सहभागिक अवलोकन का अर्थ और परिभाषा
सहभागिक अवलोकन का अर्थ – सहभागिक अवलोकन अनियंत्रित अवलोकन का ही एक प्रकार है। 1942 में प्रोफेसर किण्डमैन ने सबसे पहले इस विधि का प्रयोग किया था।
सहभागिक अवलोकन अनुसंधान की वह विधि है जिसके अन्तर्गत अवलोकनकर्ता उस समूह का अंग बन जाता है जिसका वह अवलोकन कर रहा है। अवलोकनकर्ता एक अपरिचित व्यक्ति न रहकर उस समूह का एक अस्थायी सदस्य बन जाता है और समूह की सभी क्रियाओं में के सदस्य के रूप में भागीदार बनता है, साथ-ही-साथ अवलोकन भी करता है।
श्रीमती पी. वी. यंग ने इस संबंध में लिखा है कि, “सहभागी अवलोकनकर्ता सामान्यतः अनियंत्रित अवलोकन का प्रयोग करते हुए उस समूह के जीवन में रहता है या भाग लेता है जिसका वह अध्ययन कर रहा है।
एम. एच. गोपाल के अनुसार, “यह अवलोकन इस मान्यता पर आधारित है कि किसी घटना का निर्वचन (Interpretation) उस समय अधिक विस्तृत एवं विश्वसनीय हो सकता है, जबकि अनुसंधानकर्ता उस परिस्थिति की गहराई में पहुंच जाता है।”
प्रो. गुडे एवं हॉट ने कहा है, “इस प्रणाली का प्रयोग उस समय किया जाता है, जब अन्वेषणकर्ता अपने को उस समूह का सदस्य स्वीकार किये जाने योग्य बना लेता है।”
विशेषतायें- सहभागिक अवलोकन की प्रमुख विशेषतायें निम्न हैं-
1. इसमे अवलोकनकर्ता अध्ययन की जाने वाली इकाइयों जीवन और कार्यों में क्रियाशील सदस्य के रूप में भाग लेता है तथा घुल-मिल जाता है।
2. अध्ययन की जाने वाली इकाइयों के अनुसार ही सुख और दुःख की अनुभूति करता है और समूह को अपना मानता है।
सहभागिक अवलोकन के लाभ अथवा गुण
सामाजिक अनुसंधान में सहभागिक अवलोकन का अत्यधिक महत्व है। इस प्रणाली के निम्न गुण या लाभ हैं-
(अ) प्रत्यक्ष अध्ययन- इस प्रणाली की सहायता से हम सामाजिक परिस्थितियाँ का प्रत्यक्ष अध्ययन कर सकते हैं। इस प्रणाली में अध्ययन के अन्तर्गत सम्मिलित किये गये समुदाय के मध्य निरीक्षणकर्ता एक अस्थायी सदस्य के रूप में निवास करता है तथा उन लोगों के विभिन्न क्रिया-कलापों में सम्मिलित होकर उस समुदाय की सांस्कृतिक पृष्ठभूमि के बारे में जानकारी को विकसित करता है। अतः उनमें घनिष्ठ एवं औपचारिक सम्बन्ध स्थापित हो जाता है जिससे निरीक्षणकर्ता सामुदायिक व्यवहार का प्रत्यक्ष अवलोकन करता है।
(ब) व्यापक सूचनायें- चूँकि अवलोकन कर्ता समूह या समुदाय की प्रत्येक प्रतिविधि में सक्रिय भाग लेता है, अतः सहभागी अवलोकन में उसे छोटी-से-छोटी सूचनायें भी प्राप्त हो जाती है। साथ ही उसे उन दृश्यों तथा क्रियाओं को प्रत्यक्ष देखने और समझने का अवसर मिलता है जो अनुसूची, साक्षात्कार आदि में उपलब्ध नहीं होते।
(स) यथार्थ व्यवहार का अध्ययन- यथार्थ व्यवहार के अध्ययन में सहभागी अवलोकन प्रणाली अत्यन्त सहायक होती है, क्योंकि बाहर से आये हुये एक अजनबी व्यक्ति को कोई भी सूचनादाता अपने जीवन के सारे रहस्य एवं व्यक्तिगत सूचनायें भी कृत्रिम देता है। सहभागी अवलोकन प्रणाली में इस प्रकार की कठिनाइयों से मुक्ति प्राप्त हो जाती है।
(द) अध्ययनकर्ता की कुशलता में वृद्धि- साथ-साथ रहने के कारण अवलोकनकर्ता समूह के व्यवहारों तथा क्रियाओं से परिचित हो जाता है। वह प्रत्येक परिवर्तन को तुरन्त भाँप लेता है और इस प्रकार अवलोकनकर्ता की दृष्टि अत्यन्त पैनी हो जाती है। दूसरे शब्दों में, उसमें अवलोकन शक्ति का विकास हो जाता है और मानव सम्बन्धों को समझने की क्षमता बढ़ जाती है।
