राजनीति विज्ञान / Political Science

प्लेटो पर सुकरात का प्रभाव( Influence of Socrates ) in Hindi

प्लेटो पर सुकरात का प्रभाव

Influence of Socrates

Influence of Socrates

सुकरात का प्रभाव
(Influence of Socrates)

प्लेटो का दर्शन सिर्फ उसकी काल्पनिक मस्तिष्क की ही उपज नहीं, अपितु परिवार, देश, काल एवं कालीन दार्शनिकों के विचारों से भी प्रभावित है, राजनीतिज्ञों के परिवार से सम्बन्धित होने के कारण वह स्वभाव से ही राजनीतिक समस्याओं में रुचि लेने लगा था। प्लेटो के विचारों पर तत्कालीन सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक परिस्थितियों के प्रभाव के साथ पूर्ववर्ती दार्शनिकों, पाईथागोरस, पार्मिनीडिज, हीराक्लीटस, सुकरात आदि विचारकों का भी प्रभाव पड़ा, लेकिन उपर्युक्त सभी परिस्थितियों व विचारकों में से प्लेटो पर सुकरात का प्रभाव कुछ ज्यादा ही था। वह 20 वर्ष की आयु में सुकरात के सम्पर्क में आया और आजीवन उसका शिष्य रहा। सुकरात की जो आकृति उसके हृदयपटल पर अंकित हो चुकी थी, वह कभी धूमिल नहीं हुई। प्रो. मैक्सी कहते हैं कि- “प्लेटो में सुकरात पुनर्जीवित हो गया। प्लेटो के मस्तिष्क और आत्मा ने अपने गुरु के विचारों और भावनाओं को पूर्ण रूप से हृदयंगम कर लिया।”

सुकरात का प्लेटो पर निम्नलिखित प्रभाव है:-

1. सद्गुण ही ज्ञान है (Virtue is Knowledge) –

प्लेटो की पुस्तक रिपब्लिक का मुख्य विचार यही है कि ‘सद्गुण है’। प्लेटो ने यह विचार अपने गुरु सुकरात से ग्रहण किया है। सुकरात सद्गुण और ज्ञान को एक सिक्के के दो पहलू मानता था। सुकरात के अनुसार सत्य ज्ञान ही सद्गुण है। सत्य कभी अकल्याणकारी नहीं हो सकता। ज्ञान सत्य की आत्मानुभूति है। सत्य को आचरण में लाए बिना सच्चे ज्ञान की अनुभूति निरर्थक व निष्फल है। मेयर के शब्दों में- “यदि हम ज्ञान और आचरण को एक मानें, तभी एक स्थायी मापदण्ड बना सकते हैं। जिस ज्ञान का आचरण के साथ कोई सम्बन्ध नहीं है, जो ज्ञान केवल ज्ञान के लिए सम्पादित किया जाता है वह ज्ञान निरर्थक है। ज्ञान केवल कुछ सूचनाओं ही ज्ञान का संकलन मात्र नहीं है। इसका चरित्र निर्माण के साथ गहरा सम्बन्ध है। ज्ञान बुद्धि के माध्यम से सम्पूर्ण व्यक्तित्व को प्रभावित करता है। यह इच्छा शक्ति और भावनाओं का निर्माण करता है। साहस, संयम, न्याय आदि सभी गुणों की उत्पत्ति ज्ञान से होती है। साहसी व्यक्ति वही बन सकता है, जो भय तथा निर्भीकता का ज्ञान रखता हो।” प्लेटो की पुस्तक रिपब्लिक का सार ‘सद्गुण ही ज्ञान है’ का सिद्धान्त है जो सुकरात की सबसे महत्त्वपूर्ण देन है।

