भूगोल / Geography

जीन ब्रून्स के अनुसार मानव भूगोल की विषय-वस्तु

जीन ब्रून्स के अनुसार मानव भूगोल
जीन ब्रून्स के अनुसार मानव भूगोल

अनुक्रम (Contents)

जीन ब्रून्स के अनुसार मानव भूगोल के क्षेत्र की विवेचना कीजिये।

अथवा

ब्रून्स द्वारा प्रतिपादित मानव भूगोल की विषय-वस्तु की विवेचना कीजिये।

अथवा

मानव भूगोल की विषय-वस्तु में जीन ब्रूंश के योगदान की विवेचना कीजिये।

अथवा

मानव भूगोल के सम्बन्ध में जीन ब्रूंश के विचारों की व्याख्या कीजिये।

जीन ब्रून्स के अनुसार मानव भूगोल – मानव भूगोल का विषय-क्षेत्र अति व्यापक है तथा विभिन्न भूगोलवेत्ताओं ने इसकी विषय-वस्तु अथवा तथ्यों का विभाजन भिन्न-भिन्न दृष्टिकोणों के आधार पर किया है। मानव भूगोल की विषय-वस्तु को वर्गीकृत करने वाले भूगोलवेत्ताओं में फ्रांसीसी जीन ब्रून्स तथा अमेरिकन भूगोलवेत्ता ऐल्सवर्थ हंटिंगटन के नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं।

जीन ब्रून्स के अनुसार मानव भूगोल की विषय-वस्तु (Subject Matter of Human geography According to Jean Bruhnes)

ब्रून्स महोदय ने मानव भूगोल के तथ्यों का वर्गीकरण मानवीय क्रिया-कलापों को आधार मानकर किया है। उन्होंने मानव भूगोल की विषय-वस्तु का वर्गीकरण निम्नालिखित दो आधारों पर किया-

(1) सभ्यता के विकास (Evolutionof Civilization) के आधार पर;
(2) सांस्कृतिक तथ्यों (Cultural Facts) के वितरण के आधार पर, जिससे यथार्थ वर्गीकरण (Positive) भी कहते हैं।

1. सभ्यता के विकास पर आधारित वर्गीकरण

(1) अनिवार्य आवश्यकताओं का भूगोल;
(2) भूमि शोषण सम्बन्धी भूगोल,
(3) सामाजिक भूगोल;
(4) राजनैतिक और ऐतिहासिक भूगोल।

2. यथार्थ वर्गीकरण

प्रथम वर्ग-मिट्टी कर अनुत्पादक प्रयोग-

(1) मकान
(2) परिवहन मार्ग।

द्वितीय वर्ग-मनुष्य की वनस्पति और पशु जगत पर विजय-

(1) कृषि;
(2) पशुपालन।
तृतीय वर्ग-विनाशकारी उपयोग-
(1) पौधों और पशुओं का विनाश;
(2) खनिजों का शोषण।

इस प्रकार यथार्थ वर्गीकरण में ब्रून्स ने मानव भूगोल के क्षेत्र को तीन वर्गो और छह आवश्यक तथ्यों में विभक्त किया है सभ्यता के विकास पर आधारित वर्गीकरण की तुलना में ब्रून्स का यथार्थ वर्गीकरण अधिक लोकप्रिय एवं महत्त्वपूर्ण है। यथार्थ वर्गीकरण को प्रस्तुत करते समय ब्रून्स ने भूतल पर स्पष्ट सांस्कृतिक चिह्नों को इस प्रकार ध्यान में रखा है मानों कि वे हवाई जहाज में बैठकर ऊपर से देखने गये हों। यहाँ पर ब्रून्स ने निश्चय ही मानव के क्रिया-कलाप को प्रधानता दी है और उसके कार्यों के आधार पर ही वर्गीकरण किया है।

मिट्टी के अनुत्पादक प्रयोग सम्बन्धी तथ्य (Facts of the Umproductive Occuation of Soil)-

भूतल पर मानव द्वारा निर्मित मकानों और मार्गों से प्रत्यक्ष में कोई भी उत्पादन नहीं होता है। मकानों के अन्तर्गत छोटी-छोटी एकाकी झोंपड़ियों से लेकर आधुनिक गगनचम्बी भवन तक आ जाते हैं। इसी तरह मार्ग को भी विस्तृत अर्थ में प्रयुक्त किया गया है। पैदल मार्ग, मकानों के बीच की गलियाँ, कच्ची व पक्की सड़ें, रेलमार्ग, पुल व सुरंग सभी इसके अन्तर्गत आते हैं। मकान और सड़कों का अध्ययन निम्नलिखित तथ्यों में बाँटकर किया गया है-

(1) मकानों के भेद;
(2) मार्ग और सड़कों की भौतिक विशेषताएँ,
(3) मानवीय बस्तियों की प्रमुख विशेषताएँ;
(4) मानवीय बस्तियों का भौगोलिक स्थानीयकरण, स्थिति तथा सीमाएँ;
(5) नगरीय समूह और राजमार्ग;

