मानसिक विकास को प्रभावित करने वाले मुख्य कारक | Mansik Swasthya Ko Prabhavit Karne Wale Kaarak
मानसिक विकास को प्रभावित करने वाले मुख्य कारक- मानव के विकास के हर पहलू को किसी न किसी कारक ने अवश्य ही प्रभावित किया है। इन कारकों का सम्बन्ध या तो वंशानुक्रम से होता है या वातावरण से होता है। दोनों ही मानसिक विकास में अपना-अपना योगदान देते हैं। इसके अतिरिक्त स्कूल, पौष्टिक भोजन, पारिवारिक सदस्यों का व्यवहार आदि भी प्रभावित करते हैं। इन कारकों के नकारात्मक प्रभाव के फलस्वरूप बालक की समस्त मानसिक शक्तियाँ प्रभावित होती हैं। यही कारण है कि विद्यालय, परिवार और समुदायों के मध्य सौहार्दपूर्ण सम्बन्धों की स्थापना पर निरन्तर बल देता है।
अतः बालक की हर विकास की अवस्था के दौरान मानसिक विकास की प्रक्रिया को निम्नलिखित कारक प्रभावित करते हैं—
1. शिशुकाल में अपर्याप्त भोजन- अध्ययनों से यह बात साफ हो चुकी है कि जन्म के बाद पहले वर्ष तक शिशुओं को यदि कम भोजन दिया जाए तो इसका प्रभाव मस्तिष्क के बाद में होने वाले विकास पर अवश्य पड़ता है। भ्रूणावस्था में मस्तिष्क की वृद्धि स्फुरण सबसे अधिक होती है। जन्म के पश्चात् प्रथम वर्ष के अन्त तक मस्तिष्क प्रौढ़ावस्था के मस्तिष्क के भार का 70 प्रतिशत भार ग्रहण कर लेता है। दो वर्ष की आयु तक मस्तिष्क का विकास लगभग पूर्ण हो जाता है। मस्तिष्क के तीव्र विकास के समय यदि उन्हें असंतुलित तथा अल्प आहार दिया जाए तो इससे उनमें मानसिक विकृतियाँ पैदा हो जाएंगी।
चेस और मार्टिन ने 19 बच्चों का अध्ययन किया। यह अध्ययन 1962 से 1967 के बीच किया गया। इन बच्चों के प्रारम्भिक कम भोजन और शारीरिक विकास में मंदन में धनात्मक सहसम्बन्ध पाया गया है। केवल एक ही बालक ऐसा था जिसका शारीरिक विकास कुछ ठीक हुआ, लेकिन उसके सिर की वृद्धि और मस्तिष्क का कार्य दोषपूर्ण ही पाये गए।
स्टाक और स्मिथ ने भी एक अध्ययन में मानसिक बुद्धि और विकास पर कम भोजन या अल्प आहार के प्रभावों को सिद्ध किया है। उन्होंने 20 ऐसे शिशु लिए जिनको बहुत ही कम भोजन मिलता था। उन्होंने उन शिशुओं की आयु और लिंग के अनुसार संतुलित और उपयुक्त भोजन लेने वाले शिशुओं का एक नियंत्रित समूह के साथ तुलनात्मक अध्ययन किया। अध्ययन के पूरे समय तक उपयुक्त भोजन वाले समूह की अपेक्षा कम भोजन वाले शिशुओं के समूह के सदस्यों के छोटे सिर, कम ऊँचाई और भार तथा कम बुद्धि-लब्धि पाये गए।
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क्रैविओटो और रोब्लस ने भी 20 शिशुओं का इसी प्रकार का अध्ययन किया था। इन शिशुओं को प्रोटीन बहुत ही कम मिलता था। ऐसे शिशुओं के गमन, भाषा और व्यक्तिगत सामाजिक व्यवहार आदि में त्रुटियाँ पाई गईं।
इस प्रकार मस्तिष्क की तीव्र वृद्धि के समय और कोशिका विभाजन के समय अल्प आहार या असंतुलित भोजन के कारण कई प्रकार के स्थाई मानसिक दोष बच्चों में आ जाते हैं।