2. सद्गुण का स्वरूप (Nature of Virtue) –

सुकरात की तरह प्लेटो का भी यह मानना था कि प्रत्येक वस्तु की भलाई या उत्कृष्टता इस बात में है कि उसमें वह गुण अवश्य हो जिसकी सम्पूर्ति के लिए उसका जन्म हुआ है। उत्कृष्टता शब्द सद्गुण के लिए प्रयुक्त यूनानी शब्द ‘अरैती’ (Arele) का हिन्दी शब्दार्थ है। चाकू का गुण काटना है। इसका अच्छा या बुरापन इस बात पर निर्भर करता है कि यह कितनी अच्छी या बुरी तरह काट सकता है। ठीक इसी प्रकार मनुष्य भी अन्य मनुष्यों की तुलना में ही अच्छा या बुरा हो सकता है। इसकी अच्छाई और बुराई दो तरह की होती है – एक अपनी वत्ति सम्बन्धी एवं दूसरी व्यवसाय सम्बन्धी। कोई व्यक्ति अच्छा या बुरा चित्रकार, मूर्तिकार, डॉक्टर या वकील हो सकता है, किन्तु वही मनुष्य अच्छा हो सकता है जिसमें दूसरे मनुष्य को अच्छे बनाने वाले गुण प्रचुर मात्रा में विद्यमान हों। सुकरात की तरह प्लेटो भी एक अच्छे व्यक्ति में विवेक, साहस, संयम, न्याय – चार गुणों का होना आवश्यक मानते हैं, क्योंकि ये चारों गुण मानवीय गुण और उत्कृष्टता (Human Virtue and Goodness) का निर्माण करते हैं।

3. राजनीति एक काला है (Politics is an Art) –

प्लेटो ने भी सुकरात का अनुसरण करते हुए शासन संचालन को डॉक्टरी या नौ-चालन की तरह एक कला माना है। इसलिए शासन के विशेषज्ञों को ही शासन संचालन का अधिकार दिया जाना चाहिए। जिस प्रकार हर व्यक्ति एक कुशल मूर्तिकार या निपुण संगीतज्ञ नहीं हो सकता, उसी प्रकार हर व्यक्ति योग्य शासक भी नहीं बन सकता। सुकरात ने कहा था, “जनता बीमार है, इसलिए हमें अपने स्वामियों का इलाज कराना चाहिए।” प्लेटो भी यह मानता है कि जनता बीमार रोगी के समान होती है और डॉक्टर एक सामाजिक चिकित्सक की तरह रोगी को ठीक करने के लिए कड़वी दवाइयाँ भी देता है। ठीक उसी तरह आदर्श शासक को जनता की बीमारी ठीक करने के लिए उसे कड़वी दवाई देनी पड़ती है।

4. सत्य का सिद्धान्त (Theory of Reality) –

राजनीतिक चिन्तन में सुकरात के वास्तविकता के सिद्धान्त को आदर्शवाद का जनक माना जाता है। प्रो. कोकर के अनुसार, “प्लेटो के दार्शनिकवाद का आधार सुकरात का वास्तविक सिद्धान्त है।” प्लेटो सुकरात की इस धारणा से पूर्णतः सहमत है कि वस्तुओं की वास्तविकता उनके मूर्त रूप में नहीं वरन् उनके विचार में है। किसी वस्तु की वास्तविक सत्ता इन्द्रियों द्वारा प्रतीत नहीं होती है, वरन् उसकी वह अमूर्त धारणा है जो कि उसके मन में विद्यमान रहती है। मूर्त रूप वास्तविक सत्ता की एक अपूर्ण अभिव्यक्ति है; उसकी पूर्णता तो उस वस्तु के विचार में ही रहती है। ज्ञान का सिद्धान्त (Theory of Knowledge) : प्लेटो भी सुकरात की तरह ज्ञान को दो प्रकार का मानता है- (1) सापेक्ष (Relative) (2) निरपेक्ष (Absolute)। सापेक्ष ज्ञान इन्द्रियों द्वारा प्राप्त अपूर्ण ज्ञान होता है जो देश, काल की परिस्थितियों से प्रभावित होने के कारण बदलता रहता है। इसका स्वरूप ज्ञाता की मनोवत्ति तथा दृष्टिकोण पर भी निर्भर करता है। इस तरह का ज्ञान, ज्ञान न होकर ज्ञान की तरह होता है। इसके विपरीत निरपेक्ष ज्ञान अपरिवर्तनशील, वैज्ञानिक, वस्तुनिष्ठ (Objective) तथा तर्कसंगत (Rational) होता है। इस ज्ञान की अनुभूति विशुद्ध तथा निर्लिप्त बुद्धि को ही हो सकती है। यह देश, काल की सीमा से बाहर की वस्तु होता है। वास्तविक ज्ञान निरपेक्ष ज्ञान होता है, इसलिए मानव जीवन का परम लक्ष्य निरपेक्ष ज्ञान है।