(य) अधिक विश्वसनीय सूचनायें- इस प्रणाली से प्राप्त सूचनायें अधिक शुद्ध एवं विश्वसनीय होती है। अवलोकन कर्ता इस प्रणाली में व्यक्तिगत रूप से समुदाय की विभिन्न परिस्थितियों में सम्मिलित रहता है, अतः किसी प्रकार की शंका या भ्रम होने पर पुनः उसी प्रकार की परिस्थिति आने पर उसकी जांच की जा सकती है।
सहभागिक अवलोकन की कमियाँ अथवा सीमायें
सहभागिक अवलोकन के अनेक भागों के अतिरिक्त इसकी कुछ सीमायें और कमियाँ निम्नलिखित है-
1. सहभागिता पूर्ण सम्भव नहीं- स्तरित (Stratified) समुदाय में सहभागी अवलोकन लाभप्रद नहीं होता, क्योंकि यदि वह एक वर्ग के जीवन में सहभागी बन जाता है तो दूसरा वर्ग
अवलोकनकर्ता को सहभागी बनने से रोक देता है। उदाहरणार्थ, यदि अवलोकनकर्ता समुदाय के एक वर्ग हरिजनों के सामाजिक जीवन में भाग लेता है तो सवर्ण जाति के लोग उसे अपने सामाजिक जीवन में भाग लेने की अनुमति नहीं देंगे और न ही किसी प्रकार की सूचना देना पसन्द करेंगे।
2. अपरिचित गुण का लाभ सम्भव नहीं- सामाजिक जीवन में घनिष्ठ सम्पर्क भी कभी-कभी सूक्ष्म अध्ययन या निरीक्षण में बाधक होती है, जबकि समूह में अपरिचित होने पर प्रत्येक क्रिया में नवीनता व आकर्षण दिखायी पड़ता है। अतः स्पष्ट है कि सहभागी अवलोकन में अपरिचित गुण का लाभ प्राप्त नहीं हो पाता।
3. सहभागी अवलोकन विस्तृत ज्ञान में बाधक- सहभागिक अवलोकन के अन्तर्गत अवलोकनकर्ता के समस्त प्रयास किसी क्षेत्र अथवा समुदाय विशेष तक ही सीमित रहते हैं। इस कारण विस्तृत क्षेत्र के बारे में उसके ज्ञान का विकास अवरुद्ध हो जाता है इसका मूल कारण अवलोकन का सीमित क्षेत्र के अन्तर्गत केन्द्रीयकरण है जो अवलोकनकर्ता के ज्ञान के विस्तार में बाधक है।
4. अवलोकनकर्ता का प्रभाव- अवलोकनकर्ता क्योंकि विशेषज्ञ होता है और समाजशास्त्री तो विशेष रूप से इस दृष्टि से महत्व रखता है, समूह के लोग उसे उच्च स्तर देते हैं। धीरे-धीरे वह स्वयं अपने विचारों और क्रियाओं से समूह को प्रभावित करने लगता है। इस प्रकार समूह का व्यवहार ही उसकी इच्छाओं के अनुरूप बदलने लगता है। अतः स्वाभाविक व्यवहार का अध्ययन करने का प्रयोजन ही नष्ट हो जाता है।
5. छोटे समुदाय में सम्भव- सहभागी अवलोकन केवल छोटे समुदायों में ही सम्भव है। एक व्यक्ति बहुत बड़े समुदाय के सभी लोगों से आत्मीयता के सम्बन्ध नहीं बना सकता। केवल कुछ मित्रों के ही जीवन का अध्ययन सहभागी अवलोकन में सम्भव है। केवल उन्हीं लोगों के व्यवहारों तथा क्रियाओं का अवलोकन करने का अवसर उसे प्राप्त हो सकता है। जो उसके कार्य में रुचि लेते हों।
6. समय की अधिकता- सहभागी अवलोकन में समूह के साथ घनिष्ठ सम्बन्ध स्थापित करने पड़ते हैं, जो बहुत लम्बे समय के निरन्तर सम्पर्क के बाद ही सम्भव है। इस प्रकार ‘सहभागी अवलोकन’ में बहुत समय लग जाता है।
7. अत्यधिक खर्चीला- अधिक समय तक निरन्तर किसी समुदाय के सदस्य के रूप में रहना बहुत खर्चीला कार्य है। गहन अध्ययन व्यय को भी अधिक बढ़ा देता है।
8. सीमित उपयोगिता- सहभागी अध्ययन हर प्रकार के समूहों में उपयोग में नहीं लाया जा सकता। उदाहरण के लिए अपराधियों का अध्ययन सहभागी अवलोकन के द्वारा नहीं किया जा सकता। स्वयं अपराधी बनकर अवलोकन करना, खतरे से खाली नहीं होता।
उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है कि सहभागिक अवलोकन के जहाँ फायदे हैं वहीं इसमें अनेक कमियाँ भी हैं जिसकी अनदेखी नहीं की जा सकती।
सहभागी और असहभागी अवलोकन में अन्तर
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