राजनीति विज्ञान / Political Science

टी एच ग्रीन का योगदान (Green’s Contribution in Hindi)

टी एच ग्रीन का योगदान
टी एच ग्रीन का योगदान

टी एच ग्रीन का योगदान (Green’s Contribution)

टी एच ग्रीन का योगदान (Green’s Contribution in Hindi)ग्रीन राजनीतिक चिन्तन के इतिहास में एक महत्त्वपूर्ण दार्शनिक हैं। उनके दर्शन में सत्तावाद, व्यक्तिवाद और आदर्शवाद का अनूठा मिश्रण देखने को मिलता है। उसने व्यक्ति और राज्य दोनों को समान महत्त्व देकर आदर्शवाद को अधिक अच्छा बनाया है। उसने व्यक्तिवाद को नैतिक और सामाजिक आधार प्रदान किया है। इससे उदारवाद का सच्चा रूप निखरकर हमारे सामने आया है। इसी कारण से ई. एन. बर्नज ने उसे बीसवीं शताब्दी के ‘उदारवाद का जनक’ कहा है। उसकी प्रमुख देन निम्नलिखित है-

1. उदारवाद और उपयोगितावाद को समसामयिक बनाना :

ग्रीन ने उदारवाद और  उपयोगिताबाद में आवश्यक संशोधन करके इन्हें समयानुकूल बनाकर इनमें नवजीवन का संचार किया और सुद ढ़ आधार प्रदान किया। जान स्टुअर्ट के समय तक आते-आते उपयोगितावाद निष्प्राण हो चुका था। बेन्थम और मिल ने मनुष्य के कार्यों का मूल प्रेरणा स्रोत विशुद्ध स्वार्थ बुद्धि और सुख को मानकर इसे कोरा सुखवाद बना दिया था। लेकिन ग्रीन ने पूर्ववर्ती उपयोगितावादियों के विचारों में बिखरे हुए सिद्धान्तों का एकीकरण किया और परस्पर विरोधी विचारों को नया रूप दिया। उसने यह सिद्धान्त प्रतिपादित किया कि मनुष्य कोरा भौतिकवादी जीव नहीं है, बल्कि दूसरे का हित चाहने वाला तथा आत्मा का विकास करने वाला प्राणी भी है। ग्रीन ने राज्य को व्यक्ति का नैतिक विकास करने वाला यन्त्र बताया। इस तरह उसने राजनीतिक चिन्तन को आध्यात्मिक और नैतिक आधार देकर एक सुदढ़ रूप प्रदान किया। उसने आर्थिक जीवन में राजय के हस्तक्षेप को न्यायोचित ठहराकर इंगलैण्ड के भावी राजनीतिक सुधारों का मार्ग प्रशस्त किया। उसने उदारवाद में सामाजिक दर्शन से परिवर्तन किए और उसे इंगलैण्ड की द ष्टि से उपयोगी बनाया। उसने उदारवाद को एक रुचि मात्र से ऊपर उठाकर एक विश्वास बना दिया।

2. आवर्शवाद का नया रूप :

उसने हीगल के राज्य को साध्य मानने के विचार का खण्डन किया और युद्ध की अनिवार्यता को समाप्त कर दिया। उसने कहा कि व्यक्ति स्वयं एक साध्य है और उसके हितों का राज्य के लिए बलिदान करना न्यायोचित नहीं है। उसने आगे कहा कि युद्ध किसी भी स्थिति में अपरिहार्य नहीं हो सकता। उसने अन्तरराष्ट्रीयवाद और विश्व-बन्धुत्व की भावना का विकास करके युद्धों से दूर रहने की सलाह दी। उसने जर्मन आदर्शवाद को उसकी कठोरता से निकालकर उसे अधिक उदारवादी बनाया। उसने अत्यधिक व्यक्तिवाद और कठोर आदर्शवाद की बुराइयों को दूर करके इन दोनों में समन्वय का प्रयास किया। उसने कहा कि राज्य और व्यक्ति के हितों में कोई विरोध नहीं है। वेपर ने कहा है कि- “ग्रीन की सबसे बड़ी देन यह है कि उसने आदर्शवाद और व्यक्तिवाद दोनों के दोषों का संशोधन किया,व्यक्तिवाद को नैतिक और सामाजिक रूप प्रदान किया और आदर्शवाद को परिमार्जित कर एक सभ्य विचार में बदल दिया।” बार्कर ने भी कहा है कि- “ग्रीन एक महत्त्वाकांक्षी आदर्शवादी तथा भद्र वास्तविकतावादी था।” इस तरह ग्रीनने अपने आदर्शवाद को ‘सामाजिक औचित्यता’ की धारणा पर आधारित करके उसे अधिक सभ्य और सुरक्षित बनाया।

