भूगोल / Geography

भारत में मानसूनी वर्षा  तथा भारतीय मानसूनी वर्षा की प्रमुख विशेषताएँ

भारत में मानसूनी वर्षा  तथा भारतीय मानसूनी वर्षा की प्रमुख विशेषताएँ

भारत में मानसूनी वर्षा 

भारत में मानसूनी वर्षा 

भारत में मानसूनी वर्षा 

भारत में मानसूनी वर्षा मानसून शब्द की उत्पत्ति मलयालम शब्द के ‘मोनसिन’ तथा अरवी भाषा के ‘मौसिम’ शब्द से हुई है । जब वायुधाराएँ उच्च वायुभार से निम्न वायुभार की ओर साल में दो बार बदलती हैं, तो वे शीत ऋतु में स्थल खण्ड से जलखण्ड की ओर तथा ग्रीष्म ऋतु में जलखण्ड से स्थलखण्ड की ओर चला करती हैं । विस्तृत स्थल एवं जल भागों पर बारी-बारी से निम्न एवं उच्च वायुदाबों का उत्पन्न होना ही भारत में मानसूनी पवनों के उत्पन्न होने का कारण है।

जब ग्रीष्मऋतु तथा शरदऋतु के मौसम के बीच पवनों की दिशा में 120 का अन्तर हो तथा ये पवनें कम-से-कम 3 मीटर प्रति सेकण्ड की गति से चलती हों तो वे नवीन मौसम विज्ञानी परिभाषा के आधार पर मानसूनी पवनें’ कहलाती हैं । ठीक इसी प्रकार जब दक्षिणी तथा दक्षिण-पूर्वी एशिया में 40° उत्तरी अक्षांश से 40° दक्षिणी अक्षांश और 30° पश्चिमी देशान्तर से 130° पूर्वी देशान्तर तक का क्षेत्र मानसूनी प्रदेश के अन्तर्गत आता है ।

भारतीय मानसूनी वर्षा की प्रमुख विशेषताएँ

भारत एक विशाल देश है तथा यहाँ वर्षा का वितरण एकसमान नहीं है ।पश्चिमी तट तथा उत्तर-पूर्वी भागों में उच्चावचीय लक्षणों के कारण सबसे अधिक वर्षा होती है । पश्चिमी राजस्थान और उसके आसपास के भागों में बहुत ही कम वर्षा होती है । हमारे देश में जो वर्षा होती है वह अनियमित एवं अनिश्चित है।

भारतीय मानसूनी वर्षा की प्रमुख विशेषताएँ निम्न प्रकार से हैं-

1. मानसूनी वर्षा – सामान्यतः भारत में मानसूनी वर्षा की अवधि 15 जून से 15 सितम्बर तक होती है । हमारे देश में अधिकांश वर्षा दक्षिण – पश्चिमी ग्रीष्मकालीन मानसूनी पवनों से होती है । इस समय देश में वर्षा का 75 से 90% भाग प्राप्त हो जाता है। इसे वर्षा ऋतु भी कहा जाता है । शीतकालीन मानसूनों से यहाँ बहुत ही कम वर्षा होती है । यहाँ शीतकालीन मानसूनी वर्षा का लगभग 20% ही प्राप्त होता है ।

2. वर्षा की निश्चित अवधि – भारत में विभिन्न प्रकार की जलवायु पाई जाती है । एक स्थान से दूसरे स्थान और एक ऋतु से दूसरी ऋतु में पर्याप्त अन्तर होता है । परन्तु फिर भी यहाँ मानसूनी वर्षा की अवधि 15 जून से 15 सितम्बर तक की निश्चित होती है । इस मानसूनी वर्षा की अवधि को वर्षा ऋतु कहा जाता है । इस प्रकार वर्ष का अधिकांश भाग वर्षारहित ही रहता है, केवल कुछ ही क्षेत्रों में थोड़ी-बहुत वर्षा होती है ।