2. माता-पिता व बालक में अन्तःक्रिया का प्रभाव – माता-पिता के मानसिक गुणों पर उसके माता-पिता का प्रभाव पड़ता है। अपने परिवार के सदस्यों का अनुकरण करके वह अनेक बातें सीखता है। का पर्यावरण बालक आत्म विश्वास की भावना पैदा करता है।
वुल्फ ने बुद्धि से सम्बद्ध पर्यावरण की प्रक्रियाओं का अध्ययन किया है। इस अध्ययन में उसने 13 प्रक्रियाओं के चरों का उल्लेख किया है। ये चर बुद्धि के विकास में, अभिभावक व बालक के मध्य होने वाली अन्तः क्रिया की व्याख्या करते हैं। इन चरों का वर्गीकरण इस प्रकार किया गया है— उपलब्धि अभिप्रेरणा का दबाव, भाषा विकास का दबाव, सामान्य अधिगम की व्यवस्थाएँ माता-पिता और बच्चे में अन्तः क्रिया इसलिए भी महत्त्वपूर्ण मानी जाती हैं, क्योंकि इसमें बच्चे की बुद्धि-लब्धि का निर्धारण होता है।
3. वंशानुक्रम- बालक वंशानुक्रम के माध्यम से मानसिक योग्यताएँ अर्जित करता है। इन योग्यताओं में वातावरण किसी भी प्रकार से परिवर्तन नहीं कर सकता है। गेट्स एवं साथियों के अनुसार, “किसी बालक का उससे अधिक विकास नहीं हो सकता जितना उसका वंशानुक्रम संभव बनाता है।”
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4. लिंग भेद- जन्म के पश्चात् सांस्कृतिक शक्तियाँ मानसिक विकास पर प्रभाव डालती हैं। यह सांस्कृतिक प्रभाव भी लिंग पर आधारित होता है। लिंग के आधार पर प्रशिक्षण में भी संस्कृतियों के कारण अन्तर हो सकता है। निम्न श्रेणियों के लड़के और लड़कियों को मध्यम और उच्च श्रेणी के लड़के-लड़कियों के अपेक्षा शीघ्र लिंग भूमिका के व्यवहार से परिचित करवा दिया जाता है। लिन के अनुसार औरतों का बौद्धिक विकास इनकी अन्तःक्रिया पर आधारित होता है—
(i) औरतों को मिली हुई जन्मजात कुछ शक्तियाँ जो उन्हें दूसरों की अपेक्षा कुछ अधिक भूमिकाएँ करने के लिए प्रेरित करती हैं।
(ii) माता-पिता और बच्चे का सम्बन्ध । यही शक्तियाँ पुरुषों के बौद्धिक विकास में भी सहायक होती हैं। माता-पिता और बच्चे की अन्तःक्रिया विशिष्ट मानसिक योग्यताओं और विशेषताओं के विकास के लिए अति महत्त्वपूर्ण होती है।
5. उपलब्धि अभिप्रेरणा की आवश्यकता और बौद्धिक विकास- मैक्कलैंड और एटकिन्सन व अन्यों के अध्ययनों के अनुसार प्रारम्भिक वर्षों में विकसित उपलब्धि अभिप्रेरक का सम्बन्ध माता-पिता की आकांक्षाओं से होता है।
सोन्टेग व अन्यों के अनुसार सीखने की उत्सुकता या ‘सीखने के लिए सीखना’ में बुद्धि-लब्धि में वृद्धि से सम्बन्धित होता है। इस प्रकार की रुचि में कमी या कम उपलब्धि-आवश्यकता कम बुद्धि-लब्धि के साथ सम्बन्धित पाई गई है। किशोरों की उपलब्धि आवश्यक या अधिगम-अभिप्रेरण बहुत से कारकों पर आश्रित है, जैसे माता-पिता और बच्चे के प्रारम्भिक सम्बन्ध, स्वयं का प्रत्यय, आकांक्षा स्तर और पिछले अधिगम अनुभव आदि।
