असमर्थी व्यक्तियों की राष्ट्रीय नीति का उल्लेख कीजिए।
असमर्थी व्यक्तियों के अधिकारों की रक्षा के लिए 10 फरवरी, 2006 को एक व्यापक नीति लागू की गयी जिसका मुख्य उद्देश्य संविधान में निहित सभी व्यक्तियों को समानता, स्वतंत्रता, न्याय तथा प्रतिष्ठा का अधिकार प्रदान करना था, तथा एक ऐसे समावेशी समाज का निर्माण करना था, जिसमें असमर्थी बच्चों एवं व्यक्तियों का स्थान सुरक्षित हो। आधुनिक समाज में समावेशी शिक्षा की धारणा से असमर्थी बालक भी सामान्य विद्यालय में शिक्षा का लाभ उठा सकते हैं जबकि पहले ऐसा नहीं था। आज सामाजिक परिवर्तन होने के कारण समाज इन असमर्थी बालकों की शिक्षा के लिए तैयार है और ऐसा माना जा रहा है कि यदि असमर्थी बालकों को शिक्षा के समान अवसर प्रदान किये जाय तथा उन पर विशेष ध्यान दिया जाय व उनकी शैक्षिक आवश्यकताओं की पूर्ति की जाय तो ये बच्चे समायोजन करने में सफल होंगे, उन्हें केवल वांछित सहायक सामग्री, उपकरण, सकारात्मक दृष्टिकोण एवं व्यावसायिक साधनों की आवश्यकता होती है। 2006 से पूर्व इन बच्चों की शिक्षा के लिए प्रयास किये गये जिन प्रयासों में कुछ सफलता मिली। इन प्रयासों से विशिष्ट शिक्षा प्रदान करने पर बल मिला।
2001 की जनगणना में कुछ आँकड़े स्पष्ट करते हैं कि भारत में 2.19 करोड़ असमर्थी व्यक्ति हैं, अभी 2011 के आँकड़े आने बाकी हैं। इन असमर्थी व्यक्तियों में अलग-अलग प्रकार के कुछ दृष्टि, कुछ शारीरिक, कुछ श्रवण, कुछ वाणी व भाषा, कुछ अन्य बाधा से असमर्थ हैं। कुल असमर्थी व्यक्तियों का 75 प्रतिशत जनसंख्या गांवों में निवास करती है। कुल असमर्थी व्यक्तियों का 49 प्रतिशत शिक्षित व 34 प्रतिशत रोजगार में हैं। लेकिन अभी भी कई व्यक्ति ऐसे हैं जो शिक्षा का लाभ नहीं उठा पा रहे हैं। इससे पूर्व इनके लिए व्यावसायिक पुनर्वास पर बल दिया जाता था जिससे वे अपने रोजगार को पा सकें व आत्मनिर्भर बन सकें लेकिन आज आवश्यकता यह हो गई है कि इन्हें व्यावसायिक पुनर्वास विशिष्ट विद्यालयों के माध्यम से दिया गया लेकिन अब सामाजिक रूप से स्वस्थ बनाने में व सामाजिक पुनर्वास के लिए समावेशी शिक्षा का प्रत्यय जोड़ा गया है। अर्थात् इन बच्चों को पृथक एवं विशिष्ट विद्यालयों में न ले जाकर सामान्य विद्यालयों में शिक्षित किया जाय जिससे इन बच्चों में सामाजिकता स्वयं ही आयेगी।
असमर्थी बालकों की शिक्षा के लिए कुछ कानून असमर्थी बालकों की सुरक्षा, स्वतंत्रता व अधिकारों से सम्बन्धित कुछ नियम एवं कानून बनाये गये हैं। 2006 की शिक्षा नीति से पूर्व प्रमुख कानून निम्न हैं-
(i) Rehabilitation Coucil of India, Act 1992: 1992 के इस एक्ट का सम्बन्ध मानव संसाधनों का विकास करने तथा असमर्थी बालकों के पुनर्वास के सम्बन्ध में सुविध प्रदान करने से सम्बन्धित है।
(ii) Persons with Disabilities, Act 1995: यह एक्ट असमर्थी व्यक्तियों को शिक्षा तथा नौकरी का अधिकार प्रदान करता है तथा इसमें बाधारहित वातावरण तथा सामाजिक सुरक्षा का प्रावधान भी है।