3. सकारात्मक स्वतन्त्रता की धारणा :

ग्रीन ने स्वतन्त्रता को नए सिरे से परिभाषित करते हुए कहा कि स्वतन्त्रता करने योग्य कार्यों की होती है। उसने स्वतन्त्रता को शाश्वत चेतना के साथ जोड़कर इसे एक नैतिक माँग का रूप दिया और इसे मानव चेतना के नैतिक विकास की अनिवार्य परिस्थिति बताया, उसने आगे कहा कि राज्य द्वारा व्यक्तियों के विकास के लिए अधिक से अधिक सुविधाएँ प्रदान करनी चाहिए ताकि वे अपना नैतिक विकास कर सके। इस तरह उनका स्वतन्त्रता का विचार सकारात्मक है। उसने हीगल तथा काण्ट के नकारात्मक स्वतन्त्रता सिद्धान्त का विरोध किया।

4. कल्याणकारी पाज्य का मार्ग प्रशस्त करना :

ग्रीन ने कहा कि राज्य का प्रमुख कार्य व्यक्ति का नैतिक विकास करना है। इसके मार्ग में आने वाली बाधाओं को दूर करना उसका प्रमुख कर्तव्य है। इसी में उसका सामाजिक कल्याण का उद्देश्य निहित है। उसने कहा कि राज्य को सर्वसाधारण के कल्याण के लिए शिक्षा और सुरक्षा, मद्यपान पर रोक, दोषपूर्ण भूमि-व्यवस्था में सुधार, स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार आदि कार्य करने चाहिए। इससे उसने कल्याणकारी राज्य का मार्ग प्रशस्त किया है। यह उसकी महत्त्वपूर्ण देन मानी जा सकती है।

5. सीमित प्रभुसत्ता का सिद्धान्त :

ग्रीन ने राज्य पर बाह्य तथा आन्तरिक प्रतिबन्ध लगाकर सीमित प्रभुसत्ता (Limited Savereignty) का सिद्धान्त प्रतिपादित किया। उसने व्यक्ति को साध्य और राज्य को एक साधन मानकर राज्य कीनिरंकुश सम्प्रभुता का अन्त कर दिया है। उसने राज्य की शक्ति पर विश्व बन्धुत्व या अन्तरराष्ट्रीयता का अंकुश लगाकर बाह्य शक्ति के रूप में उसे सीमित रूप में सम्प्रभु बना दिया।

6. राज्य का आधार सम्बन्धी सिद्धान्त :

ग्रीन उन सभी राजनीतिक विचारकों के विचारों का खण्डन किया जो राज्य का आधार शक्ति को मानते थे। ग्रीन ने कहा कि राज्य का आधार इच्छा है न कि शक्ति। उसने बताया कि शक्ति पर आधारित राज्य अपूर्ण राज्य होते हैं। उनमें स्थायित्व का गुण नहीं पाया जाता। जनसहमति पर आधारित राज्य ही पूर्ण और स्थायी होते हैं।

उपर्युक्त विवेचन के बाद कहा जा सकता है कि ग्रीन ने पूर्ण सत्तावादी राज्य, उपयोगितावादी सुखवाद. मार्क्सवादी समाजवाद तथा स्पेन्सरवादी व्यक्तिवाद का तीव्र विरोध करके एक नया राजनीतिक विश्वास कायम किया है। उसने आदर्शवाद को व्यक्तिवाद से मिलाकर उसे अधिक उदारवादी बनाया है। उसने समाजवाद का नया रूप पेश किया है। उसके दर्शन ने परवर्ती राजनीतिक चिन्तकों पर गहरा प्रभाव डाला है। उसने राजनीतिक सिद्धान्तों को सामाजिक औचित्यता की द ष्टि से परखा है। उसके प्रयासों से ही अंग्रेजी आदर्शवाद व जर्मन आदर्श का उदारवादी स्वरूप प्रकट हुआ है और कल्याणकारी राज्य का मार्ग प्रशस्त हुआ। अतः निष्कर्ष तौर पर कहा जा सकता है कि ग्रीन राजनीतिक चिन्तन के इतिहास में एक महत्त्वपूर्ण व्यक्ति है।

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