B.Ed. / BTC/ D.EL.ED / M.Ed.

प्रधानाचार्य के आवश्यक प्रबन्ध कौशल (Essential Management Skills of Headmaster in hindi)

प्रधानाचार्य के आवश्यक प्रबन्ध कौशल
प्रधानाचार्य के आवश्यक प्रबन्ध कौशल

प्रधानाचार्य के आवश्यक प्रबन्ध कौशल (Essential Management Skills of Headmaster in hindi)

प्रधानाचार्य के आवश्यक प्रबन्धन कौशल (Essential Management Skills of Headmaster in hindi)-प्रधानाचार्य विद्यालय की प्रगति के लिए उत्तरदायी है। उसे विद्यालय को एक सामाजिक संस्था के रूप में चलाना है, जिससे शिक्षा के माध्यम से वह विद्यालय की प्रगति के साथ ही समाज की भी प्रगति कर सके। प्रधानाचार्य के इस गम्भीर उत्तरदायित्व के आधार पर प्रशासक के रूप में उसे केवल विद्यालय को ही नेतृत्व प्रदान नहीं करना है, वरन् सम्पूर्ण समाज को नेतृत्व प्रदान करने हेतु तत्पर रहना चाहिए, क्योंकि विद्यालय में उन भावी नागरिकों का निर्माण होता है, जिन पर समाज, राष्ट्र एवं विश्व के संचालन का भार रहता है।

बालकृष्ण जोशी (S. Balkrishna Joshi) के अनुसार- “विद्यालय ईंट और गारे की बनी हुई इमारत नहीं, जिसमें विभिन्न प्रकार के छात्र और शिक्षक होते हैं । विद्यालय बाजार नहीं है, जहाँ विभिन्न योग्यताओं वाले अनिच्छुक व्यक्तियों को ज्ञान प्रदान किया जाता है। विद्यालय रेल का प्लेटफार्म नहीं है, जहाँ विभिन्न उद्देश्यों से विभिन्न व्यक्तियों की भीड़ जमा होती है। विद्यालय कठोर सुधार-गृह नहीं है, जहाँ किशोर अपराधियों पर कड़ी निगरानी रखी जाती है। विद्यालय आध्यात्मिक संगठन हैं, जिसका अपना स्वयं का विशिष्ट व्यक्तित्व है। विद्यालय गतिशील सामुदायिक केन्द्र है जो चारों ओर जीवन और शक्ति का संचार करता है। विद्यालय एक आश्चर्यजनक भवन है, जिसका आधार सद्भावना है–जनता की सद्भावना, माता-पिता की सद्भावना , छात्रों की सद्भावना। सारांश में एक सुसंचालित विद्यालय, एक सुखी परिवार, एक पवित्र मन्दिर, एक सामाजिक केन्द्र, लघु रूप में एक राज्य और मनमोहक वृन्दावन है। इसमें इन बातों का सुन्दर मिश्रण होता है।”

विद्यालय एक महत्वपूर्ण संस्थान है, जिसका प्रतिनिधित्व प्रधानाचार्य को करना पड़ता  है। जैसा प्रधानाचार्य होगा वैसा ही विद्यालय होगा। एक योग्य एवं विद्वान प्रधानाचार्य, जिसमें प्रशासनिक क्षमता होगी वही अपने कर्तव्यों एवं दायित्वों का निर्वहन कर सकता है। प्रधानाचार्य अपने दायित्वों का निर्वहन शिक्षा के माध्यम से करता है।

प्रधानाचार्य शिक्षा के उन उद्देश्यों की प्राप्ति में सहायता करता है जिनसे बालकों के सम्पूर्ण व्यक्तित्व का विकास हो सके। व्यक्ति, समाज एवं राष्ट्र की आवश्यकताओं, आदर्शो एवं आकांक्षाओं की पूर्ति हो सके। अत: प्रधानाचार्य को विद्यालय का मुखिया होने के कारण अग्रलिखित कर्तव्यों एवं उत्तरदायित्वों के साथ प्रबन्ध कौशलों को निभाना पड़ता है-

प्रधानाचार्य का पद अपने उत्तरदायित्वों एवं कर्तव्यों से दबा हुआ है। विद्यालय की प्रगति के लिए योजना बनाना, उन्हें संचालित करना एव सफल बनाने का प्रयास करना प्रधानाचार्य का कर्तव्य है। उसे एक प्रशासक के रूप में संगठनकर्ता के दायित्वों को पूरा करना पड़ता है। विद्यालय में सहयोगी शिक्षकों के मध्य उनकी रुचि के अनुकूल कार्यों का विभाजन करना, उनमें समायोजन क्षमता उत्पन्न करना, विद्यालय प्रशासन को बनाये रखना, शिक्षक-शिक्षार्थी अभिभावकों को शिक्षा के वर्तमान उद्देश्यों से अवगत करना, पुस्तकालय की उचित व्यवस्था करना, शिक्षकों की भर्त्सना न करना तथा उन्हें आत्म-मंथन एवं मूल्यांकन का अवसर देना, कार्य का संचालन सुव्यवस्थित, सुसंगठित, सुनियोजित ढंग से करना आदि। कार्य को सम्पादित करने में सम्पूर्ण स्टाफ की संयुक्त शक्ति का उपयोग करना प्रधानाचार्य के मुख्य दायित्व है।

