निर्देशात्मक तथा अनिर्देशात्मक परामर्श में अन्तर | difference between directive counselling and non directive counselling in Hindi
निर्देशीय तथा अनिर्देशीय दोनों प्रकार के परामर्श के लक्ष्य तो एक ही हैं, किन्तु दोनों की प्रक्रिया में भिन्नता होती है। इस अन्तर को निम्न सारणी द्वारा वर्णित किया जा सकता है-
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- निर्देशात्मक परामर्श- मूलभूत अवधारणाएँ, सोपान, विशेषताएं, गुण व दोष
- अनिदेशात्मक परामर्श- महत्व, विशेषताएं, अवधारणा व दोष/सीमाए
निर्देशात्मक परामर्श | अनिर्देशात्मक परामर्श |
1. यह परामर्शदाता केन्द्रित होता है। | 1. यह प्रार्थी केन्द्रित होता है। |
2. इसमें परामर्शदाता के विचारों को अधिक मान्यता दी जाती है। | 2. इसमें प्रार्थी की बातों तथा उसके व्यवहार पर अधिक ध्यान दिया जाता है। |
3. इसमें विश्लेषण की प्रधानता होती है। | 3. इसमें संश्लेषण को अधिक महत्त्व दिया जाता है। |
4. इसमें कम समय लगता है। | 4. इसमें अधिक समय की आवश्यकता होती है। |
5. इसमें संवेगात्मक गतिविधियों का विशेष महत्त्व नहीं होता है। | 5. इसमें संवेगों पर ध्यान दिया जाता है। |
6. यह समस्या प्रधान होती है। | 6. इसमें समस्या का समाधान प्रार्थी स्वयं करने का प्रयत्न करता है। |
7. यह बौद्धिक क्रियाओं पर आधारित है। | 7. यह व्यावहारिक क्रियाओं पर आधारित होता है। |
8. इसमें प्रार्थी के व्यक्तिगत इतिहास का महत्त्व होता है। | 8. इसमें इतिहास पर न जाकर वर्तमान समस्या पर जोर रहता है। |
9. इसमें परामर्शदाता प्रायः नेतृत्व करने लगता है। | 9. इसमें परामर्शदाता निरपेक्ष भाव से प्रार्थी की सहायता करता है। |
10. इसमें परिवेश का प्रभाव पड़ता है। | 10. इसमें परिवेश के प्रति अधिक सचेत न रहकर स्वतन्त्र चिन्तन किया जाता है। |
11. यह प्रार्थी की क्षमताओं को सीमित महत्त्व देता है। | 11. इसमें प्रार्थी के अन्दर छिपी निर्णय लेने की क्षमता को जागृत किया जाता है। |
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