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शैक्षिक प्रशासन के प्रकार types of educational administration in hindi

शैक्षिक प्रशासन के प्रकार types of educational administration in hindi
शैक्षिक प्रशासन के प्रकार types of educational administration in hindi

शैक्षिक प्रशासन के प्रकार types of educational administration in hindi

शैक्षिक प्रशासन के प्रकार- शैक्षिक प्रशासन के मूलतः निम्नलिखित तीन प्रकार हैं-

1.सर्वाधिकारयुक्त शैक्षिक प्रशासन-

सर्वाधिकारयुक्त शैक्षिक प्रशासन में राज्य या देश को सर्वाधिकार प्राप्त होता है। राज्य, देशहित में जो भी कार्य करता है या शैक्षिक नियमों/पाठ्यक्रमों को निर्धारित करता है, उसमें पूर्ण रूप से देश को सर्वोच्च स्थान प्रदान करता है। इसमें व्यक्ति के अथवा नागरिक के अथवा बालक के अधिकार सीमित होते हैं या गौण होते हैं। इस प्रकार के शैक्षिक प्रशासन का उद्देश्यय समाजवाद की स्थापना और उसे गति प्रदान करना, वर्गहीन समाजे का विकास करना होता है। इसका उद्देश्यय समतामूलक, शोषणमुक्त समाज का निर्माण करना है। इसमें शिक्षा के माध्यम से राष्ट्र के हितों को सबल बनाया जाता है। राष्ट्र की सामूहिक आवश्यकता के अनुसार शिक्षा की व्यवस्था और उसका नियोजन किया जाता है।

सर्वाधिकारवादी शैक्षिक प्रशासन की विशेषताएँ –

सर्वाधिकारवादी शैक्षिक प्रशासन की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

(1) यह शिक्षा सभी के लिए उपलब्ध तथा निःशुल्क होती है।

(2) सभी स्थानों पर एकसमान उपलब्ध एवं अनिचार्य होती है।

(3) शिक्षा का उद्देश्य सामाजिक एकता, समता तथा संस्कृति के विकास को सुनिश्चित करना होता है।

(4) पूर्व-प्राथमिक शिक्षा को अधिक महत्व प्रदान किया जाता है।

(5) विद्यालयों की शिक्षा को समाज एवं राष्ट्र के हितों एवं आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर निर्धारित किया जाता है।

(6) इस शिक्षा में धर्म एवं व्यक्तिगत रुचि एवं विकास को कोई स्थान नहीं है।

(7) इसमें व्यावसायिक शिक्षा, राष्ट्रीय महत्व की शिक्षा, भौतिक सम्पन्नता, वैज्ञानिक शिक्षा पर विशेष बल होता है।

(8) यह शैक्षिक व्यवस्था परम्परागत नीतियों, व्यवस्था पर आधारित होती है। मौलिक व्यक्तिगत स्वतन्त्रता के लिए कोई स्थान नहीं होता। यह परिवर्तन की विरोधी है।

सर्वाधिकारवादी शैक्षिक प्रशासन की हानियाँ-

सर्वाधिकारवादी शैक्षिक प्रशासन की कुछ हानियाँ भी हैं, जो इस प्रकार हैं-

(1) बालक एवं राष्ट्र की एकांगी (केवल भौतिक) विकास ही हो पाता है।

(2) बालक के स्वतन्त्र व्यक्तित्व का विकास नहीं हो पाता। यदि तन्त्र में उपर्युक्त लक्षणों के प्रति निष्ठा का अभाव हो तो समाज में असन्तोष एवं विद्रोह पनपता

2. एकाधिकारवादी शैक्षिक प्रशासन-

आटोक्रेटिक बौद्धिक प्रशासन में शासन-सत्ता को सर्वोच्च स्थान प्राप्त है। व्यक्ति नागरिक या बालक को गौण या द्वितीयक स्थान दिया जाता है। प्रशासन के कार्य शासक की इच्छा, नीतियों एवं निर्णय के अनुसार ही होते हैं। इसमें तानाशाही की प्रवृत्ति कालान्तर में विकसित होने का खतरा रहता है। इसमें प्रशासन द्वारा जबरदस्ती/बलपूर्वक राष्ट्र-प्रेम, व्यक्ति-पूजा तथा अन्ध-भक्ति को थोपा जाता है। व्यक्तिगत विकास पर विशेष ध्यान नहीं दिया जाता है।

शैक्षिक विशेषताएँ –

इसमें राज्य या देश के विकास को प्रमुख स्थान सैद्धान्तिक रूप से प्रदान किया जाता है, जिससे देश का विकास अधिकतम होने की सम्भावना रहती है।