निरीक्षण (Supervision)-

प्रधानाचार्य के निरीक्षण सम्बन्धी कार्य बहुत ही महत्वपूर्ण एवं व्यापक हैं। निरीक्षण द्वारा वह विद्यालय की गतिविधियों पर नजर रखता है। वह यह देखता है कि विद्यालय के सम्पूर्ण कार्यक्रम समुचित रूप से चल रहे हैं या नहीं। श्री रायबर्न (W.M. Ryburn) के शब्दों में, “निरीक्षण विस्तृत होना चाहिए, विद्यालय की समस्त क्रियाएँ इसके अधिकार क्षेत्र के अन्तर्गत दी जाती है। विद्यालय जीवन का कोई भी अंग अछूता नहीं रहना चाहिए, जिसका कि प्रधानाचार्य द्वारा निरीक्षण न किया जाये, क्योंकि छात्र को बनाने एवं बिगाड़ने में विद्यालय की सभी बातें कुछ न कुछ अवश्य योगदान देती है।” केवल शिक्षण कार्य का ही निरीक्षण करना पर्याप्त नहीं, बल्कि विद्यालय के बाहर भी छात्र जो क्रियाएँ करते हैं, उनकी देखभाल करना आवश्यक है। प्रधानाचार्य के निरीक्षण सम्बन्धी कर्तव्य एवं दायित्व निम्नवत् हैं-

शिक्षण कार्य का निरीक्षण (Supervision of teaching work)-

शिक्षकों के कार्यों का निरीक्षण करके उन्हें समय-समय पर निर्देश देना एवं प्रगति हेतु प्रेरित करते रहना चाहिए। प्रधानाचार्य को निरीक्षण के कार्यक्रम की योजनार बनाने और कक्षा में निरीक्षण कार्य करने के लिए उसके साथ एक पुस्तिका’ रखनी चाहिए। कक्षावार सभी विषयों का निरीक्षण करता हुआ पुस्तिका में उन सुझावों एवं कमियों को लिखता रहे जिनके द्वारा शिक्षण कार्य में सुधार लाया जा सके, उसके स्तर को ऊँचा उठा सके।

शिक्षण पद्धतियों एवं सहायक सामग्री का निरीक्षण (Superivision of teaching methods and helpful material)-

शिक्षकों द्वारा शिक्षण कार्य में अपनायी जाने वाली विधियों, प्रविधियों, प्रवृत्तियों, शिक्षा-दर्शन एवं सहायक सामग्री का निरीक्षण करना चाहिए। प्रधानाचार्य को यह भी देखभाल करनी चाहिए कि शिक्षण में किस प्रकार की सामग्री एवं विधि का प्रयोग हो रहा है। प्रधानाचार्य को अपने सुझाव अध्यापक पर जबर्दस्ती नहीं लादने चाहिए। उनसे विचार-विमर्श करके ही समझाने का प्रयास करना चाहिए। शिक्षक की त्रुटियों को कक्षा में नहीं बताना चाहिए। कक्षा के बाद बुलाकर व्यक्तिगत रूप से बताना चाहिए। प्रधानाचार्य का निरीक्षण एक अधिकारी के रूप में भयभीत करने वाला नहीं होना चाहिए, बल्कि उसका निरीक्षण मित्र, सहयोगी, परामर्शदाता एवं दार्शनिक के रूप में होना चाहिए।

छात्रों के लिखित कार्यों का निरीक्षण (Supervision of writing work in students)-

प्रधानाचार्य को छात्रों के लिखित कार्यों का समय-समय पर निरीक्षण करते रहना चाहिए, जिससे छात्र एवं अध्यापक दोनों के कार्यों का अनुमान हो सके। इसके अतिरिक्त उसे लिखित कार्य हेतु एक रजिस्टर रखवाना चाहिए, जिससे अध्यापक के सम्बन्ध में विषय से सम्बन्धित सुझाव दिये जा सके। समय-समय पर ऐसा करते रहने से अध्ययन-अध्यापन में सुधार होगा।

Important Links

Disclaimer

Disclaimer: Sarkariguider does not own this book, PDF Materials Images, neither created nor scanned. We just provide the Images and PDF links already available on the internet. If any way it violates the law or has any issues then kindly mail us: guidersarkari@gmail.com

About the author

Sarkari Guider Team

Leave a Comment