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लैंगिक असमानता का क्या अर्थ है? |लैंगिक असमानता के प्रकार | लैंगिक विभिन्नता पर निबन्ध

लैंगिक असमानता का क्या अर्थ है?
लैंगिक असमानता का क्या अर्थ है?

लैंगिक असमानता का क्या अर्थ है? इसके प्रकार का वर्णन कीजिए। अथवा लैंगिक विभिन्नता पर एक निबन्ध लिखिए।

लैंगिक असमानता- पुल्लिंग तथा स्त्रीलिंग एक जैविक तथ्य है। यदि इस तथ्य के साथ किसी प्रकार की असमानता जोड़ दी जाती है तो यह एक सामाजिक तथ्य बन जाता है जिसे लैंगिक असमता कहा जाता है। अंग्रेजी के शब्द सेक्स तथा जेण्डर हेतु हिन्दी में लिंग’ शब्द का ही प्रयोग होता है जिसके कारण बहुधा इन्हें एक ही मान लिया जाता है। वास्तव में, दोनों में बहुत अन्तर है। सेक्स शब्द से अभिप्राय स्त्रियों और पुरुषों के उन जैविक एवं भौतिक लक्षणों से है जिनका निर्धारण जन्म से ही हो जाता है। जब हम स्त्री या पुरुष की बात करते हैं तो सम्पूर्ण विश्व में इसका अर्थ उन शारीरिक लक्षणों से लगाया जाता है जो दोनों को एक-दूसरे से अलग करते हैं।

लिंग के विपरीत जेण्डर एक सामाजिक-सांस्कृतिक तथ्य है जिसे हम लिंग की सामाजिक रचना भी कह सकते हैं। यह किसी प्राकृतिक प्रक्रिया का परिणाम न होकर सामाजिक संरचना द्वारा निर्मित प्रक्रियाओं की सामाजिक रचना होती है। विभिन्न समाजों में सामाजिक-सांस्कृतिक अन्तर होने के कारण जेण्डर के रूप में लिंग की यह रचना भिन्न-भिन्न प्रकार की हो सकती है। इसीलिए विभिन्न समाजों में अथवा एक ही समाज के विभिन्न युगों में जेण्डर से सम्बन्धित भूमिकाओं में भी अन्तर पाया जाता है। इस नाते जेण्डर एक स्थायी एवं अपरिवर्तनीय सामाजिक रचना नहीं है। जेण्डर पर आधारित पहचान गतिशील होती है तथा इसे बनाए रखने में अनेक कारकों की निरन्तर अन्तक्रिया उत्तरदायी मानी जाती है। इन कारकों में सामाजिक, राजनैतिक, लैंगिक, आर्थिक तथा ऐतिहासिक प्रमुख हैं। जेण्डर पर आधारित वर्गीकरण का आधार लिंग पर आधारित श्रम-विभाजन है जिसके आधार पर यह परिभाषित किया जाता है कि स्त्रियों के लिए कौन-सा श्रम वांछनीय है तथा पुरुषों के लिए कौन-सा।

लिंग की सामाजिक रचना होने के नाते जेण्डर से अभिप्राय लिंग के अनुरूप किए जाने वाले व्यवहार, भूमिकाओं, प्रत्याशाओं तथा समाज में की जाने वाली क्रियाओं से है। प्रत्येक समाज पुरुष एवं स्त्री से अलग व्यवहार की आशा करता है, उनकी भूमिकाओं, क्रियाओं एवं गतिविधियों में भी पाया जाता है। अधिकांश समाजों में परम्परागत रूप से लिंग के आधार पर श्रम-विभाजन पाया जाता था जिसके अनुसार स्त्रियों की भूमिका घर की चहारदीवारी के भीतर सीमित कर दी गई थी। पुरुष की भूमिका बाहर जाकर कार्य करने की रही है। इस प्रकार कहा जा सकता है कि समाजशास्त्रीय भाषा में जेण्डर से सम्बन्धित भूमिका से अभिप्राय विभिन्न संस्कृतियों में लिंग के अनुरूप किए जाने वाले व्यवहार प्रतिमानों से है।

अतः यह कहा जा सकता है कि लैंगिक असमता वर्तमान समय में जीवन का सार्वभौमिक तत्व बन गया है। विश्व के अनेक समाजों में, विशेषकर विकासशील देशों में, स्त्रियों के साथ समाज में प्रचलित विभिन्न कानूनों, रूढ़िगत नियमों के आधार पर विभेद किया जाता है तथा उनको पुरुषों के समान राजनीतिक तथा सामाजिक अधिकारों से वंचित किया जाता है। स्त्री या फेमिनिस्ट विद्वानों के अनुसार लैंगिक असमता को स्त्री-पुरुष विभेद के सामाजिक संगठन अथवा स्त्री-पुरुष के मध्य असमान सम्बन्धों की व्यवस्था के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।

