राजनीति विज्ञान / Political Science

प्लेटो प्रथम साम्यवादी के रूप में (Plato As the First Communist )

प्लेटो प्रथम साम्यवादी के रूप में

प्लेटो प्रथम साम्यवादी के रूप में

प्लेटो प्रथम साम्यवादी के रूप में

प्लेटो प्रथम साम्यवादी के रूप में
 (Plato As the First Communist)

मैक्सी ने अपने ग्रन्थ ‘पोलिटिकल फिलास्फी’ (Political Philosophy) में लिखा है कि प्लेटो साम्यवादी विचारों का मुख्य प्रेरणा स्रोत है और “रिपब्लिक’ (Republic) में सभी साम्यवादी और समाजवादी विचारों के बीज मिलते हैं। लेकिन प्रो. नैटलशिप. प्रो. कैटलिन, प्रो. बार्कर, मैकरी के इस विचार से सहमत नहीं हैं। प्रो. कैटलिन के अनुसार प्लेटो का साम्यवाद न तो स्ववर्गीय है और न ही अन्तरराष्ट्रीय है। यह आधुनिक साम्यवाद से बिल्कुल मेल नहीं खाता। आधुनिक साम्यवाद जिसका प्रतिपादन कार्ल माक्स और लेनिन जैसे विचारकों ने किया है, एक वर्ग-विहीन और राज्य विहीन समाज के विश्वास करते हैं। मुख्य रूप में यह विचारधारा पूंजीपति वर्ग के सर्वहारा वर्ग के शोषण को समाप्त करने पर जोर देती है।

प्रो. जायजी की राय में प्लेटो और रूस के साम्यवादियों में बहुत सी समानता है। दोनों ही व्यक्तिगत सम्पत्ति को सभी बुराइयों की जड़ मानते हैं, दोनों ही व्यक्तिगत सम्पत्ति और गरीबी को समाप्त करने के पक्षधर हैं। दोनों ही सामूहिक शिक्षा और बच्चों की सामूहिक देख-रेख में चाहते हैं। दोनों ही कला और साहित्य को राज्य का केवल साधन मानते हैं और दोनों सभी विज्ञान और विचारधाराओं को राज्य के हित में प्रयोग करना चाहते हैं। इस आधार पर प्लेटो को प्रथम साम्यवादी मानना सर्वथा सही है। लेकिन दूसरी ओर टेलर ने इसके विपरीत विचार दिए हैं। टेलर के अनुसार- रिपब्लिक में न तो समाजवाद पाया जाता है और न साम्यवाद। प्लेटो को प्रथम साम्यवादी मानने के लिए साम्यवाद की आधुनिक विचारधारा को प्लेटो की विचारधारा से तुलना करना आवश्यक हो जाता है। दोनों अवधारणाओं में कुछ समानताएँ व असमानताएँ हैं।

समानताएँ (Similarities)

प्लेटो के प्रथम साम्यवादी होने के पक्ष में कुछ विचार है, जो परस्पर दोनों विचारधाराओं की समानता पर आधारित है। दोनों में मुख्य समानताएँ निम्नलिखित हैं :-

1. व्यक्तिगत सम्पति सारी पुराइयों की जक है (Private Property is the Rout of all Evils) : प्लेटो और आधुनिक साम्यवाद दोनों ही इस बात पर सहमत हैं कि समाज में समस्त दोषों का कारण निजी सम्पत्ति का पाया जाना है। इसलिए इसके स्थान पर सार्वजनिक सम्पत्ति की व्यवस्था करना आवश्यक है। प्लेटो ने संरक्षक वर्ग को व्यक्तिगत सम्पत्ति से वंचित करके स्वयं को आधुनिक साम्यवाद के पास लाकर रख दिया है। व्यक्तिगत सम्पत्ति के अन्त से ही समाज की सभी बुराइयों का अन्त हो सकता है।

2. अधिनायकतन्त्र में आस्था (Faith in Dictatorship) : दोनों ही साम्यवाद सम्पूर्ण समाज के हित के लिए सर्वसत्ताधिकावादी राज्य या शासक में विश्वास करते हैं। प्लेटो विवेकयुक्त दार्शनिक शासक के अधिनायकतन्त्र की स्थापना करता है जो कानून एवं परम्परा से ऊपर है। वह उत्पादक व सैनिक वर्ग पर समाज हित में पूर्ण नियन्त्रण रखता है। प्लेटो का दार्शनिक शासक सर्वशक्तिमान है। आधुनिक साम्यवादी सर्वहारा वर्ग की तानाशाही में विश्वास करते हैं। अतः दोनों ही अधिनायकतन्त्र के पक्षधर हैं।

