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प्रथम विश्वयुद्ध के क्या परिणाम थे ?| what were the results of the first world war?

प्रथम विश्वयुद्ध के क्या परिणाम थे ?
प्रथम विश्वयुद्ध के क्या परिणाम थे ?
प्रथम विश्वयुद्ध के क्या परिणाम रहे एवं वे परिणाम किस स्तर तक स्थायी साबित हुए।

प्रथम विश्वयुद्ध के क्या परिणाम थे ?

प्रथम विश्वयुद्ध के क्या परिणाम थे ?– प्रथम विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद उसके भयंकर एवं दूरगामी परिणाम भी सामने आए। ये हैं-

साम्राज्य विघटन- प्रथम विश्वयुद्ध का तात्कालिक परिणाम हुआ कि इसने जर्मनी, ऑस्ट्रिया एवं तुर्की के साम्राज्यों को छिन्न-भिन्न कर दिया। इन तीनों साम्राज्यों के भंग होने से यूरोप में अनेक नए देशों का उदय हुआ, यथा युगोस्लाविया, हंगरी, रूमानिया इत्यादि।

मित्रराष्ट्रों को लाभ- इन तीनों साम्राज्यों के विघटन से मित्रराष्ट्रों अर्थात् इंग्लैण्ड, फ्रांस इत्यादि को काफी लाभ हुआ। मित्र राष्ट्र विजयी थे, अतः इन्होंने पराजित राज्यों के साम्राज्यों को हड़पा इराक एवं फिलीस्तीन पर इंग्लैण्ड एवं सीरिया तथा लेबनान पर फ्रांस ने मैनडेट प्रणाली के आवरण में अपना दखल जमाया। इन देशों को स्वतन्त्र होने में काफी समय लगा।

रूसी क्रांति- प्रथम विश्वयुद्ध के समय ही रूस में बोल्शेविक क्रांति हुई एवं वहाँ साम्यवादी सरकार बनी जिसने साम्राज्यवाद की निंदा की एवं रूसी साम्राज्य को विघटित किया। यह साम्यवादी सरकार पश्चिमी देशों के लिए सिरदर्द साबित हुई तथा इसको समाप्त करने के लिए हर सम्भव प्रयास उन्होंने किया। वास्तव में यह सरकार परतंत्र जातियों को वैचारिक तथा भौतिकवादी स्तर पर मदद करने लगी जिसके कारण पूँजीवादी देशों का चिंतित होना स्वाभाविक था। सभी परतंत्र जातियाँ अपनी *स्वतंत्रता के लिए सोवियत संघ की ओर मुखातिब हुई।

पूँजीवाद का रूप परिवर्तित- पूँजीवादी देशों में पूंजीवाद का स्वरूप परिवर्तित हुआ। प्रथम विश्व युद्ध के समय ये देश सैनिक सामग्री काफी मात्रा में नहीं उत्पादित कर सकते थे। इसका मुख्य कारण यह था कि काम करने लायक पुरुषों की संख्या कम हो गई थी। उपलब्ध सामग्रियों के सही ढंग से बंटवारे के लिए उन सरकारों को कठोर कदम उठाने पड़े। इतना ही नहीं, ये पूँजीवादी देश बाह्य होकर अपने उपनिवेशों को भी उद्योग बैठाने के लिए अनुमति देने लगे। भारत का प्रथम दौर का उद्योगीकरण इसी नीति का परिणाम था।

अमेरिका का महत्त्व बढ़ा- प्रथम विश्वयुद्ध के परिणाम स्वरूप यूरोपीय देशों का प्रभुत्व समाप्त हो गया। प्रथम विश्वयुद्ध में यूरोपी राज्यों के भारी मात्रा में कर्ज संयुक्त राज्य अमेरिका से लेना पड़ा। इस युद्ध के बाद सर्वप्रथम यूरोप के बाहर के व्यक्ति संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति वुडरो विल्सन का प्रभाव बढ़ा तथा पेरिस शांति सम्मेलन में विजयी एवं विजित राष्ट्र उसकी दुहाई देते रहे। प्रथम विश्व युद्ध के बाद अब तक के प्रभावशाली राष्ट्रों फ्रांस, इंग्लैण्ड, जर्मनी इत्यादि का महत्त्व घटा एवं इसकी जगह पर संयुक्त राष्ट्र अमेरिका एवं रूस का प्रभाव बढ़ा।