3. मूसलाधार वर्षा – भारत में बहुत तेजी से वर्षा होती है, जिसे मूसलाधार वर्षा कहते हैं । एक ही दिन में यहाँ 50 सेमी से भी अधिक वर्षा होती है । इतनी अधिक वर्षा एक साथ होने से अधिकांश जल बेकार ही बहकर चला जाता है । कभी-कभी तो कई – कई दिनों तक लगातार वर्षा होती रहती है । मूसलाधार वर्षा होने के कारण भूमि का कटाव भी हो जाता है ।

4. वर्षा की अनियमितता – भारत में वर्षा बहुत ही अनियमित होती  पड़ता है । कभी-कभी तो यहाँ इतनी वर्षा हो जाती है कि चारों तरफ जल-भराव की स्थिति उत्पन्न हो जाती है । कभी-कभी तो भयानक बाढ़ का भी सामना करना । इसके विपरीत कभी-कभी वर्षा ऋतु होने पर भी ठीक वर्षा नहीं होती । लोग वर्षा के लिए तरसने लगते हैं और वर्षा की कमी के कारण सूखा भी पड़ जाता है।

5. वर्षा की अनिश्चितता – मानसूनी वर्षा बहुत ही अनिश्चित है । कभी-कभी तो वर्षा शीघ्र ही शुरू हो जाती है अर्थात् मानसून जल्दी ही आ जाते हैं और कभी-कभी मानसून देर में आते हैं, यानी वर्षा देर से शुरू होती है । कभी वर्षा अति शीघ्र होती है तो कभी शीघ्र ही समाप्त हो जाती है और कभी- कभी तो वर्षा होने में लम्बा अन्तराल भी हो जाता है ।

6. वितरण की असमानता – मानसूनी वर्षा का वितरण बड़ा ही असमान है । चेरापूंजी में विश्व की सर्वाधिक वर्षा (1200 सेमी) होती है । राजस्थान के पश्चिमी भागों में वर्षा का औसत 5 से 10 सेमी के मध्य ही रहता है । वर्षा की मात्रा पूर्व से पश्चिम की ओर तथा उत्तर से दक्षिण की ओर कम होती है । देश के कुछ भागों में अनावृष्टि तथा कुछ भागों में अतिवृष्टि का प्रकोप रहता है।

7. वर्षभर वर्षा – भारत में किसी-न-किसी स्थान पर पूरे वर्षभर वर्षा होती रहती है । जैसे- जून से सितम्बर तक उत्तर-पश्चिमी भारत में, मार्च से मई तक मालाबार तट तथा अक्टूबर से दिसम्बर तक कोरोमण्डल तट पर वर्षा होती है।

8. पर्वतीय वर्षा – भारत में होने वाली वर्षा का 90% भाग पर्वतीय वर्षा का है, क्योंकि पर्वत मानसूनी पवनों के मार्ग में बाधा बनकर वर्षा कराने में सहायक हैं । चक्रवातों द्वारा केवल 5% वर्षा होती है ।

9. भारतीय कृषि मानसूनी वर्षा का जुआ है – भारतीय कृषि मानसूनी वर्षा पर आधारित है । अगर यहाँ समय पर पर्याप्त वर्षा होती है तो फसलों का उत्पादन बहुत अच्छा और पर्याप्त मात्रा में होता है । इसके विपरीत जब मानसूनी वर्षा समय पर नहीं होती तो फसलों का उत्पादन भी पर्याप्त मात्रा में नहीं हो पाता। उदाहरण के लिए – जिस प्रकार जुए के खेल में दाँव ठीक बैठने पर जीत होती है और जब दाँव ठीक नहीं बैठता तो हार होती है, ठीक उसी प्रकार से भारतीय कृषि की स्थिति है । यही कारण है कि भारतीय कृषि ‘मानसून का जुआ’ कहलाती है।

10. निष्कर्ष – संक्षेप में कहा जा सकता है कि जिस प्रकार से भारत देश में विभिन्नता होते हुए भी एकता है, ठीक उसी प्रकार से मानसूनी वर्षा में कई दोष होने पर भी इसकी एक अलग ही विशेषता है।

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