3. स्त्री-पुरुष की समानता में विश्वास (Faith in Equality or women and Men) : दोनों ही साम्यवादी स्त्री-पुरुष की समान योग्यता व क्षमता में विश्वास करते हैं। प्लेटो के अनुसार स्त्री-पुरुष में लिंग भेद को छोड़कर कोई अन्तर नहीं है। स्त्रियाँ भी पुरुषों की तरह प्रशासकीय पदों को अच्छी तरह संभाल सकती हैं। आधुनिक साम्यवादी भी नारी शक्ति में पूर्ण विश्वास करते है।

4. कला और साहित्य राज्य के साधन है (Art and Literature are Means of State) : दोनों ही साम्यवाद कला और साहित्य को केवल एक साधन मानते हैं जो केवल राज्य के हितों के अनुकूल होना चाहिए। इसलिए वे कला और साहित्य पर नियन्त्रण की बात करते हैं। कविता की भावना, संगीत के स्वर, वाद्ययन्त्रों की लय तक को वे राज्य द्वारा नियन्त्रित व निर्देशित करना चाहते हैं। इसी तरह आधुनिक साम्यवादी भी कला और साहित्य पर कठोर नियन्त्रण की बात करते हैं। यदि कोई कला व साहित्य राज्य हितों के विपरीत है तो उसे किसी भी अवस्था में सम्मान नहीं दिया जा सकता। अतः दोनों ही साम्यवादी कला ओर साहित्य पर नियन्त्रण के पक्षधर हैं और वे इन्हें राज्य के कल्याण का एक साधन मानते हैं। इस साधन का पवित्र होना जरूरी है।

5. कर्तव्य की भावना ही सामाजिक न्याय है (The Sense of Duty is Social Justice) : दोनों ही साम्यबाद समाज के हित में ही व्यक्ति का हित मानते हैं। वे कर्तव्यों पर अधिक जोर देते हैं। ये अधिकारों के नाम पर प्रतिबन्धों की व्यवस्था के समर्थक हैं। प्लेटो ने अपनी योग्यतानुसार योग्य स्थान पर काम करने को सामाजिक न्याय कहा है। आधुनिक साम्यवाद भी इस बात पर जोर देता है कि खाने का अधिकार उसी मनुष्य को है जो समाज के लिए काम करता है। अतः दोनों ही साम्यवादी अधिकारों की तुलना में कर्त्तव्यों को महत्त्व देते हैं।

6. अव्यावहारिक (Impracticable) : दोनों ही साम्यवाद मानव-स्वभाव व मनोविज्ञान के अनुरूप नहीं हैं, इसलिए ये व्यावहारिक नहीं है। इस दोष कारण न तो प्लेटो की साम्यवादी व्यवस्था कभी कायम हुई है और न ही होगी। इसी तरह आधुनिक साम्यवादी जिस शक्ति द्वारा साम्यवादी समाज की स्थापना की बात करते हैं, वह भी अव्यावहारिक है। आज विश्व के अनेक साम्यवादी व्यवस्था पतन की राह पर है।

7. समष्टिवाद में विश्वास : दोनों ही व्यवस्थाएँ समष्टिवादी हैं। दोनों साम्यवाद समुदाय की सर्वोच्चता में विश्वास करते हैं जिसमें व्यक्ति की वैयक्तिकता की उपेक्षा करते हैं। दोनों व्यवस्थाओं में व्यक्ति को एक साधनमात्र माना गया है।

8. आर्थिक प्रतियोगिता की समाप्ति : दोनों ही साम्यवाद समाज के आर्थिक प्रतियोगिता को समाप्त करने के पक्षधर है। प्लेटो का विश्वास है, यही राजनीतिक कलह का कारण है। आधुनिक साम्यवाद भी आर्थिक प्रतियोगिता को समाप्त कर समाज में एकता का भाव पैदा करना चाहता है। उपर्युक्त तकों के आधार पर कहा जा सकता है कि प्लेटो ने ही साम्यवाद के बीज बो दिए थे। प्लेटो के साम्यवादी सिद्धान्तों के आधार पर ही आधुनिक साम्यवादी दर्शन खड़ा किया है। इस दृष्टि से प्लेटो को प्रथम साम्यवादी कहना सर्वथा सही है।

