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प्रमुख शैक्षिक विचारधाराएँ या दर्शन | Main Educational Thoughts or Philosophies

प्रमुख शैक्षिक विचारधाराएँ या दर्शन
प्रमुख शैक्षिक विचारधाराएँ या दर्शन

 

प्रमुख शैक्षिक विचारधाराएँ या दर्शन
Main Educational Thoughts or Philosophies

प्रमुख शैक्षिक विचारधाराएँ या दर्शन– किसी भी देश की शिक्षा प्रणाली का उस देश के शैक्षिक दर्शन से घनिष्ठ सम्बन्ध होता है। किसी भी राष्ट्र की शिक्षा अपना आधार दार्शनिक सिद्धान्तों को ही बनाकर चलती है। शिक्षा के उद्देश्य, पाठ्यक्रम, शिक्षण विधियाँ, अनुशासन तथा गुरु-शिष्य सम्बन्ध इत्यादि सभी किसी न किसी प्रकार दार्शनिक सिद्धान्तों से जुड़े रहते हैं। यदि देश ने आदर्शवाद को अपने दर्शन के रूप में स्वीकार किया है तो उद्देश्यों, पाठ्यक्रमों एवं गुरु-शिष्य सम्बन्धों पर इसी दार्शनिक विचारधारा तथा सिद्धान्तों का प्रभाव दिखायी देगा। यदि प्रकृतिवाद, प्रयोजनवाद इत्यादि का दर्शन स्वीकार किया गया तो शिक्षा प्रणाली उसी से प्रभावित होगी। कहने का तात्पर्य है कि दर्शन और शिक्षा आपस में निकट से सम्बन्धित हैं। भारतीय दर्शन के विभिन्न दार्शनिक आधार हैं। उनमें आदर्शवाद, प्रकृतिवाद तथा प्रयोजनवाद प्रमुख हैं। भौतिकवाद एवं आध्यात्मवाद आदर्शवाद से ही उत्पन्न हुए हैं। आदर्शवाद ने आध्यात्मवाद को ग्रहण किया है जबकि प्रयोजनवाद ने भौतिकवाद को विकसित किया है। आदर्शवादियों ने जगत को दो भागों में बाँटा है- भौतिक जगत तथा आध्यात्मिक जगत। उन्होंने भौतिक जगत की अपेक्षा आध्यात्मिक जगत को प्रधानता दी है क्योंकि उन्होंने उसे सत्य तथा वास्तविक माना है।

दार्शनिक आधार पर प्रमुख शैक्षिक विचारधाराओं या शैक्षिक दर्शनों के बारे में विस्तृत वर्णन निम्नलिखित प्रकार हैं-

1. आदर्शवाद (Idealism)

भारत के प्राचीनतम ग्रन्थ ‘वेद’ भारतीय आदर्शवादी विचारधारा के मूल स्रोत हैं। इनमें आध्यात्मिक चर्चा विस्तार से की गयी है, जो भारतीय दर्शन का आधार है।यह आदर्शवादी विचारधारा को पर्याप्त सीमा तक प्रभावित किया है। वेदान्त के अनुसार “सम्पूर्ण संसार ब्रह्ममय है और आत्मा और परमात्मा में कोई अन्तर नहीं है।” इस प्रकार की विचारधारा भारत में अद्वैतवाद कहलाती है। इसके अतिरिक्त आदर्शवाद को प्रभावित करने वाले अन्य दर्शन- रामानुजाचार्य का विशिष्ट द्वैत दर्शन, माध्वाचार्य का द्वैत दर्शन और निम्बकाचार्य का द्वैताद्वैत दर्शन आदि प्रमुख हैं। वर्तमान आदर्शवादियों में महर्षि दयानन्द, रवीन्द्रनाथ टैगोर, महात्मा गाँधी और महर्षि अरबिन्द प्रमुख हैं, जिन्होंने भारतीय शिक्षा को अपने दर्शन में सर्वाधिक प्रभावित किया है। आदिकाल में शिक्षा की विचारधारा आदर्शवाद पर आधारित रही है। इसके प्रवर्तक सुकरात तथा प्लेटो आदि रहे हैं। वर्तमान काल में हीगल, काण्ट, कमेनियस पेस्टालॉजी तथा फ्रॉबेल ने इसे शिक्षा में प्रयोग किया है। इस प्रकार शिक्षा में आदर्शवाद का पर्याप्त योगदान रहा है।

आदर्शवाद का अर्थ (Meaning of Idealism)- आदर्शवाद एक ऐसा विचार है जो यह स्वीकृति देता है कि अन्तिम सत्ता मानसिक या आध्यात्मिक है।

(1) अरस्तू के अनुसार- शिक्षा का मूल उद्देश्य व्यक्ति को नैतिक एव बौद्धिक सद्गुणों से युक्त बनाना है, व्यक्ति को ऐसे श्रेष्ठतम् मूल्यों से अलंकृत करना है जो मानवता के लिये आवश्यक हैं। यह धारणा ही आदर्शवाद का प्रतिरूप है।

(2)  जे. एस.रॉस (J.S. Ross) के शब्दों में- “अध्यात्मवादी दर्शन के बहुत से और विविध रूप हैं पर सबका आधारभूत तत्त्व है कि संसार का उत्पादन कारण मन या आत्मा है कि वास्तविक सत्य मानसिक स्वरूप है।”

“Idealistic philosophy take many and varied forms, but the postulate underlying all is that mind or spirit is the essential world stuff that the true reality is of mental character.”