6. दार्शनिक शासक की तानाशाही का सिद्धान्त (Theory of Dictatorship of Philosopher King) –

सुकरात लोकतन्त्र को मूखों व अज्ञानियों का शासन मानता था, इस व्यवस्था के अन्तर्गत सभी को वोट देने, शासन कार्यों में भाग लेने, न्याय करने का समान अधिकार प्राप्त था। कभी कभी शासकों को पैसा फेंककर या लॉटरी द्वारा चुना जाता था। वह एथेन्स की सरकार की घोर निन्दा करता था। इसलिए अज्ञानी शासकों ने सुकरात को प्राणदण्ड दे दिया। प्लेटो ने भी व्यावहारिक तौर पर एथेन्स प्रजातन्त्र की बुराइयाँ देख ली थीं। इसलिए उसने भी अपने गुरु सुकरात की तरह प्रजातन्त्र की निन्दा की और लोकतन्त्र के स्थान पर दार्शनिक शासक की तानाशाही का समर्थन किया।

7. मन्त्रात्मक पद्धति (Dialectical Method) –

सुकरात के समय में यूनान में वाद-विवाद द्वारा अपने विरोधी विचारों का खण्डन तथा अपनी विचारधारा को तर्कसंगत ठहराने के प्रयास किये जाते थे। यह सत्य अनुसंधान करने की पद्धति द्वन्द्वात्मक पद्धति कहलाती थी। प्लेटो ने भी इस वाद-विवाद की पद्धति द्वारा सत्य तक पहुँचने के प्रयास किये। उसकी समस्त रचनाएँ वाद-विवाद के रूप में संवादों पर ही आधारित हैं। अतः प्लेटो ने यह पद्धति सुकरात से ग्रहण की।

इस प्रकार सुकरात का प्लेटो पर प्रभाव स्पष्ट है। बर्नेट के शब्दों में- “प्लेटो का दर्शन सुकरात के ही ज्ञान के जीवाणुओं का वह विकास है जो प्लेटोनिक निष्कर्षों में ‘रिपब्लिक’ में उद्भूत हुआ है।” मैक्सी के शब्दों में – “प्लेटो के रूप में सुकरात ने फिर जन्म लिया। इस अर्थ में नहीं कि प्लेटो अपने गुरु की सच्ची नकल था वरन् इस अर्थ में कि प्लेटो के मस्तिष्क और आत्मा ने अपने गुरु के विचारों और मान्यताओं को पूर्णता से आत्मसात् किया और उसने अपने उच्च बुद्धि कौशल से एक ऐसे सुकरात पाश्चात्य राजनीतिक चिन्तन की रचना की जो एथेन्स की गलियों में घूमने वाले सुकरात से उच्चतर था। प्लेटो द्वारा रचित सुकरात एक प्रकार का देवता है, जो केवल वे ही बात नहीं कहता जिनकी वास्तविकता की सुकरात से आशा की जा सकती है वरन् वह ऐसी बातें भी कहता है जो प्लेटो की चमत्कारपूर्ण कल्पना उससे कहलाना चाहती है।”

इस प्रकार संक्षेप में कहा जा सकता है कि प्लेटो की ‘रिपब्लिक’ में सुकरात से ग्रहण किए गए सिद्धान्तों के ‘सद्गुण ही ज्ञान है’ का सिद्धान्त, ‘सत्य का सिद्धान्त’, ‘ज्ञान का सिद्धान्त’ बहुत महत्वपूर्ण हैं। मनुष्य के अच्छा बनने के लिए साहस, विवेक, संयम और न्याय चार गुणों का होना आवश्यक है। वह शासन को एक कला मानता है। शासन का संचालन तो दार्शनिक राजा के ही हाथ में ठीक रहता है। अतः प्लेटो पर सुकरात का प्रभाव स्पष्ट व अमिट है। इसलिए प्लेटो सुकरात का ऋणी है

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