(iii) National Trust for Welfare of Persons with Autism, Cerebral Palsy, Mental Retardation and Multiple Disability Act, 1999: इस एक्ट के द्वारा असमर्थी बालकों के अभिभावक बनने की कानूनी प्रक्रिया निश्चित की गई है तथा इसके लिए स्वतंत्र तथा बाधारहित वातावरण का निर्माण करने का प्रावधान है जिससे असमर्थ व्यक्ति स्वच्छन्द रूप से जीवनयापन कर सकें।
उपरोक्त कानून के साथ-साथ अब सरकार ने कई ऐसी संस्थाएँ स्थापित की हैं जो इन असमर्थी व्यक्तियों की सुरक्षा, शिक्षा, व्यवसाय, पुनर्वास के लिए कार्य कर रही हैं। ये संस्थाऐं केन्द्रीय, राज्य, जिला तथा क्षेत्र स्तर पर कार्यरत है। इसके साथ-साथ लगभग 250 प्राइवेट संस्थाएँ इनकी शिक्षा व्यवसाय के लिए कार्य कर रही हैं वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में पंचाचती राज व ग्राम पंचायतों, ब्लाक स्तर पर इन बच्चों की शिक्षा व व्यावसायिक पुनर्वास के लिए कार्यरत हैं। इन सबके साथ-साथ वित्तीय विकास निगम (NHFDC) का विशेष योगदान है जो अपंग व बाधित व्यक्तियों को कम ब्याज पर धन उपलब्ध कराता है जिससे ये व्यक्ति स्वरोजगार कर सकें।
असमर्थी व्यक्तियों के लिए राष्ट्रीय नीति अधिनियम, 2006
राष्ट्रीय शिक्षा नीति अधिनियम, 2006 को अध्ययन की सुविधा के लिए निम्न प्रकार वर्गीकृत कर लेते हैं, ताकि इसे समझने में आसानी हो-
असमर्थी व्यक्तियों के लिए राष्ट्रीय नीति अधिनियम 2006 में जो सुझाव प्रस्तुत किये हैं, उपरोक्त चित्र उसका सारांश है। इस नीति में उपरोक्त बिन्दुओं के लिए सुझाव व कार्यक्रम निर्धारित किये गये हैं जिनकी विवेचना इस प्रकार है-
1.असमर्थ व्यक्तियों के लिए राष्ट्रीय नीति तथा मौलिक पक्ष- राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2006 में यह माना गया है कि असमर्थी एवं बाधित व्यक्ति भी समाज का एक अभिन्न अंग है, उन्हें भी समाज में रहने तथा समान अधिकार प्राप्त होने चाहिए तथा शिक्षा के समान अवसर मिलने चाहिए इसलिए राष्ट्र उनको जीवनयापन करने तथा समान अधिकार प्रदान करने के लिए। वचनबद्ध है।
इस शिक्षा नीति के मौलिक पक्ष इस प्रकार हैं-
(i) असमर्थता से बचाव एवं पुनर्वास-
इस नीति पर बल दिया जाता है कि सामान्य जनता को जागरूक बनाया जाय विशेष रूप से स्त्रियों को इस बात की जानकारी दी जाय कि माँ बनने की प्रक्रिया में किन बातों का ध्यान रखा जाय जिससे कि विकलांग व बाधित बच्चे पैदा न हों, पुनर्वास के सम्बन्ध में नीति तीन प्रकार से विभक्त किया गया है।
पुनर्वास के सम्बन्ध में शिक्षा नीति, 2006 में निम्न बातें स्पष्ट हैं जो उपरोक्त तालिका से स्पष्ट है।
a. शीघ्र पहचान- शीघ्र पहचान के लिए सरकार द्वारा जागरूकता कार्यक्रम चलाये जाऐंगे ताकि ग्रामीण जनता तक भी ये सूचनाएँ पहुँच सकें।
