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रूसो (Rousseau 1712-1778) in Hindi d.el.ed 2nd semester

रूसो (Rousseau 1712-1778) in Hindi d.el.ed 2nd semester

रूसो (Rousseau 1712-1778) in Hindi d.el.ed 2nd semester

रूसो (Rousseau 1712-1778) in Hindi d.el.ed 2nd semester

रूसो
Rousseau (1712-1778)

रूसो का जन्म प्रोटेस्टेन्ट नगर जेनेवा में 28 जून 1712 में हुआ था। बचपन से ही उसने प्रकृति के प्रति अनुराग प्रस्तुत किया। तात्कालिक समय में लुई 15वें के राज्य में व्यापक कृत्रिमता, चरित्रहीनता के विरोध में सन् 1750 में डिजान अकादमी में विज्ञान का नैतिकता पर प्रभाव’ नामक निबन्ध पढ़कर और “मनुष्य की असमानता” पर निबन्ध प्रस्तुत कर प्रकृतिवादी दार्शनिक के रूप में प्रतिष्ठित हो गया। राज्य ने रूसो के विचारों पर नियन्त्रण करने के प्रयास किये, जिससे जीवन के अन्तिम वर्षों में उसने निर्वासित जीवन व्यतीत किया और 1778 को फ्रांस में उसकी मृत्यु हो गयी। रूसो नेतत्कालीन अराजकता, उच्च वर्ग के आधिपत्य,अत्याचार, शोषण की कटु आलोचना की और उसकी मृत्यु के 25 वर्ष बाद फ्रांस की क्रान्ति के अवसर पर उसे महान् क्रान्तिकारी होने का गौरव प्राप्त हुआ।

रूसो के शिक्षा सम्बन्धी विचार
The Views of Rousseau Related to Education

रूसो बालक के प्राकृतिक विकास में विश्वास रखता है। वह नहीं चाहता है कि बालक को अध्यापकों के निर्देशों पर चलाया जाय तथा किताबी ज्ञान को उसने अनुचित बताया है। रूसो (Rousseau) के अनुसार- “प्रत्येक वस्तु जो प्राकृतिक है, अच्छी है, परन्तु मनुष्य के हाथों खराब हो जाती है।” “Every thing is good asit comes from the hands of another of Nature (The creator) but every thing degenerates in the bands of man.” उसका विचार है कि “प्रत्येक बालक को सभ्य की अपेक्षा प्राकृतिक मानव होना आवश्यक है क्योंकि उसका प्राकृतिक वातावरण में अच्छा विकास हो सकेगा। कृत्रिम वातावरण उसकी प्राकृतिक उन्नति में बाधा डालता है।” विभिन्न सन्दर्भो में रूसो के शिक्षा सम्बन्धी विचारों को निम्नलिखित प्रकार से देखा जा सकता है-

1. शिक्षा का अर्थ (Meaning of Education) – रूसो द्वारा वर्णन किये गये शिक्षा के अर्थ को पाल मुनरो ने अपने शब्दों में इस प्रकार वर्णित किया है- “शिक्षा एक कृत्रिम प्रक्रिया न होकर प्राकृतिक प्रक्रिया है। यह एक आन्तरिक विकास है न कि बाहर से होने वाली वृद्धि। यह विकास आन्तरिक प्रकृति दत्त शक्तियों तथा रुचियों के क्रियाशील होने से होता है न कि किसी बाहरी शक्ति की प्रतिक्रिया के फलस्वरूप। यह प्राकृतिक शक्तियों का प्रसार है, न कि ज्ञान की प्राप्ति । ये सभी विचार रूसो की आधारभूत शिक्षा का निर्माण करते ‘इस प्रकार हम देखते हैं कि रूसो कृत्रिमता में बिल्कुल विश्वास नहीं रखता है। वह चाहता है कि बालक को प्रकृति में स्वतन्त्र रूप से छोड़ दिया जाये तथा उसके प्राकृतिक विकास में किसी प्रकार की बाधा न डाली जाये।

