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पिछड़े बालकों की पहचान एंव इसकी समस्याएँ| Identification and Problems of Backward children

पिछड़े बालकों की पहचान एंव इसकी समस्याएँ| Identification and Problems of Backward children
पिछड़े बालकों की पहचान एंव इसकी समस्याएँ| Identification and Problems of Backward children

पिछड़े बालकों की पहचान का उल्लेख कीजिए।

कक्षा में विभिन्न प्रकार के विशिष्ट बालकों की पहचान के लिए विभिन्न पविधियों का प्रयोग करना पड़ता है कि प्रत्येक प्रकार के विशिष्ट बालक की अपनी विशेष पहचान होती हैं। पिछडें बालकों की पहचान के लिए भी अध्यापक को विभिन्न मापदण्डों का प्रयोग कर सकते हैं- इन बालकों की पहचान के लिए निम्नलिखित प्राविधियों का प्रयोग कर सकते हैं-

(1) सामूहिक परीक्षण- कक्षा में पिछडें बालकों की समूह में पहचान के लिए सभी बालकों की समूह में परीक्षा होनी चाहिए। इन सामूहिक परीक्षाओं में बुद्धि-परिक्षण और अभिरूचि परीक्षण, रूचि परीक्षण व व्यक्तित्व परीक्षण सम्मिलित हो सकते हैं।

(2) उपलब्धि परीक्षण- कक्षा में विद्यार्थी की शैक्षिक उपलब्धियों के आधार पर पिछड़े बालकों का पता लगाने के लिए विशेष रूप के उपलब्धि परीक्षणों का प्रयोग भी किया जाता है। ये उपलब्धि परीक्षण वस्तुनिष्ठ प्रकार के भी हो सकते है। इनसे प्राप्त अंको के अधार पर पिछडेपन का अनुमान लगाया जा सकता है। लेकिन ऐसे परीक्षण बनाने में अध्यापक को सावध जानी से प्रयोग करना चाहिए। क्योंकि इन परीक्षणों को तैयार करते समय विद्यालयी विषयों के सभी पक्षों का परिक्षण होना आवश्यक है।

(3) व्यक्तिगत बुद्धि परीक्षण- पिछड़े बालकों की पहचान के लिए व्यक्तिगत बुद्धि परीक्षणों के आधार पर चुने हुए बालकों का व्यक्तिगत बुद्धि परीक्षणों द्वारा भी परीक्षण किया जाता है। इनसे व्यक्तिगत बुद्धि-लब्धि का स्तर मालूम हो जाता है।

पिछड़ें बालकों की समस्याएँ

पिछड़े बालको को कई प्रकार की शिक्षा व समायोजन सम्बन्धी समस्याओं का सामना करना पड़ता हैं। इन समस्याओं के परिणामस्वरूप अध्यापक को इन बालकों की शिक्षा व समायोजन के लिए विशेष प्रयत्न करने पड़ते हैं। पिछड़े बालकों की मुख्य समस्याएँ इस प्रकार हैं-

(1) विद्यालयी सम्बन्धी समस्याएँ- पिछडें हुए बालक सीखने में मन्द होते हैं। वे समस्त कक्षा के बच्चों के सीखने की गति के साथ नहीं चल सकते। सामान्य बालकों के पिछड़े बालकों के साथ अधिगम में कठिना अनुभव होती है। शैक्षिक दृष्टि से जो पिछडें बालकों की उपलब्धि हो सकती है, वे उसे करने में असफल रहते हैं। अपनी आयु के बच्चों से वे पढाई के मामलों में अधिक पीछे रह जाते हैं। कई परिस्थितियों में तो पिछड़े बालक अपने से कम आयु वाले बालकों के साथ भी कार्य नहीं कर सकते परिणामस्वरूप विभिन्न परीक्षाओं में अपव्यय होता रहता है। इसके अतिरिक्त ऐसे पिछडें और बालकों और अध्यापकों के सम्बन्ध में दूरी होने के कारण उस वातावरण में स्वयं को समायोजित करने में कठिनाई का अनुभव करते हैं। सकूल और कक्षा में अनुशासनहीनता, विद्यार्थीयों को अभिप्रेरणा की कमी, पाठान्तर क्रियाओं का अभाव, अयोग्य अध्यापकों की नियुक्ति, शैक्षणिक, निर्देशान का अभाव, अध्यापकों का पक्षपात पूर्ण व्यवहार, अध्यापकों की ऐसे बालको के प्रति लापरवाही अध्यापक द्वार व्यक्तिगत ध्यान न देना, कक्षाओं में अन्य सुविधाओं, जैसे फर्नीचर पुस्तकालय, हवा तथा प्रकाश का प्रबन्ध, पीने के पानी का प्रबन्ध, शिक्षण सामग्री का न होना कक्षाओं का अकार यदि कारक पिछड़े हुए बालकों का स्कूल और कक्षाओं में समायोजन करने में बाधाएँ उत्पन्न करते हैं। पणिामस्वरूप बालक शैक्षिक उपलब्धियों के दृष्टिकोण से सामान्य बालकों से पिछड़ जाता है।

(2) संवेगात्मक समस्याएँ- पिछड़े हुए बालकों में कई प्रकार के दुर्बलताओं के कारण हीन भावना का आरंभ हो जाता है। शिक्षा के क्षेत्र में और सामाजिक सम्बन्धों में प्रभावहीन या असफल रहने से उनके जीवन में निराशा का भाव होना आरंभ हो जाता है। उनमें संवेगात्मक अस्थिरता हो जाती हैं। इस कारण उन्हें अपमान भी सहना पड़ता है। इस स्थिति के जारी रहने से उनका संवेगात्मक सन्तुलन बिगड़ जाता है। परिणाम स्वरूप और कई तरह की समस्याएँ उत्पन्न हो जाती है। उनका मन किसी भी कार्य में नहीं लगता। ऐसे वातावरण में बालक अन्य बालकों की दृष्टि से गिर जाता है। उचित स्नेह, प्यार और सुरक्षा नहीं मिलती।

(3) सामाजिक समस्याएँ- पिछडें बालकों के सामाजिक समायोजन की समस्याएँ अन्य समस्याओं के कारण बढ़ जाती है। वे स्वयं को समाज के अनुसार नहीं बदल सकते। समाज से अलग हो जाते है। उनके सामाजिक सम्पकों की संख्या भी सीमित रह जाती है। असुरक्षा की भावना के अन्तर्गत से कई बार तो असामाजिक तत्वों से मिलकर सामाज विरोधी व्यवहार का प्रदर्शन करते हैं। अपराध प्रावृत्ति के लोगों की पृष्ठभूमि में उनका पिछड़ा पन भी एक महत्व पूर्ण तत्व होता है। पिछडे बालाकों की सामाजिक समस्याओं का सामना करना भी अध्यापक के लिए एक चुनौति हो जाती है। लेकिन सामाजिक विकास के लिए पिछड़े बालकों की स्थापना अति आवश्यक है।

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