b. परामर्श व मेडिकल- इस नीति में सुझाव दिया गया है कि असमर्थी बालकों की पहचान कर उनके उपचार के लिए परामर्श व चिकित्सा की सुविधा उपलब्ध करायी जायेगी इसके लिए दैहिक चिकित्सा, मनोचिकित्सा, शल्य चिकित्सा तथा हस्तक्षेप की अन्य प्रविधियों का प्रयोग किया जायेगा। इस कार्य के लिए राज्य तथा अन्य सरकारी एवं गैर सरकारी संस्थाओं का सहयोग लिया जायेगा। असमर्थ व्यक्तियों का 75 प्रतिशत भाग ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करता है उनकी सुविधा को ध्यान में रखते हुए राज्य सरकार की सहायता से जिला असमर्थता पुनवांस केंन्द्र District Rehabilitation Disability Center DDRC की स्थापना की जायेगी तथा ग्रामीण जनता के स्वास्थ्य सम्बन्धी आवश्यकताओं पर ध्यान दिया जायेगा, इनके स्वास्थ्य की देख-रेख का काम ASHA (Accredit Social Health Activities) के द्वारा सम्पन्न किया जायेगा।
C. सहयोगी साधन- राष्ट्रीय नीति 2006 में दैहिक पुनर्वास के अन्तर्गत सहयोगी साधन की व्यवस्था करने पर ध्यान दिया जायेगा। असमर्थी बालकों के लिए पहिए वाली कुर्सी, साइकिल, बैसाखी, इन बच्चों को पढ़ने-लिखने में सहायक उपकरण ब्रेल पुस्तकें, टेप रिकॉर्डर, अन्य उपकरणों की व्यवस्था की जायेगी। असमर्थी बच्चों के लिए सहयोगी साधनों की उपलब्धता के लिए केन्द्र सरकार, राज्य सरकार तथा अन्य गैर-सरकारी संस्थायें सहायता करेंगी।
ii. शैक्षिक पुनर्वास-
असमर्थी बच्चों की शिक्षा के लिए संविधान की धारा 21 सभी को शिक्षा का मौलिक अधिकार प्रदान करती है तथा असमर्थ व्यक्तियों के लिए असमर्थता एक्ट का भाग 26 सभी असमर्थी बालकों को 13 वर्ष तक की आयु तक अनिवार्य एवं निःशुल्क शिक्षा की व्यवस्था करता है।
सर्व शिक्षा अभियान का भी मुख्य उद्देश्य सभी 6-14 वर्ष तक के बच्चों को अनिवार्य एवं निःशुल्क गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देना है। इस अभियान में बाधित एवं असमर्थी बालकों की शिक्षा के लिए वैकल्पिक शिक्षा, सहायक सामग्री की व्यवस्था, समुदाय आधारित पुनर्वास पाठ्य सामग्री की व्यवस्था, यूनीफार्म आदि की व्यवस्था करना सरकार का उत्तरदायित्व निर्धारित किया गया है। शैक्षिक पुनर्वास के अन्तर्गत निम्न बिन्दुओं पर ध्यान दिया जायेगा-
a. उपस्थिति व सतत्ता- असमर्थी बालकों को गुणवत्तापूर्वक शिक्षा प्रदान करने के लिए सरकार उन बच्चों का पता लगायेगी जो असमर्थी हैं व विद्यालय नहीं जा रहे हैं। इसके लिए सर्वेक्षण किया जायेगा और उसके आधार पर इन बच्चों को विद्यालय में नामांकित किया जायेगा। ऐसे बच्चों की शिक्षा के लिए सहायक उपकरण, पुस्तकें आदि की व्यवस्था की जायेगी।
b. छात्रवृत्ति- इस नीति में यह स्पष्ट किया गया है कि असमर्थी एवं बाधित बालकों को उनकी शिक्षा के लिए छात्रवृत्ति प्रदान की जा रही है। लेकिन उसमें भविष्य में विस्तार किया जायेगा। जिससे सभी असमर्थी बालक अपनी शैक्षिक आवश्यकताओं की पूर्ति कर सकें।
c. तकनीकी एवं व्यावसायिक शिक्षा- यह सुझाव दिया गया है कि असमर्थी एवं बाधित बालकों की दैहिक व मानसिक अक्षमता के अनुरूप व्यावसायिक शिक्षा को बढ़ावा दिया जायेगा। व्यावसायिक शिक्षा केन्द्र ग्रामीण क्षेत्रों में खोले जायेंगे इसके लिए विभिन्न गैर-सरकारी संगठनों का सहयोग भी लिया जायेगा।