2. शिक्षा के उद्देश्य (Aims of Education) – रूसो शिक्षा द्वारा निम्नलिखित उद्देश्यों की पूर्ति आवश्यक समझता है-

  1. शिक्षा बालक को प्राकृतिक वातावरण प्रदान करने में सहायक हो।
  2. बालक के शारीरिक विकास में स्वाभाविकता लाये।
  3. बाल्यावस्था की शिक्षा अनुभवों पर आधारित हो।
  4. किशोरावस्था में बालक के बौद्धिक विकास पर ध्यान दिया जाये।
  5. पुस्तकीय ज्ञान की अपेक्षा ‘करके सीखने’ तथा ‘निरीक्षण’ पर बल देना चाहिये।
  6. युवावस्था में आध्यात्मिक विचारों को प्राथमिकता दी जानी चाहिये।
  7. शिक्षा द्वारा पूर्ण वैयक्तिकता का विकास होना चाहिये।

3. पाठ्यक्रम (Curriculum) – रूसो निश्चित पाठ्यक्रम का विरोधी था, वह चाहना था कि पाठ्यक्रम लचीला (flexible) बालक की रुचियों, योग्यताओं के आधार पर (Child Centred) होना चाहिये तथा बालक की शिक्षा तथा आयु के स्तर के साथ-साथ बदलता रहना चाहिये। रूसो के अनुसार पाठ्यक्रम का स्वरूप निम्नलिखित प्रकार का होना चाहिये-

  1. शैशवावस्था – 1-5 वर्ष में शारीरिक विकास की क्रियाओं पर अधिक ध्यान देना चाहिये, जिससे बालक का शरीर स्वस्थ रहे। यदि बालक का शरीर स्वस्थ होगा तो उसका मस्तिष्क भी शक्तिशाली होगा।
  2. बाल्यावस्था – 5-12 वर्ष में शारीरिक विकास के साथ-साथ रुचियाँ जानने से सम्बन्धित विषय होने चाहिये। उसके लिये व्यायाम, खेलकूद, संगीत, कुश्ती तथा अन्य प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जाना चाहिये। इस अवस्था में भाषा ज्ञान भी कराया जाना चाहिये।
  3. किशोरावस्था – 12-15 वर्ष के लिये भूगोल, इतिहास, नागरिकशास्त्र, विज्ञान, संगीत, भाषा और सामाजिक शास्त्र आदि विषयों का अध्ययन आवश्यक बताया क्योंकि इन विषयों के आधार पर बालक का बौद्धिक विकास सम्भव है।
  4. युवावस्था – 15-21 वर्ष के लिये भाषा साहित्य, इतिहास, भूगोल, अर्थशास्त्र तथा राजनीतिशास्त्र आदि विषयों को रखा है। 120 वतमान भारतीय समाज एव प्रारम्भिक शिक्षा
  5. उसने एमील के पाँचवें भाग में स्त्री शिक्षा के विषय में कहा है कि प्रारम्भ में उनके शारीरिक विकास पर ध्यान दिया जाय, बाद में उनके सिलाई, कढ़ाई, बुनाई, संगीत, नृत्य, गृह-कार्य, धर्म, नीति आदि की शिक्षा दी जाये। वह स्त्री शिक्षा के एकदम विरोध में था।

उसने स्त्री के विषय में यहाँ तक लिख दिया है-“एक शिक्षित नारी अपने पति, परिवार, मित्रों, बच्चों एवं नौकरों सबके लिए दुःखदायी प्लेग के समान है।” -A woman of culture is the plague of her husband, children, her family, her servants everybody.”