जापान एवं अन्य राज्यों में औद्योगीकरण- युद्ध के दौरान यूरोपीय राष्ट्र अपने बाजार में जरूरत के अनुसार सामान नहीं भेज पाए। परिणामतः जापान जैसे देशों को औद्योगीकरण का मौका मिला एवं उसने एशिया के देशों को अपना बाजार बनाया। ब्राजील एवं अर्जेंटीना को युद्ध के दौरान इंग्लैण्ड से रेल के कल पूर्जे नहीं मिलते थे। फलतः वे इसका उत्पादन स्वयं करने लगे। इससे अविकसित और यूरोप के बाहर के विकसित देशों को अपने उद्योगों को विकसित करने का अवसर प्राप्त हुआ।

मनुष्यों का विनाश- प्रथम विश्व युद्ध के चार वर्षों में कुल मिलाकर 40 लाख मनुष्य गए, 60 लाख व्यक्ति बुरी तरह घायल होकर सदा के लिए अपंग एवं पराश्रित हो गए। एक करोड़ तीन लाख व्यक्ति सामान्य रूप से घायल हुए नरसंहार की ऐसी रोमांचकारी घटना विश्व इतिहास में पहले नहीं घटी थी।

धन का विनाश- इस भीषण महायुद्ध में 32 राष्ट्रों ने मित्रराष्ट्रों की ओर से और चार राष्ट्रों ने जर्मनी की ओर से भाग लिया। संसार के केवल चौदह राष्ट्र इस युद्ध में तटस्थ रहे। विश्व के महान अर्थशास्त्रियों के हिसाब से इस महायुद्ध में अट्ठावन हजार पाँच सौ करोड़ रुपये व्यय हुए। इस महायुद्ध का औसत दैनिक व्यय 40 करोड़ रुपये तथा एवं अन्तिम वर्षों में यह व्यय 84 करोड़ रुपये तक बढ़ गया। इस खर्च के अतिरिक्त महायुद्ध में सम्पत्ति का विनाश 1, 32, 000 करोड़ रुपये तक पहुँच गया था।

धन के इस महान विनाश के कारण वस्तुओं के मूल्यों में भारी वृद्धि हुई। श्रमिकों की मजदूरी की दर ऊँची हो गई। पैदावार घट गई। मुद्रा का बुरी तरह अवमूल्यन प्रारम्भ हो गया। मुद्रा का मूल्य घट जाने से व्यापार में अव्यवस्था उत्पन्न हो गई।

उद्योग-धंधों की क्षति- महायुद्ध काल में अनेक उद्योग नष्ट हो गए। गोली बारी के कारण हजारों की संख्या में फैक्टरियों की मशीनें एवं इमारतें टूट गई। इस दृष्टि से सबसे अधिक क्षति सर्बिया, रूमानिया, बेल्जियम, फ्रांस एवं इंग्लैण्ड को उठानी पड़ी। युद्ध के बाद बहुत सी फैक्टरियाँ बंद हो गई, क्योंकि वे युद्ध का सामान तैयार करती थी। पर अब उनकी जरूरत न थी। इससे बेकारों की संख्या बढ़ी। वाणिज्य एवं व्यापार को भी धक्का लगा, क्योंकि यूरोप के विभिन्न देशों में बाहर से आने वाले माल पर रुकावटें लगा दी गई। इस क्षेत्र में सबसे अधिक दयनीय अवस्था जर्मनी एवं आस्ट्रिया की थी।

आर्थिक असंतुलन- महायुद्ध के बाद आर्थिक असंतुलन पैदा हुआ। कई यूरोपीय देशों में तो पुरुषों की कमी हो गई। पोलैण्ड की खाने ध्वस्त हो गई, फसलें मारी गई, रेल मार्ग छिन्न-भिन्न कर दिए गए। फ्रांस का भी यही हाल हुआ। युद्ध काल में हर देश की उत्पादन शक्ति असामान्य कामों में लगा दी गई। फलतः विश्व के आर्थिक संगठन को भारी धक्का लगा। शांति स्थापना के पश्चात् लोगों के पुनर्वास आदि की समस्या आ खड़ी हुई। फिर विस्थापितों को रोजी देने का प्रश्न सामने आया।

निरंकुश शासकों का अंत- महायुद्ध के बीच ही रूस में साम्यवादी क्रांति हुई जिसके परिणामस्वरूप वहाँ के जारशाही का अंत हो गया। महायुद्ध के अंत होते ही जर्मनी एवं आस्ट्रिया-हंगरी में गौरवशाही राजवंश का अंत हो गया। बुल्गेरिआ के राजा को भी राजसिंहासन त्यागना पड़ा। महायुद्ध के 7 वर्ष बाद तुर्की सुल्तान के निरंकुश शासन का भी अन्त हो गया। इस प्रकार महायुद्ध ने एक क्रांति का रूप धारण कर लिया जिसने निरंकुश शासन की तथा कथित भव्य इमारतों को धराशायी कर दिया।