d. विश्वविद्यालय तथा उच्च शिक्षा संस्थाओं तक पहुँच- असमर्थी बालक जो उच्च शिक्षा प्राप्त करने की इच्छा रखते हैं उनके लिये उच्च शिक्षा, तकनीकी संस्थान व विश्वविद्यालयों में विशेष सुविधायें प्रदान की जायेंगी।
iii. असमर्थी व्यक्तियों का आर्थिक पुनर्वास-
आर्थिक पुनर्वास से अर्थ है कि असमर्थी व असक्षम व्यक्तियों को आर्थिक रूप से मजबूत बनाना व उन्हें आत्मनिर्भर बनाना, इसके लिए दो प्रकार से आत्मनिर्भर बनाया जा सकता है। प्रथम नौकरी तथा द्वितीय स्व-रोजगार। इस नीति ने सुझाव दिया कि निम्न नीतियों के आधार पर असमर्थ व्यक्तियों का आर्थिक पुनर्वास किया जायेगा।
a. सरकारी नौकरियाँ :- के अनुसार सरकार की नौकरियों में असमर्थी व्यक्तियों के लिए तीन प्रतिशत आरक्षण की सुविधा प्रदान की गई है। केन्द्र तथा राज्य के सरकारी कार्यालयों, संस्थाओं में नौकरियों के A, B, C तथा D समूहों ने आरक्षण 3.07 प्रतिशत, 4.41 प्रतिशत, 3.76 प्रतिशत व 3.18 प्रतिशत आरक्षण दिया जाएगा।
b. गैर सरकारी क्षेत्र में नौकरी की व्यवस्था:- गैर सरकारी क्षेत्र में भी असमर्थ व्यक्तियों को रोजगार देने वाली संस्थाओं को भी प्रोत्साहित किया जाएगा। इस क्षेत्र में नौकरियों सम्बन्धी असमर्थ व्यक्तियों को टैक्स में छूट तथा पारितोषिक जैसे प्रलोभन दिया जाऐंगे। जिससे वे अपनी व्यावसायिक कुशलता का विकास कर सकेंगे।
c. स्व-रोजगार:- व्यावसायिक शिक्षा व प्रशिक्षण के द्वारा असमर्थी व्यक्तियों को स्वरोजगार के लिए प्रेरित किया जाएगा। असमर्थी व्यक्तियों को आसान शर्तों पर NHFDC की ओर से ऋण प्रदान किये जायेगा और यह ऋण कम ब्याज दरों टैक्स में छूट की जाएगी तथा स्वयं सहायता समूह योग्यता के अर्न्तगत विशेष आर्थिक सहायता प्रदान की जाएगी।
2. असमर्थी स्त्रियाँ:- भारत में बालकों के साथ-साथ अधिकांश स्त्रियाँ भी से असमर्थता से बाधित हैं। 2001 की जनगणना के के अनुसार 93.01 प्रतिशत लाख असमर्थी स्त्रियाँ हैं। जोकि सम्पूर्ण असमर्थी जनसंख्या का 42.46 प्रतिशत है, असमर्थी स्त्रियों को व्यावसायिक पुनर्वास, शोषण से रक्षा, उत्पीड़न से सुरक्षा की आवश्यक्ता है। इन्हें रोजगार की विशेष आवश्यकता है। राष्ट्रीय नीति में इनके लिए रोजगार व आवास स्थान बनाने का प्रावधान रखा है। इस नीति में असमर्थी स्त्रियों के लिए निम्न बातें कही गई-
असमर्थी स्त्रियों के लिए आवास व रोजगारकर्मी स्त्रियों के लिए हॉस्टेल बनाने का प्रावधान रखा है।
असमर्थी स्त्रियों के बच्चों की देखरेख के लिए अतिरिक्त भत्ता देने का प्रधान है। यह सहायता केवल दो बच्चों वाली स्त्रियों को ही प्रदान की जायेगी।
3. असमर्थी बालकः- भारत में असमर्थी व्यक्तियों का अधिकांश समूह बालकों का है जिनके लिए विशेष ध्यान रखने की आवश्यकता होती है। इस नीति में असमर्थी बालकों के लिए निम्न सुझाव दिये गये हैं:
(i) देखभाल एवं प्रतिष्ठा से विकास का अधिकार।
(ii) समानता एवं प्रतिष्ठा से विकास का अधिकार।
(iii) शिक्षा, स्वास्थ्य व व्यावसायिक प्रशिक्षण में समानता के अवसर ।
(iv) विकास का अधिकार तथा विशिष्ट आवश्यक्ताओं की पहचान ।