वनस्पति और पशु जगत पर विजय सम्बन्धी तथ्य (Facts of Plant and Animal Conquests)-

पृथ्वी पर अवतरित होने के काफी समय बाद तक मानव पशुओं की भाँति नंगा धमता था, साथ ही उन्हीं की भाँति भोजन और आवास की आवश्यकताओं की पूर्ति करता था। मस्तिष्क के शनैः-शनैः विकसित होने से मानव ने कुछ पशुओं को पालना शुरू कर दिया और कुछ को अपने क्षेत्रों से मार भगाया। ऐसा ही प्राकृतिक वनस्पति के लिए भी किया। इनहीं को क्रमशः पशुपालन और कृषि का नाम भी दिया गया। वनस्पति और पशु जगत पर विजय प्राप्त करके एक और तो मानव ने अपना जीवन-निर्वाह सरल और आरामदायक बनाया, दूसरी ओर उसने भू-तल के स्वरूप को भी बदल दिया। वनों को काटकर कृषि-भूमि में परिवर्तित करने, बागानी कृषि द्वारा किसी क्षेत्र में एक जैसे पेड़-पौधों की ही वृद्धि करने, गस्तानी भागों में सिंचाई के द्वारा पेड़-पौधों को लगाने तथा उच्च अक्षांशों पर गेहूँ, जौ आदि की कृषि करने से भू-भागों का प्राकृतिक स्वरूप ही बदल गया है। वनस्पति और पशु जगत पर मानव की विजय का अध्ययन हम निम्नलिखित तथ्यों को ध्यान में रखकर करते हैं-

(1) प्राथमिक जलवायु तथ्यों से सम्बन्धित वनस्पति-भूगोल और पशु-भूगोल;
(2) कृषि की फसलों और पालतू पशुओं की उत्पति, महत्ता और संख्या, कृषि और

पशुपालन के विभिन्न प्रकार;

(3) मुख्य अनाज-गेहूँ, जौ, राई, मक्का और चावल;
(4) अन्य वनस्पतियों का उत्पादन;
(5) पशुओं और वनस्पति से प्राप्त होले वाले रेशे-कपास, रेशम और ऊन;
(6) घुमक्कड़ी पशुचारण।

विनाशकारी उपयोग सम्बन्धी तथ्य (Facts of Destructufe Economy)-

इस वर्ग में ने पौधों और पशुओं के विनाश तथा खनिजों के शोषण से सम्बन्धित क्रियाओं को स्थान दिया है। लकड़ी काटना, शिकार करना, मछली पकड़ना और खान खोदना, मनुष्य के मुख्य पेशों के अन्तर्गत आते हैं, परन्तु पशुपालन व कृषि से इनका स्वभाव भिन्न है। पशुपालन व कृषि में मनुष्य पशुओं और पेड़-पौधों को संरक्षण प्रदान करता है और उनकी संख्या को बढ़ाता है, जबकि लकड़ी काटने और शिकार करने में वह उनको नष्ट करता है। टैगा प्रदेश में व एष्ण कटिबन्धीय पर्वतीय प्रदेशों के कई क्षेत्रों में वनों को काटकर उसने उनकी उपस्थिति को समाप्त कर दिया है। कई प्रकार के पशुओं का शिकार करके भी यही स्थिति पैदा हुई है। खनिजों के शेषण के सन्दर्भ में तो यह बात. और भी स्पष्टता से देखी जा सकती है। मनुष्य जानता है कि किसी भू-भाग पर स्थित खनिजों को दोहन कर लेने पर वहाँ वे पनुः पैदा नहीं हो सकते, किन्तु इसकी उसने प्रारम्भ में कोई चिन्ता नहीं की। आज भले ही वह अब उनके दोहन में सावधानी बरतने की सोचने लगा है। मनुष्य द्वारा किये गये इन कार्यों से प्राकृतिक वातावरण भी परिवर्तित होने लगा है, अतः मानव की गणना भू-तल को प्रभावित करने वाली भौगोलिक शक्ति के रूप में करना पड़ती है। इन विध्वंसात्मक आर्थिक क्रियाओं द्वारा एक ओर मनुष्य की आर्थिक स्थिति में सुधार आता है तो दूसरी और जनसंख्या का वितरण और घनत्व भी प्रभावित होता है।

ब्रून्स द्वारा प्रस्तुत किया गया यथार्थ वर्गीकरण सांस्कृतिक तथ्यों के प्रत्यक्ष अवलोकन पर आधारित है। यह विषय के क्षेत्र को कुछ संकुचित करता हुआ-सा लगता है। ऊपरी दृष्टि से यह क्योंकि जब इन क्रिया-कलापों के बारे में अध्ययन करते हैं तो उनके द्वारा हुए सामाजिक विकास का उल्लेख भी अवश्य होता है। फलतः मानव की उच्च आवश्यकताओं के बारे में भी सोचना अनिवार्य हो जाता है। उदाहरण के लिए-मकान और मार्ग प्रत्यक्षतः तो आवास और आवागमन की समस्या है। इसी प्रकार वनस्पति व पशु संसार के अन्तर्गत कृषि की सीमा बढ़ाने के निए भूमि की प्रति इकाई का हल प्रस्तुत करते है, किन्तु व्यावहारिक महत्त्व और सांस्कृतिक सम्पर्क के लिए भूमिका भी उपादेय उपज कढ़ाने के लिए फलो-पुष्पों या अनाज की किस्म कृत्रिम रूप से बदलने के लिए तथा पशुओं की चिकित्सा एवं उनकी नस्ल सुधारने के लिए जो वैज्ञानिक प्रयोग और आविष्कार किये गये हैं उनका भी उल्लेख स्वाभाविक रूप में होता है।

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