इसकी सीमाएँ या दोष निम्न प्रकार हैं

(1) शिक्षा का मशीनीकरण हो जाता है, जिसमें शिक्षकों की नैतिक एवं मानसिक शक्ति का पूर्ण सदुपयोग नहीं हो पाता। शिक्षकों में कुण्ठा एवं कार्य के प्रति अनादर का भाव विकसित होता है।

(2) यदि सत्ता का शीर्ष पदाधारी निरंकुश या एकांगी व्यक्तित्व का है तो देश के लिए विकास की बजाय भ्रष्टाचार, निरंकुशता तथा विद्रोह को बढ़ावा मिलता है।

(3) जन-भावना, शासन सत्ता, देश के खिलाफ होने लगती है।

(4) शैक्षिक कठोर नियन्त्रण के कारण बालक का स्वतन्त्र, स्वाभाविक, सर्वांगीण विकास नहीं हो सकता।

3. प्रजातान्त्रिक शैक्षिक प्रशासन-

लोकतंत्रात्मक देशों में शैक्षिक प्रशासन को प्रमुखता दी जाती है। यह प्रशासन व्यक्ति की स्वतन्त्रता, धर्मनिरपेक्षता, समाजवाद, मूल्य, आदर्श, परम्परा, विश्वबन्धुत्व, सद्भाव, परस्पर प्रेम आदि गुणों का विकास पर जोर देता है। यह सभी बालकों/व्यक्तियों/नागरिकों को उनकी क्षमता, रुचि, योग्यता के अनुसार विकास करने के अवसर प्रदान करता है। यह एक आदर्श शैक्षिक प्रशासन है, जिसमें व्यक्ति एवं समाज, नागरिक एवं देश का सन्तुलित विकास होता है। एक-दूसरे के लिए कार्य करते हैं। व्यक्ति से देश का विकास और देश या समाजों के द्वारा व्यक्तियों के विकास का प्रयास किया जाता है।

प्रजातान्त्रिक प्रशासन की शैक्षिक विशेषताएँ –

प्रजातांत्रिक प्रशासन की शैक्षिक विशेषताएँ इस प्रकार हैं-

(1) शिक्षा सर्वसुलभ हो एवं जनसामान्य की पहुँच में होनी चाहिए।

(2) शिक्षा में स्वतन्त्र रूप से सबको अपनी योग्यता, क्षमता को विकसित करने के अवसर मिलते हैं।

(3) बालक के व्यक्तिगत विकास को प्रमुखता दी जाती है, जिससे अभिभावक एवं समाज दोनों अपने-अपने स्तर से बालक का आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करते हैं, किन्तु बालक का स्वाभाविक विकास होता है न कि जबरन या बलपूर्वक। इसमें बालक की भी इच्छा सर्वोपरि होती है।

(4) शिक्षक को भी बालक के विकास के लिए पूर्ण सहयोग देने की स्वतन्त्रता होती है, केवल इस शर्त के साथ कि बालक एवं शिक्षक की स्वतन्त्रता देश के विकास, स्वतन्त्रता, हित के विरुद्ध न हो।

(5) शिक्षा प्रशासन, देश, काल, परम्परा, संस्कृति, तत्कालीन आवश्यकता आदि को ध्यान में रखता है।

(6) यह देश की शासनसत्ता, लोकसत्ता, समाज, व्यक्तिगत विभिन्नता को समान रूप से सम्मान देता है।

(7) पाठ्यक्रम तथा शिक्षण विधियाँ लचीली होती है जिन्हें समय-समय पर शासन द्वारा, देश की आवश्यकता एवं उपयोगिता को ध्यान में रखकर बदला जा सकता है।

(8) शैक्षिक संगठनों एवं प्रशासनिक मशीनरी एवं उच्च प्रशासन का विकेन्द्रीकरण होने से शक्ति का दुरुपयोग होने की आशंका न के बराबर है।

दोष या कमियाँ –

दोष निम्न प्रकार हैं-

(1) इस प्रशासनिक व्यवस्था में देश के समग्र विकास की दर या गति अपेक्षाकृत मन्द होती है।

(2) शिक्षा में निवेश की अपेक्षा प्रत्यक्ष परिणाम या लाभ कम दिखाई देता है या अधि
कि समय लगता है।

(3) इसमें मानवीय शक्ति या संसाधनों का नियोजित या योजनाबद्ध विकास सम्भव नहीं हो पाता।

(4) क्योंकि बालक तथा अभिभावक अपनी शिक्षा के लिए स्वतन्त्र होते हैं, अतः उनका निवेश प्रमुखतः लाभ के क्षेत्रों में ही अधिक होता है। परिणामत: किसी क्षेत्र का विकास अधिक एवं किसी का कम हो पाता है।

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