विद्यालय प्रबन्ध के उद्देश्यों से आप क्या समझते हैं? विद्यालय प्रबन्ध की परिवर्तित होती अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
विद्यालय प्रबन्ध के उद्देश्य
प्रत्येक संस्था के अपने लक्ष्य और आदर्श हैं और उनकी सफलतापूर्वक प्राप्ति के लिए उचित प्रबन्ध की आवश्यकता होती है। विद्यालय एक महत्त्वपूर्ण सामाजिक संस्था है। अतः इसकी एक सुसंगठित प्रबन्धात्मक व्यवस्था होनी चाहिए। बिना किसी प्रभावशाली प्रबन्ध के विद्यालय जीवन में दुर्व्यवस्था एवं सम्भ्रान्ति फैल जाने की सम्भावना बनी रहती है। एक प्रभावशाली प्रबन्ध विद्यालय में उचित व्यवस्था करता है। यह उचित व्यक्तियों को उचित स्थान पर, उचित समय में, उचित ढंग से रखता है। विद्यालय प्रबन्ध के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित हैं-
1. शिक्षाविदों द्वारा बनाये गये लक्ष्यों की निष्ठापूर्वक पूर्ति- लोकतंत्र में शिक्षा को प्रजातांत्रिक आदर्शों की शर्ते पूरी करनी होती हैं। शैक्षिक प्रबन्ध को सामाजिक कूटनीतिज्ञता के रूप में लेना चाहिए। शैक्षिक प्रबन्ध की क्रिया विधिमूलक रूप में नहीं लेनी चाहिए।
2. मिल-जुलकर रहने की कला सिखाना- विद्यालय जीवन को इस प्रकार संगठित करना है कि जिससे बच्चे एक साथ रहने की कला को ग्रहण करने के लिए तैयार हो सकें। विद्यालय का अपना सामुदायिक जीवन होता है, जिसे एक उत्तम नागरिकता के प्रशिक्षण के क्षेत्र के रूप में प्रयोग में लाया जा सकता है।
3. स्कूल सम्बन्धी गतिविधियों तथा कार्यों का संचालन तथा संयोजन- विद्यालय जीवन को इस प्रकार संगठित करना है, जिससे शिक्षाशास्त्रियों द्वारा प्रतिपादित उद्देश्यों एंव गन्तव्यों को परिपक्व रूप देने के लिए आवश्यक है कि विविध योजनाओं तथा प्रक्रियाओं का संचालन इस ढंग से किया जाये कि उचित व्यक्ति को सुयोग्य एवं समुचित स्थान मिल सके ताकि कार्य समायानुसार होता रहे।
4. विद्यालय में सहयोग की भावना लाना तथा जटिल कार्यों की सुलभता- विद्यालय प्रबन्ध में सहयोग की भावना का अपना ही स्थान है। मानवीय स्तर पर शिक्षा प्रबन्ध सम्बन्ध बालकों अभिभावकों, शिक्षकों, नियुक्तिकर्ता एवं समाज से होता है। साधनों के स्तर पर इसका सम्बन्ध सामन्त्री एवं उसके उपयोग से होता है, साथ ही सिद्धान्तों, परम्पराओं, नियमों, कानून आदि से भी इसका नाता जुड़ा हुआ होता है। विद्यालय सम्बन्धी अन्य प्रकार की समस्याओं का समाधान करना होता है। विद्यालय प्रबन्ध अपने सकारात्मक रूप से कार्यक्रम को एक विशेष दिशा देकर जटिल कार्य को सुलभ बनाकर भव्य परिणाम सम्मुख प्रकट करता है।
5. विद्यालय को सामुदायिक केन्द्र के रूप में बनाना- विद्यालय में इस प्रकार के कार्यक्रम रखे जायें जिनके द्वारा छात्र तथा अभिभावक यह अनुभव करें कि विद्यालय उनका है। विद्यालय समाज-सेवा का केन्द्र है।
6. विद्यालय प्रबन्ध की परिवर्तित होती अवधारणा– परिवर्तन अनिवार्य है। विद्यालय की कार्य पद्धति एवं अवधारणा विशेष संस्कृति एवं परम्परा पर आधारित होनी चाहिए, न तो शिक्षा प्रणाली और न ही इसका प्रबन्ध आयात किया जाये। प्रमाणित एवं प्रभावशाली बनाने के लिए उन्हें देशज होना चाहिए। पिछले कई वर्षों में हमारे देश में क्रान्तिकारी परिवर्तन हुए हैं। इसी प्रकार हमारे विद्यालय प्रबन्ध की कार्य-पद्धति एवं लक्ष्यों को भी परिवर्तित आवश्यकताओं के अनुरूप होना चाहिए।
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