पितृसत्तात्मक सामाजिक संरचनाएँ एवं संस्थाएँ उन मूल्य व्यवस्थाओं एवं सांस्कृतिक नियमों द्वारा सुदृढ़ होती हैं जो स्त्रियों की हीन भावना को प्रचारित करती हैं। प्रत्येक संस्कृति में अनेक प्रथाओं के ऐसे उदाहरण विद्यमान हैं जो स्त्रियों को दिए जाने वाले निम्न मूल्य व स्थिति को परिलक्षित करते हैं। पितृसत्तात्मकता स्त्रियों को अनेक प्रकार से शक्तिहीन बना देती है। इनमें स्त्रियों के पुरुषों की तुलना में निम्न होने, उन्हें साधनों तक पहुँचने से रोकने तथा निर्णय लेने वाले पदों में सहभागिता को सीमित करने जैसी परिस्थितियाँ प्रमुख हैं। नियन्त्रण के यह स्वरूप स्त्रियों को सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक प्रक्रियाओं से दूर रखने में सहायता प्रदान करते हैं। स्त्रियों की अधीनता, सामाजिक-आर्थिक परिस्थिति (जैसे उनके स्वास्थ्य, आय एवं शिक्षा का स्तर) तथा उनके पद अथवा स्वायत्तता एवं अपने जीवन पर नियन्त्रण के अंश के रूप में देखी जा सकती है।

लैंगिक असमानता के प्रकार

(1) घरेलू असमता-परिवार अथवा घर के अन्दर ही लैंगिक सम्बन्धों में अनेक प्रकार की मौलिक असमानताएँ पाई जाती हैं। घर की सम्पूर्ण देख-रेख से लेकर बच्चों के पालन-पोषण का पूरा दायित्व स्त्रियों का होता है। अधिकांश देशों में पुरुष इन कार्यों में स्त्रियों की किसी प्रकार की सहायता नहीं करते हैं। पुरुषों का कार्य घर से बाहर काम करना माना जाता है। यह एक ऐसा श्रम-विभाजन है जो स्त्रियों को पुरुषों के अधीन कर देता है।

(2) विशेष अवसर असमता-यूरोप तथा अमेरिका जैसे अत्यधिक विकसित एवं अमीर देशों के साथ-साथ अधिकांश अन्य देशों में उच्च शिक्षा तथा व्यावसायिक प्रशिक्षण में आर्थिक लैंगिक पक्षपात स्पष्टतया देखा जा सकता है।

(3) व्यावसायिक असमता-व्यावसायिक असमता भी लगभग सभी समाजों में पाई जाती है। जापान जैसे देश में, जहाँ जनसंख्या को उच्च शिक्षा प्राप्त करने एवं अन्य सभी प्रकार की मौलिक सुविधाएँ उपलब्ध हैं, वहाँ पर भी रोजगार एवं व्यवसाय प्राप्त करना स्त्रियों के लिए पुरुषों की तुलना में काफी कठिन कार्य माना जाता है।

(4) स्वामित्व असमता-अनेक समाजों में सम्पत्ति पर स्वामित्व भी पुरुषों एवं स्त्रियों में असमान रूप से वितरित है। मौलिक घरेलू एवं भूमि सम्बन्धी स्वामित्व में भी स्त्रियाँ पुरुषों की तुलना में काफी पिछड़ी हुई हैं। इसी के परिणामस्वरूप स्त्रियाँ वाणिज्यकीय, तथा कुछ सामाजिक क्रियाओं से वंचित रह जाती हैं

(5) प्राकृतिक असमता-गर्भ में ही बच्चे के लिंग को ज्ञात करने सम्बन्धी आधुनिक तरीकों की उपलब्धता ने लैंगिक असमता के इस रूप को जन्म दिया है। लिंग परीक्षण द्वारा यह पता लगाकर कि होने वाला शिशु लड़की है गर्भपात करा दिया जाता है। अनेक देशों में, विशेष रूप से पूर्व एशिया, चीन एवं दक्षिण कोरिया में, साथ-ही-साथ सिंगापुर तथा ताईवान के अतिरिक्त भारत एव दक्षिण एशिया में भी यह प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है। यह उच्च तकनीकी पर आधारित असमता है।

(6) मौलिक सुविधा असमता-मौलिक सुविधाओं की दृष्टि से भी अनेक देशों में पुरुषों एवं स्त्रियों में असमता स्पष्टतया देखी जा सकती है। कुछ वर्ष पहले तक अफगानिस्तान में लड़कियों की शिक्षा पर पाबन्दी थी। एशिया तथा अफ्रीका के अनेक देशों के साथ-साथ लैटिन अमेरिका में लड़कियों को लड़कों की तुलना में शिक्षा सुविधाएँ बहुत कम उपलब्ध हैं। इसके अतिरिक्त अनेक अन्य मौलिक सुविधाओं के अभाव के कारण स्त्रियों को अपनी प्रतिभा प्रदर्शित करने के अवसर ही प्राप्त नहीं हो पाते हैं और न ही वे समुदाय में अनेक कार्यक्रमों में सहभागिता कर सकती हैं।

(7) असमता-विश्व के अनेक क्षेत्रों में स्त्रियों एवं पुरुषों में असमता का एक बर्बर प्रकार सामान्यतया स्त्रियों की उच्च मर्त्यता दर में परिलक्षित होता है जिसके परिणामस्वरूप कुल जनसंख्या में पुरुषों की संख्या अधिक हो जाती है। मर्त्यता असमता अत्यधिक मात्रा में उत्तरी अफ्रीका तथा एशिया (चीन एवं दक्षिण एशिया सहित) में देखी जा सकती है।

भारत में लैंगिक असमानता को कम करने हेतु सुझाव दीजिए।

भारत में लैंगिक असमानता के स्वरूप

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