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भाषा विकास के निर्धारक | Bhaasha Vikaas ke Nirdhaarak in Hindi

भाषा विकास के निर्धारक
भाषा विकास के निर्धारक

भाषा विकास के निर्धारक | Bhaasha Vikaas ke Nirdhaarak in Hindi

भाषा विकास के निर्धारक- भाषा के विकास पर अनेक कारकों का प्रभाव पड़ता है, उनमें से कुछ प्रमुख कारक निम्नलिखित हैं-

1. मानसिक योग्यता (Mental Ability) 

अनेक अध्ययनों से ज्ञात हुआ है कि भाषा विकास पर बुद्धि का प्रभाव पड़ता है। मीड (Mead, 1913) के अनुसार औसत मानसिक योग्यता के बच्चों में वाणी प्रदर्शन 15-18 महीने में तथा बन्द बुद्धि बच्चों में 34-44 महीने में होता है। टर्मन (Terman, 1925) का कहना है कि प्रतिभाशाली बच्चों में प्रथम शब्द 11 माह में स्फुटित होता है तथा प्रतिभाशाली बालिकाओं में यह 10 माह में ही होता है। इरविन (Erwin, 1942) ने भी अपने अध्ययनों में इस कथन की पुष्टि की। अतः स्पष्ट है कि भाषा विकास तथा मानसिक योग्यता के मध्य घनिष्ठ सम्बन्ध है।

2. सामाजिक परिवेश (Social Environment) 

बच्चों में भाषा विकास तथा सामाजिक परिवेश के सम्बन्ध को ज्ञात करने के लिए जो अध्ययन हुए हैं, उनसे यह निष्कर्ष निकलता है कि निम्न सामाजिक स्तर के बच्चों में भाषा विकास विलम्ब से होता है जबकि उच्च सामाजिक आर्थिक स्तर के बच्चों में भाषा विकास शीघ्र होता है। इस सम्बन्ध में डे (Day, 1932), वान एलस्टाइन (Van Alstyne, 1921) तथा डेविस (Davis, 1937) के अध्ययन प्रमुख हैं। स्कील्स (1932) आदि ने अनाथ बच्चों में भाषा का अत्यधिक ह्रास पाया।

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3. शारीरिक स्वास्थ्य (Physical Health)

भाषा विकास पर बच्चों के स्वास्थ्य का भी प्रभाव पड़ता है। ऐसे बच्चे जो प्रायः बीमार पड़ते हैं, उनमें भाषा का विकास समुचित रूप से नहीं हो पाता है। बीमारी के कारण बच्चे अन्य लोगों के सम्पर्क में नहीं आ पाते हैं और भाषा विकास की प्रक्रिया अवरुद्ध हो जाती है। इस सम्बन्ध में स्मिथ (Smith, 1930) के अध्ययन अत्यन्त महत्वपूर्ण हैं।

4. नकारवृत्ति (Negatism )

कभी-कभी यह देखा गया है कि जब बच्चे बोलना नहीं चाहते हैं या पढ़ाया जाना और उच्चारण सिखाया जाना नहीं सीखना चाहते हैं, ऐसी स्थिति में यदि उन पर दबाव डाला जाता है या जबरन सिखाने का प्रयास किया जाता है तो प्रतिरोध प्रकट करते हैं और कुछ भी वार्ता करने या उच्चारण करने से इन्कार कर देते हैं। इसे बच्चों की नकारवृत्ति कहते हैं। इस प्रकार की आदत से भाषा के अधिगम की प्रक्रिया अवरुद्ध होती है।

5. बहरापन (Deafness)

जिन बच्चों के बहरेपन की समस्या होती है या जो कठिनाई से सुन पाते हैं उनमें भाषा विकास विलम्बित हो जाता है। उनमें उच्चारण क्षमता का स्तर निम्न होता है। शब्द भण्डार भी बहुत सीमित होता है। चूंकि भाषा विकास या वाणी विकास में अनुकरण का विशेष महत्व होता है अतः श्रवण सम्बन्धी कठिनाई के कारण उच्चारणों या ध्वनियों का सुन पाना कठिन होता है और इसका वाणी विकास पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

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6. लैंगिक भिन्नता (Sexual Difference)

वाणी विकास, उच्चारण तथा शब्द भण्डार पर लैंगिक भिन्नता का भी प्रभाव पड़ता है। इरविन एवं चेन (Irwin and Chen, 1946) ने एक अध्ययन में पाया गया कि प्रथम वर्ष में बालकों एवं बालिकाओं को ध्वनियों में कोई अन्तर नहीं था, परन्तु दूसरे वर्ष तथा उसके बाद बालिकाओं ने बालकों की अपेक्षा अधिक दक्षता का प्रदर्शन किया। इस सम्बन्ध में मीड (Mead, 1413 मैक्कार्थी (Macearthy, 1930) आदि के अध्ययन भी इस प्रकार के परिणामों की पुष्टि करते हैं।

7. बहुजन्म (Multiple Birth)

कुछ अध्ययनों में पाया गया है कि यदि एक साथ एक से अधिक सन्तानों का जन्म हुआ है तो उनमें भाषा का विकास विलम्ब से होता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि वे परस्पर एक-दूसरे का अनुकरण करते हैं और उन्हें अनुकरण के लिए उपयुक्त प्रतिमान (मॉडल) नहीं मिल पाता है। इसके विपरीत यदि एक बार में एक ही सन्तान उत्पन्न होती है तो उनमें भाषा का विकास समय से ही आरम्भ हो जाता है। इस सम्बन्ध में डेविस (Davis, 1937) तथा होवर्ड (Howard, 1946) आदि के द्वारा किये गये अध्ययन अत्यन्त महत्वपूर्ण हैं।

8. द्विभाषा वाद (Bilingualism) 

बच्चों की वाणी या भाषा विकास पर इसका भी प्रभाव पड़ता है कि वे एक साथ कितनी भाषायें सीख रहे हैं। यदि मातृभाषा के अतिरिक्त कोई अन्य विदेशी भाषा भी बच्चों को सिखाई जाती है तो इसका उनकी उच्चारण क्षमता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। ऐस इसलिए होता है क्योंकि बच्चों को भ्रम हो जाता है और भाषा विकास की प्रक्रिया प्रभावित होती है।  उदाहरणार्थ, यदि बच्चों को हिन्दी एवं अंग्रेजी साथ-साथ सिखाई जाती है तो दोनों में ही संतोषजनक परिणाम प्राप्त नहीं होते हैं। स्मिथ (Smith, 1939) ने अपने अध्ययनों में पाया है कि दो भाषाओं का एक साथ अध्ययन करने पर दोनों ही भाषाओं में त्रुटियाँ बढ़ती हैं।

9. परिपक्वता एवं अधिगम (Maturity and Learning)

भाषा विकास के लिए परिपक्वता एवं अधिगम अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं। आवश्यक परिपक्वता के अभाव में भाषा का प्रशिक्षण देने पर भी अपेक्षित परिणाम प्राप्त नहीं होते हैं और बच्चों में नकारात्मक प्रवृत्ति विकसित होने का भय रहता है। हरलॉक (Hurlock, 1950) का मानना है कि भाषा का प्रशिक्षण देते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि बच्चों में आवश्यक परिपक्वता आ चुकी है। इसी प्रकार अधिगम के अनुकूल वातावरण भी उत्पन्न करना आवश्यक है अन्यथा बच्चों की भाषा के विकास में ह्रास होता है।

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