विद्यालय प्रबन्धन का अर्थ एवं परिभाषा बताते हुए इसकी विशेषताओं का विवेचन कीजिए। अथवा विद्यालय प्रबन्धन के प्रत्यय को स्पष्ट कीजिए।
विद्यालय प्रबन्धन का अर्थ
विद्यालय प्रबन्धन वह कला है, जिसके अन्तर्गत शिक्षा के विभिन्न उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु विद्यालय सम्बन्धी मानवीय और भौतिक तत्वों को व्यवस्थित किया जाता है। प्रायः लोग प्रबन्ध या व्यवस्थापन तथा प्रशासन शब्दों का प्रयोग समान अर्थ में करते हैं, परन्तु ऐसा नहीं है। प्रबन्ध के अर्थ के सम्बन्ध में अनेक दृष्टिकोण प्रचलित हैं। सामान्यतः प्रबन्ध का अर्थ अन्य व्यक्तियों व कर्मचारियों से कार्य करवाने से है। प्रबन्ध का व्यापक अर्थ कला व विज्ञान के द्वारा कुशल तरीके से एक व्यवसाय, उद्योग या संस्था के उद्देश्यों की प्राप्ति में योगदान करना है। प्रबन्ध से सामान्यतः अर्थ यह लिया जाता है कि यह सामान्य लक्ष्यों की पूर्ति के लिए संस्था के कार्यकर्ताओं के वैयक्तिक व सामूहिक प्रयासों के नियोजन, संगठन, निर्देशन, समन्वय व नियंत्रण से सम्बन्धित है।
साधारण शब्दों में, व्यक्तियों के समूह से कार्य कराना है। एक विद्वान ने प्रबन्ध के अर्थ को स्पष्ट करने के लिए अंग्रेजी के शब्द Management की व्याख्या इस प्रकार की है- Management-Tactfully। इस प्रकार प्रबन्धन का अर्थ व्यक्तियों से काम लेना है। प्रबन्ध के अर्थ को और अधिक स्पष्ट करने के लिए कुछ विद्वानों ने भिन्न-भिन्न परिभाषाएँ दी हैं, जिसका विवरण निम्न है-
डॉ. स्प्रिगल के अनुसार-“प्रशासन एक निर्धारणात्मक कार्य है। इसके विपरीत प्रबन्ध एक कार्य सम्पादन प्रकार्य है, जिसका प्रमुख कार्य प्रशासन द्वारा निर्धारित नीतियों को क्रियान्वित करना हैं।”
बेच के अनुसार- “प्रबन्ध एक सामाजिक प्रक्रिया है, जिसके अन्तर्गत एक प्रतिष्ठान की क्रियाओं के प्रभावी नियोजन एवं नियमन का उत्तरदायित्व सन्निहित है।”
विद्यालय प्रबन्धन की विशेषताएँ
विद्यालय प्रबन्ध की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं-
1. नियोजित प्रबन्ध– विद्यालय प्रबन्ध अथवा शैक्षिक प्रबन्ध एक नियोजित प्रबन्ध व्यवस्था है। इसमें सभी कार्य निश्चित तरीके से सम्पन्न किये जाते हैं अर्थात् सभी कार्य नियोजित या योजनाबद्ध तरीके से किये जाते हैं।
2. वैज्ञानिक दृष्टिकोण- आज का युग वैज्ञानिक है। इसलिए सभी अध्ययन व्यवस्था व प्रबन्ध में वैज्ञानिक दृष्टिकोण को अपनाया जाना जरूरी है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से तात्पर्य यह है कि प्रबन्ध में पूर्वाग्रहों से मुक्त रहकर वैज्ञानिक तरीके से विश्लेषण किया जाता है।
3. मानवीय दृष्टिकोण- अन्य प्रबन्धों में भी मानवीय दृष्टिकोण होता है, लेकिन शैक्षिक मानवीय दृष्टिकोण को ध्यान में रखना बहुत अधिक आवश्यक होता है, क्योंकि इसमें सारा करना है।” प्रबन्ध मानव (छात्र/छात्राओं) से सम्बन्धित होता है। अच्छे मानवीय सम्बन्धों के अभाव में शिक्षण संस्थाएँ व शिक्षा जगत् की उन्नति सम्भव नहीं है।
4. कार्यकुशलता में वृद्धि- शौक्षिक प्रबन्ध में इनसे जुड़े कर्मचारियों की कार्यकुशलता में वृद्धि किया जाना बहुत आवश्यक है। इसलिए अच्छे शैक्षिक प्रबन्ध की यह भी विशेषता है कि वह कार्यकुशलता में वृद्धि सम्बन्धी प्रयास अनवरत रखे।
