरण की नीति भी द्वितीय विश्वयुद्ध के बहुत हद तक जिम्मेवार थी। वास्तव में पश्चिमी पूँजीवादी देश साम्यवादी रूस को नफरत की निगाह से देखते थे। वे चाहते थे कि हिटलर किसी तरह सोवियत संघ पर आक्रमण कर दें। जिससे दोनों की शक्ति कमजोर हो जाए एवं तब वे हस्तक्षेप करके दोनों की शक्ति को बर्बाद कर दें। इसलिए शुरू में हिटलर की माँगों को पाश्चात्य देश मानते रहे एवं जब उन्होंने देखा कि हिटलर की माँगें समाप्त नहीं होने वाली है तो वे इंग्लैण्ड पर हिटलर के आक्रमण के बाद युद्धभूमि में कूदे।
द्वितीय विश्वयुद्ध 1939 से 1945 तक चला एवं काफी धन-जन संहार के बाद धुरी राष्ट्रों की पराजय के बाद 1945 ई. में समाप्त हुआ।
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