संग्रही अथवा समाहारक परामर्श से क्या आशय है?
संग्रही अथवा समाहारक परामर्श (Eclectic Counselling)- संग्रही परामर्श को समन्वित, समाहारक, मध्यमार्गीय तथा मिनी आदि नामों से भी जाना जाता है। संग्रही परामर्श निर्देशात्मक तथा अनिदेशात्मक परामर्श के बीच की कड़ी है। इसके मुख्य प्रवर्तक एफ0सी0 थोर्न एवं ऐलन बोर्डिन हैं।
इसमें किसी एक उपबोधन अर्थात् निर्देशित अथवा अनिर्देशीय विधि को अपनाना उचित नहीं माना जाता। परामर्शदाता कई बार न तो निर्देशीय परामर्श की विचारधारा से सहमत होता है न ही अनिर्देशीय परामर्श की विचारधारा से। ऐसी स्थिति में उन्होंने उपबोधन के एक अन्य प्रकार को विकसित किया है जिसे समन्वित परामर्श या संग्रही परामर्श अथवा समाहारक परामर्श के नाम से जाना जा सकता है। यह विचारधारा निदेशात्मक एवं अनिदेशात्मक परामर्श विचारधाराओं के बीच का मार्ग है। इस कारण इसे मध्यवर्गीय या मिश्रित उपबोधन भी कहा जाता है।
थोर्न महोदय का कहना है कि- “एक उपबोधक को दोनों ही विधियों में निपुण होना चाहिए ताकि जिस प्रकार का उपबोधित व्यक्ति हो उसी प्रकार की विधि का उपयोग किया जा सके।”
यह परामर्श दोनों ही का मिश्रित रूप है इस प्रकार के परामर्श में परामर्शदाता न अधिक सक्रिय रहता है और न ही निष्क्रिय होता है। व्यक्ति के व्यक्तित्व का अध्ययन एवं उसकी आवश्यकताओं की जानकारी परामर्शदाता द्वारा ही की जाती है। इसके पश्चात् परामर्शदाता उन विधियों को चयनित करता है, तो सेवार्थी के लिए अधिक लाभकारी या सहायक रहती हैं।
संग्रही परामर्श में प्रविधियाँ परिस्थिति एवं सेवार्थी के अनुसार की उपयुक्त ही जाती है। इस प्रकार के परामर्श में पुनः विश्वास सूचना प्रदान करना (Giving information), केस हिस्ट्री (Case History), परीक्षण (Testing) आदि प्रविधियों का प्रयोग किया जाता है।
समाहारक परामर्श में दोनों परामर्शदाता एवं प्रार्थी दोनों ही सक्रिय और सहयोगात्मक रूप से कार्य करते हैं। दोनों ही आपस में वार्तालाप करते हैं तथा संयुक्त रूप से समस्या का समाधान करते हैं।
संग्रही परामर्श के सोपान (Steps in Eclectic Counselling)
(1) आवश्यकता एवं विशेषताओं का अध्ययन- प्रथम सोपान में परामर्शदाता उपबोध्य की वास्तविक आवश्यकताओं के विषय में जानकारी करता है तथा व्यक्ति के व्यक्तित्व के विषय में जानकारी एकत्रित करता है।
(2) प्रविधियों को चुनना- इस सोपान के अन्तर्गत प्रार्थी की आवश्यकतानुसार विधियों का चयन करके उनका उपयोग किया जाता है। इन विधियों का उपयोग प्रार्थी की आवश्यकता के अनुरूप ही किया जाता है।
(3) प्रविधियों का उपयोग करना- चयनित प्रविधियों का उपयोग विशिष्ट परिस्थितियों में किया जाता है। जिन प्रविधियों को चुना जाता है। उनकी उपयोगिता प्रार्थी की परिस्थिति के अनुसार ही देखी जाती है।
(4) प्रभावशीलता का मूल्यांकन- इसके अन्तर्गत उपयोग की गई प्रविधियों की प्रभावशीलता का मूल्यांकन विभिन्न विधियों द्वारा किया जाता है।
(5) परामर्श की तैयारी- इस चरण के अन्तर्गत प्रार्थी को यथोचित परामर्श तथा मार्ग-दर्शन के लिए वांछनीय तैयारी की जाती है।
(6) सेवार्थी एवं अन्य व्यक्ति के विचार को प्राप्त करना- परामर्श सम्बन्धी कार्यक्रम एवं अन्य आवश्यक उद्देश्यों एवं विषयों पर प्रार्थी एवं उससे सम्बन्धित अन्य व्यक्तियों की राय प्राप्त की जाती है।
संग्रही परामर्श की विशेषताएँ (Characteristics of Eclectic Counselling)-
इसकी प्रमुख विशेषताओं एवं गुणों का वर्णन निम्नलिखित है-
(1) संग्रही परामर्श में वस्तुनिष्ठ एवं समन्वयपरक विधियों का प्रयोग किया जाता है।
(2) परामर्श के प्रारम्भ में सामान्य रूप से उन प्रविधियों का प्रयोग किया जाता है जिसमें उपबोध्य की भूमिका सक्रिय एवं परामर्शदाता की निष्क्रिय भूमिका होती है।
(3) परामर्श की विधि का प्रयोग करते समय अल्पव्यय के सिद्धान्त का ध्यान रखा
(4) परामर्शदाता में समस्त प्रविधियों एवं विधियों का प्रयोग करने के लिए अपेक्षित से व्यावसायिक दक्षता व कुशलता होनी चाहिए।
(5) संग्रही परामर्श के अन्तर्गत प्रार्थी की आवश्यकता को ध्यान में रखकर निदेशात्मक या अनिदेशात्मक विधियों के प्रयोग करने का निर्णय लिया जाता है।
(6) संग्रही परामर्श के अन्तर्गत कार्य-कुशलता एवं उपचार प्राप्त कराने को विशिष्ट
(7) प्रार्थी को अपेक्षित अवसर उपलब्ध कराने पर ध्यान दिया जाता है ताकि वह स्वयं समस्या का समाधान कर सके।
(8) संग्रही परामर्श में किसी भी विधि का प्रयोग किया जाए, लेकिन आवश्यक यह है कि प्रार्थी में अन्तर्दृष्टि उत्पन्न हो तथा वह स्वयं अपनी समस्या निवारण कर सके।
(9) समस्या निवारण के पश्चात् निर्णय कर सके अनुसरण करके समाज व्यापार शिक्षा में अपने आपको समायोजित कर सके तथा अपना और समाज का उत्थान कर सके।
संग्रही/परामर्श की सीमाएँ (Limitations of Electric Counselling)-
(1) संग्रही परामर्श की युक्तियाँ अस्पष्ट एवं अवसरवादी होती हैं।
(2) निदेशात्मक एवं अनिदेशात्मक दोनों प्रकार के परामर्शी को मिश्रित नहीं किया जा सकता है।
(3) उपबोध को कितनी स्वतन्त्रता प्रदान की जाए इसके विषय में कोई निश्चित नियम निर्धारित नहीं है।
(4) संग्रही परामर्श का विरोध होने के बावजूद यह प्रभाव लक्ष्य एवं व्यावहारिकता की दृष्टि से महत्वपूर्ण है।
(5) परामर्शदाता में व्यावसायिक दक्षता तथा समायोजन की योग्यता का होना परम आवश्यक है।
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