5. उद्देश्य की निश्चितता- सभी प्रबन्ध अपना उद्देश्य रखते हैं। अतः शैक्षिक प्रबन्ध का भी निश्चित उद्देश्य होना चाहिए और यह उद्देश्य सभी को स्पष्ट होना बहुत आवश्यक है। उद्देश्य स्पष्ट होने पर उसकी प्राप्ति के लिए अच्छे प्रयास हो सकते हैं।
6. उपलब्ध साधनों का अधिकतम उपयोग- सभी प्रबन्ध की यह विशेषता है कि साधनों का अधिकतम उपयोग करें। यद्यपि हमारे देश में शिक्षा से सम्बन्धित उपलब्ध साधनों की काफी कमी है, लेकिन अच्छा प्रबन्ध वही है, जो उपलब्ध साधनों का अधिकतम उपयोग कर सके।
7. सहयोग की भावना- अच्छे प्रबन्ध के लिए यह भी आवश्यक है कि प्रबन्ध से जुड़े हुए सभी व्यक्तियों में सहयोग की भावना हो। इससे सभी व्यक्तिगत हितों से ऊपर उठकर सामूहिक हितों पर बल देने लगते हैं।
Important Links
- सोशल मीडिया का अर्थ एंव इसका प्रभाव | Meaning and effects of Social Media
- समाचार पत्र में शीर्षक संरचना क्या है? What is the Headline Structure in a newspaper
- सम्पादन कला का अर्थ एंव इसके गुण | Meaning and Properties of Editing in Hindi
- अनुवाद का स्वरूप | Format of Translation in Hindi
- टिप्पणी के कितने प्रकार होते हैं ? How many types of comments are there?
- टिप्पणी लेखन/कार्यालयी हिंदी की प्रक्रिया पर प्रकाश डालिए।
- प्रारूपण लिखते समय ध्यान रखने वाले कम से कम छः बिन्दुओं को बताइये।
- आलेखन के प्रमुख अंग | Major Parts of Drafting in Hindi
- पारिवारिक या व्यवहारिक पत्र पर लेख | Articles on family and Practical Letter
- व्यावसायिक पत्र की विशेषताओं का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
- व्यावसायिक पत्र के स्वरूप एंव इसके अंग | Forms of Business Letter and its Parts
- व्यावसायिक पत्र की विशेषताएँ | Features of Business Letter in Hindi
- व्यावसायिक पत्र-लेखन क्या हैं? व्यावसायिक पत्र के महत्त्व एवं उद्देश्य
- आधुनिककालीन हिन्दी साहित्य की प्रवृत्तियाँ | हिन्दी साहित्य के आधुनिक काल का परिचय
- रीतिकाल की समान्य प्रवृत्तियाँ | हिन्दी के रीतिबद्ध कवियों की काव्य प्रवृत्तियाँ
- कृष्ण काव्य धारा की विशेषतायें | कृष्ण काव्य धारा की सामान्य प्रवृत्तियाँ
- सगुण भक्ति काव्य धारा की विशेषताएं | सगुण भक्ति काव्य धारा की प्रमुख प्रवृत्तियाँ
- सन्त काव्य की प्रमुख सामान्य प्रवृत्तियां/विशेषताएं
- आदिकाल की प्रमुख प्रवृत्तियाँ/आदिकाल की विशेषताएं
- राम काव्य की प्रमुख प्रवृत्तियाँ | रामकाव्य की प्रमुख विशेषताएँ
- सूफ़ी काव्य की प्रमुख प्रवृत्तियाँ
- संतकाव्य धारा की विशेषताएँ | संत काव्य धारा की प्रमुख प्रवृत्तियां
- भक्तिकाल की प्रमुख विशेषताएँ | स्वर्ण युग की विशेषताएँ
- आदिकाल की रचनाएँ एवं रचनाकार | आदिकाल के प्रमुख कवि और उनकी रचनाएँ
- आदिकालीन साहित्य प्रवृत्तियाँ और उपलब्धियाँ
- हिंदी भाषा के विविध रूप – राष्ट्रभाषा और लोकभाषा में अन्तर
- हिन्दी के भाषा के विकास में अपभ्रंश के योगदान का वर्णन कीजिये।
- हिन्दी की मूल आकर भाषा का अर्थ
- Hindi Bhasha Aur Uska Vikas | हिन्दी भाषा के विकास पर संक्षिप्त लेख लिखिये।
- हिंदी भाषा एवं हिन्दी शब्द की उत्पत्ति, प्रयोग, उद्भव, उत्पत्ति, विकास, अर्थ,
- डॉ. जयभगवान गोयल का जीवन परिचय, रचनाएँ, साहित्यिक परिचय, तथा भाषा-शैली
- मलयज का जीवन परिचय, रचनाएँ, साहित्यिक परिचय, तथा भाषा-शैली
Disclaimer