असमानताएँ (Dissimilarities)

प्लेटो के साम्यवाद व आधुनिक साम्यवाद में बहुत सी असमानताएँ हैं जिनके आधार पर उसके प्रथम साम्यवादी होने के विचार का खण्डन किया गया है। वे आधार निम्नलिखित हैं:-

1. अर्थ साम्यवाव और पूर्ण साम्यवाव (Hall versus Full Communism) : प्लेटो का साम्यवाद सारे समाज पर लागू न होकर केवल संरक्षक वर्ग तक ही सीमित है। प्लेटो ने उत्पादक वर्ग को अपनी इस व्यवस्था से पूर्णतया बाहर रखकर अपने अर्ध-साम्यवादी होने का ही परिचय दिया है। आधानिक साम्यवाद पूरे समाज के लोगों पर समान रूप से लागू होता है लेकिन इसमें परिवार का साम्यवाद शामिल नहीं है। आधुनिक साम्यवाद समाज के हर वर्ग को अपने में समेटकर चलता है। अतः दोनों अन्तर है।

2 संन्यासवाद और भौतिकवाद (Asceticism Versus Materialism): प्लेटो का साम्यवाद वास्तव में तपस्यात्मक है। प्लेटो शासकों को भौतिक सुख साधनों से विरक्त बनाता है। बार्कर के शब्दों में – “यह समर्पण का मार्ग है और उस समर्पण की माँग सर्वोत्तम और केवल सर्वोत्तम व्यक्ति से ही की गई है।” प्लेटो ने संरक्षक वर्ग को समस्त सम्पत्ति से वंचित कर दिया क्योंकि वह निजी सम्पत्ति को सार्वजनिक कल्याण के कर्तव्य-पालन में एक बाधा मानता है। आधुनिक साम्यवाद की आधारशिला भौतिकता है। आधुनिक साम्यवाद भौतिक सुख-साधनों में वृद्धि को ही अपना लक्ष्य समानता है। आधुनिक साम्यवाद सम्पत्ति की वांछनीयता को स्वीकार करते हुए उसके वितरण पर बल देता है। अतः प्लेटो के साम्यवाद में न्याय का तात्पर्य कायों का यथोचित वितरण है तो आधुनिक साम्यवाद के सन्दर्भ में राज्य के उत्पादन का न्यायोचित वितरण।

3. राजनीतिक उद्देश्य और आर्थिक उदेस्य (Political Versus Economic Aim) : प्लेटो के साम्यवाद का लक्ष्य राजनीतिक है क्योंकि वह विशेष प्रकार की आर्थिक योजना के आधार पर राज्य में कुशासन तथा भ्रष्टाचार को समाप्त कर अच्छे शासन की स्थापना करना चाहता है। प्लेटो का उद्देश्य राजनीतिक स्थिरता पैदा करता है। आधुनिक साम्यवाद का प्रमख लक्ष्य आर्थिक है। आधुनिक साम्यवादी विशेष प्रकार की राजनीतिक व्यवस्था के आधार पर आर्थिक साधनों का न्यायपूर्ण वितरण करना चाहते हैं। अतः एक का लक्ष्य राजनीतिक है तो दूसरे का आर्थिक।

4. सवर्ग समाज और वर्गहीन समाज (Class Based Versus Classless Society) : प्लेटो के साम्यवाद में वर्गों का अस्तित्व जिनके कार्यों की विशिष्टता द्वारा राज्य की एकता मे वृद्धि की जाती है। आधुनिक साम्यवाद में वर्गविहीन समाज की स्थापना की बात की जाती है। इसमें वर्गों का कोई महत्व नहीं है।

5. पारिवारिक साम्यवाद के सम्बन्ध में भेव (Difference Regarding Communism of Families) : प्लेटो की साम्यवादी व्यवस्था में सम्पत्ति के साम्यवाद के साथ-साथ पत्नियों के साम्यवाद की भी व्यवस्था की गई है। किन्तु आधुनिक साम्यवाद में इस प्रकार की किसी व्यवस्था का प्रतिपादन नहीं किया गया है।