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सोसैन्थल और जैकोबसन के शोध के अनुसार अध्यापकों की अपेक्षाओं का महत्त्वपूर्ण प्रभाव विद्यार्थियों के बौद्धिक विकास पर पड़ता है, क्योंकि अध्यापक ऐसे विद्यार्थियों, जिनके बारे में उनकी अपेक्षाएँ ऊंची होती हैं, की ओर ध्यान देते हैं।
6. स्कूल – बच्चे के मानसिक विकास में स्कूल का योगदान अति महत्त्वपूर्ण होता है। अध्यापक का व्यक्तित्व, शिक्षण विधियाँ, पाठ्यक्रम और पाठ्यक्रम सहगामी क्रियाएँ आदि सभी स्कूल के आवश्यक तत्त्व हैं। इन तत्त्वों का प्रभाव बालक के मानसिक विकास पर पड़ना स्वाभाविक ही है। कुप्पू स्वामी के अनुसार, “उत्तम स्कूल ऐसा पाठ्यक्रम प्रस्तुत करता है, जो विद्यार्थियों की रुचियों तथा आवश्यकताओं को पूर्ण करने हेतु अनेक क्रियाओं से युक्त होता है। ऐसा स्कूल स्वस्थ मानसिक विकास का एक वास्तविक कारक है।”
7. परिवार की सामाजिक व आर्थिक दशा- मानसिक विकास को प्रभावित करने वाला एक अन्य महत्त्वपूर्ण कारक है— परिवार की सामाजिक एवं आर्थिक दशा जिन परिवारों की सामाजिक दशा उत्तम होती है, उन परिवार के बालकों का मानसिक विकास अपेक्षाकृत अधिक होता है, क्योंकि उच्च सामाजिक दशा के परिवार के बालकों को मानसिक विकास के समस्त साधन उपलब्ध होते हैं। इसके विपरीत निम्न सामाजिक स्थिति के परिवार के बालकों का मानसिक विकास नहीं हो पाता क्योंक उन्हें साधन प्राप्त नहीं होते हैं। सामाजिक स्थिति के साथ ही परिवार की उत्तम आर्थिक दशा के परिणामस्वरूप भी बालक के मस्तिष्क का विकास अत्यन्त तीव्र गति से होता है।
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8. द्वन्द्व और कुसमायोजनाओं का प्रभाव- स्कूल और घर के द्वन्द्वों का बच्चों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। ये बच्चों में तनाव अन्य नकारात्मक प्रभाव उत्पन्न करते हैं, जिससे उनके विकास की प्रक्रिया में बाधा पड़ती है।
9. परिवार – बालक का मानसिक विकास, परिवार के विभिन्न चीजों के प्रति दृष्टिकोणों पर परिवार के सदस्यों के ज्ञानात्मक स्तर पर निर्भर करता है। परिवार में किस प्रकार की चर्चाएँ होती हैं, किस प्रकार की पुस्तकें या पत्रिकाएँ पढ़ी जाती हैं, इत्यादि मानसिक विकास के लिए उत्तरदायी हैं।
10. शारीरिक वृद्धि – शारीरिक वृद्धि और बौद्धिक विकास में बहुत सशक्त सह-सम्बन्ध होता हैं, एक सशक्त व्यक्ति में बुद्धि प्रायः उत्तम होता है।
11. वातावरण — व्यक्ति के बौद्धिक विकास के लिए वातावरण का भी बहुत योगदान होता है। व्यक्ति को उसकी बौद्धिक योग्यताओं के प्रदर्शन के लिए पर्याप्त अवसर दिये जाने चाहिए। भौतिक वातावरण भी बुद्धि को प्रभावित करता है ।
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