इस प्रकार की नीति में इस बात पर जोर दिया गया है कि असमर्थी बालकों को देखभाल, समानता, शिक्षा, स्वास्थ व व्यावसायिक प्रशिक्षण में समानता की आवश्यकता है।
4. अवरोधरहित वातावरणः- राष्ट्रीय नीति में इस बात पर ध्यान दिया गया कि असमर्थी बालकों एवं व्यक्तियों के लिए अवरोधरहित वातावरण का निर्माण किया जायेगा। ताकि असमर्थी व्यक्ति स्वतंत्र होकर अपना कार्य स्वयं कर सकें। इसके लिये शिक्षा संस्थानों में आने जाने के लिए सुविधा, सहायक उपकरणों की उपलब्धता आदि की व्यवस्था की जायेगी।
5. असमर्थ प्रमाण पत्र प्रदान करना:- सरकार इस बात के लिए दृढ़ है कि असमर्थी व्यक्तियों को असमर्थता का प्रमाण पत्र दिया जाय। इस प्रक्रिया के लिए सरल, पारदर्शी प्रक्रिया को अपनाया जायेगा। इस सर्टिफिकेट से इन्हें रोजगार के अवसरों में लाभ उठाने में सहायता मिलेगी।
6. सामाजिक सुरक्षा:- सरकार असमर्थी व्यक्तियों कि सामाजिक सुरक्षा के लिए वचनबद्ध है। इसके लिए सरकार ने निम्न उपाय अपनाये हैं:-
क. राज्य सरकार इन असमर्थी व्यक्तियों को असमर्थी भत्ता या असमर्थता पैशन प्रदान करती है।
ख. केन्द्र सरकार असमर्थी बालकों के अभिभावकों को टैक्स पर छूट देती है।
ग. कानूनी अभिभावक बनने का प्रावधान इसमें रखा गया है ये कानूनी अभिभावक बच्चे के माता-पिता की मृत्यु के पश्चात् उनकी देखभाल करते है।
घ. सहायक अभिभावक योजना के अन्तर्गत शारीरिक, मानसिक तथा बहु विकलांग बालको की देख-रेख के लिए सरकार आर्थिक सहायता प्रदान करती है।
इस प्रकार इस नीति में असमर्थी बालकों की सामाजिक सुरक्षा पर ध्यान दिया गया है। ताकि ये बच्चे व व्यक्ति समाज में आसानी से सुरक्षित जीवनयापन कर सकें।
7. गैर-सरकारी संस्थाओं को प्रोत्साहन:- विकलांग एवं असमर्थी बालकों व व्यक्तियों को रोजगार देने वाली गैर सरकारी संस्थाओं को प्रोत्साहन दिया जाएगा। जैसा कि अभी तक कई गैर सरकारी संगठन इनके लिए कार्य रहे हैं। इन संस्थाओं के साथ सम्पर्क बढ़ाया जायेगा व उन्हें प्रोत्साहित किया जाएगा। इस सम्बन्ध में नीति में निम्न बातों पर ध्यान दिया गया :
a. पिछड़े क्षेत्रों में कार्य करने वाली गैर सरकारी संस्थाओं को प्रोत्साहित किया जायेगा। तथा इन संस्थाओं को व्यवहार तथा नैतिकता के नियमित नियम विकसित करने के लिए प्रेरित किया जाएगा।
b. गैर-सरकारी संस्थाओं की एक डायरेक्टरी बनाई जायेगी जिसमें इन संस्थाओं का विवरण दर्ज होगा तथा इसके अतिरिक्त इसमें असमर्थी व्यक्तियों के संगठन माता-पिता की समितियाँ आदि जो भी संस्थायें छोटी-बड़ी इस क्षेत्र में कार्यरत हैं उनका नाम इस डायरेक्टरी में होगा। जिससे इनके कार्य व उनका पता आसानी से लगाया जाएगा जा सके।
C. गैर-सरकारी संगठनों को मानव संसाधनों के विषय में प्रशिक्षण के अवसर प्रदान किये जायेंगे इन संगठनों द्वारा पहले से दिये जा रहे प्रबन्धन प्रशिक्षण को और मजबूत बनाया जायेगा।
d. गैर-सरकारी संस्थाओं को अनुदान के लिए सरकार पर कम निर्भर होने तथा स्वयं अपने संसाधनों का अधिक विकास करने पर बल दिया जायेगा।
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