4. शिक्षण की विधियाँ (Methods of teaching) – प्रमुख शिक्षाशास्त्री रूसो ने विद्यालयी शिक्षण हेतु निम्नलिखित विधियाँ बतायी हैं-

  1. शिक्षण में करके सीखने की विधि उत्तम है।
  2. क्रिया पद्धति को भी अपनाया जाना चाहिये।
  3. पदार्थों का ज्ञान स्थूल रूप में देना चाहिये।
  4. खेल-पद्धति भी शिक्षण की सुगम विधि है।
  5. अनुभव तथा निरीक्षण विधि भी शिक्षा में सहायक हो सकती है। शिक्षण विधियाँ ऐसी हों जो बालक के विकास में बाधा न छालें अर्थात् ये सुगम तथा लाभदायक होनी चाहिये।

5. अनुशासन (Discipline) – रूसो प्राचीन अनुशासन के ढंग का विरोध करता है। उसके अनुसार- “बच्चों को दण्ड नहीं दिया जाना चाहिये। स्वतन्त्रता अच्छी चीज है।” अतः आन्तरिक अनुशासन की व्यवस्था होनी चाहिये, यदि बच्चा गलती करता है, तो प्रकृति उसको स्वयं दण्ड देगी या फिर वह गलती नहीं करेगा; जैसे-बच्चा यदि आग को छूता है तो वह जल जायेगा और भविष्य में कभी आग को नहीं छूयेगा।

6. विद्यालय (School) – रूसो नहीं चाहता है कि विद्यालय एक कृत्रिम तथा कठोर बन्धनों वाली संस्था हो, बल्कि विद्यालय ऐसा हो जिसमें बालक के विकास के लिए उचित वातावरण होना चाहिये। बालक को स्वतन्त्र वातावरण दिया जाना चाहिये। वह न तो निश्चित पाठ्यक्रम चाहता है, न ही समय सारणी। इसी के प्रभाव के कारण इंग्लैण्ड के सभी पब्लिक स्कूलों में स्वशासन प्रणाली प्रचलित है।

7. शिक्षक (Teacher) – रूसो के अनुसार शिक्षक बालक की पृष्ठभूमि होनी चाहिये अर्थात् उसने बालक को प्रमुख तथा शिक्षक को गौण माना है। उसने प्रकृति को ही बालक का सच्चा शिक्षक माना है। शिक्षक को केवल यह चाहिये कि बालक के स्वाभाविक विकास के लिये अनुकूल परिस्थितियों का निर्माण करे।

रूसो का शिक्षा में योगदान
Contribution of Rousseau in Education

रूसो का शिक्षा में योगदान निम्नलिखित प्रकार है-

  1. रूसो ने बाल केन्द्रित शिक्षा को महत्त्व दिया है।
  2. उसके अनुसार बालक की शिक्षा में व्यक्तिगत भिन्नता पर विशेष ध्यान दिया जाये।
  3. बालक की अवस्थाओं के अनुकूल ही पाठ्यक्रम होना चाहिये।
  4. रूसो ने शिक्षा में मनोवैज्ञानिक प्रवृत्ति, सामाजिक प्रवृत्ति तथा वैज्ञानिक प्रवृत्तियों को जन्म दिया।
  5. शिक्षा में अनुशासन स्थापना के लिये दमनात्मक विधि को अनुचित बताया।
  6. यथार्थ ज्ञान को महत्त्व दिया।
  7. नैतिक एवं चारित्रिक विकास, अनुभव तथा अभ्यास के आधार पर बताया।
  8. शिक्षा प्रक्रिया में बालक के क्रमिक विकास पर बल दिया।
  9. स्त्री शिक्षा के लिये केवल शारीरिक विकास तथा व्यावहारिक ज्ञान ही उचित बताया, उन्हें अधिक शिक्षा न दी जाये। पॉल मुनरो के शब्दों में, “रूसो के विचारों का आधुनिक शिक्षा जगत् में बहुत सम्मान है। उसकी बालकेन्द्रित शिक्षा, शिक्षा का प्रचार आधुनिक शिक्षाशास्त्र का मूल मन्त्र बन गया है।”
  10. रूसो की पुस्तक एमील शैक्षिक साहित्य की प्रमुख निधि है। रस्क के अनुसार-“जिस दृढ़ता से रूसो ने एमील में अपने विरोधों की रूपरेखा प्रस्तुत की है, वह आकर्षक है और उसने शैक्षिक साहित्य में इसका स्थायी स्थान बना दिया है।”

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