6. मगर राज्यों और अन्तरराष्ट्रीय का भेव (Difference Regarding City-State and Internationalism) : प्लेटो का साम्यवाद यूनान के छोटे-छोटे नगर-राज्यों को ध्यान में रखकर प्रतिपादित किया गया है। प्लेटो ने कभी विश्व व्यवस्था की बात नहीं की। अतः उनका साम्यवाद क्षेत्रवाद पर ही आधारित है। कार्लमार्क्स सम्पूर्ण विश्व के आर्थिक व राजनीतिक घटनाचक्र को ध्यान में रखते हुए अपने साम्यवादी सिद्धान्त की रचना की है। वे समस्त विश्व की एकता में विश्वास रखते हैं। अतः आधुनिक साम्यवाद विश्वस्तरीय है।

7. साम्यवाद में वार्शनिक शासकों की भूमिका में अन्तर (Difference Regarding the Role of the Working Class); प्लेटो के साम्यवाद में शासन का संचालन दार्शनिक शासक के नेतृत्व में होगा और सामान्य नागरिक उसका अनुसरण करेंगे, जबकि आधुनिक साम्यवाद दार्शनिक राजा का कोई स्थान नहीं। मजदूरों का साम्यवादी दल तानाशाही से सम्पूर्ण शासन-व्यवस्था पर नियन्त्रण रखता है।

8. साधन सम्बन्धी अन्तर (Difference Regarding Means) : प्लेटो ने अपने साम्यवाद की स्थापना के लिए किसी साधन का वर्णन नहीं किया है। आधुनिक साम्यवादी क्रान्ति या दूसरे हिंसात्मक साधनों के प्रयोग द्वारा साम्यवाद की स्थापना करने की बात कहते हैं।

9 वर्गों की संख्या में अन्तर (Difference in Number of Classes) : प्लेटो ने समाज में तीन वर्ग – दार्शनिक , सैनिक तथा उत्पादक का वर्णन किया है, जबकि मायर्स ने पूंजीपति व सर्वहारा वर्ग की ही व्याख्या की है। अतः प्लेटो के अनुसार समाज में तीन तथा आधुनिक साम्यवादी दो वर्गो की बात करते हैं।

10. अमिक वर्ग की महत्ता के सम्बन्ध में अन्तर (Difference Regarding the Importance of the Working Class) : प्लेटो के साम्यवाद में श्रमिक वर्ग को कोई महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त नहीं है, जबकि आधुनिक साम्यवाद में श्रमिक वर्ग को ही क्रान्ति का आधार माना गया है। आधुनिक साम्यवादी दर्शन तो अमिक वर्ग के इर्द-गिर्द ही घूमता है।

11. व्यावहारिका एवं अव्यावहारिक : प्लेटो का साम्यवाद पूर्णतः अव्यावहारिक है और इसे व्यवहार में कभी भी लागू नहीं किया जा सकता। आधुनिक साम्यवाद के बारे में ऐसा नहीं कहा जा सकता, क्योंकि आधुनिक साम्यवाद अनेक देशों में व्यावहारिक रूप में लागू हुआ है। यद्यपि यह रूस में तो असफल रहा लेकिन चीन में इसका अब भी अस्तित्व है। अतः प्लेटो के साम्यवाद की तुलना में आधुनिक साम्यवाद अधिक व्यावहारिक है।

12. परिस्थितियों सम्बन्धी अन्तर (Difference Regarding Circumstances) : प्लेटो का साम्यवाद 5 वीं शताब्दी को एथेन्स की परिस्थितियों की उपज है, जबकि आधुनिक साम्यवाद 19 वीं सदी में ब्रिटेन में उत्पन्न औद्योगिक क्रान्ति का परिणाम है। इस प्रकार अनेक असमानताओं के आधार पर टेलर का कथन उचित है- “रिपब्लिक में समाजवाद तथा साम्यवाद के बरे में बहुत कुछ कहे जाने के बावजूद वास्तव में इस ग्रन्थ में न तो समाजवाद है और न ही साम्यवाद।” इसलिए प्लेटो को प्रथम साम्यवादी मानना सर्वथा गलत है। प्लेटो में ऐसा कोई विशेष तत्त्व नहीं है, जो आधुनिक साम्यवाद से मेल खाता हो।

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