2. प्रकृतिवाद (Naturalism)

प्रकृतिवाद का जन्म यूरोप की देन है, जो वहाँ की आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक, शैक्षिक एवं धार्मिक क्षेत्रों की क्रान्ति के फलस्वरूप 18वीं सदी में देखने को मिला। प्रकृतिवाद के उल्लेखनीय शिक्षाशास्त्री रूसो, काण्ट, हाब्स, बेकन, हक्सले तथा स्पेसर हैं।

प्रकृतिवाद का अर्थ (Meaning of naturalisation) – प्रकृतिवाद वह विचारधारा है जो आध्यात्मिक तत्त्वों को स्वीकार करते हुए प्रकृति को अन्तिम सत्ता मानती है और मानव के प्राकृतिक स्वरूप के आधार पर सभी वस्तुओं की व्याख्या करती है। प्रकृतिवाद का अर्थ स्पष्ट करते हुए मारले ने प्रकृतिवाद का स्वरूप इन शब्दों में निश्चित किया है-सबसे प्रेम करना, मानव प्रकृति में पूर्ण विश्वास करना, न्याय की सदा कामना करना और साधारणतया सन्तोष के साथ काम करना कि इससे दूसरों का उपकार होगा। ज्वायसे के अनुसार, “प्रकृतिवाद वह विचारधारा है जिसकी प्रमुख विशेषता आध्यात्मिकता को अस्वीकार करना है या प्रकृति एवं मनुष्य के दार्शनिक चिन्तन में उन बातों को स्थान न देना है जो हमारे अनुभवों से परे हों।”

3. प्रयोजनवाद (Pragmatism)

दर्शन की आधुनिक विचारधारा प्रयोजनवाद है। इसके जन्मदाता प्रयोजनवादी दार्शनिक विलियम जेम्स हैं। जॉन ड्यूवी,जान लॉक तथा शिलर भी इसी श्रेणी में आते हैं। प्रयोजनवाद एक ऐसी प्रक्रिया है जो प्रकृतिवाद, आदर्शवाद एवं यथार्थवाद इन सभी दर्शनों से अलग हटकर एक विशिष्ट दर्शन को स्वीकार करती है और व्यावहारिक जीवन की सत्यता को अपनी प्रेरणा का केन्द्रबिन्दु बनाती है। प्रयोजनवाद व्यावहारिक जीवन को ही अपना लक्ष्य बनाता है और जो भी वस्तु व्यावहारिक जीवन के लिये उपयोगी नहीं है, उसे छोड़ देता है। प्रयोग के आधार पर जो सत्य है उसे प्रयोग में लाते हैं।

प्रयोजनवाद का अर्थ (Meaning of Pragmatism) – अंग्रेजी के प्रैगमेटिज्म शब्द की व्युत्पत्ति ग्रीक भाषा के प्रैग्मा’ शब्द से हुई है, जिसका अर्थ है ‘क्रिया’ अर्थात् वही सत्य है जो व्यावहारिक एवं जीवनोपयोगी है। प्रयोजनवादी शाश्वत मूल्य एवं अमूर्त वस्तुओं में विश्वास नहीं रखते क्योंकि ये देश-काल एवं परिस्थिति के अनुरूप बदलते रहते हैं। इस प्रकार प्रयोजनवाद या प्रयोगवाद यह विचारधारा है जो उन्हीं क्रियाओं, वस्तुओं, सिद्धान्तों तथा नियमों को सत्य मानती है, जो किसी देश-काल एवं परिस्थिति में व्यावहारिक या उपयोगी हैं।

(1) रस्क के अनुसार – “प्रयोजनवाद उस नये आदर्शवाद के विकास का एक चरण है जो आध्यात्मिक तथा व्यावहारिक मान्यताओं में सामंजस्य उत्पन्न कर सकेगा।”

(2) रॉस के शब्दों में – “प्रयोजनवादी वस्तुतः एक मानवतावादी दर्शन है, जो यह मानता है कि मनुष्य कार्य करने में अपने मूल्यों का सृजन करता है एवं सत्य अभी निर्माण की अवस्था में और अपने स्वरूप का कुछ भाग भविष्य के लिये छोड़ देता है। हमारे सत्य में मनुष्य निर्मित वस्तुएँ हैं “।

“Pragmatism is essentially a humanistic philosophy maintaining that man creates his own value in the course of activity that reality is still in making and awaits part of its complexion from the future that to an unascertainable extent out truths are man made products.”

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