गणराज्यों की स्थापना – महायुद्ध के प्रारंभ के समय केवल फ्रांस, स्विट्जरलैण्ड एवं पुर्तगाल में लोकतांत्रिक शासन था। परन्तु महायुद्ध के बाद पूरे यूरोप में लोकतांत्रिक शासन की बाढ़ सी आ गई। रूस, जर्मनी, पोलैण्ड, आस्ट्रिया, लिथुआनिया, लैटिविया, चेकोस्लोवाकिया, फिनलैण्ड, यूक्रेनिया आदि में लोकतंत्र स्थापना हुई।

अधिनायकवाद का उदय- महायुद्ध के बीच ही युद्ध का भली-भाँति संचालन करने के उद्देश्य से लगभग सभी यूरोपीय राज्यों की सरकारें असाधारण रूप से शक्तिशाली बन गई थी। महायुद्ध के बाद उत्पन्न असाधारण स्थिति के कारण सरकारों के लिए यह शक्ति अनावश्यक समझी जाने लगी। अनेक देशों के राजनीतिक नेता देश की भलाई, सुरक्षा एवं उन्नति की दुहाई देकर असीम अधिकारों का उपभोग करने लगे। अतएव इटली, स्पेन, जर्मनी, रूस इत्यादि देशों में प्रमुख राजनीतिक दलों का शासन स्थापित हुआ। इस प्रवृत्ति ने और ज्यादा विकसित होकर ‘फासिज्म’ का रूप धारण किया एवं मुसोलिनी तथा हिटलर के लिए मार्ग प्रशस्त किया।

राष्ट्रीय सिद्धान्तों की विजय- इस महायुद्ध का एक प्रमुख परिणाम राष्ट्रीयता के सिद्धान्तों की विजय के रूप में प्रकट हुआ वर्साय संधि परिषद ने एक कठोर सत्य के रूप में राष्ट्रीयता के सिद्धान्तों को स्वीकार किया एवं इसी सिद्धान्त के आधार पर यूरोप में 8 नए राज्यों का निर्माण किया गया। तब भी विश्व में अनेक देश बचे हुए थे, जहाँ इन सिद्धान्तों को मान्यता नहीं मिली। यूरोप में भी कुछ ऐसे प्रदेश थे। आयरलैण्ड, मिस्र, और भारत पर इंग्लैण्ड का आधिपत्य था। फिलीपीन अमेरिका के एवं कोरिया जापान के अधीन थे। अफ्रीका में यूरोप वासियों के बड़े उपनिवेश थे।

सम्पूर्ण विश्व प्रभावित – इस युद्ध ने दुनिया के बड़े-बड़े साम्राज्यों का अंत कर दिया, जैसे आस्ट्रिया, हंगरी एवं ओटोमन साम्राज्य यूरोप के शक्ति सन्तुलन के बिगड़ जाने से सारी दुनिया प्रभावित हुई। अब दुनिया के राजनीतिक, सैनिक, आर्थिक गुरुत्वाकर्षण का केन्द्र संयुक्त राज्य अमेरिका बन गया। यूरोप के कई मुख्य देश इस युद्ध में तबाह हो गए। दूसरी ओर एशिया में जापान एक शक्तिशाली साम्राज्य वादी देश के रूप में उभरा।

सामाजिक परिणाम- इस महायुद्ध के बाद राजनीति में सर्वहारा का महत्त्व काफी बढ़ गया, क्योंकि युद्ध के दौरान मजदूरों ने महत्त्वपूर्ण ‘रोल अदा किया था। रूस में तो पुरानी सामाजिक व्यवस्था का एकदम अंत हो गया। अब सामाजिक सुधार का काम जोरों से होने लगा। अन्तर्राष्ट्रीय मजदूर संगठन बने। स्त्रियों ने भी अपने अधिकारों के लिए विद्रोह किया। विभिन्न देशों के लोग युद्ध में सम्मिलित हुए थे, अतः उनके बीच सहयोग की भावना पनपी। काले-गोरे का भेद कम हुआ।

नवीन खोजें- इस युद्ध के समय कई नवीन खोजें हुई। इस युद्ध को ‘केमिस्टो’ का युद्ध कहा गया है। इसमें तरह-तरह की जहरीली गैसों का प्रयोग हुआ, इसलिए उन्हें कई तरह से विकसित किया गया। कई अच्छी दवाइयाँ बनायी गई। शल्य चिकित्सा सम्बन्धी भीकई प्रयोग किए गए।

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